एक गांव में मां अपनी 14 साल की बेटी के साथ रहती है, उनका अपना बोलने के लिए कोई नहीं है, दोनों एक-दूसरे का सहारा है, मां गांव में लोगों के, घर में काम कर अपनी जीविका चलाती और मिनी को पढ़ाती बड़ी मुश्किल से उनका गुजारा चलता, मां जब रात को सोती तो दरवाजा, खिड़की अच्छी तरह बंद करके सोती, मिनी यह देखकर हंसती और कहती.......
'कृष्ण' को आज हम सब भगवान के रूप में पूजते है, पर जब कृष्ण की बाल लीला चल रही थी, उस समय के लोग उन्हें एक बहुत ही चंचल, चालक और बहादूर बालक समझते थे, बालक जितना भी बहादूर क्यों ना हो, मां के लिए चिंता कम नहीं होती,मां के लिए हर बालक भोला-भाला, नासमझ बच्चा ही रहता है, माता यशोदा हमेशा कृष्ण के लिए चिंतित और परेशान रहती थी, कितना भी कोई बोले की कृष्णा बलशाली है, कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता, इन
मानव सृष्टि की सबसे श्रेष्ट रचना है, इसलिए यह बुद्धिजीवी माने जाते है, मानव अपने गुण मानवता से जाना जाता है, मानवता विहिन मानव, दानव समान है,
"मनुष्य है वहि कि जो मनुष्य के लिए मरे" कोई भी मनुष्य कितनी भी धन संपदा का मालिक क्यों न हो जाय, उसे किसी-न-किसी कि जरूरत पड़ती ही है, मानव अकेले नही रह सकता, समाजिक जीव होने के नाते, समाज कि जरूरत है,
हर माँ-बाप अपने सामर्थ और ज्ञान के आधार पर अपने बच्चों कि परवरिश करते है,कोई नहीं चाहता कि उनके बच्चे बड़े होकर चोर, बदमाश और असम्य बने, फिर भी,,,,,,,,,,,,,,,
'रीमा' दो भाइयों के बाद मन्नत से मांगी हुई, संतान है, घर मे सबकी लाडली होने के कारण, थोड़ी जिद्दी है, उसे जो चाहिए यानि चाहिए, मिलनसार स्वभाव से सबके दिल पर राज करती है,