ऐसी कौन सी चीज है, जिसको जितना बाँटते है उतना ही बढ़ता जाता है, सबको पता है, कोई भी समान बाँटने से धीरे-धीरे कम होता है फिर खत्म हो जाता है, मगर कुछ है जो बांटने से ही बढ़ता है, जैसे..... विद्या, बुद्धि, प्यार, खुशी, अपनापन,
कंचन की कहानी, उसकी ही जुबानी........................
मानव शरीर भगवान द्वारा दिया हुआ, अनमोल उपहार है, इसकी किमत लाखों-करोड़ो में भी नहीं आंकी जा सकती, हर एक अंग का अपना ही कार्य है " आँख " वह अनमोल अंग है जिससे संसार की खुबसूरती को देख सकती है,खुशनसीब है वो लोग, जिनको "आंखों की ज्योति" मिली है, क्योंकि यह सब को नसीब नहीं होता, र्दुभाग्यवश कुछ आंखे जन्म से ही ज्योति विहिन होती है, तो कुछ किसी र्दुघटना का शिकार होकर ज्योति खो देते हैं,पहले की बात औ
मैं 'रानी' 42 साल के पड़ाव में आकर, पीछे मुड़कर देखने पर ,जिस दलदल में मैंने 20 साल पहले कदम रखा था, आज अपनी बेटी को उसी दलदल में खड़ी पा रही हूं, इससे दूर रखने की मेरी हर एक कोशिश बेकार, कौन दोषी है...... मैं, मेरे पति, हालात, गरीबी , या किस्मत का लिखा मान लु,
मेरा दिल सबकी सुनता, पर मेरी नहीं, इसकी हरकतों से परेशान हूं, आखिर ये चाहता क्या है,मेरी आपबीती सुने और बताये,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सतयुग के लोगों के लिए " रूपया " ही सब कुछ नहीं होता था क्योंकि ' सामान के बदले सामान ' का आदान-प्रदान हुआ करता था, बहुत से चीजे तो निःशुल्क मिलती थी, जैसे कि प्यार,अपनापन, सम्मान, श्रद्धा इत्यादि.................
विश्वास पात्र इंसान से जब, विश्वासघात मिलता है तो जिंदगी बिखर सी जाती है और समय जाते-जाते सिखाकर कर जाता है कि राह में फूंक-फूंक कर पांव रखना चाहिए, फिर दुःखी इंसान छांछ भी फूक कर पीता है,
"यह कहानी आज की पीढ़ी के स्वभाव और सोच पर आधारित है"
मैं 'रोहित' 22 साल का B.A का छात्र हूं, लड़कियाँ मुझ पर फिदा रहती है, मैं अपनी प्रशंसा नहीं कर रहा पर लोग कहते है कि मैं स्मार्ट लगता हूं, सूरत में मैं पापा जैसा हूं पर सिरत मेरी अपनी है, मैं कभी भी अपने पापा जैसा गैरजिम्मेवार नहीं होना चाहुंगा,
मानव शरीर पांच तत्वों के संतुलित मेल से बना है,(वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, आकाश)संतुलन बिगड़ा नहीं कि खेल खत्म, जिंदगी मौत में बदल जाती है,शारीरिक बीमारी, चिंता का कारण नहीं, हर एक बीमारी की दवा है, "मन" बीमार हो तो सच में चिंता का विषय है, बीमार मन महौल को भी बीमार कर देता है,