Stories

मैं नासमझ थी,

आज से एक साल पहले की बात है, मम्मी-पापा सब समझा-समझाकर थक चुके, पर मैंने अपनी जिद के आगे किसी की एक ना सुनी, मैं M.a.c की छात्रा हूं, कोई अनपढ़ गवार नहीं, जो अपने लिए गये फैसले को, किसी की राय पर बदल दू, शायद एकलौती संतान होने के नाते मैं जिद्दी भी हूं, पापा का अच्छा job है, मेरी शादी के लिए अच्छे-अच्छे रिश्ते आ रहे है,मैं सबको नाकार दे रही हूं, एक दिन मम्मी का गुस्सा अपनी चरम-सीमा पर था,

"मौत" पास बुलाती है,

मौत साजिश कर, पास बुलाती है या खुद पास आ खड़ी होती है, हम नासमझ कुछ समझ नहीं पाते कि हमारे साथ क्या हो रहा है, जब-तक हम इसके साजिश को समझ पाते है तब-तक वह सबकुछ खत्म कर चुकी होती है,

दूसरे ' रूप ' से अनजान

हर इंसान के दो रूप होते है, एक तो वो, जो वो है, दुसरा जो वो, दिखना चाहता है, दोनों रूपों में लगभग 50 % समानता होती है पर किसी-किसी इंसान का दोनों रूप एक-दूसरे से बिल्कुल विपरीत, जैसे......... जो हम देख पा रहे है, वो' भगवान ' की तरह दयालु और कृपालु है, जो छिपा हुआ है, वह रूप ' दानव ' के समान डरावना और नफरत के काबिल,

"शादी" मेरी जरूरत थी,

'शादी' एक पवित्र रिश्ता है पर इस रिश्ते में बंधने वाले दो परिवारों कि कुछ या बहुत कुछ आकाक्षाएँ होती है, लड़की वाले अपने बेटी की खुशी को ध्यान मे रखते हुए किसी रिश्ते को अपनाते है, उसी प्रकार लड़के वालों को जब लगता है कि यहि हमारे घर के मान-मर्यादा मेें चार चाँद लगाने वाली बहू है, तभी उसे अपनाते है,बहुत छान-बीन के बाद ही कोई रिश्ता जुड़ता है, फिर भी शादी के बाद दोनों परिवारों की अपनी-अपनी राय ह

'विकलांगता' लोगों की सोच में है,

"God Gift" में मिली, मानव शरीर कितना अनमोल है, इसका पता तब चलता है, जब कोई अंग खो देते है, उनसे पूछे जिनमें, जन्म से ही किसी कारणवश उनकी संरचना में त्रुटि रह गई है, गलती किससे और कहॉं हुई ? इसका कोई जवाब नहीं पर हम नासमझ इंसान, उसे विकलांग की उपाधि दे देते है,

विकलांग की परिभाषा क्या होनी चाहिए,,,,,,,,,,,,,,,,,,?

क्या शारीरिक कमी को विकलांग कहना उचित होगा ?

Unself childhood( गांव या शहर में)

'बचपना' एक प्यारा सा स्वभाव है, किसी मे बचपना कब तक है या किस उम्र के बाद इसे हमारा साथ छोड़ देना चाहिये, और हमें समझदार बन जाना चाहिये, इसकी कोई सहि माप-तोल नही है, जब तक किसी के ऊपर उसके मां-बाप का साया है, वह उनकी छत्रछाया मे, अपने बचप,ने को महसूस कर रहा है,

"जान भी निछावर"

'दीदी की शादी' की कुछ धुंधली सी यादें है, तब मैं 5 साल की थी, बहुत ही धूम-धाम से व्याह हुआ, उनकी उम्र लगभग 20 साल की होगी, विदाई के समय जितना वो रो रही थी, उन्हें रोते देख मैं भी उतना ही रोये जा रही थी,मैं भी, उनके साथ उनके ससुराल आयी थी, दो दिन बाद बड़े भैया जाकर मुझे ले आते है,

दिल के विरूद्ध

जब दिल से बाते करो तो, आपके अच्छें कामो में हामी भरता है और बुरे कामो में नाराजगी दिखाता है, हर इंसान कि यहि कोशिश होती है, अपना होया किसी का, दिल को दुःखी न किया जाय, ये खुश तो सब खुश, कभी-कभी ऐसे हालात आते है, जहाँ हमे दिल के विरुद्ध जाना पड़ता है, आंखों में पानी और ओठो पर हंसी होती है, सही गलत के दलदल में फँस जाते है, बहुत ही मुश्किल घड़ी होतीहै,

"परंपरा" बोझ क्यों बन गई

जैसे-जैसे मानव सभ्यता का विकास हुआ, तो समाज का निर्माण हुआ, समाज को अनुशासन में रखने के लिए, समाज के ठेकेदारों ने अनेको परंपरा का निर्माण किया, कुछ तो सही  और जरूरी थी, पर कुछ परंपरा पुरुष प्रधान समाज ने अपने भोग-विलास को ध्यान में रखते हुए बनाया,

"जान" भी ले लेते

कभी-कभी, किसी-किसी, के साथ भगवान इतना बुरा करते है, मानो उस इंसान और भगवान के बीच'जानी दुश्मनी' है, कोई इंसान भी, किसी इंसान के साथ, इतना बुरा करने के पहले दो बार जरूर सोचेगा,तो उन्होंने क्यों नहीं सोचा कि वो क्या करने जा रहे है, किसी के साथ इतना बुरा करने से अच्छा तो आप उसकी 'जान' ही ले लो, रोज मरने से अच्छा, एक दिन मरना