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''बेटे की चाह" में घर बर्बाद

ये कैसी विडंबना है कि नारी का समाज में इतने योगदान के बाद भी वो सम्मान नहीं मिला, जितनी की वो हकदार है, इसके पीछे शायद नारी ही दोषी है,

जब हम बेटी होते है तो अपने हक के लिए लड़ते है, शादी के बाद जब मां बनने वाले होते है तो ' बेटे की चाह ' रखते है, ऐसा क्यों,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

क्या हम खुद को अपने भाईयों से कम सामर्थवान मानते है ?

अनुभवी बातें........1

0...अनुभव के बिना ज्ञान अधूरा है,ऐसे बहुत से ज्ञान है, जो हमारे अनुभव के बिना अधूरे है, दुःख-सुख,

    प्यार-नफरत, अमीरी-गरीबी, इत्यादि ये सब केवल शब्द नहीं है, इन्हें अनुभव किया हुआ, इंसान ही

    इन शब्दों का सहि  मतलब जानता है,

 

लेना था, तो दिया "क्यों"

ये कहानी एक ऐसे भक्त की है, जो भगवान से ऐसा नाराज हुआ कि उसने उनसे सारे रिश्ते-नाते तोड़ दिये,

 

" क्या सही क्या गलत "

" चांदनी" साधारण घर की, सामान्य शिक्षा प्राप्त, मगर बहुत ही समझदार और सुशील लड़की है, मामा-मामी के पास पली-बड़ी बहुत ही संस्कारी है, उसने जो सिखा और जिंदगी ने उसे जो सिखाया, उसी के आधार पर उसी की जुबानी, उसकी आपबीती सुनते हैं, आंख भर आये तो रोक लेना, इन्हीं आंसूओं को पीकर वह जिंदा है "

प्यार हो तो "ऐसा"

यह कहानी उस लड़की की है, जो ' प्यार ' से अनजान है.......................

" तुम भी " चली गई

'मोहब्बत' तो सदियों से होता आया है, आज भी है और कल भी रहेगा, जितने ही पहरें बैठाये गये, उतना ही विराट रूप धारण कर वगावत करता आया है, समाज मोहब्बत के विपक्ष में और प्रेमी-प्रेमिका इसके पक्ष में संघर्ष किये जा रहें है, कभी ना खत्म होने वाला युद्ध चलता रहेगा’

90 बर्ष के 'बुर्जुग प्रेमी' की कहानी, उनकी जुबानी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

दिल की बाते

जो हमारे वश में है, वो कर सके...... इतना शक्ति दे,

जो वश में नहीं, वो स्वीकार कर सके.... इतना साहस दे,

इन दोनो के अंतर, को समझ सके....... इतना ज्ञान दे,

 

जीने के दो ही तरीके है........

खुद को, दुनियां के रंग में, रंग लो, या

दुनियां को, खुद की रंग में, रंग लो,

 

कुछ पुस्तकें चखने के लिए होती है,

कुछ निगलने के लिए होती है,

अनमोल बातें

कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, हम सबको पता है,

क्या पाने की चाह में क्या खो रहे है, ये भी पता होना चाहिये,

 

यूँ तो है जफर.लाखों इन्सान की सूरत

मगर इन्सान वही है, जिसमें हो इन्सान की सीरत,

 

समय तेज धारा वाली नदी है, जो हर चीज को,

अपने साथ बहा ले जाती है,

 

सुन्दर क्या होने से ही, कोई सुन्दर हो जाता है,

" माफ " नहीं कर सकती

मिश्रा जी का परिवार बहुत ही खुशहाल परिवार है, पति-पत्नी और दो बेटे, सबकुछ ठीक चल रहा है, पर नियती का लिखा कौन मिटा सकता है, एक बार सब घुमने जाते है, नाव में सफर करते वक्त थोड़ी सी असावधानी से नाव पलट जाता है,सब बच जाते है पर श्रीमती जी की मौत पानी में डुबने के बहाने से होनी थी,उन्हें नहीं बचा पाते, दोनों बच्चे बिन मां के हो जाते है, ऐसा लग रहा था मानो मौत सिर्फ 10-13 साल के बंटु-मंटु के मां को

"Radhikalaya" बनाने के पीछे की कहानी,

बात उस समय की है, जब मैं 12 साल की थी, हमारे स्कूल में लड़कियों को कबड्डी सिखाने का नया कोर्स शुरू किया गया, जिन-जिन लड़कियों को सिखना था, उन्हें एक फार्म दिया गया, जिसे 2 दिन में भरकर जमा करना था, मैं भी सिखने के इच्छुक फार्म लेकर घर आती हूं, पापा जब शाम को ऑफिस से आते है तो उन्हें दिखाया, पापा देखकर बोले... ठीक है कल रविवार है, शांती से फार्म भर दूंगा, अभी पढ़ाई करो,