अनुभवी बातें .....2

अनुभवी बातें .....2

26…. एक ही कोख "धरती माता" से जनमें दो सगे भाइयों को, इस स्वार्थी दुनियां वालों ने, एक-दुसरे को

        इतना दूर कर दिया कि वो आज भी एक-दुसरे के लिए तड़पते है,एक दिन एक सोनार कि दुकान

       पर ' हीरा ' गलती से  तिजोरी के बाहर रह गया, और  सोनार दुकान बंद कर के चला जाता है, उस

       दिन हीरा और कोयला  दोनों भाइयों ने दिल खोलकर एक-दुसरे से बातें कि, उसी आधार पर 'आप

       'बतायें अनमोल कौन है,

 

27….  जितना यह दोषी है, उतना ही दोषी आप लोग भी है,आपकों रोने का" हक" नही है, बेटी कि शादी

         का मतलब, उसे भूल जाना नही होता, अगर बेटी इतनी ही बोझ है, तो उसके जन्म लेते ही मार

         डालों, कोई और आपकी बेटी को घुट-घुट कर मरने के लिए, मजबूर करें, इससे अच्छा उसे जन्म

         देने वाला ही मार डाले,

 

28….मैं भी शर्मशार थी, उसकी ऐसी हरकत से, एक औरत ने पूरे" औरत जाती" को बदनाम किया,

       कम-से-कम मां के फर्ज को पूरा करती, मां के नाम को भी बदनाम किया, बहुत शर्म की बात है,

       लेकिन मेरा दिल यह जानने के लिए हमेशा बेचैन रहता, ऐसा क्या हुआ होगा, कि वह ऐसा कदम

       उठाई होगी, क्या प्यार इतना अंधा होता है कि उसके आगे कुछ नही दिखता, किसी कि दलिल सुने

       बिना उसे मुजरिम करार नहीं करना चाहिए, सच किसी को पता नहीं चला,

 

29…..नही दोस्त, तुम चुप रहोगे, तुम्हें हमारे सच्चे प्यार कि कसम, मैं तुम्हारी जिंदगी में नही

         होते हुए भी, तुम्हारें दिल के एक कोने में हमेंशा रहुंगी, तुम मेरी जिंदगी से जाओ, जो सब

        जानते कि, मुझे कुछ' याद ‘नहीं, तुम भी वहि जानो,.................................

 

30…."सम्य समाज मे भी, बेंटियां सुरक्षित नही है, तो कहां और कैसे  सुरक्षित होगी" इस कहानी के        

 

       माध्यम से मै कहना चाहती हूं....... हर इंसान में, एक सोया हुआ शैतान होता है, बेंटियों को ऐसी

      शिक्षा कि जरूरत है, जिससे वो, जागते हुये शैतान को पहचान सके, और उस इंसान से दूरी बनाकर

      खुद को सुरक्षित रख सके,

 

31….जो लोग खास होते है, उनकी सोच आम लोगों की तरह नहीं होती,शेखर मे वो बात है जो उसे खास

          बनाती है, नवयुवक होकर भी, सभी बुरी आदतों से दूर, एक समझदार नागरिक है, जो अपने

           आपको देश कि सेवा में लगाये रखता है, भगवान करे, वो हर कठिनाई को पार करते हुए, आगे

            बढ़ते जाये,

 

32….जब कोई कहानी, मन मे होती है, लेखक कि जान होती है, अपनी जान को जब कोपी पर संभालते

         हुए बड़े ही प्यार से रखता है, तब लेखक के मन और कोपी के बीच तीसरा कोई नही होता, उस

          वक्त कहानी नवजात छोटे बच्चें के समान, शुद्धता से पूर्ण होती है, कोई मिलावट नही होता ,

 

33….मैं ठिक हूं, आज कल बोल-चाल की भाषा बन गई है, राह चलते-चलते ऊपर के मन से ही, हम

       किसी से पूछ लेते है..... कैसे हो, उधर से जबाब आता है.......मैं ठिक हूं,

       क्या ठिक है और कितना ठिक है, ये हम दिल से न ही पूछते है, न ही कोई जल्दी अपने दिल की

        बात, आपसे शेयर ( बांटता) करना चाहता है,हम दिखावटी हंसी हंसते है, क्योंकि हंसता हुआ चेहरा

         ही लोगों को भाता है, कम-से-कम अपनो के बीच यह दिखावटीपन नहीं होना चाहिये, पर होता है,

 

34…..मेरी मौत के जिम्मेवार कोई नही है,मुझे औरों कि तरह नौ-छौ नही आया, मेरे भोलेपन ने मुझे कब

       का मार दिया था,मैं चलती-फिरती लाश थी, जिसे आज आग के हवाले कर रही हूं "

 

35….गांव की सादगी और अपनापन, हर एक को अपनी ओर खींचती है, मैं भी शहर की व्यस्त जिंदगी,

        से दूर गांव कि ओर जा रही हूं, 'सियालदा to बलियां' ट्रेन को इस सुहाने सफर के लिए चुना है, यह

        ट्रेन पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश को छुते हुए जाती है,इसके खिड़की के पास

        बैठकर, चारों राज्यों के प्राकृतिक सौन्दर्य को अनुभव किया जा सकता है,

 

36….. क्या होता अगर मेरा एक बेटा होता तो, आपकी संम्पती दो कि जगह तीन भाग मे बट जाती,

            इससे ज्यादा क्या होता, एक बार कह देते कि मेरे बेटे को संम्पती का हकदार नहीं मानते, मैं

            उसे कहीं और लेकर चली जाती, लोगों के घर काम करके अपने बेटे की परवरिश कर लेती,

            आपने उसकी हत्या के साथ-साथ, उस गर्भ को ही हमेशा के लिए नष्ट कर दिया, जो मुझे मां

            बनने का सौभाग्य प्राप्त कराता, आप स्वार्थी हो,ये मैं जानती थी, पर इतने कठोर दिल वाले हो

             ये भी जान गई,

 

37….'मोहब्बत' तो सदियों से होता आया है, आज भी है और कल भी रहेगा, जितने ही पहरें बैठाये गये,

        उतना ही विराट रूप धारण कर वगावत करता आया है, समाज मोहब्बत के विपक्ष में और

          प्रेमी-प्रेमिका इसके पक्ष में संघर्ष किये जा रहें है, कभी ना खत्म होने वाला युद्ध चलता रहेगा’

 

38….प्यार और दोस्ती, एक ही सिक्कें के दो पहलु है, अगर प्यार चित (head) है तो दोस्ती पट

     (Tail), जिस प्रकार एक सिक्का टकसाल से तब बाहर भेजा जाता है यानि सहि साबित किया

      जाता है, जब उस सिक्के के चित और पट दोनों ही हो,अगर किसी कारण से चित या पट कोई

      भी नही छप पाया तो उसे खोटा सिक्का करार दिया जाता है, केवल चित होने से नही चलेगा या

     केवल पट होने से भी नही चलेगा,उसी प्रकार इंसान कि जिंदगी में भी, प्यार और दोस्ती दोनों ही

     जरूरी है, किसी एक के बिना, जिंदगी खोटे सिक्के के समान हो जाती है, जिस प्रकार चित और

     पट, एक साथ नही मिल सकते, उसी प्रकार प्यार और दोस्ती, दोनों अलग-अलग है, प्यार को

       दोस्ती और दोस्ती को प्यार समझने कि भूल नहीं करनी चाहिए,“सह शिक्षा

        (co-education) होने के कारण, आजकल के लड़के-लड़कियों के बहुत से दोस्त होते है पर

        प्यार एक से ही होता है”प्यार एक पवित्र रिस्ता है, जिसे समाज अग्नि के सात फेरे लेने के

         बाद मान्यता प्राप्त करती है, इसलिए प्यार के साथ कोई खिलवाड़ नही होना चाहिये, सच्चा

          प्यार जिंदगी में एक बार ही होता है,दोस्ती को प्यार से भी, ज्यादा पवित्र माना गया है,

           इसमे किसी अग्नि के फेरे की, किसी कसमों की, किसी वादो की जरूरत नही,दोस्ती

           निस्वार्थ होता है,

 

39….आग में घी डालना एक " अवगुण " है, इस अवगुण के कारण कितने घर बर्बाद हुए है, इतिहास

        गवाह है....... 'शकुनी मामा' ने महाभारत के युद्ध में, आग में घी डालने, का काम अच्छी तरह से

         किया है, दासी मंथरा, भी इस अवगुण से भरी हुए के कारण बदनाम है,

 

40…."अनिता भगवान पर इतना भरोसा करती है कि उसे लगता है, जब भगवान कि मर्जी के बिना, एक

        पत्ता नही हिल सकता, तो उसके साथ ये अन्याय कैसे हो सकता है, शायद जो कुछ भी हुआ या आगे

       होगा, सब 'रब' दी मर्जी है"

 

41….अनु को,मुकेश के प्यार मे वो कशिश नही दिखता, जो मोहिनी के लिए लिखें गये खत में होता था,

         अनु के पास उसका प्यार मुकेश है, फिर भी दिल खाली है, सच में' पहला प्यार' ऐसाछाप छोड़ जाता

         है, जो कभी नही मिटता......

 

42…जिंदगी क्या है और कितनी अनमोल है, यह समझनें के लिए अस्पताल से बेहतर जगह हो ही नही

       सकती, जहां हर सेकेंड पर जिंदगी और मौत आमने-सामने खड़ी होती है,इंद्रधनुष के समान, सात

      रंगों से भी ज्यादा रंग है इस जिंदगी में, इसलिए आज तक इसकी कोई परिभाषा नही बनी, श्वासं का

     चलना जिंदगी, रूक जाना मौत नही होता, क्योंकि कभी-कभी जिंदा इंसान भी 'शव' के समान

     मूल्यहिन होता है और कोई-कोई मर कर भी अमर और मूल्यवान बन जाता है,

 

43….बेटी अपनी मां की छाया होती है, सपना होती है, पहचान होती है, फिर भी ऐसी कौन सी मजबूरी

      होती है, जिसके कारण खुद मां अपनी गर्भ में पल रहे बेटी की हत्या कर रही है, हत्यारन मां खुद से

      कैसे नजर मिलाती होगी, मां के इजाजत के बिना, कोई भी डाक्टर, उसके गर्भ के शिशु को नष्ट नही

       कर सकता, ये बात और है कि मां ने इजाजत दी कैसे.......?क्या उसे मजबूर किया गया या वो खुद

       नही चाहती कि वो' बेटी' की मां बनें, जब तक इस समस्या के जड़ तक नही जाया जायेगा, तब तक

       कोई भी अभियान, कोई भी कानून, किसी काम की नही,

 

44….पुराणों में लिखा है, कि बृहस्पति (देव) की शादी नही हुई है, इसलिए जिस लड़की की शादी नही

      लगती, उसे इनकी पूजा करने की सलाह दी जाती है, पूजा में फूल-फल, सब पीले रंग के इस्तेमाल

      की जाती है, केले के पेड़ की पूजा करते है, यहां तक की पूजारन भी पीले वस्त्र को धारण करती है,

 

45….अगर गुस्सें को छोड़, थोड़ से दिमाग का इस्तेमाल किया होता, नीचे आकर ये

        जानना चाहिये था,कि फ्यूज किसने और क्यों निकाला है, तो आज पापा कि ये हालत नही

         होती,मैं'खुद'को कभी माफ नहीं कर सकती, आप सब मुझे, मेरे पापा के कर्तव्यों को पूरा

           करने का मौका दे, मैं वादा करती हूं कि दोनों बहनों कि शादी और दोनों भाईयों कि पढ़ाई

            कराना आज से मेरा फर्ज है,

 

46….मैं स्वाती हूं, यह नाम मेरे मम्मी-पापा ने बड़े प्यार से रखा है,'स्वाती' एक नक्षत्र है, जिसका पानी

      साल में एक बार धरती को नसीब होता है, जिसका इंतजार चकोर पक्षी से लेकर, सीप, केले का पेड़

      और सर्प तक करता है, इस जल कि ऐसी विशेषता है कि सीप से मिलकर मोती, केले के पेड़ से

       मिलकर कपूर, सर्प से मिलकर उसकी ताकत बिष बनाता है,चकोर के लिए तो इसका जल अमृत

       समान है, वह जब भी जल ग्रहण करता है इसी स्वाती नक्षत्र के जल को ही लेता है वर्ना प्यासा प्राण

      त्याग देता है,लोगों का नामकरण तो जन्म के बाद होता है, पर मेरी मम्मी ने जब सोचा कि उन्हें

      एक प्यारी सी बिटियां चाहिये, तब ही मेरा नामकरण कर दिया,” काश "मेरा जन्म होता ताकि मैं

     अपने नाम की सार्थकता को समझती, मैं अजन्मी रह गई, पर आज भी मेरे नाम की संस्था मम्मी

     चलाती है, उन्होंने मुझे कभी नही भुला,मुझे बहुत दुःख होता है, जब वो मेरी याद में रोती है, हर एक

      लड़की में मुझको देखती है, कि आज उनकी स्वाती होती तो कैसी होती,मेरा दिल तड़प जाता है ,

     उनकी आंसू पोछने के लिये,

 

47…."माँ" शब्द भी मां के समान पूज्यनीय है, सारी दुनियां स्वार्थी हो सकती है पर मां नही,सबसे बड़ा

       सुख है अपने बच्चे के मुख से' माँ 'सुनना, इसपर स्वर्ग का खुश भी निछावर है, ये बात हमसब

       जानते है पर , मेरी ये कहानी मां के एक अलग रूप को दर्शती है, सच को सामने रखना, मेरा उद्देश्य

        है, किसी के दिल को ठेस लगे तो क्षमा करे,

 

48….“आंखों से जब, आंसुओं की जल-धारा निकलती है, तो गालों को छुती हुई, ओंठों तक पहुंचती है, तब

        हमे उन्हें पीना आ जाता है, जब धारा तेज होती है और पीने की क्षमता से बाहर होती है, तो टप-टप

         करके. धरा पर गिरती हुए, इतनी कष्टदायी होती है कि' धरती माता ' तक का सीना चीर देती है”

       'सीता जी 'जो राजा जनक की बेटी, राजा दशरथ की बहु, श्री राम जी की भार्या, लक्ष्मण, भरत और

       शत्रुघ्न की' भाभी मां 'होते हुए, उन्होंने जितने रोये है, भगवान न करे, कभी किसी को उतना रोना

      पड़े,लेकिन उनकी स्थिति से यह शिक्षा जरूर मिलती है कि नारी और आंसू का गहरा संबध है,

 

49….इंसान की जिंदगी' कटी पतंग' के समान है, जिस प्रकार पतंग जब तक आकाश मे, खिल रहा है

       उसके समान खुशनसीब कोई नहीं, हवा से बाते करते हुए, मस्ती में झुम रहा है, ठिक उसी प्रकार

         हम इंसान की जिंदगी में, जब तक हम आगे, और आगे बढ़ते कामयाबी की ओर बढ़ रहे है, तब

        तक हम खुद को भाग्यशाली मानते है,जैसे ही पतंग के डोर के समान, किस्मत रूपी धागे से नाता

         टुट जाता है, हम भी कटी पतंग कि तरह, अपना आस्तिव खोने लगते है,

 

50….  प्यार तो एक प्यारा सा एहसास है, किसी को हर हाल में पा लेना, प्यार नही होता, बदकिस्मती से

          कुछ लोगों के लिए प्यार 'सौदा' बनकर रह गया है, प्यार बदनाम होकर रह गया, सामाजिक

          मान-मर्यादा को ताख पर रख दिया”

                                                                                             Rita Gupta.