अनुभवी बाते......3

अनुभवी बाते......3

51….कभी-कभी, किसी-किसी, के साथ भगवान इतना बुरा करते है, मानो उस इंसान और भगवान के

       बीच'जानी दुश्मनी' है, कोई इंसान भी, किसी इंसान के साथ, इतना बुरा करने के पहले दो बार जरूर

       सोचेगा,तो उन्होंने क्यों नहीं सोचा कि वो क्या करने जा रहे है, किसी के साथ इतना बुरा करने से

       अच्छा तो आप उसकी 'जान' ही ले लो, रोज मरने से अच्छा, एक दिन मरना

 

52…. काश, मैं अपनों की परीक्षा नही ली होती, कम-से-कम ये भ्रम तो बना रहता कि मेरे अपने मुझे

         बहुत प्यार करते है, अब तो सच सामने आ गया, मैं अपनों के बीच खुद को अकेली, अजनबी

         और बोझ महसूस कर रही हूं,प्यार भी एक प्रकार का' सौदा ' बन गया है, प्यार दो, तो प्यार लो,

        ऐसा शायद कही कोई नहीं  होगा, जो किसी को निःस्वार्थ प्यार करता होगा,

 

53….बचपन में मिले संस्कारों से,  मानव रूपी मकान का निर्माण होता है, ये संस्कार ही आधार होते है,

      मानव को आत्मविरश्वासी और मजबूत बनाये रखने में,  ये बात और है कि जिस प्रकार मकान पर

      बाहरी वातावरण का असर पड़ता है, उसी प्रकार मानव पर वातावरण,परिवेश,संगत का असर देखें

      जा सकते है, पर संस्कार रूपी नीव मजबूत हो तो गलत रास्ते पर जाने से बचा जा सकता है,

     संस्कारों के आधार पर हर इंसान, अपने लिए कुछ आदर्श बनाता है, जैसे कि........ सदा सच बोलना,

     गलत काम नहीं करना, किसी को दुःख नहीं पहुंचाना, बड़ों का सम्मान करना, धैर्य बनाये रखना,

     इत्यादि,आदर्श बनाना और बात है, उस पर कायम रहना और,    जब इंसान के सामने

     ऐसे-ऐसे हालात आते है कि उसे अपने ही आदर्शों के विरूद्ध जाकर काम करने पड़ते है, तब वहि हाल

    होता होगा, जो हाल दिमक लगे मकान की होती है, ऊपर से देखने में मजबूत और सुन्दर दिख रहे

    मकान की नींव दिमक ने खा ली है, वह मकान कभी भी ध्वंश हो सकता है,

 

54….अकेलापन एक डरावना सच है, इससे बचने के लिए, ज्ञानी महापंडितों ने बहुत से, सामाजिक

       रीती-रिवाजों, पूजा-पाठ बना रखा है, शादी, जन्म, मरण, इत्यादि हर एक मौके पर इंसान को इंसान

       की जरूरत पड़ती है, ऐसे मौको पर वह खुद को सबके साथ महसूस करता है,हमेशा ऐसा नहीं होता,

       कभी-कभी मेले में भी हम खुद को अकेले पाते है,

 

55….'शादी' बहुत ही पवित्र रिश्ता है, इस रिश्ते को मजबूत और अटुट बनाने के लिए, हर धर्म में

       अपने-अपने तरिके से मंत्र पढ़े जाते है, जिसके माध्यम से वादे दिये और लिये जाते है, हिन्दुओं में

       'सात फेरों के सातों वचन' का महत्व बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है, अग्नी के फेरों के बिना शादी

       को अधूरी मानी जाती है,ये कहानी आधारित है, आज की पीढ़ी की सोच पर, जो किसी भी तत्थ को

       तर्क की कसौटी पर परखें बिना स्वीकार नहीं करते, अगर कोई काम नहीं करना तो क्यों नहीं करना,

       अगर करना है तो क्यों करना है, इसका जवाब 5 साल के बच्चें को भी चाहिये, युग कितना बदल

       चुका है,

 

56….दादी-नानी से, कहानियों के माध्यम से सुना है कि लड़कों का सृजनहार" भोले शंकर " और

       लड़कियों का सृजनहार "माता पार्वती "है, तो उन्हें किसने बनाया........? जो लड़की होते-होते,

       लड़की न हो सके, या जो लड़का होते-होते, लड़का न हो सके, जिन्हें सामाज भिन्न-भिन्न नामों से

       पुकारता है, जिन नामों को हमें अपने जुबान पर लाने में शर्म आती है, उन्हें उन्ही नामों से

       सम्बोंधित किया जाता है,अगर हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं तो (xx) क्रोमोसोम के मिलने

      से लड़की और (xy) क्रोमोसोम के मिलने से लड़का होता है, क्या विज्ञान बता सकता है कि इनकी

       सृष्टि किसके मिलन से हुई है, अगर पता है तो इसमें अब-तक कोई सुधार कार्यक्रम क्यों नहीं

       हुआ...........?जिन्हे देखकर सारी दुनियां हंसती है या जो खुद को मजाक का पात्र बनाकर,सब का

      मनोरंजन करते है, वह खुद कितना दुःखी है, कितनों ने सोचा............?

 

57….Nature aur Signature नही बदलते

 

58….किसी जमाने में फिल्मों को सामाजिक शिक्षा के आधार पर बनाया जाता था, मगर आज की फिल्में

       सिर्फ रुपये कमाने के लिए बन रही है, इनसे सामाज क्या सिख रहा है या किस हद तक गिर रहा है,

       इससे किसी का कोई लेना-देना नही, अधिकांश लोगों कि ये सोच है........." दुनियां जाये भाड़ में,

 

59….लोग कहते है कि रब की मर्जी के बिना, एक पत्ता भी नही हिल सकता, ये किस हद तक सहि है, ये

       हर इंसान का अपना अनुभव है, कभी अपने, अपने नही लगते तो कभी कोई गैर अपनो से बढ़कर

       लगता है, अपने मां-बाप पराये हो जाते और सास-ससुर अपने हो जाते है, अग्नी के सात फेरे लेकर

       भी रिश्ता टुट जाता है, बिन फेरे कोई दिल मे घर बना लेता है,ऐसी सारी बातों से ऐसा लगता है ,

       मानो रब अपने हाथ में रिमोट कंट्रोल लिए हमारे साथ खेल, खेल रहे है जिसे जिस बात पर नाज है,

       उसके भ्रम को तोड़ उसे रोने पर मजबूर कर रहे है,     

 

60….   प्यार तो एक प्यारा सा एहसास है, किसी को हर हाल में पा लेना, प्यार नही होता, बदकिस्मती से

          कुछ लोगों के लिए प्यार 'सौदा' बनकर रह गया है,  

 

61…. रोज किसी-न-किसी बात पर नाराजगी, ऐसा लगता है, जैसे 'मेरी खूबसूरती ही मेरी दुश्मन है,

       लोगों से मिलते, बाते करते, हंसते पर मुझे देखते ही उन्हें क्या हो जाता है, वो इस बात का एहसास

       करा देते कि मेरी खूबसूरती उनके दिल को नहीं भाती, मेरी शादी को 5 साल हो गये, लोगों के सौ

       सवाल, मैं अभी तक मां क्यों नहीं बनी ? किसमें दोष है ? इलाज क्यो नहीं कराया ?किसी बाबा को

      देखती ? भगवान की पूजा-पाठ तो ठीक से करती हो? किसी का श्राप तो नहीं लगा ?             

     ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, सब सावाल का एक ही जवाब 'मेरी खामोशी '

       “मैं ऐसी खूबसूरत बदनसीब दुल्हन हूं, जो आज भी कुँवारी हूं "

 

62…..'हर इंसान एक बंद किताब है, अगर कोई किताब न खुले तो वो बेकार है, अगर एक बार में

          खुल जाय और पढ़ने वाला, कुछ दिनों में पढ़ ले, तो भी अब वो बेकार हो गई, घर के किसी

           कोने में पड़ी रहेगी, वहि किताब हमेशा दिल के करीब होता है, जिसका एक-एक पन्ना, अपने

           अंदर हजारों भावों को छिपाये रखता है, उसके एक-एक शब्द, शब्द समूहों का एक शब्द हो,

            किताब न हो, मानों किसी गागर में सागर भरा पढ़ा है,

 

63….मौत साजिश कर, पास बुलाती है या खुद पास आ खड़ी होती है, हम नासमझ कुछ समझ नहीं

      पाते कि हमारे साथ क्या हो रहा है, जब-तक हम इसके साजिश को समझ पाते है तब-तक वह

      सबकुछ खत्म कर चुकी होती है,

 

64….हर इंसान के दो रूप होते है, एक तो वो, जो वो है, दुसरा जो वो, दिखना चाहता है, दोनों रूपों में

        लगभग 50 % समानता होती है पर किसी-किसी इंसान का दोनों रूप एक-दूसरे से बिल्कुल

        विपरीत, जैसे......... जो हम देख पा रहे है, वो' भगवान ' की तरह दयालु और कृपालु है, जो छिपा

         हुआ है, वह रूप ' दानव ' के समान डरावना और नफरत के काबिल,   

 

65….'शादी' एक पवित्र रिश्ता है पर इस रिश्ते में बंधने वाले दो परिवारों कि कुछ या बहुत कुछ आकाक्षाएँ

        होती है, लड़की वाले अपने बेटी की खुशी को ध्यान मे रखते हुए किसी रिश्ते को अपनाते है, उसी

        प्रकार लड़के वालों को जब लगता है कि यहि हमारे घर के मान-मर्यादा मेें चार चाँद लगाने वाली बहू

         है, तभी उसे अपनाते है,बहुत छान-बीन के बाद ही कोई रिश्ता जुड़ता है, फिर भी शादी के बाद

      दोनों परिवारों की अपनी-अपनी राय होती है कि वो ठगे जा चुके है, इससे अच्छा रिश्ता मिल सकता

      था, पर क्या करे, यहि किस्मत मेें था, कर भी क्या सकते है ?

 

66…."God Gift" में मिली, मानव शरीर कितना अनमोल है, इसका पता तब चलता है, जब कोई अंग

        खो देते है, उनसे पूछे जिनमें, जन्म से ही किसी कारणवश उनकी संरचना में त्रुटि रह गई है, गलती

         किससे और कहॉं हुई ? इसका कोई जवाब नहीं पर हम नासमझ इंसान, उसे विकलांग की उपाधि

         दे देते है,विकलांग की परिभाषा क्या होनी चाहिए,,,,,,,,,,,,,,,,,,?क्या शारीरिक कमी को विकलांग

         कहना उचित होगा ?मेरी सोच में, तुच्छ (निम्न) सोच वाले, जो अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद

         तक गिर जाते है, उन्हें तर्कसंगत विकलांग की उपाधि देनी चाहिए,

 

67….'बचपना' एक प्यारा सा स्वभाव है, किसी मे बचपना कब तक है या किस उम्र के बाद इसे हमारा

        साथ छोड़ देना चाहिये, और हमें समझदार बन जाना चाहिये, इसकी कोई सहि माप-तोल नही है,

        जब तक किसी के ऊपर उसके मां-बाप का साया है, वह उनकी छत्रछाया मे, अपने बचप,ने को

        महसूस कर रहा है,दुर्भाग्यवश 5 साल का बच्चा अगर, अपने मां-बाप को खो चुका है तो उसका

        बचपना छिन चुका है, वह इसी उम्र के बाकी बच्चों के अपेक्षा समझदार होता है, सरकारी

        नियमानुसार 14 साल से नीचे के बच्चों को बचपने में रहने का हक है,

 

68…..मैंने जो कुछ किया, अपने लिए किया, दीदी की खुशी में मेरी खुशी छिपी है, दीदी मुझे बहुत

          प्यार करती है, इस प्यार के लिए 'जान निछावर है'दीदी मुझे धुंधला दिख रहा है, लाइट

          जला दो,मैं आप दोनों को देखना चाहती हूं, कोई बात नहीं बाद में देख लुगी, नींद आ रही है,

           दीदी मैं सो जाँऊ, आप सब देख लेना,( ऐसी नींद जो कभी नहीं खुली )

          'अमर जवानों' की 'पूर्ण तिथि' की तरह हर साल अपनी छुटकी को याद करने वाली दीदी से

        वार्तालाप के बाद यह 'सच्ची कहानी' आपके सामने 'छुटकी' की जुबानी के रूप में पेश किया

        है, उसकी दीदी चाहती है कि उसके छुटकी के त्याग कों हर इंसान सलाम करे, सच में कुछ

        लोगों का जन्म ही, दूसरों के लिए होता है, ऐसे लोग हमेंशा हमारे बीच रह जाते है,

 

69…. जब दिल से बाते करो तो, आपके अच्छें कामो में हामी भरता है और बुरे कामो में नाराजगी

        दिखाता है, हर इंसान कि यहि कोशिश होती है, अपना होया किसी का, दिल को दुःखी न

       किया जाय, ये खुश तो सब खुश, कभी-कभी ऐसे हालात आते है, जहाँ हमे दिल के विरुद्ध

       जाना पड़ता है, आंखों में पानी और ओठो पर हंसी होती है, सही गलत के दलदल में फँस जाते

       है, बहुत ही मुश्किल घड़ी होती है,

 

70….जैसे-जैसे मानव सभ्यता का विकास हुआ, तो समाज का निर्माण हुआ, समाज को अनुशासन में

        रखने के लिए, समाज के ठेकेदारों ने अनेको परंपरा का निर्माण किया, कुछ तो सही  और जरूरी

        थी, पर कुछ परंपरा पुरुष प्रधान समाज ने अपने भोग-विलास को ध्यान में रखते हुए बनाया,

       नाम के लिए, हमारा देश मातृ प्रधान देश माना जाता है, जहाँ स्त्रियॉ भोग-विलास की समाग्री बनी

        रही, वहाँ स्त्री का एक रूप 'माता' कैसे पूज्यनिय हो सकती है, युगों से पुरुष, स्त्री पर भारी पड़ा है,

       वह पापा, पति, भाई और बेटा हर रूप में, स्त्री पर शासन करता आया है, उनके आजादी और सोच

       पर अंकुश लगा हुआ है,67 साल हो गये आजादी मिले हुए, आज भी स्त्रियों को अपनी जिंदगी जिने

       और अपने लिए निर्णय लेने की आजादी नही है, परंपरा समाजिक विकास के लिए होनी चाहिए,

       भारतीय परंपरा की सही समझ के लिए, इसके तह तक जाने कि जरूरत है, इंसानों द्वारा बनायी

        गई है, त्रुटि हो ही सकती है, सुधार कि जरूरत पर सुधार जरूरी है,

 

71….आज जो कुछ भी हूं, पापा के साथ-साथ मम्मी का भी उतना ही योगदान है,15 साल

      की उम्र में आंखो ने जो सपना सजाया था, उसे मैंने कभी भी धुंधला नहीं होने दिया,

       कभी हालात साथ नहीं देते तो कभी किस्मत साथ नहीं देती,  30 साल तक उस

       सपने को छोटे बच्चे की तरह इन आंखों में पालकर रखा, आज वो छोटा बच्चा, बड़ा

      होकर एक संस्था का रूप धारण कर चुका है, जिसका नाम है,

      “Radhikalaya Old Age Home”

 

72….पीने वालों को, पीने का बहाना चाहिये, जिंदगी दो ही चक्कों पर चलती है, कभी खुशी कभी गम,

       इन्हें इन दोनों मौकों का इंतजार होता है, खुशी के मौके वालों के लिए सीमा रेखा है, जब-जब खुशी

       आयेगी तब-तब रम का साथ होगा, पर गम में पीने वालों के लिए कोई सीमा रेखा नहीं, मानो गम

       ने रम पीने की परमिट दे दिया हो, ये पूरी जिंदगी पीते-पीते घर के सुख-चैन सब पी जाते है, अंत में

       आंसू पीना पड़ता है,

 

73…."मेरी झुकती हुई नजरों ने उन्हें thanks कहा,मानों उनकी नजरे बोल रही है  It,s ok."

        आंखों की अपनी भाषा होती है...................

 

74…. मेरा दिल दिवाकर जी की प्यारी-प्यारी बाते सुनने के लिए बेचैन हो जाता, सिर्फ 10 मिनट उनसे

      बात होती, और दिल को सकून मिलता, हम बात में एक-दूसरे की तारिफ करते, हंसी-मजाक करते,

     कभी-कभी लड़ाई भी कर लेते, मेरे समझ में ये नहीं आ रहा था, कि मैं उस इंसान से इतना हिल-मिल

     कैसे गई, इतनी निडर होकर बात करती हूं, जैसे मैं उन्हें बचपन से जानती हो, आज तक ऐसा कभी

     नहीं हुआ, जो अब हो रहा था, उन्होंने मेरी दोस्ती को प्यार समझ लिया और एक दिन I love you

      jaan बोल दिया, मैं बहुत हंसने लगी, मैंने कहा ऐसा मजाक अच्छा नहीं,उन्होंने कहा, मजाक नहीं

      सच बोल रहा हूं मुझे तुमसे प्यार हो गया है, तुम्हें भी मुझसे प्यार है, जिसे तुमने दोस्ती का नाम दे

     रखा है, एक बार अपने दिल की सुनों, सच जान जाओगी मैं गुस्सा से फोन काट देती हूं,दूसरे दिन की

      रात, मैं खुद को समझाती हूं कि शायद मैं गलत कर रही हूं, मुझे किस बात की कमी है, मेरे पति

      मुझे बहुत प्यार करते है तो मुझे दिवाकर जी की प्यारी-प्यारी बातों की क्यों जरूरत पड़ती है, शायद

      ये दिल की जरूरत है, कहते है ना " Dil maange more "मैंने फैसला किया ,मुझे दिल की नहीं

     सुननी, मैनें फोन नहीं किया,

 

75….मम्मी-पापा के शादी मे होना, किसी भी बच्चे के लिए खुशी की बात नहीं हो सकती,

        (1) मम्मी या पापा की दूसरी शादी होने से ही, बच्चा उस शादी में हो सकता है,

         (2) शादी के पहले से, मम्मी के गर्भ में होने से, उनकी शादी में हो सकता है,

               दोनों ही शर्त में, ऐसी बाते निंदनीय होती है,

                                                                                     Rita Gupta.