अकेलापन एक डरावना सच है, इससे बचने के लिए, ज्ञानी महापंडितों ने बहुत से, सामाजिक रीती-रिवाजों, पूजा-पाठ बना रखा है, शादी, जन्म, मरण, इत्यादि हर एक मौके पर इंसान को इंसान की जरूरत पड़ती है, ऐसे मौको पर वह खुद को सबके साथ महसूस करता है,
हमेशा ऐसा नहीं होता, कभी-कभी मेले में भी हम खुद को अकेले पाते है,
"भीड़ है कयामत की, फिर भी हम अकेले है"