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दो सहेलियाँ

प्रीती और रीतु दोनों एक दुसरे के विपरीत होते हुए भी, पक्की सहेली है, ना जाने कौन सी डोर उन दोनों को इस कदर बांधे हुए है, इसकी दोस्ती तोड़ने की साजिश होती है आपस मे बाकी दोस्त शर्त भी लगाते है, पर सब बेकार साबित होता है, दोनों एक ही कांलेज की ,छात्रा है, प्रीती साधारण घर की, चंचल और मनमौजी स्वभाव वाली, रीतु पैसे वाली घर की, साधारण और आज्ञाकारी बेटी है,

"धैर्य" कब तक

बचपन में मिले संस्कारों से,  मानव रूपी मकान का निर्माण होता है, ये संस्कार ही आधार होते है, मानव को आत्मविरश्वासी और मजबूत बनाये रखने में,  ये बात और है कि जिस प्रकार मकान पर बाहरी वातावरण का असर पड़ता है, उसी प्रकार मानव पर वातावरण,परिवेश,संगत का असर देखें जा सकते है, पर संस्कार रूपी नीव मजबूत हो तो गलत रास्ते पर जाने से बचा जा सकता है,

अकेलापन

अकेलापन एक डरावना सच है, इससे बचने के लिए, ज्ञानी महापंडितों ने बहुत से, सामाजिक रीती-रिवाजों, पूजा-पाठ बना रखा है, शादी, जन्म, मरण, इत्यादि हर एक मौके पर इंसान को इंसान की जरूरत पड़ती है, ऐसे मौको पर वह खुद को सबके साथ महसूस करता है,

हमेशा ऐसा नहीं होता, कभी-कभी मेले में भी हम खुद को अकेले पाते है,

"भीड़ है कयामत की, फिर भी हम अकेले है"

सात फेरों के 'सातों वचन'

'शादी' बहुत ही पवित्र रिश्ता है, इस रिश्ते को मजबूत और अटुट बनाने के लिए, हर धर्म में अपने-अपने तरिके से मंत्र पढ़े जाते है, जिसके माध्यम से वादे दिये और लिये जाते है, हिन्दुओं में 'सात फेरों के सातों वचन' का महत्व बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है, अग्नी के फेरों के बिना शादी को अधूरी मानी जाती है,

हमें 'क्यों ' बनाया

दादी-नानी से, कहानियों के माध्यम से सुना है कि लड़कों का सृजनहार" भोले शंकर " और लड़कियों का सृजनहार "माता पार्वती "है, तो उन्हें किसने बनाया........? जो लड़की होते-होते, लड़की न हो सके, या जो लड़का होते-होते, लड़का न हो सके, जिन्हें सामाज भिन्न-भिन्न नामों से पुकारता है, जिन नामों को हमें अपने जुबान पर लाने में शर्म आती है, उन्हें उन्ही नामों से सम्बोंधित किया जाता है,

Nature aur Signature नही बदलते

कहानी के मुख्य पात्र' शर्मा जी' का स्वभाव (nature)............

ये जब भी बाजार जाते है' सस्ता और अच्छा' सौदा के लिए पूरे बाजार कि सैर लगाते है, अगर सेव खरीद रहे है, एक तरफ100/kg सेव है, दुसरी तरफ 60 /kg सेव है,

उनकी हैसियत है कि ये 100 /kg सेव ले सकते है पर ये ऐसा नही करते, इन्हें लगता है कि1Kg/40Rs बचता है तो यहि सौदा सहि है,

Life Ya Death दो मिनट में जिंदगी या मौत

किसी जमाने में फिल्मों को सामाजिक शिक्षा के आधार पर बनाया जाता था, मगर आज की फिल्में सिर्फ रुपये कमाने के लिए बन रही है, इनसे सामाज क्या सिख रहा है या किस हद तक गिर रहा है, इससे किसी का कोई लेना-देना नही, अधिकांश लोगों कि ये सोच है........." दुनियां जाये भाड़ में, जेब भरनी चाहिये"

रब की ' मर्जी '

लोग कहते है कि रब की मर्जी के बिना, एक पत्ता भी नही हिल सकता, ये किस हद तक सहि है, ये हर इंसान का अपना अनुभव है, कभी अपने, अपने नही लगते तो कभी कोई गैर अपनो से बढ़कर लगता है, अपने मां-बाप पराये हो जाते और सास-ससुर अपने हो जाते है, अग्नी के सात फेरे लेकर भी रिश्ता टुट जाता है, बिन फेरे कोई दिल मे घर बना लेता है,

प्यार है या 'सौदा'

   प्यार तो एक प्यारा सा एहसास है, किसी को हर हाल में पा लेना, प्यार नही होता, बदकिस्मती से कुछ लोगों के लिए प्यार 'सौदा' बनकर रह गया है,

“इस कहानी में, प्यार बदनाम होकर रह गया, सामाजिक मान-मर्यादा को ताख पर रख दिया”

कटी पतंग

इंसान की जिंदगी' कटी पतंग' के समान है, जिस प्रकार पतंग जब तक आकाश मे, खिल रहा है उसके समान खुशनसीब कोई नहीं, हवा से बाते करते हुए, मस्ती में झुम रहा है, ठिक उसी प्रकार हम इंसान की जिंदगी में, जब तक हम आगे, और आगे बढ़ते कामयाबी की ओर बढ़ रहे है, तब तक हम खुद को भाग्यशाली मानते है,