मेरी सजा" मौत " से कम नही

मेरी सजा" मौत " से कम नही
'रीमा' दो भाइयों के बाद मन्नत से मांगी हुई, संतान है, घर मे सबकी लाडली होने के कारण, थोड़ी जिद्दी है, उसे जो चाहिए यानि चाहिए, मिलनसार स्वभाव से सबके दिल पर राज करती है,
बड़ी हो रही' रीमा' ने जब 18 साल के उम्र को पार करती है, उससे प्यार जैसे' गुनाह 'हो जाता है, वह सोच भी नही सकती कि प्यार और उसे होगा, हमेशा प्यार जैसे शब्द और अहसास का मज़ाक बनाने वाली, आज खुद इस जाल में फंस गई, उसके दिल ने कब धोखा दिया पता नहीं,
प्यार धीरे-धीरे, अपना रंग दिखाता है, हंसती-खेलती रीमा को अब खामोशी अच्छी लगती है, सबके बीच होकर भी, खुद को अकेली महसूस करती है, कोई एक ने सबके प्यार के रंग को फिका कर दिया,
प्यार की खबरे कानों-कानों होते हुए, रीमा के घरवालों तक पहुंचती है, उसकी मां सीधे अपनी बेटी से पूछ बैठती है.............................
मां.......... बेटी लोगों से, मैं क्या सुन रही हूं, सच क्या है तुम बोलो, क्या तुम पंडित जी के बेटे राकेश से
प्यार करती हो,
रीमा.......... नही मां,(ये सब गलत है)
मां............ ऐसा करना भी नही, वो लोग ऊंची जाती के है, राकेश तो एकदम बिगड़ा हुआ लड़का है,
रीमा.......... आप चिंता मत करो, मैंने कुछ नही किया,
मां............. मुझे तुम पर नाज है, हम तुम्हारी शादी, अच्छे घर में, अच्छे लड़के से करेगें,
"बीतते हुए दिनों के साथ, रीमा और राकेश का प्यार और गहरा होता है "
रीमा............ राकेश हमें एक-दुसरे को भूल जाना चाहिये, सामाज इस रिस्ते को नही मानेगा,
राकेश........... मुझे सामाज की चिंता नही, चलो हम भागकर शादी कर लेगे,
रीमा............ मैं भागने के बारे मे,सोच भी नही सकती, मेरे परिवार वाले शर्म से मर जायेगे,
राकेश.......... मैं तुम्हारे बिना मर जाऊंगा,
रीमा............ हम दोनों अभी छात्र है, भागकर कहां जायेगे और कैसे रहेगे,
राकेश........ तुम अपने घर से सारे गहने चुरा लो, उससे छः महिने तक बाहर कट जायेगा, फिर हम
आयेगे तो घरवालों का गुस्सा शांत हो गया रहेगा, वो हमदोनों को अपना लेगे,
रीमा.......... मैं ऐसा नहीं करुगी, घर के गहनों पर सिर्फ मेरा नही, मेरे दोनों भाइयों का भी हक है, हिम्मत
है तो अपने बल पर भगाओं,
राकेश........ रहने दो, तब भागने की जरूरत नही,
रीमा.......... तुम प्यार करते हो पर अपने मम्मी-पापा को बता नही रहे, मुझे भी बताने से मना कर रखा
है, ऐसे तो हो गई हमारी शादी,
" रीमा के घरवाले उसकी शादी ठीक कर देते है, तीन महिने बाद शादी का शुभ-दिन तय किया जाता है"
राकेश को जब यह बात पता चलता है वह रीमा को फोनकर मंदिर में बुलाता है, वह उससे मिलने जाती है,
रीमा.......... क्या हुआ, जो मंदिर में बुलाये,
राकेश......... तुमको मुझसे पहले, कोई अपना बनाये, ये मैं देख नही सकता, हम आज, अभी, यहि शादी
करेगें,
रीमा.......... मजाक हो रहा है,
राकेश......... कोई मजाक नहीं,(राकेश देवी स्थान से चुटकी भर सिंदूर उठाकर रीमा की मांग भर देता है)
" रीमा अवाक् रह जाती है, उसने ऐसा कभी नही सोचा था, फिर दोनों पति-पत्नी के रिश्ते को निभाते है,
इधर रीमा के घर मे उसकी शादी की तैयारी, उधर रीमा और राकेश का प्यार चरम सीमा पर, दिन बितते देर नही लगती, अब शादी के मात्र 7 दिन रह गये है, तिलक हो चुका है, लड़केवालों को तीन लाख रूपया दहेज दिला चुका है, रीमा राकेश से बोलती है.....हम कब भागेगे, अब मैं तुम्हारे सिवा, किसी और के बारे मे सोच नही सकती,
राकेश......... तुम जिस दिन गहने चूरा कर लाओगी, हम उसी दिन भाग चलेगे,
रीमा.......... अब ऐसा नही हो सकता, घर मेहमानों से भरा है,
राकेश........... एक काम करो, तुम उसी से शादी कर लो, जिससे तुम्हारे घरवाले कर रहे है,
रीमा........... क्या, हमारे बीच तीन महिने से, जो चल रहा है, वो क्या है, मैं दो माह कि गर्भवती हूं,
राकेश.......... इसमें मैं क्या करू,
रीमा......... मैं अपने घरवालों को बता देती हूं, वो तुम्हारे घरवालों से बात करेगें,
राकेश........ तुम्हारी मर्जी,
रीमा......... सारी गलती अपनी मम्मी के सामने स्वीकार करती है,
'उसके बाद घर पर आफत आ जाती है, रीमा के मम्मी-पापा का रो-रोकर बुरा हाल, जो भाई जान से ज्यादा प्यार करते थे, उन्होनें उस दिन रीमा पर हाथ उठाया, भाभी ने अपशब्द बोले, मम्मी कहती है.... हमे पता होता कि तु बड़ी होकर, हमारा नाक कटायेगी, तो तेरे जन्म के समय ही तुझे नमक चटाकर मार डालते,
पापा हालात की नजाकत को समझते हुए, राकेश के घर बेटी की खुसी के लिए जाते है, वहां जाने पर पता चलता है कि राकेश कल रात घर छोड़कर, कहि चला गया है और मोबाइल भी बंद रखा है,
राकेश के पापा............ देखिये, मुझे इस मामले में कुछ नही पता, आपकी बेटी किसके बच्चे कि मां बनने वाली है, मैं कुछ नही कर सकता,
' ऐसी बातें सुनकर रीमा के पापा की आंखे शर्म से झुक जाती है, वो घर लौट आते है' उसके बाद घर वाले फैसला करते है कि कल ही, अस्पताल जाकर इस बच्चें को नष्ट करना होगा,
"रात भर रीमा का मन 'मंथन' करता है कि, क्या सोचा था और क्या हुआ, प्यार पर भरोसा कर इतना गलत कदम उठा लिया, आज वहि प्यार मुझे अकेला छोड़ भाग निकला, कल अपने बच्चें को भी दुंगी, फिर मैं जिंदा लाश बनकर किसी के घर की शोभा, कैसे बन पाऊंगी, कैसे खुद से आइने के सामने नजर मिलाऊंगी"
रीमा सोचती है, अगर मैं कोट का' जज ' होती तो अपनी इस गलती के लिए 'फांसी ' से कम सजा नही देती, मां-बाप के प्यार का अनादर कर अपने मन के बहकावे में बह जाने का गुनाह किया है, मेरे अपने मुझे माफ कर सकते है, मगर मैं खुद को माफ नही कर सकती,
" आंधी रात को जब सब सो गये, तब रीमा ने खुद को सजा दिया"
सुबह होते ही ये खबर आग की तरह चारों ओर फैली कि रीमा ने फांसी लगा ली, जो सुने वहि अवाक जिसके शादी का कार्ड सबके घर में है,4 दिन बाद शादी में जाने वाले लोग, आज उसकी अर्थी में शामिल हो रहे है,
Rita Gupta.