"अपना खून" ही कातिल

"अपना खून" ही कातिल

हर माँ-बाप अपने सामर्थ और ज्ञान के आधार पर अपने बच्चों कि परवरिश करते है,कोई नहीं चाहता कि उनके बच्चे बड़े होकर चोर, बदमाश और असम्य बने, फिर भी,,,,,,,,,,,,,,,

"शंभुजी" पंडितजी के नाम से जाने जाते है,उनकी पत्नी अनिता, दोनों ही बड़े अच्छे और मिलनसार स्वभाव वाले है, उनका बाजार में कपड़े का दुकान है, इसके अलावा लोगों के घर पूजा-पाठ कराने का काम भी करते है,शादी के नौ साल बाद उनके घर प्यारी सी कन्या (बेटी) का जन्म हुआ, सब बहुत खुश है, दो साल बाद एक और बेटी का आगमन हुआ, दोनों प्राणी को बेटे की चाह है, उन्होंने तीसरे बच्चे को होने दिया,इस बार भी बेटी हुई, बेटे की चाह में पंडितजी तीन बेटियों के पिता बन गये, तीनों देखने और बुद्धि व्यवहार में एक से बढ़कर एक है,

पंडितजी की तीनों बेटियां कक्षा 5,7,9 की छात्रा है, जब ये एक साथ स्कूल को जाती है तो उन्हें देखने वाले देखते रह जाते है, मानों गंगा-यमुना-सरस्वती तीनों के दर्शन एक साथ हो गये,ऐसे  इनका नाम अंजू-मंजू-संजू है, पर लोग उन्हें उसी नाम से जानते है,अनिता जी अपनी बेटियों के भाई के लिए, एक बार फिर मां बनने वाली है, इस बार भगवान ने उनकी या उनकी बेटियों की सुनी, पंडितजी के घर बेटा हुआ, बहनों को भाई मिला और अनिता जी को बेटा की मां कहलाने की इच्छा की पूर्ति हुई,

आस पड़ोस से लेकर रिश्तेदारों को मिठाइयां बांटी गई, होने वाला बच्चा को पंडितजी ' शिवशंकर' का वरदान मानते है, इसलिए उसे शिवा नाम दिया जाता है, शिवा मम्मी-पापा के साथ-साथ तीनों बहनों का दुलारा है, उसका लालन-पालन बड़े ही लाड़-प्यार से किया जाता है, शिवा धीरे-धीरे जिदी और बदमाश होते जा रहा है, उसकी हरकत से आस-पास वाले भी परेशान है, पंडितजी का बेटा होने के नाते, शिवा को भी सब छोटा पंडित समझते और चुप रहते है, इससे उसका मन और बढ़ जाता है, पंडितजी को बोलने पर वह सुनकर चुप रह जाते है, बचपन से जवानी आ जाता है और शिवा पहले से ज्यादा बदमाश हो जाता है,

पंडितजी अपने तीनों बेटियों का ब्याह,12वी तक की शिक्षा दिलाकर, एक-एक करके तीन दामाद उतार चुके है, घर में पंडितजी अनिता और उनका बेटा शिवा रहते है, उन्होंने बेटियों से ज्यादा बेटे की चिंता होती है, दशवी फेल है, नौकरी होने की बात सोच भी नहीं सकते, अपने दुकान पर भी बैठता नहीं है, ताकी व्यवसाय का ही ज्ञान मिल सके,दिन-भर अपने आवारा दोस्तों के साथ इधर-उधर घूमना, देर रात तक जागना, सुबह दिन चढ़े तक सोना, सभी गंदी आदते पाल रखी है, कक्षा 8वी में फेल होने के बाद, उसने पढ़ाई से रिश्ता ही तोड़ दिया,पंडितजी के बाहर जाने या बीमार पड़ने पर, शिवा को दुकान पर जाना पड़ता है, वह दुकान जाता है तो दोस्तों के बहकावे में आकर, अपनी ही दुकान से रूपये चुराता है, एक दिन की चोरी, उसकी बुरी आदतों के लिए आदत बन जाती है,50-100 रु से शुरू हुए चोरी धीरे-धीरे 500-1000 रु तक पहुंच जाती है, शंभु जी को भी पता चल जाता है कि जब भी उनका बेटा दुकान पर बैठता है, चुपके से रुपये चोरी कर लेता है,

शंभु जी 70 साल के होते हुए भी, खुद दुकान की देख भाल करते है जबकि 25 साल का शिवा बेटे के फर्ज से मुंह मोड़कर दिन-भर आवारा दोस्तों के साथ, गंदी आदतों में मस्त रहता है, उसकी शादी के लिए लड़की वाले आते है पर पंडित जी उन्हें लौटा देते है, लोगों की शादी करने वाले, शंभु जी अपने बेटे की शादी नहीं करा पा रहे है,शिवा के व्यवहार से उन्हें डर लगता है, झूठ बोलकर शादी कराने में शादी के बाद लड़की घर छोड़कर चली जायेगी तो समाज में बदनामी होगी, शिवा में कोई ऐसा गुण नहीं जिससे लड़की वाला उसे पसंद करे, सिर्फ अच्छी सूरत होने से क्या होता है, अच्छी सीरत भी होनी चाहिए,

शराब पीने के लिए शिवा लोगों से कर्ज भी लेता है, जब कर्ज नहीं चुकता है तो अपने पापा के दुकान पर उन्हें भेज देता है,वो लोग दुकान पर जाकर चिल्ला-चिल्ली शुरू कर देते है, शर्म के मारे शंभु जी उन्हें रुपये दे देते है,महीना में एक बार ऐसा तमाशा रखा हुआ था, शंभु जी और अनिता कभी-कभी बहुत उदास हो जाते है, इतनी मंन्तों से इसी दिन के लिए बेटा मांगा था, आज घर से खुशियां नाराज हो गई है, 'बेटे की चाह' घर के मान-सम्मान को बढ़ाने के लिए थी, आज वही बेटा मान-सम्मान को मट्टी में मिला रहा है,धीरे-धीरे शिवा का कर्ज इतना बढ़ता जा रहा है जिसे चुकाना शंभु जी के वश के बाहर होता जा रहा है, एक कपड़े के दुकान की कमाई से वो क्या-क्या करे,एक बार सोमवार का दिन था, बाजार बंद होने से आज घर पर ही है, सुबह में नहा-धोकर,पूजा-पाठ किया, उन्हें पास के मंदिर में पूजा करने का काम दिया गया था, मंदिर के बाद वो घर की पूजा करते, 10.30 a.m का वक्त नाश्ता कर रहे थे, तभी दो लोग उनके घर में घुस जाते और चिल्लाने लगते है, वो अधूरा नास्ता करके ही हाथ धो लेते है,

पंडित जी.....क्या हुआ भाई, तुम लोग क्यों चिल्ला रहे हो, शिवा घर में नहीं है, उसे बाहर देखो,

लोग..........उसे क्या देखना, एक महीने का समय देता हूं घर खाली कर दो या दुकान की चाभी हमें दो,

पंडित जी..... क्यों खाली करे, ये घर हमारा है, दुकान हमारी है,

लोग.......... आपकी थी, शिवा हमलोगों से 5 लाख रूपये कर्ज ले चुका है, मुझे आपसे वसूल करनी है, वो

                किसी कोठे पर होगा, उस पियक्कड़ से बात नहीं करना,

पंडित जी...... जिसको दिया है ,उससे लो, गलती आपलोगों की है, एक बेकार, बेरोजगार लड़के को 5 लाख

                 रूपया दिया क्यों,

लोग.......... वो हमें दुकान बेचकर रुपये देने का वादा किया, वर्ना दूकान की चाभी ही दे देगा,

पंडित जी...... दुकान मेरे नाम पर है, वो कैसे बेचेगा,

लोग.......... हमें नहीं पता, हमें महीना दिन में रुपया या दुकान चाहिए, अभी जा रहा हूं, महिना दिन बाद

               आऊंगा,

" उन दोनों के जाने के बाद पंडित जी और अनिता फूट-फूट कर रोते है, घर में खाना भी नहीं बनता, दोनों एक-दूसरे को चुप कराते है"

पंडित जी........ जानती हो, इतना अपमान सहने के बाद, जीने की इच्छा भी ना रही, दिल कर रहा है,

                    आत्महत्या कर ले,

अनिता........... .ऐसा नहीं बोले, आप हो तो मेरी हिम्मत हो, वर्ना मुझे भी नहीं जीना,

पंडितजी........... शिवा को आने दो, एक अंतिम कोशिश करता हूं उसे समझाने की, शायद वह समझ

                      जाये, फिर सब-कुछ ठीक हो जायेगा,

अनिता........ भगवान करे ऐसा ही हो, पता नहीं हमारे परवरिश में कहां भूल हुई, जो यह बिगड़ गया,

                  बेटियां अपने घर में कितने अच्छें से अपना घर-परिवार देख रही है, हमारे बेटे को किसी की

                  नजर लग गई,

पंडित जी........ हमारे लाड़-प्यार का उसने गलत फायदा उठाया, उसकी गलतियों पर हमारी खामोशी,

                    उसे और बढ़ावा देती गई, जो आज ये हाल है,

अनिता........ हमारे किस्मत में सुख नहीं था,

पंडितजी..........बुजुर्गों ने कहा है,,,,,,,,,,, संतान न हो तो एक दुःख, होकर मर जाये तो दुसरा दुःख, बड़ा

                    होकर अगर नालायक निकल जाय तो दुःखों का अंत नहीं,

"रात को, शिवा शराब के नशे में घर आता है"

पंडित जी...... सुबह का गया हुआ, रात को घर आ रहा है, बुढ़े मां-बाप की जरा भी चिंता नहीं,

शिवा........... आप दोनों को क्या होगा, अमर होकर आये हो,

पंडित जी...... दो लोग आये थे, तुमने उनसे 5 लाख रु उधार लिया है, वो भी दुकान दिखाकर, जो कि मेरे

                  नाम पर है,

शिवा......... नाम से क्या होता है, मरने पर लेकर जाने वाले है, नहीं ना आखिर में मेरा ही हुआ,

अनिता........ ऐसे बात करते है बड़ो से, शर्म नहीं आती,

पंडित जी....... वो एक महीना बाद आयेगे, कहां से दोगे रुपये,

शिवा......... तब-तक दुकान बेंच दिया जायेगा,

पंडित जी....... दुकान बेच देगे तो घर की खुराबी कैसे चलेगी, हमारा क्या होगा,

शिवा.........70 साल के हो गये, अभी भी अपनी ही चिंता है, यहां जवान बेटे की जिंदगी की चिंता नहीं,

              सबकी शादी कराते चलते हो, मेरे लिए मर गये, आपके रहने ना रहने से मुझे कोई फर्क नहीं

               पड़ता, सारी सम्पती पर नाग के समान बैठे हो, पता नहीं ये सब कब मेरा होगा,सारा नशा

              उतार दिया, रात को भी घर आने का दिल नहीं करता, जब देखो भाषण शुरू,

शिवा बुदबुदाते हुए अपने कमरे में चला जाता है, वह तो बाहर से खा-पीकर आया था, पंडितजी और अनिता सुबह से कुछ नहीं खाए, सिर्फ आंसू पीये जा रहे है, रात में भी एक चम्मच चीनी खाकर,पानी पीकर रोते हुए सो जाते है,सुबह दोनों पति-पत्नी उठते है, दिनचर्या के हिसाब से सारे काम करते है,10 बज गये, मंदिर में पूजा करते हुए, वो मंदिर में आये भक्तों को खुश रहने का आर्शीवाद और प्रसाद देते है, दो बताशा लेकर घर जाते है,

अनिता....... कहां रह गये थे, कितना समय हुआ,

पंडितजी.....अभी 10.30 हो गया है, सबसे विदाई लेकर आया, दो बताशा लाया हूं, एक तुम खा लो, एक

               मैं, भगवान को चढ़ाया हुआ प्रसाद है, शायद मोझ में सहायक हो, शिवा उठ गया क्या   ?

अनिता....... नहीं, अभी सोया है,

पंडित जी....... ठीक है, सोने दो,

अनिता....... उठ जायेगा तो, हम फिर से मोह जाल में फंस जायेगे,

पंडित जी....... ठीक बोल रही है, पहले मैं जाता हूं, फिर तुम आना,

अनिता.........नहीं जी पहले मैं, मुझे सुहागन जाना है, ये हक आप मुझसे नहीं छिन सकते,

पंडित जी........ जैसी तुम्हारी मर्जी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

अनिता, पंडितजी चिल्लाते हुए कुएं  में कूद जाती है, फिर पंडित जी अनिता चिल्लाते हुए कुएं में कूद जाते है, आस-पास के लोगों को धड़ाम-धड़ाम की आवाज सुनाई देती है, वो दौड़ते हुए उनके घर आते है, देखते है कि शिवा अंदर के कमरें में सोया हुआ है, उसे जगाकर पूछते है कि क्या हुआ, तुम्हारे घर से आवाज आई,

शिवा......... क्या हुआ,

लोग.......... पंडित जी कहां है,

शिवा.........पता नहीं, मैं तो सोया था,

लोग.......... तुम्हारी मां कहां है,

शिवा....... यही होनी चाहिए, वह उठकर मुंह-हाथ धोने कुएं के पास जाता है, वही दोनों जन की चप्पलों

               को देख, कुएं में झांकता है, उन्हें देखते ही चिल्लाता है, बचाओं,

आस-पास के लोग जमा हो जाते है, वो सब रस्सी की सहायता से पंडित जी और अनिता जी को कुएं से बाहर निकालते है, उन्हें जल्दी से अस्पताल ले जाते है, पर चलती हुए सासों ने उनका साथ नहीं दिया, रास्ते में ही दम तोड़ देते है, लाश अस्पताल में ही है, तब-तक पुलिस आती है, पूरा घर छांन मारती है, अलमारी में पंडितजी के चश्में के साथ एक नोटिस भी रखा हुआ है,

"मैं शंभु जी, लोग पंडित जी बोलते है, हम दोनों पति-पत्नी बुढ़ापे में असहाय होकर, जिंदगी से उब चुके है,जीने की इच्छा खत्म हो चुकी है, अपनी ही जिंदगी बोझ लगने लगी है, हमारे मौत के लिए ,कोई दोषी नहीं है, हम दोनों स्वेच्छा से दुनियां से विदाई लेते है,शिवा, मां ने तुम्हारे लिए खाना बनाकर रख दिया है, हमें तो भूख नहीं थी, तुम खा लेना, हम दोनों को तुम्हारी चिंता हमेशा रहेगी,”

                                                                                        Rita Gupta.