जितनी कोमल, उतनी ही कठोर

जितनी कोमल, उतनी ही कठोर

'कृष्ण' को आज हम सब भगवान के रूप में पूजते है, पर जब कृष्ण की बाल लीला चल रही थी, उस समय के लोग उन्हें एक बहुत ही चंचल, चालक और बहादूर बालक समझते थे, बालक जितना भी बहादूर क्यों ना हो, मां के लिए चिंता कम नहीं होती,मां के लिए हर बालक भोला-भाला, नासमझ बच्चा ही रहता है, माता यशोदा हमेशा कृष्ण के लिए चिंतित और परेशान रहती थी, कितना भी कोई बोले की कृष्णा बलशाली है, कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता, इन बातों का यशोदा पर कोई असर नहीं होता, वो हमेशा कृष्ण के लिए चिंतित रहती,

'कृष्ण' तो ठहरे भगवान, उन्होंने 'मां की ममता' को परखना चाहा, एक दिन यमुना किनारे गेंद खेल रहें थे, उन्होंने गेंद को ऐसी किक मारी की गेंद सीधे नदी के बीचों-बीच, सभी ग्वाल बाल कृष्णा की ओर देखते है कि गेंद कौन लाये, कृष्णा गेंद के लिए बिना सोचे-समझे नहीं में छलांग लगा देते और खुद को नदी में बिलिन कर लेते है ,चारों ओर शोर मच जाता है कि कृष्णा यमुना में डुब गये,

माता यशोदा घर से दौड़ती हुई यमुना नदी के किनारे आकर रोना-धोना शुरु कर देती है कोई मेरे लाल को बचाओं, पूरा गांव यमुना के किनारे आ जाता है, सबकी आंखे नम हो जाती है, सब रोते हुए यशोदा को चुप कराते है, तब-तक 'शेषनाग के फन' पर सवार बाँसुरी बजाते हुए कृष्ण जल से बाहर आते है, उन्हें देख सबके चेहरे खिल जाते है, वो नदी के किनारे आते है, माता अपने दस बर्षिय नटखट कृष्णा को गले लगाती है,

कृष्णा....... मां, आप क्यों रो रही हो,

यशोदा...... तुम यमुना में डुब गये थे,

कृष्णा....... तो मुझे बचाने के लिए आपने यमुना में छलांग क्यों नहीं लगाई,

यशोदा..... मैं बहुत रोई, मेरे लाल को कोई बचाओं,

कृष्णा...... पर मां आपने खुद यमुना में कूदकर मुझे बचाने नहीं आई,

यशोदा..... हॉ लाल, मुझे तुम्हें बचाने के लिए खुद कोशिश करनी चाहिये ,

कृष्णा...... कोई बात नहीं मां, जाने दो,

"उस दिन भगवान कृष्ण जान गये, जब मेरी मां, मुझे जान से ज्यादा प्यार करते हुए, मेरे जुदाई के वियोग को सहन कर सकती है तो दुनियॉ की हर मां में वो सहनशक्ति है, मां जितनी कोमल होती है उतनी ही कठोर होती है"

सुनीता जी धार्मिक प्रवृति की महिला है, शादी के 10 साल हो गये पर अभी संतान सुख से वंचित है, फिर भी उन्हें विश्वास है कि एक-ना- एक दिन भोले शंकर उन्हें संतान जरूर देगे, भगवान की भक्ति पर अटुट विश्वास रखते हुए पूजा-पाठ किये जा रही है,सुनीता की भक्ति की शक्ति रंग लाती है, वह मां बनने वाली होती है, इससे उसको ससुराल वाले बहुत प्यार करते है, पति भी उसके पूजा-पाठ से खुश है और ख्याल रखना शुरू कर देता है,

जब वह प्यारे से बेटे को जन्म देती है, तो सब लोग कहते है कि यह उसकी पूजा-पाठ का फल है, घरवाले उसका नाम कृष्णा रखते है, यह नाम सुनीता को बहुत भाता है, वह खुद को देवकी और यशोदा समझती है, बड़े ही लाड़-प्यार से अपने कृष्णा का लालन-पालन करती है, हर पल उसके साथ ही रहती है, उसे स्कूल ले जाना और ले आना, कही भी कृष्णा अकेले नहीं जाता, उसकी दुनियाँ मां तक सिमट कर रह गई थी, मां का सबकुछ कृष्णा है,14 साल के होते हुए भी पास के बाजार भी जाता तो उसकी मम्मी उसके साथ होती,

कल से कृष्णा आठवीं कक्षा का वार्षिक परीक्षा देने वाला है, आज कलम और काठबोर्ड के लिए मम्मी के साथ बाजार जाता है, उसकी मां को भी घर के लिए कुछ खरीदारी करनी है, मां-बेटे हंसते- बात करते बाजार जाते है, जब घर को लौट रहे , अचानक कृष्णा को याद आता है कि कल परीक्षा देने जाने समय, मां दही खिलाकर जाने देती,

कृष्णा........ मां, दही लेना तो भूल गये,

मां............. जाने दो, कल आ जायेगा,

कृष्णा........नहीं मां, आज ले लो, थोड़ा आज भी खा लुगा और थोड़ा कल के लिए रख देगे,

मां............ ठीक है, मिठाई की दुकान आने दो,

कृष्णा....... वो देखा, मिठाई की दुकान,

मां............ ठीक है, चल

कृष्णा.......... कहां चल, तुम इस तरफ ही रहों, मैं उधर से लेकर आता हूँ,

मां............ मैं भी उधर चलती हूँ,

कृष्णा.......... हद करती हो, आप यही से मुझे देखो, मैं सड़क पार कर के उधर जाता हूं और दही लेकर

                  आता हूं,

'मां इधर से ही कृष्णा और दुकान को देख रही है, कृष्णा उधर जाकर दही लेता है और दौड़ते हुए सड़क पार कर मां के पास आना चाहता है, न जाने कहां से एक Tata sumo आ जाता है, उसकी रफ्तार इतनी थी कि उसने कृष्णा को देखा ही नहीं,  कृष्णा को इस तरह धक्का लगा कि दही चारों तरफ बिखर जाता है, वह छटपटा कर वही दम तोड़ देता है,

'मां के सामने सारी घटना ऐसे घटी, आंखों देखी होने के बाद भी दिल, दिमाग इस सच को मानने से इंकार कर रहा कि कृष्णा दुनियां छोड़, हमेशा के लिए अपनी मां से दूर जा चुका है, मां की आंखें और जुबान दोनों ही खामोश, वह पत्थर की मूरत के समान, कठोर होकर अपने कृष्णा को देखे जा रही है'

                                                                                     Rita Gupta.