अनुभवी बातें........4

अनुभवी बातें........4

76….आम के पेड़ में आम और बबूल के पेड़ में बबूल ( काँटा) ही होता है, जैसा बीज-वैसा पौधा, ऐसे तो

         बच्चे माता-पिता के प्रतिबिम्ब होते है पर हमेशा ऐसा नही होता, हम इंसानों में, अनपड़ मां-बाप के

         बुद्धिमान बच्चे और संत स्वभाव वाले माता-पिता के घर में शैतान बच्चे हो सकता है,

 

77….इंसान की पहचान, एक कागज के टुकड़ों में सिमट के रह गया है, जिसे हम marksheet के नाम से

        जानते है, कितने अफसोस कि बात है कि कामयाबी की चाह में,हम किस ओर जा रहे है, हमे भी

        नहीं पता, काश किसी के marksheet से उसके आचरण, स्वभाव, सदाचार, सब्र, विनम्रता, आदि

         का पता चल सकता, सोचने वाली बात यह है कि इसी कागज के टुकड़े को इकट्ठा करने की होड़ में

         हम इंसान सबकुछ खोते जा रहे है, सिर्फ इसलिए कि एक' अच्छी नौकरी ' मिल सके,

 

79….हम सब एक घंटा के लिए भी, कहीं जाते है तो कितनी तैयारी और इंतजाम से जाते है, काम करके,

        बच्चों को समझा कर,( ठीक से रहना, बदमाशी मत करना, भूख लगे तो खा लेना, इत्यादी)

      भगवान को ये क्यों नहीं समझ में आता ? जिसे वो हमेशा के लिए, दुनियां से ले जा रहे है, उसे थोड़ा

      वक्त तो दे, उसे कुछ कहना-सुनना होता है, इस तरह अपनों को अपनों से जुदा नहीं करते, बहुत दर्द

      होता है,

 

80….मिश्रा जी सच तो ये है कि आपको अपने दोनों बच्चों कि परवरिश के लिए एक दाई की

         जरूरत थी, मैने अपना फर्ज पूरा किया, आज आपके दोनों बच्चे 18-21 साल के हो चुके है,

           मेरा फर्ज समाप्त, अब ना उन्हें मेरी जरूरत है ना आपको, मैं हमेशा के लिए जा रही हूँ,

          आपको मेरी जरूरत हो सकती है, पर मुझें आपकी जरूरत नहीं, मैं  अपने बेटे के हत्यारे के साथ

          नहीं रह सकती, उसे ' माफ ' नहीं कर सकती

 

81….'मोहब्बत' तो सदियों से होता आया है, आज भी है और कल भी रहेगा, जितने ही पहरें बैठाये गये,

       उतना ही विराट रूप धारण कर वगावत करता आया है, समाज मोहब्बत के विपक्ष में और

        प्रेमी-प्रेमिका इसके पक्ष में संघर्ष किये जा रहें है, कभी ना खत्म होने वाला युद्ध चलता रहेगा’

 

82….भगवान कहना क्या चाहते है, मेरी जिंदगी में सुमन या निम्मों, कोई भी हो, जीवनसाथी का सुख

       इतने दिनों का ही था,18 साल की उम्र में निम्मों को खोकर जितना रोया था, उससे कही ज्यादा 66

        साल की उम्र में रो रहा था, उस समय एक आश थी कि मेरी निम्मों, जहां कही भी होगी खुश होगी,

          भगवान ने 66 साल की उम्र में ये आश भी छीन ली, आज 90 साल की उम्र में दिल यही कहता

           है....."तुम भी" चली गई

 

83…."कसम से,5 साल से वो मेरा दोस्त है, जिसे मैंने कभी नहीं देखा, उसका नाम नहीं जानती, 2 साल

         पहले मेरी शादी हुई, तब से आज तक हमारी कोई बात-चित नहीं, पर उसके दोस्ती को महसूस

           करती हूं, कही भी अकेली जाती हूं तो ऐसा लगता है, मानों वो मेरे साथ चल रहा है, किसी भी

        अच्छे इंसान में, मैं उसे देखती हूं, शायद यही मेरा दोस्त है, मेरी यह बेचैन नजरें, हर अच्छे इंसान

        में अपने, उस दोस्त को देखती है,उस अनजाने, अनदेखे, दोस्त से बेहद प्यार करती हूं,उसे

       दोस्त के रूप में पाकर दिल कहता है, ........................................    प्यार हो तो "ऐसा”

 

84….भगवान दिल की सुनते है, दिल से बात करने के लिए, मन और दिमाग को शांत करना पड़ता

         है,16-17 साल की बाली उमर, इतनी चंचलता कि मन कही दो पल ठहरता ही नहीं, दिमाग वो तो

          सातवें आसमान पर रहता है, किसी की सुनता नहीं, मैं इन दोनों (मन और दिमाग) से परेशान

          होकर भगवान से बात करने के लिए कोई और उपाय सोचती हूं,

 

85…." चांदनी" साधारण घर की, सामान्य शिक्षा प्राप्त, मगर बहुत ही समझदार और सुशील लड़की है,

          मामा-मामी के पास पली-बड़ी बहुत ही संस्कारी है, उसने जो सिखा और जिंदगी ने उसे जो

        सिखाया, उसी के आधार पर उसी की जुबानी, उसकी आपबीती सुनते हैं, आंख भर आये तो रोक

        लेना, इन्हीं आंसूओं को पीकर वह जिंदा है "

86….भगवान और भक्त के बीच का रिश्ता कुछ ऐसा ही अनोखा है, एक मनोंकामना पूरी हुई तो दूसरी

        का जन्म हो गया, जब- तक जीवन है, मनोंकामनाए नहीं मर सकती, कभी ये चाहिए तो कभी वो,

           सही माने तो ,सही मायने में हमें पता ही नहीं कि हमें चाहिए क्या.................? दोनों ही

           एक-दूसरे के पूरक है,

 

87….ये कैसी विडंबना है कि नारी का समाज में इतने योगदान के बाद भी वो सम्मान नहीं मिला,

     जितनी की वो हकदार है, इसके पीछे शायद नारी ही दोषी है,जब हम बेटी होते है तो अपने हक

     के लिए लड़ते है, शादी के बाद जब मां बनने वाले होते है तो ' बेटे की चाह ' रखते है, ऐसा

     क्यों,,,,,,,,,,,,,,,,क्या हम खुद को अपने भाईयों से कम सामर्थवान मानते है ?क्या पति से

     खुद को निर्बल और नाकाबिल समझते है ?अगर नहीं तो हम ' बेटे की चाह ' क्यों पालते है, खुद

     से क्यों नहीं कहते कि हमारे लिए बेटा-बेटी में कोई फर्क नहीं,"बेटी बचाओ" का नारा लगाते हुए

      भी, बेटे की चाह, रखने वालों दो तरफे लोगों के कारण 'नारा' बेअसर है, सर्वो के आधार पर मैं

      कह रही हूं कि पुरुषों से ज्यादा महिलाऐं चाहती है, उनका होने वाला संतान बेटा हो, आज की

      महिला जो कल बेटी थी, वो बेटी को नाकार रही है, इससे तो यही साबित होता है कि हम खुद

      का अनादर कर रहे है,जब तक हम खुद को सम्मान नहीं देंगे, हमें लोगों से सम्मान नहीं मिलने

       वाला, जब- तक खुद पर गर्व महसूस नहीं करेगे, तब-तक हम किसी के लिए, गर्व का प्राप्त

        नहीं बन सकते,

 

88…..रीमा सोचती है, अगर मैं कोट का' जज ' होती तो अपनी इस गलती के लिए 'फांसी ' से कम सजा

          नही देती, मां-बाप के प्यार का अनादर कर अपने मन के बहकावे में बह जाने का गुनाह किया है,

             मेरे अपने मुझे माफ कर सकते है, मगर मैं खुद को माफ नही कर सकती,

 

89…. आपने जान-बूझकर अनु को बदनाम  करती थी, ताकि वह बाध्य होकर यहां से चली जाय,        

        “ मैं ममता की बेढ़ी " में   जकड़े होने के कारण खामोश था, आप उसे बेटी जैसा प्यार नहीं दे पाई,

         आपने हम दोनों कि जिंदगी तबाह कर दिया, “ मां तूने ये क्या किया ”

 

90….मानव शरीर पांच तत्वों के संतुलित मेल से बना है,(वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, आकाश)संतुलन

      बिगड़ा नहीं कि खेल खत्म, जिंदगी मौत में बदल जाती है,शारीरिक बीमारी, चिंता का कारण नहीं,

      हर एक बीमारी की दवा है, "मन" बीमार हो तो सच में चिंता का विषय है, बीमार मन महौल को भी

      बीमार कर देता है,मानव शरीर को 'नश्वर' की उपाधि दी गई है, जन्म के साथ, शारीरिक संरचना के

      आधार पर आयु सीमा निश्चित होती है, कोई र्दुघटना या बीमारी न हो, तो भी मृत्यु तय है,बुद्धिमान

      वही होता है जो इस नश्वर शरीर से, जितना ज्यादा-से-ज्यादा लोगों की हित कर सके, अगर हमें

       किसी के लिए कुछ करने का मौका मिले तो खुद को भाग्यवान समझना चाहिए,

 

91….विश्वास पात्र इंसान से जब, विश्वासघात मिलता है तो जिंदगी बिखर सी जाती है और समय

       जाते-जाते सिखाकर कर जाता है कि राह में फूंक-फूंक कर पांव रखना चाहिए, फिर दुःखी इंसान

       छांछ  भी फूक कर पीता है,

 

92…."लड़की वाला खुश है कि नौकरी वाला लड़का मिल गया, लड़के वाले खुश है कि

         कमसिन लड़की मिल गई"

          इस शादी के जोड़े को देखकर मेरे मन में कुछ सवालों का जन्म होता है,

          1……..क्या रोहित, मंजू को जीवन संगनी के रूप में पाकर खुश है  ?

           2…….मोहिनी के बेवफाई से, रोहित का लिया गया, यह निर्णय क्या सही है  ?

           3…….कितने % आशा है, भविष्य में रोहित और मंजू की शादी टिके रहने की    ?

 

93….शंभु जी 70 साल के होते हुए भी, खुद दुकान की देख भाल करते है जबकि 25 साल का शिवा बेटे के

        फर्ज से मुंह मोड़कर दिन-भर आवारा दोस्तों के साथ, गंदी आदतों में मस्त रहता है, उसकी शादी के

        लिए लड़की वाले आते है पर पंडित जी उन्हें लौटा देते है, लोगों की शादी करने वाले, शंभु जी अपने

        बेटे की शादी नहीं करा पा रहे है,शिवा के व्यवहार से उन्हें डर लगता है, झूठ बोलकर शादी कराने में

         शादी के बाद लड़की घर छोड़कर चली जायेगी तो समाज में बदनामी होगी, शिवा में कोई ऐसा गुण

         नहीं जिससे लड़की वाला उसे पसंद करे, सिर्फ अच्छी सूरत होने से क्या होता है, अच्छी सीरत भी

         होनी चाहिए,

 

94….मैं 'रानी' 42 साल के पड़ाव में आकर, पीछे मुड़कर देखने पर ,जिस दलदल में मैंने 20 साल पहले

       कदम रखा था, आज अपनी बेटी को उसी दलदल में खड़ी पा रही हूं, इससे दूर रखने की मेरी हर एक

       कोशिश बेकार, कौन दोषी है...... मैं, मेरे पति, हालात, गरीबी , या किस्मत का लिखा मान लु,

 

95….“पिंकी अपशब्दों की बरसात करती रही, उसकी 'मां' खामोश पत्थर की मूरत बनी रही, सोचती है

         जिसके लिए गलत कदम उठाई, आज वही उस पर आरोपों की तीर चला रही है”

 

96….जैसे-जैसे वो बड़ी हो रही थी, वैसे-वैसे लोगों की नियत खराब हो रही थी, वो खुद को कैसे और

       किस-किस से बचाये, आते-जाते अपशब्द बाते तो आम बात थी, फिर भी वो सभी बातो को अनसुनी

       कर जी रही थी,अभद्र लोगों की शिकायत असभ्य समाज से कैसे करे,कौन सुनेगा, यहां तो सबके

       चेहरे पर मुखौड़े लगे है, जो होते कुछ और है, दिखते कुछ और, उसे पता चल गया, अपनी रक्षा आप

       करनी होगी, आंधी रात को दरवाजा खटखटाने की आवाज से डर जाती है, कौन है, कौन है, जोर से

       चिल्लाती तो, जो भी होता भाग जाता,सुबह सबसे बोलने पर, सब एक-दूसरे की ओर देखते, ऐसी

       हरकते आम बात हो गई,

 

97….'कृष्ण' को आज हम सब भगवान के रूप में पूजते है, पर जब कृष्ण की बाल लीला चल रही थी, उस

        समय के लोग उन्हें एक बहुत ही चंचल, चालक और बहादूर बालक समझते थे, बालक जितना भी

        बहादूर क्यों ना हो, मां के लिए चिंता कम नहीं होती,मां के लिए हर बालक भोला-भाला, नासमझ

        बच्चा ही रहता है, माता यशोदा हमेशा कृष्ण के लिए चिंतित और परेशान रहती थी, कितना भी

        कोई बोले की कृष्णा बलशाली है, कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता, इन बातों का यशोदा पर

       कोई असर नहीं होता, वो हमेशा कृष्ण के लिए चिंतित रहती,

 

98….हमारा देश 'भारत वर्ष' भारत माता के नाम से भी जाना जाता है, जो अंग्रेजों के हाथ में गुलामी की

        जिंदगी जी रहा थी, लाखों देशभक्त पुरुषों और महिलाओं की कुर्बानी के बाद हमसब ने इन्हें

        आजाद कराया,आजादी के 68 साल हो गये, हम सब खुद को आजाद मानते है, मगर ये आजादी

        सिर्फ पुरुषों को मिली है, महिलाएं आज भी गुलाम है, सिर्फ गुलामी में रखने वाले लोग बदल गये

        है,अधिकांश पुरुषों को मान-सम्मान तो चाहिए, मगर हमेशा अपनी जिम्मेदारी से पला झाड़ते में

        लगे रहते है, मान-सम्मान बाजार में बिकने वाली कोई सामान तो नहीं, जो गये और खरीद लाये,

          इसके लिए अपनी जिम्मेदारी के साथ-साथ, अपनों की जिम्मेदारी को भी निभाना पड़ता है, तब

          जाकर सम्मान के हकदार बनते है,

 

99…..यह कहानी हर एक, उस लड़की की है, जिसे शादी के बाद पराया कर दिया जाता है, कोई फ़र्क नहीं

        पड़ता कि उसका नाम, रीता गीता, सीता या नीता है, नीता वह लड़की है जो शादी के पहले अपने

       मम्मी-पापा की जान और मम्मी-पापा उसकी जान हुआ करते थे, तो आज उसे ऐसा क्यों लग रहा है

       कि........... मेरी 'मां ' मेरी नहीं रही,

 

100….मेरा दिल सबकी सुनता, पर मेरी नहीं, इसकी हरकतों से परेशान हूं, आखिर ये

       चाहता क्या है,मेरी आपबीती सुने और बताये,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

        मैं सोचता हूं, अनु मेरा प्यार है तो भाभी क्या है, कहीं भाभी से तो प्यार नहीं, उनसे इतना लगाव

         क्यों, दिल चाहता क्या है, उधर घरवाले मेरे लिए, लड़की देख रहे है, उन्होंने मेरे लिए बहुत किया,

         मैं उनका दिल नहीं तोड़ सकता, उनकी मर्जी के खिलाफ नहीं जा सकता,कामयाब होने के बाद भी

         मैं बहुत ही परेशान हूं, घरवालों की मर्जी से शादी करने के बाद, क्या मैं खुश रहूंगा, अनु को भूल

         पाऊंगा, या भाभी के बिना रह पाऊंगा, क्या ये दोनों मुझे माफ कर देंगे, मैं कोई फैसला कैसे लू,

         क्योंकि मुझे खुद नहीं पता कि मेरा दिल क्या चाहता है,

                                                                                                 Rita Gupta.