'विकलांगता' लोगों की सोच में है,

'विकलांगता' लोगों की सोच में है,

"God Gift" में मिली, मानव शरीर कितना अनमोल है, इसका पता तब चलता है, जब कोई अंग खो देते है, उनसे पूछे जिनमें, जन्म से ही किसी कारणवश उनकी संरचना में त्रुटि रह गई है, गलती किससे और कहॉं हुई ? इसका कोई जवाब नहीं पर हम नासमझ इंसान, उसे विकलांग की उपाधि दे देते है,

विकलांग की परिभाषा क्या होनी चाहिए,,,,,,,,,,,,,,,,,,?

क्या शारीरिक कमी को विकलांग कहना उचित होगा ?

मेरी सोच में, तुच्छ (निम्न) सोच वाले, जो अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक गिर जाते है, उन्हें तर्कसंगत विकलांग की उपाधि देनी चाहिए,

एक सच्ची कहानी, जिस लड़के के, उन्नति के मार्ग में, उसकी शारीरिक विकलांगता बाधक नहीं बन सकी, वो सच में काबिले तारिफ है, धन्य है वो मां, जो ऐसे हिम्मति बेटे को जनमा है,

घर में धूम-धाम का मौहाल है, बहुत से रिश्तेदार आये हुए है, आज 12 बर्षिय अरविंद को विधिवत 'जनेव ' ग्रहण कराया जायेगा, ब्राह्मण समाज में नियमानुसार 5 से 12 वर्ष की आयु के, लड़कों को जनेव ग्रहण करा दिया जाता है, यह क्रिया बहुत ही शुभदिन को किया जाता है, इसके बाद उन्हें पूर्ण ब्राह्मण माना जाता है,

'जनेव' ग्रहण होने के बाद पंडितजी अरविंद से कहते है........ देखो बेटा, आज से तुम समझदार और जिम्मेवार समझे जाओगे, इसलिए नैतिक बातों पर विशेष ध्यान देना, सबको एक नजर से देखना, तुम्हारे लिए अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, सब समान है,

अरविंद....... हां पंडितजी, मैं सबको एक नजर से ही देखता हूं, क्यों बाकी लोग दोनों आंखो से देखते है

                 क्या ?

पंडित........ तुम समझे नहीं, एक नजर से देखना यानि समान नजर देना है,

अरविंद........ हां, मैं हमेशा से एक आंख से, यानि एक नजर से ही देखता हूं,(उसने अपनी दाहिने आंख को

                 बंद करते हुए कहा ) देखो मुझे अब कुछ नहीं दिख रहा है, बायी आंख तो यू ही है,

" पास बैठे अपने-पराये, अतिथि सभी एक-दूसरे को अवाक् से देखने लगे, किसी को कुछ समझ में नहीं   आ रहा कि अरविंद ऐसा क्यों बोल रहा है "

 पापा......... बेटा, क्या बोल रहे हो, तुम्हें बायी आंख से देखने में कोई तकलिफ होती है,

अरविंद...... नहीं पापा, उस आंख से कुछ नहीं दिखता, आप को अपनी बायी आंख से दिखाती है,

 पापा......... हां,

अरविंद....... आप दोनों आंख से देख सकते हो ?

पापा........ हां, तुम

अरविंद....... ( उदास नजरों से) नहीं मैं सिर्फ दाहिने आंख से ही देख पाता हूं,

पापा........ तुमने कभी कहा नहीं,

अरविंद....... मुझे क्या पता, मैं तो यहि जानता हूं कि सब कोई एक ही आंख से देखते है,

' अरविंद की बाते सुनकर खुशी का मौहाल, उदासी में बदल गया, दुसरे दिन ही उसे डाक्टर के पास ले जाते है, पूरे जॉच के बाद पता चलता है कि 8 साल पहले ही वो अपनी बायी आंख की रौशनी खो चुका है, जब 4 साल का था तब थोड़ी-थोड़ी रौशनी थी, अगर उस समय पता चल गया होता तो डाक्टर कुछ कर सकते थे, बचपन से ही बायी आंख में कुछ गड़बड़ी थी, जैसे-जैसे वो होश संभाला बाये आंख से दिखना बंद हो गया, उसे पता ही नहीं चला कि, देखने का काम दोनों आंखे करती है,

आज इतना कड़वा सच उसके आत्मविश्वास को हिलाकर रख दिया, अब तक हर कक्षा में 1st आने वाला बच्चा, खुद को क्या समझाये और कैसे समझाये कि वह बाकी लोगों कि तरह दोनों आंखो से नहीं देख सकता, वह कक्षा 7 का छात्र है, इतना समझ गया है कि लोग उसे विकलांग समझने लगे है,

घर के बड़े हिम्मत हार चुके है खुद को इतना लाचार और दोषी मान रहे है कि अरविंद से नजरे नहीं मिला पा रहे है, वह खुद को समझाते हुए इस कदर आगे बढ़ने में लग जाता है, मानों कुछ हुआ ही नहीं, इंजीनियर बनने के सपने को देखना नहीं छोड़ता,फिर से वह पहले के समान पढ़ाई में मन लगा देता है,

5 साल बाद,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

वह 12वी की परीक्षा में 90 %  नंबर लाता है, 10 वी में,वह Top ten student में से था इंजीनियरिंग के टेस्ट में उत्तम नंबर लाता है, घरवाले भी उसका साथ देते है, अरविंद के सपने को पूरा करने के लिए 10,00000 रूपया लेकर तैयार है, अपने बेटे के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते हुए, नाम लिखाने के लिए, इंजीनियरिंग स्कूल पहुंचते है, वहां physical test से पता चल जाता है कि अरविंद एक आंख से ही देख सकता है,

प्रोफेसर...........sorry अरविंद, मेरे ख्याल में तुम्हें

                     यह पढ़ाई नहीं पढ़नी चाहिए,

अरविंद........... क्यों सर, नंबर सहि नहीं आया है,

प्रोफेसर.......... कोई वजह नहीं, तुम्हें मना करने कि, तुम चाहो तो पढ़ सकते हो, मै भर्ती भी लेलुगा, फिर

                      भी,

अरविंद.......... फिर भी क्या,

प्रोफेसर......... तुम्हें कैसे समझाऊ, कि आगे क्या होगा,

अरविंद.......... सर, गुरू भगवान से भी ऊंचा है, आप दिल खोलकर सच बोले, मुझे बुरा नहीं लगेगा,

प्रोफेसर......... मैं जानता हूं, तुम में वो काबलियत है, एक अच्छा इंजीनियर बन सकते हो, पर तुम्हें रहना

                    तो इसी समाज में है, Job भी इन्हीं लोगों के बीच करना है, समाज एक आंख वाले

                    इंजीनियर पर विश्वास नहीं दिखायेगी, सहि काम नहीं मिलेगा, उस वक्त तुम्हारा

                    आत्मबल कमजोर हो जायेगा, खुद पर गुस्सा आयेगा, जब समाज तुम्हारे काबलियत को

                     नजरअंदाज करेगी,

अरविंद...........मैं खुद को विकलांग नहीं मानता,

प्रोफेसर........ मानना भी मत, 'विकलांगता' तो लोगों की सोच में है, क्या कर सकते है, पूरे समाज को

                  बदलना मुश्किल ही नहीं, नामुनकिन है, इसलिए अंत में हमे इसे रंग में रंगना पड़ता है,

"आज अरविंद Math में Ph.D  कर रहा है, ताकि वह एक अच्छा प्रोफेसर बनकर आने वाली पीढ़ी को सही ज्ञान दे सके"

                                                                                   Rita Gupta