दूसरे ' रूप ' से अनजान

दूसरे ' रूप ' से अनजान
हर इंसान के दो रूप होते है, एक तो वो, जो वो है, दुसरा जो वो, दिखना चाहता है, दोनों रूपों में लगभग 50 % समानता होती है पर किसी-किसी इंसान का दोनों रूप एक-दूसरे से बिल्कुल विपरीत, जैसे......... जो हम देख पा रहे है, वो' भगवान ' की तरह दयालु और कृपालु है, जो छिपा हुआ है, वह रूप ' दानव ' के समान डरावना और नफरत के काबिल,
सोहन अपने मम्मी-पापा का बड़ा लड़का है, उसके बाद दो बहन और दो भाई है, 5 बच्चों वाला परिवार की आर्थीक स्थिती नाजुक रहती है, किसी तरह पढ़ाई-लिखाई चल रहा है, परिवार को अभी और संकटों को झेलना है, एक सड़क र्दुघटना में सोहन के पापा चल बसते है,
उस समय सोहन की उम्र 16 साल की, दोनों बहन 13 और 11 की, दोनों भाई 8 और 6 साल की, अब घर चलना बहुत ही मुश्किल, सोहन 10वी की परीक्षा के बाद ही, बोर्डर पुलिस की परीक्षा चुन लिया जाता है, एक साल की ट्रेनिंग के बाद,18 साल की उम्र में नौकरी पक्की हो जाती है, इसी नाजुक उम्र सें वह बचपना छोड़, घर का देखभाल करनेवाला बन जाता है, वह अपना पूरा वेतन, अपनी मां के, बैंक खाते में भेज देता है, साल में एक बार, महीना दिन की छुट्टी पर घर आता है,
लगभग 5 साल नौकरी करने के बाद, कुछ रुपये जमा हो जाते है, उसकी मां बड़ी बेटी संगिता के लिए लड़का देख, शादी ठिक कर सोहन से कहती है कि तुम जब बोलो तब का दिन रखते है, बहन की शादी में तो यहाँ तुम्हारी ज़रूरत है, वह सितम्बर के महिने का कोई भी दिन बताता है, सोहन के छुट्टी के हिसाब से शादी का दिन रखा जाता है, घर की पहली शादी है, बहुत धूम-धाम से होती है, सोहन को भी बहन के ससुराल वाले अच्छे लगते है,
देखते-देखते तीन साल बीत जाते है, अभी छोटी बहन की शादी बाकी है,अच्छे लड़के तलाश हो रही है, एक अच्छा रिश्ता मिल जाता है, सोहन और उसकी मां, इस शादी को भी कर देते है, सौभाग्य से अनिता को भी सरकारी नौकरी वाला पति मिला, दोनों बहनें अपने घर मेँ खुश है, मां और भाई के लिए, इससे अच्छा और क्या होगा,
दोनों बहनों के ससुराल वाले सोहन की शादी के लिए, लड़की वाले की लाइन लगा देते है, पर वह अपने भाइयों की पढ़ाई पूरी होने का इंतजार करता है,26 साल का सोहन शादी के लिए मना करता है,सोहन की पढ़ाई अधुरी रह गई थी, इसलिए वह अपने भाइयों को पूरी शिक्षा दिलाना चाहता है,मां से अब घर का सब काम नहीं होता, उन्हें भी बहु की जरूरत है, बहुत जिद पर सोहन शादी के लिए राज़ी होता है, वह मम्मी से कहता है.......... मेरे पास समय नहीं, आज ये, कल वो, लड़की देखता रहूं, आप सब देख लोग, पसंद हो जाय तो मुझे खबर कर देना,
नौकरी वाले लड़के के लिए, लड़की की कमी नहीं, एक से बढ़कर एक लड़की देखी जाती है पर मां को कोई भी, बहु के योग्य नहीं लगती, सब परेशान है कि इन्हें कैसी लड़की चाहिये, कहीं से एक रिश्तेदार ने एक रिश्ता लेकर आया, लड़की 7वीं पास है, घर के सारे काम-काज करती है, मां-बाप नहीं है, चाचा-चाची ने परवरिश किया है, लड़की एकदम गाय है, परिवारिक है, देखने में भी सुन्दर है, पर दहेज ज्यादा नही मिलेगा, इस लड़की को भी घरवाले देख ही लेते है, सबको लड़की ठीक ही लगी, मम्मी को बहुत पसंद,
फोन पर,,,,,,,,,,,,,,,,,
सोहन........ प्रणाम मां, घर पर सब कैसे है,
मां........... सब ठीक है, बहुत से लड़की देखी, एक पसंद आयी है, तु भी आकर देख लेता,
सोहन........ मां, आपकी पसंद, मुझे पसंद है,
मां........... तो मैं शादी की तारिख ठीक कर दूं,
सोहन....... जी,
मां........... वो चाहते है कि गर्मी की छुट्टी में हो, बच्चों की छुट्टी रहेगी,
सोहन........ ठीक है, आप सब देख लेना,मैं 10 दिन पहले आऊंगा,
मां.......... मैं हूं, दोनों भाई है, सब हो जायेगा,
मां ने अपनी मनपसंद लड़की से, अपने आज्ञाकारी बेटे की शादी, गाय समान सीधी लड़की से करने का फैसला कर लिया, सोहन छुट्टी लेकर आता है, शादी होने के, सात दिन बाद अपने काम पर चला जाता है, नई बहू अपने ससुराल में ही, रहती है, महीना दिन बाद मायका जाती है, कुछ दिन बाद ही उसकी सासुजी का पैंर टुट जाता है,बहू को उनकी सेवा के लिए, ससुराल आना पड़ता है,वह अपनी सासु जी की सेवा दिलोजान से करती है, पर बुढ़ापे में टुटा हुआ हट्टी जुड़ नहीं पाता, किसी तरह पहले से कुछ अच्छा हो जाता है, लाठी के सहारे धीरे-धीरे चल पाती है, अब उनका काम है, दरवाजे के पास बैंठकर, पूरे मोहल्ले वालों से बातें करना,
बहू, सास और दोनों देवर के इशारे पर पूरे दिन इधर सें उधर दौड़-दौड़कर काम करते रहती है, इसी तरह छः महिनें बीत जाते हैं, सोहन शहर से महीना दिन के लिए, अपने घर आने वाला है, बहू बहुत खुश हैं,
सास............ बहू, एक बात समझानी थी,
बहू.............. बोलिए, मां
सास............ मैं अपने बेटे से तो बोल नहीं सकती, तुम औरत हो, ऐसी बाते तुमसे ही बोल सकती हूं,
बहू............. बोलिए, मां क्या बोलना चाहती है,
सास........... अभी बच्चे लने (यानि मां बनने) के झमेले में मत पड़ना,
बहू.............( शर्म से सिर झुका लेती है)
सास......... इसमें शर्माने वाली बात क्या है, मैं चाहती हूं, तुम्हारे दोनों देवर की नौकरी लग जाय, घर का
खर्च भी तो बहुत है, इसमें बच्चे का खर्च,
बहू.......... जी, मां जी,
सोहन आता है, घर में सब बहुत खुश है, हंसी-खुसी का मौहल है, बहू भी सोहन के साथ अपने रिश्तेदारो के यहॉ घुमने जाती है, रिश्तेदार मजाक करते है कि नया मेहमान कब आयेगा, सीमा हंसते हुए कहती है, पहले देवरानी उतार लू, उसके बाद नये मेहमान आयेगा, सीमा अपने पति से दूरी बनाये रखती है,
सोहन........तुम्हें क्या हुआ है,
सीमा....... कुछ नहीं,
सोहन........ मैं यहाँ 15 दिनों का मेहमान हूं, उसके बाद छः महीना बाद लौटकर आऊंगा या नहीं,
सीमा....... ऐसी बात नहीं करो,
सोहन...... तुम दूर-दूर क्यों रह रही हो,
सीमा....... ऐसी कोई बात नहीं,
सोहन...... मैं बच्चा नहीं हूं, क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं या तुम किसी और से प्यार करती हो,
सीमा........(रोने लगती है)
सोहन...... रो क्यों रही हो, बात क्या है, तुम बोलेगी नहीं तो मैं जानुगा कैसे,
सीमा........ आपकी मां चाहती है कि मुझे अभी मां नहीं बनना चाहिए,
सोहन....... ऐसा क्यों, बच्चे सबको प्यारे होते है, हमें भी अपना बच्चा चाहिए,
सीमा........ उनका कहना है कि पहले आपके दोनों भाईयों कि नौकरी लग जाये, उसके बाद बच्चा सोचना,
सोहन..........( थोड़ी देर खामोश) मां ठीक ही बोल रही है, बच्चा होने से खर्च बढ़ जायेगा,
सीमा...........(चुपचाप) सोहन की ओर देखती है,
सोहन.......... क्या हुआ, कुछ गलत कहा...............
सीमा..........नहीं,
देखते-देखते बाकी के 15 दिन भी बीत जाते है, अब सोहन के काम पर जाने का दिन आ गया, वह घरवालों से विदाई लेते हुए शहर की ओर रवाना हो जाता है, सबकी आंखें नम है पर काम पर तो जाना पड़ेगा,सब फिर से अपने-अपने काम में रम जाते है, शुरू होता है सीमा के लिए छः महीनें का इंतजार की लम्बी घड़ी, ससुराल में अगर कोई उसे अपना लगता है तो वो सोहन है पर वो भी उससे इतना दूर, मायके भी नहीं जाने मिलता कि यहां का काम कौन करेगा, सासुजी से कोई काम नहीं होता,
सासुजी का एक ही काम था, किसी-न-किसी बहानें सीमा को ताना देना, ऐसा कोई दिन नहीं होता जिस दिन सीमा का सिरहना (तकिया) आंसुओं से न भीगे, दिनभर काम करना और रात भर रोना, यहि उसकी जिंदगी बन गई थी, सास की सासगिरी चरम सीमा पर थी, वह किससे और क्या कहें,सोहन का फोन आता तो सास के सामने ही खड़ा होकर उसे बात करना पड़ता है, वह फोन लेकर दूसरे कमरें में नहीं जा सकती थी, सोहन उधर से जो भी पूछता, इधर से सीमा, हां सब ठिक है, यहि जवाब देती, उसके बाद सोहन की मां अपने बेटे से अपना दुखड़ा रोते रहती,
छः महीने बाद जब सोहन घर आता है तो इस बार सीमा का उदास चेहरा देख दुःखी हो जाता है, वह चाहकर भी अपने साथ सीमा को नहीं ले जा सकता,
सोहन......... सीमा,तुम्हें यहां कोई तकलीफ है, ऐसी क्यों हो गईं हो, अपना ख्याल क्यों नहीं रखती,
सीमा......... किसने लिए रखु अपना ख्याल, कौन देखता है,
सोहन......... मेरे लिए, तुम्हें इस हाल में देख, मुझे कितना दुःख हुआ,
सीमा........ बच्चा भी तो नहीं है जिसे देखकर जीने का दिल करे, आपकी मम्मी का ताना नहीं सहा जाता,
सोहन......... मम्मी के बारे में कुछ मत बोलो, वो बहुत अच्छी है, उन्हें गुस्सा आता है पर वो दिल की
अच्छी है, तुम उन्हें अपनी मां समझोगी, तब ना वो तुम्हें बेटी जैसा प्यार देगी,
सीमा........(रोती है, वह समझ जाती है कि सोहन अपनी मां कि शिकायत नहीं सुन सकता)
सोहन......... रोना बंद करों, मां देखेगी तो क्या सोचेगी,
सीमा.......... जी,मैं ही गलत हूं, इसलिए मैं आपसे कुछ नहीं कहती,
महीना दिन तक सोहन अपने घर रहता है, उस समय उसकी मां सीमा को बहू( बेटा) कहकर बुलाती है, प्यार से बाते करती है, सोहन सोच भी नहीं सकता कि उसकी मां सीमा को ताना भी दे सकती है, छुट्टी खत्म होने के बाद सोहन काम पर चला जाता है, उसके दूसरे दिन से सासुजी का दूसरा रूप सामने आता है, वह अपने सास के दोनों रूप को देखकर और घर के काम का बोझ देखकर, रात-रात भर खामशी में रोते-रोते मानसिक बिमार हो जाती है, हमेशा खोई-खोई उदास रहती है, ससुराल के सास और दोनों देवर से काम पूरा न होने पर डाट सुनती,
लापरवाही के कारण खाना बनाते समय सीमा की साड़ी में आग लग जाती है, दोनों पैर चल जाते है, सास उसके मायके वालों को बुलाकर सीमा को उनके साथ भेज देती है,वहि उसकी सेवा और इलाज होता है, इस बार की छुट्टी में आया हुआ सोहन,अपनी पत्नी से मिलने के लिए, उसके मायके जाता है, उसके ससुराल वाले दामाद जी कि सेवा-भाव करते है, दो दिन वहां रहता है, वहां उसके सास-ससुर समझाते है कि वह अपनी मां को समझाये कि सीमा को इतना सताया न करे,ऐसी बाते सुनकर सोहन नाराज हो जाता है, बात और बिगड़ जाती है, सीमा पूरी तरह ठीक नहीं हुई थी, इसलिए उसे वहि रहने देता है, और अपने घर चला जाता है, यहि सिलसिला चलता रहता है, देखते-देखते चार साल बीत जाते है, सोहन के एक भाई की नौकरी लग जाती है, सब बहुत खुश है,
शादी के पांचवें साल में सोहन को बच्चे का ख्याल आता है, सीमा को 'मां' बनने का सौभाग्य प्राप्त होता है,सीमा ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया, घर के सभी खुश है सिर्फ सासु जी को छोड़कर, बच्चे के जन्म के समय सोहन छुट्टी लेकर आता है, अपने बिटिया के जन्म के बाद खुशियां मनाता है, उसके बाद काम पर चला जाता है,
उसकी मां का व्यवहार बहुत ही खराब हो चुका है, सीमा को ताना देती है, लड़की जनमा कर रख दिया, मेरे बेटे के लिए खर्चा का घर है, बेटा होता तो वंश का नाम चलता, सीमा चुप-चाप सास का ताना सुनती और अपनी बेटी की सेवा और देखभाल में लगी रहती, इसी तरह दिन बितता है, अब बच्ची छः महीने की हो गई है, पर उसे अपनी दादी का लाड़-प्यार नसीब नहीं होता, वो दिन-रात सीमा के साथ रहती है, सीमा घर के सारे काम को करते हुए, उसकी परवरिश कर रही है,
गर्मी का एक दिन,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बच्ची बहुत रो रही है, दोपहर का समय है, सास खाना खाकर आराम फरमा रही है, देवर काम पर गये है,
सीमा....... मां जी, मुन्नी बहुत रो रही है,
सास.........मैं क्या करू, एक बच्चा भी नही संभाल पा रही है,
सीमा....... आप देखती क्यों रो रही है,
सास........मैं सो रही हूं, अपना दूध पिला चुप हो जायेगी,
सीमा....... लगता है, इसे प्यास लगा है, आप रसोईघर का ताला खोल देती तो मैं पानी ले लेती,
सास......... तुझे, मुझको परेशान करने का बहाना चाहिए, मैं सो रही हूं, अभी नहीं उठ पाऊंगी, दूध
पिलाकर सुलाने कि कोशिश कर,
सीमा......... पानी का प्यास है, दूध नहीं छु रही है, बाहर में कहि पानी नहीं है,
सास.......... जुवान लड़ाती है, गेहूं धोया हुआ पानी बालटी में है, वहि ऊपर से लेकर पिला दे,
सीमा......... गेहूं धोंकर जो गंदा पानी निकला है, उस पानी को पिला दू,
सास..........हां, ऊपर से दो चम्मच लेकर पिला देगी तो वो मर नहीं जायेगी, बेटी है, कोई बेटा नहीं है,
'बच्ची चुप होने का नाम नही, मां का दूध भी नहीं पी रही है, सीमा लाचार होकर उस पानी को ही, एक चम्मच अपनी बेटी को पिला देती है, पानी पीकर वह चुप हो जाती है और दूध पीकर सो जाती है, सीमा भी शांत होती है, आधा घंटा बाद,बच्ची रोते हुए उठती है,उसके बाद उसका रोना, जो शुरू होता है कि बंद होने का नाम नहीं,रोते-रोते दोपहर से शाम हो जाता है, शाम को डाक्टर के पास जाने के साथ ही, पेट दर्द से बच्ची की मौत हो जाती है, सीमा पागल की तरह रोती है, ऐसी ख़बर पाकर सोहन भी समय से पहले छुट्टी लेकर घर आता है, सोहन की मां उसे सारी घटना को इस तरह सुनाती है जिससे सीमा ही बदनाम होती है, सोहन को बहुत गुस्सा आता है,
सोहन....... तुमने गेहूं धोया हुआ पानी कैसे पिला दिया, पागल हो, इतनी भी समझ नहीं,
सीमा......सीमा के सब्र का बांध टूट जाता है, वह रोते हुए कहती... इसमें सब आपकी मां की गलती है,
आप अपनी मां के दूसरे रूप से अनजान है, क्यों आये हो, आज बेटी खोया है कल मुझे खो देना,
जाओ अपने काम पर, मुझे कुछ नहीं बोलना,
'मां के हिसाब से सीमा दोषी है, सीमा के हिसाब से मां दोषी है, सोहन को कुछ समझ में नहीं आ रहा कि कौन सहि है, वह सच जानने का एक उपाय निकालता है, वह दो दिन बाद ही घर में सबसे कहता है कि छुट्टी नहीं है वह कल ही काम पर जा रहा है, दूसरे दिन ही वह काम पर निकल जाता है,उसके बाद सासु जी अपने असली रूप में आ जाती है, रोज-रोज ताना और गाली से बात करना शुरू, घर का सारा काम सीमा से करवाना,
3 दिन बाद, अचानक दोपहर में सोहन अपने घर आ जाता है, मां अपने कमरे मे सोई है, सोहन चुपके से अपने कमरे में जाता है, वहां सीमा को नहीं पाया तो आंगन में आता है, सीमा वर्तन के ढेर के बीच पाता है, ये देख सोहन की आंखे भर आती है, सीमा की नजर,सोहन की नजर से मिल जाती है, वह झट से हाथ धोकर उसके पास आती है,
सीमा...... आप कैसे, और कहॉ से आ रहे है,
सोहन........ कुछ मत पूछों, कमरे में चलों,
सीमा......... आप चलों, आराम करो, मैं काम करके आती हूं,
सोहन........ काम बाद में करना, एक गिलास पानी पिला दो,
सीमा......... मां आपको आते हुए नहीं देखी,
सोहन........नहीं, वो सो रही है,
सीमा........ मां को उठाना होगा,
सोहन....... क्यों,
सीमा........ पीने का पानी, रसोई घर में है और उसमें मां ताला लगाकर चाबी अपने पास लेकर सोती है,
सोहन....... वह रसोईघर की ओर देखता है, सच में ताला लगा है, वह सीमा से कहता है कि तुम मां से
जाकर बोलो तुम्हें प्यास लगी है, चॉबी दे,
सीमा..........(सास के कमरे में जाकर) मां,
सास....... क्या हुआ,
सीमा.......... पानी पीना है, चॉबी दिजियेे,
सास....... वर्तन धोया, कपड़ा धोया, काम तो होता नहीं,
सीमा.......... जी धो रही हूं, प्यास लगी है, पानी पीकर कपड़ा धो दुगी,
सास........ मैं अभी नहीं उठने वाली, पहले सब काम करके आ, पानी बिना मर नहीं जायेगी,
सोहन....... मां उठ भी जाओ, पानी मुझे पीना है, सीमा को नहीं,
मां............ बेटा तुम, अब आये,बिल्ली के डर से ताला लगाती हूं,
सोहन......... मां, अब कुछ सफाई मत दो, सच क्या है, मैं देख रहा हूं, मैं इतना नासमझ नहीं हूं, आपके
इस रूप से अनजान रहा, और अपनी बेटी खो दी, अब सीमा को नहीं खोना चाहता, इसे मैं
अपने साथ, अपने पास लेकर जा रहा हूं, यह आपके पास महफूज नहीं है,
Rita Gupta