" तुम भी " चली गई

" तुम भी " चली गई
'मोहब्बत' तो सदियों से होता आया है, आज भी है और कल भी रहेगा, जितने ही पहरें बैठाये गये, उतना ही विराट रूप धारण कर वगावत करता आया है, समाज मोहब्बत के विपक्ष में और प्रेमी-प्रेमिका इसके पक्ष में संघर्ष किये जा रहें है, कभी ना खत्म होने वाला युद्ध चलता रहेगा’
90 बर्ष के 'बुर्जुग प्रेमी' की कहानी, उनकी जुबानी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
आज मैं 'आसनसोल' का निवासी हूं, बात उस समय की है, जब मैं 16 साल का था, हमारा गांव गंगा के इस पार, मैं अपने चाचा जी के शादी में, उनके साथ गया था, हम बाराती थे, शादी का मौहल, मस्ती का आलम, सभी नाच गाना में मस्त थे, अचानक मेरी नजर एक लड़की पर पड़ी, जो छुप-छुप कर मुझे देख रही थी, मेरी नजर पड़ते ही शर्म से छिप गई, मैं भी नाचना बंद कर दिया,
उसके बाद,नास्ता पानी, फिर खाना, सारी रात ब्याह का कार्यक्रम चलता रहा, मेरी नजर उसे ढुढती रही, कभी वो दिख जाती, तो कभी छिपकर मुझे निहारती रही, मैनें जासूसी की, पता चला कि रिश्तेदारी में आयी है, नाम निम्मों है, न जाने उसमें ऐसा क्या जादू था, मेरे सारे दोस्त मस्ती कर रहे थे और मैं उसके साथ, आंख मिचौली खेलता रहा, कभी मैं छिप जाता तो उसकी बेचैन नजरे हमें ढुढती, मैं छिपता तो वो,
जब हम दोनों की नजरे मिल जाती तो हम दोनों शर्म से पलकों को झुका लेते, आंखों-आंखों में सारी रात बित गई, सुबह चाची की विदाई करा, हम सब गंगा के इस पार अपने घर चले आये, उसके बाद मानों मैं अपना दिल वही छोड़ आया,दिन हो या रात, हमेशा उसका हंसमुख चेहरा मेरी नजरों के सामने रहता, नींद-चैन सब गायब, उसका तो पता नहीं पर मेरी आंखें उसके एक झलक के लिए बेचैन रहती,
शादी के 15 दिन बाद चाची को मायके जाना था, मैं भी उनके साथ जबरजस्ती गया, पूरे गांव निम्मों को ढुढती मेरी आंखे, जब उसे पेड़ पर आम तोड़ते हुए देखती है तो उसे सुकून मिला, मुझे देखते ही वो शर्म से पेड़ से उतरी और आम लेकर अपने घर भाग गई, चाची को वहां छोड़ मुझे अपने चाचा के साथ अपने घर आना पड़ा,अब मुझे बहाने की जरूरत पड़ने लगी, चाची के मायके जाने के लिए ताकी निम्मो की एक झलक नसीब हो, इसी तरह दो साल बीत गये, हम दोनों को पता था कि हमारे बीच प्यार है, पर कभी भी उसे या मुझे हिम्मत नहीं हुआ कि अपने प्यार का इजहार करते, सिर्फ हमारी नजरे आपस में बाते करती, हम खामोश रहते,
एक दिन उसकी सहेली मुझसे कहती है, निम्मों के शादी के लिए लड़के देखे जा रहे है, मैं डर गया कही मैं उसे खो ना दूं, मैंने अपनी चाची से कहा, आप निम्मो के घरवालों से, मेरे लिए बात करे, मुझे वो अच्छी लगती है, चाची ने उसकी मम्मी से कहा, कि उनका जेठ का बेटा है, जो H.S पास है, पापा के साथ दुकान चलाता है,कुछ दिन बाद, निम्मो के घरवाले, मुझे देखने आते है, उन्हें मैं पसंद आ जाता हूं, वो लेन-देन की बात करते है, पापा ने उनसे जितने दहेज की मांग की, वो देने में असमर्थ रहे,उन्होंने निम्मो का रिश्ता कहीं और तय कर दिया, मेरी खामोश जुबान ने, मेरे मोहब्बत का गला घोट दिया, सब कुछ खत्म हो गया,
एक साल बाद, मेरी शादी सुमन से होती है, सुमन के घरवाले पापा को मुंहमांगा दहेज देते है, उसे जीनव साथी के रूप में पाकर मैं पुरानी बातों को भूलने लगा था, मैं दो बेटे और दो बेटियों का पापा बना, जिंदगी के उतार-चढ़ाव में बच्चे बड़े होते रहे, दोनों बेटी दोनों बेटे से छोटी थी, फिर भी भाइयों ने पहले अपने बहनों का ब्याह पहले कर दिया, बेटियों के लिए अच्छे घर का लड़के देखकर ब्याह किया गया, वो अपने ससुराल में खुश है,बड़े बेटे के शादी के लिए, लडकी वालों का आना-जाना लगा रहता था,4-5 लड़की देखी गई, अंत में एक लड़की पसंद आती है, शादी की तैयारी होती है, बेटे मेरे लिए भी 'सफारी सुट' सिला देते है, उसे पहनकर मैं भी खुद को ' जवान समधी ' महसूस कर रहा था,
उस समय मेरी जिंदगी का एक नया अनुभव था, उसके पहले भी मैं समधी बना था, दो बेटियों का ब्याह किया, बेटी का बाप बनकर, बेटे वालों का स्वागत् करना और बेटा का बाप बनकर, बेटी वालों से स्वागत् करवाना, दोनों ही अनुभव अलग-अलग है,आन-शान से बारात लेकर हम सब लड़की वाले के घर पहुंचते है, वो भी बारातियों का स्वागत भाव अच्छी तरह से करते है, शादी ठीक-ठाक से हो जाती है, कोई झमेला नहीं,
विदाई के समय, लड़की की मां अपनी इकलौती बेटी की बेहत चिंता करती है, उसे ससुराल भेजने के नाम से डर जाती है, पता नहीं वो लोग कैसे होगे, ठीक से रखेगे ना, इसी चिंता से उनके आंसू रूकने का नाम नहीं, रोते-रोते बेहोश हो जा रही थी,लड़की के पापा मुझसे कहते है कि मैं उनकी पत्नी (लड़की की मां) को समझाऊ कि वो चिंता ना करे,आप सब उसे बेटी जैसा प्यार देगे
मैं उनकी बात डाल नहीं सका, मैंने कहा, क्यों नहीं, मैं उन्हें समझा दूंगा, उनकी बेटी आज से मेरी बेटी बनकर रहेगी, हमारा परिवार बहुत अच्छा है, उसे कोई तकलिफ नहीं होगा,मैं लड़की के पापा से बात करते-करते, वहां पहुंचा, जहां मां-बेटी गले मिलकर रो रही थी, मैंने जब निम्मों को देखा, तुरंत समझ गया, मेरी बहू, निम्मों की बेटी है, मेरी बोलती बंद, उसकी भी नजर मेरी नजर से मिल गई, वो भी चुप हो गई, वो कभी सोच भी नहीं सकती कि उनका दामाद, मेरा बेटा होगा,
मेरी आवाज तो निकल नहीं रही थी, समधी जी ही बोलने लगे.... तुम चिंता मत करों, इन्होंने मुझसे कहा, मेरी बेटी को अपनी बेटी जैसा प्यार देगे, ये लोग बहुत अच्छे है, वो हमारी तारीफ किये जा रहे थे, और मेरा सिर शर्म से छुका जा रहा था, मैं वहां और रूक नहीं पाया,विदाई हो जाती है, हम सब अपने घर आ जाते है, निम्मों की बेटी को बहू के रूप में पाकर खुश था और अपने जख्म हरे हो जाने पर दुःखी भी, जिंदगी को मेरे 30 साल पुराने जख्म को कुरेद कर क्या मिला,
मैनें इस राज को राज ही रहने दिया, कि मैं निम्मों को जानता हूं, पर बहू जब भी मायके से आती तो ये जरूर पूछता कि तुम्हारे मम्मी-पापा कैसे है, जिंदगी किसी का इंतजार नहीं करती,समय की रफ्तार में 20 साल और बीत जाते है, छोटे बेटे की शादी हो जाती है, दोनों बेटो के चार-चार बच्चे है, घर भरा- पूरा है, मैं और सुमन दादा-दादी बन गये,
16 साल की उम्र में निम्मों को देखा था, जिंदगी रेत की तरह फिसल गई, आज मैं 66 साल का हो गया, आंखों में धुधलापन आ गया है, फिर भी उसका वो हंसमुख चेहरा साफ-साफ बंद आंखों से दिखता है, सुमन अपने पोता-पोती के पीछे परेशान रहती है, बड़ी मुश्किल से मेरे लिए समय निकालती है,कुछ दिनों से उसकी तबियत खराब रहने लगी थी, एक दिन........... सुमन, सुबह से कुछ छोटा-मोटा काम कर नहाने चली जाती है, बहू गुस्साती है कि आप मत स्नान करना, हल्का बुखार है, वह नहीं मानती, दिल खोलकर उस दिन कुछ ज्यादा ही नहा लेती है, उसके बाद हल्का नाश्ता कर, थोड़ा सो जाती है,
जब उन्होंने दोपहर का खाना खाने के लिए उनके पोते उठाते है तो वह नहीं उठती, बच्चे चिल्लाने लगते है, दादी नहीं बोल रही है, हम सब उन्हें देखने पहुंचते है, तब- तक ,सुमन हम सबको छोड़कर जा चुकी थी, डाक्टर जी आकर देखते है तो पता चलता है कि बुखार 99 से 106 तक पहुंच चुका था और मस्तिष्क में रक्त स्त्राव (Brain Hemorrhage) से मौत हो गई,बुखार में ही नहा कर ,सोये हुए अवस्था में बुखार बढ़ते हुए सीमा रेखा 104 पार कर मौत का कारण बना,
डाक्टर की भाषा, डाक्टर जाने, मुझे सिर्फ इतना पता चला कि मैने अपना जीवनसाथी खो दिया, सुमन का देहांत हो गया यह खबर रिश्तेदारों में भेज दिया गया, निम्मों को भी पता चला कि मेरी पत्नी ( बेटी की सास ) मुझे छोड़कर चली गई, उसे बहुत दुःख हुआ, उसके घर से, मेरे बहू के पापा और भाई भी सुमन की अंतिम विदाई में शामिल होने आते है, शनिवार दोपहर को 2-3 के बीच हुई घटना में सबके आते-आते देर हुई, अंतिम संस्कार की विधि रविवार को सुबह में की जाती है,
निम्मों अपनी समधन की मौत से दुःखी, उस दिन अन्न का सेवन नहीं करती, उपवास करती है, रविवार दोपहर को फल का सेवन कर, पलंग के नीचे सो जाती है, घरवाले सोने देते है, जब उनके पति और बेटा हमारे यहां से जाते है तब वो नहा धोकर उन्हें जगाते है, ये देखकर सब अवाक रह जाते है कि वो दुनियां छोड़ चुकी है,चेकप से पता चलता है कि सदमे (shock) के कारण, दिल काम करना बंद कर दिया और मौत हुई, मेरी बहू का रोते-रोते बुरा हाल, इधर शनिवार को सास ( मां जैसी) उधर रविवार को मां, दुनियां छोड़ चुकी, उसे मां से अंतिम मुलाकात भी नहीं हुआ, मेरे घर की बड़ी बहू होने के सारे फर्ज पूरे किये, मां की याद में आंसू बहाती रह गई, इतनी संस्कारी है निम्मो की बेटी,
भगवान कहना क्या चाहते है, मेरी जिंदगी में सुमन या निम्मों, कोई भी हो, जीवनसाथी का सुख इतने दिनों का ही था,18 साल की उम्र में निम्मों को खोकर जितना रोया था, उससे कही ज्यादा 66 साल की उम्र में रो रहा था, उस समय एक आश थी कि मेरी निम्मों, जहां कही भी होगी खुश होगी, भगवान ने 66 साल की उम्र में ये आश भी छीन ली, आज 90 साल की उम्र में दिल यही कहता है....."तुम भी" चली गई
Rita Gupta.