प्यार हो तो "ऐसा"

प्यार हो तो "ऐसा"

यह कहानी उस लड़की की है, जो ' प्यार ' से अनजान है.......................

मैं 'अनु' पूजा-पाठ के मौहल में पली-बढ़ी, खुद भी अपने भगवान (भोले शंकर) पर अटूट विश्वास रखने वाली लड़की हूं, जब किसी बड़ी समस्या में पड़ जाती, क्या करू, क्या ना करू, यह समझना मुश्किल होता है, उस समय भगवान से बातें करती हूं, रात के सपने में उसका हल मुझे दिख जाता है, धीरे-धीरे बड़ी होती गई, जब दशवी की छात्रा थी,पढ़ाई के दवाब इतना कि भगवान से बात करने का समय नहीं, जल्दी-जल्दी अपनी समस्या बता देती तो रात में कोई सपना नहीं आता,

भगवान दिल की सुनते है, दिल से बात करने के लिए, मन और दिमाग को शांत करना पड़ता है,16-17 साल की बाली उमर, इतनी चंचलता कि मन कही दो पल ठहरता ही नहीं, दिमाग वो तो सातवें आसमान पर रहता है, किसी की सुनता नहीं, मैं इन दोनों (मन और दिमाग) से परेशान होकर भगवान से बात करने के लिए कोई और उपाय सोचती हूं,

मैंने सोचा अगर अपनी समस्या को एक खत में लिखकर, भोले शंकर के मंदिर में कही छिपाकर रख दू तो उन्हें जब कभी समय मिलेगा, पढ़कर हल बता देगे, यही अच्छा उपाय लगा मुझे, एक बार स्कूल से घुमने ले जा रहे थे, मम्मी-पापा जाने की आज्ञा दे देते है पर मेरा दिल नहीं कर रहा था कि मैं जाऊं, मुझे क्या करना चाहिए, ये समझ में नहीं आ रहा था,

मैंने एक खत लिखा...... (हे भगवान, मैं घूमने जाऊं या नहीं जाऊं, आप बोलो, आपको अच्छा दोस्त मानती हूं, आप जो बोलोगे, मैं वही करूगी) इस खत को मंदिर में, बेल के पेड़ में छिपा देती हूं, ताकी कोई देखे नहीं,दो दिन बाद जब मंदिर जाती हूं, तो उस खत को देखती हूं, उसके दूसरी तरफ लिखा था, मत जाओ, दशवी की पढ़ाई है ना, मन लगाकर पढ़ो, मैं खत को लेकर घर चली आती और स्कूल में बोल देती हूं कि मैं घूमने नहीं जाऊंगी,मैं सोच-सोच कर हैरान थी, भगवान को पता है कि मैं दशवी की छात्रा हूं, उन्होंने मुझे अच्छी राय भी दी, सच में वो मुझे बहुत प्यार करते है, वर्ना जवाब नहीं देते, अब कभी भी बड़ी समस्या होती मैं नहीं डरती क्योंकि मुझे भगवान से प्यार है, इस तरह दो साल बित गये,

प्यार ऐसा होता है, वैसा होता है, मुझे नहीं पता ये कैसा होता है, मुझे सिर्फ इतना पता है कि प्यार बहुत ही प्यारा होता है, प्यार रूलाता है, हंसाता है, मुझे नहीं पता क्या-क्या करता है, मुझे सिर्फ इतना पता है कि प्यार ने मुझे साहसी बना दिया,

जब 12वी में थी, तब एक बार बीमार पड़ी, बुखार जाने का नाम नहीं, कमजोरी से पीलिया (jaundice) का शिकार हो गई, महीना दिन बिस्तर पर पड़ी रही, मम्मी-पापा चिंतित थे, कैसे ठीक होगी मेरी बीमारी, मुझे भी जिने का दिल नहीं कर रहा था,पापा ऑफिस गये थे, मम्मी बाजार, भाई-बहन बाहर खेल रहे थे, मैं बिस्तर पर लेटी रो रही थी, पता नहीं ठीक हो पाऊंगी या नहीं, मंदिर जाती तो भगवान से पूछ लेती, अब कौन बताएगा कि मेरा क्या होगा, तब तक मेरा मोबाइल बजता है,

मैं............. कौन,

दोस्त......... तुम्हारा दोस्त ( भोले शंकर )

मैं............. भगवान जी आप,

दोस्त......... हां, तुम महीना दिन से मुझसे मिलने नहीं आयी, तो मुझे फोन करना पड़ा,

मैं............ आपके पास फोन भी है,

दोस्त......... क्यों, हमारे पास क्या नहीं है,

मैं.........   आप तो भगवान हो, आपके पास तो सबकुछ होगा, मैं रो रही थी,

दोस्त......... क्यों,

मैं........    . मैं बहुत बीमार हूं, आप इतना बता दो कि, क्या मैं  मरने वाली हूं,

दोस्त.........नहीं, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं, फिर भी,तुम डरती हो,

मैं.......... .नहीं, कभी-कभी तो डर लगता है,

दोस्त........ कभी नहीं डरना, और किसी से नहीं डरना, मैं साये की तरह तुम्हारे साथ हूं, तुम ठीक हो

               जाओगी, यह तुम्हारे सहनशिलता की परीक्षा चल रही थी, तुम पास हो गई, अब तुम सो

                जाओ, मैं जा रहा हूं,

फोन बंद हो जाता है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

पता नहीं मुझे कैसे नींद आ गई, मम्मी बाजार से मेरे लिए, फल लेकर आती है, फल खाने के बाद मुझे दवा खिला देती है, मैं यह बात किसी से बोल भी नहीं सकती थी कि मैंने भगवान से फोन पर बात किया, क्योंकि कोई मेरा विश्वास नहीं करता, पहली बार भगवान का दिया हुआ जबाब मम्मी-पापा को दिखाया था, तो उन्होनें मेरा विश्वास नहीं किया था, भाई-बहन भी मजाक बना रहें थे, इसलिए मैं चुप रही,उनसे बात करने के बाद आत्मबल से और मजबूत हो गई, और दवा काम करने लगा,15 दिनों में मैं बिल्कुल ठीक हो गई, उसके बाद मैं उसी नम्बर पर फोन कर, भगवान को बताना चाहा कि मैं ठीक हो गई हूं,

फोन करने पर पता चला कि ये गलत नम्बर (wrong number ) है, मैं बहुत परेशान, इसी नम्बर पर बात हुई थी, ये नम्बर गलत कैसे हो सकता है, दूसरे ही दिन मंदिर गई और खत लिखकर रख दिया, कि   " मैं आपसे नाराज हूं "दो दिन बाद जाकर खत देखती हूं, उस पर कोई जबाब नहीं, मैं दुःखी रहने लगी, पता नहीं क्या हुआ, भगवान हमसे नाराज क्यों है, लगता है उन्हें मुझसे प्यार नहीं, ये सोच-सोचकर मैं बहुत परेशान रहती, 12वी का फाइनल परीक्षा और मेरा मन पढ़ाई से हट चुका था,

एक दिन स्कूल में टिफिन का समय था, मैं चुपचाप बैठी थी, तभी अनजान नम्बर (Unknow number ) से फोन आता है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

मैं............... हेलो, कौन

दोस्त........... मैं, दोस्त,

मैं..............  भगवान जी आप, कहां चले गये थे, मेरे खत का जबाब नहीं, फोन नम्बर भी गलत, मैं

                  नाराज क्या हुए, आपने मुझे भुला दिया,

दोस्त........... मुझे माफ कर दो,

मैं................ आप माफी मत मांगों, मेरी गलती है, मुझे भगवान से नाराज नहीं होना चाहिए था,

                   आप मुझे माफ कर दो, अब कभी भी आपसे नाराज नहीं होना, मुझे

दोस्त..........जब सच पता चलेगा तो,हो सकता है कि तुम मुझसे बात ही ना करो,

मैं..........   ऐसा नहीं होगा, आप भगवान हो और मैं आपसे कभी नाराज नहीं हो सकती,

दोस्त......... सोच लो,

मैं.......... सोचना क्या, दुनियां इधर की उधर हो जाय, मैं वादा नहीं तोड़ सकती, आप सच बोलो,

दोस्त........ मैं भगवान नहीं हूं, सिर्फ तुम्हारा दोस्त हूं,

मैं........... अच्छा, आप दोस्त के रूप में, भगवान हो,

दोस्त........नहीं, दोस्त के रूप में, बहुत ही साधारण इंसान हूं,

मैं........... " इंसान " आप, झूठ बोल रहे हो,

दोस्त......... सच में, मैं सिर्फ इंसान हूं, जो तुम्हारे भोलेपन पर फिदा होकर, दोस्त बनने के भगवान का  

                 सहारा लिया, तुम इतनी भोली हो कि मुझे डर था,तुम्हें कोई बुद्धु (मूर्ख ) ना बना दे, इसलिए

                 मैं हमेशा एक अच्छे दोस्त की तरह, तुम्हारा साया बनकर, तुम्हारी रक्षा  करता रहा, मुझे

                 माफ कर दो, मुझे सच बताना पड़ा,

मैं.......... मेरे खत का जवाब आप देते थे,

दोस्त......... जी,

मैं..........   पहली बार फोन पर मुझमें, आत्मविश्वास आपने जगाया,

दोस्त....... जी, उसके बाद उस नम्बर को हमेशा के लिए बंद कर दिया,

मैं......... . .2 साल से मैं आपको भगवान समझकर, आपसे प्यार करती रही,

दोस्त......... जी, प्यार करने में कोई बुराई नहीं, बुराई उसे स्वीकार न करने में है, उसमें खुद का स्वार्थ

               साधने में है, एक इंसान को इंसान से प्यार नहीं होगा तो किससे होगा, तुम डरना मत, मेरा

              प्यार एक दोस्तवाला प्यार है, जो निस्वार्थ है, तुम अपना वादा निभाओ, मैं दोस्ती निभाऊंगा,

              मैं हर रूप में तुम्हारे साथ हूं,

मैं........... आप कौन हो, कैसे हो, क्या करते हो, दिखते कैसे हो, इन सवालों का क्या करूं,

दोस्त....... ऐसे सवालो का जन्म वहां होते है, जहां विश्वास नहीं होता, तुम्हें मुझपर विश्वास नहीं है,

मैं........... अटूट विश्वास है,

दोस्त........ तो कोई सवाल नहीं, सिर्फ दोस्ती,

मैं............ अच्छा दोस्त, आप मुझे छुप-छुप कर देखते हो और मैं,

दोस्त........ तुम तो मुझे भगवान मानती हो, जो दिखाई नहीं देते और वो किसी भी रूप में हो सकते है,

                तुम्हें मेरे रंग-रूप के बारे में नहीं सोचना चाहिए,

मैं............ पर, दोस्त

दोस्त....... पर-वर, कुछ नहीं, सिर्फ दोस्ती,

मैं............ जी, जैसा आप ठीक समझों,

"कसम से,5 साल से वो मेरा दोस्त है, जिसे मैंने कभी नहीं देखा, उसका नाम नहीं जानती, 2 साल पहले मेरी शादी हुई, तब से आज तक हमारी कोई बात-चित नहीं, पर उसके दोस्ती को महसूस करती हूं, कही भी अकेली जाती हूं तो ऐसा लगता है, मानों वो मेरे साथ चल रहा है, किसी भी अच्छे इंसान में, मैं उसे देखती हूं, शायद यही मेरा दोस्त है, मेरी यह बेचैन नजरें, हर अच्छे इंसान में अपने, उस दोस्त को देखती है,उस अनजाने, अनदेखे, दोस्त से बेहद प्यार करती हूं, उसे दोस्त के रूप में पाकर दिल कहता है, .............................................................    प्यार हो तो "ऐसा”   

                                                                                                                                                                                      Rita Gupta.