"Radhikalaya" बनाने के पीछे की कहानी,

"Radhikalaya" बनाने के पीछे की कहानी,

बात उस समय की है, जब मैं 12 साल की थी, हमारे स्कूल में लड़कियों को कबड्डी सिखाने का नया कोर्स शुरू किया गया, जिन-जिन लड़कियों को सिखना था, उन्हें एक फार्म दिया गया, जिसे 2 दिन में भरकर जमा करना था, मैं भी सिखने के इच्छुक फार्म लेकर घर आती हूं, पापा जब शाम को ऑफिस से आते है तो उन्हें दिखाया, पापा देखकर बोले... ठीक है कल रविवार है, शांती से फार्म भर दूंगा, अभी पढ़ाई करो,

रविवार दोपहर का समय, पापा खाना खा कर आराम कर रहे थे, मैं अपना फार्म भरवाने चली गई, पापा उसे देखते हुए भरने लगे,

                                                           

                                                                 फार्म

Name----------Rita Gupta.

D.O.B---------06-01-1970

Class--------V           Roll No--------6

Father’s Name----------Brij Bihari Gupta.

Mother’s Name…………………………….

Occupation-----------Job.

Address  (full)…………………………….

 

पापा, मां के नाम का कॉलम खाली छोड़ दिया,

पापा.......... उसकी जरूरत नहीं,

मैं........... क्यों, कॉलम तो दिया है,

पापा.......... जरूरत नहीं पड़ती,

मैं........... नहीं आप लिख दो,

पापा.......... अच्छा, तो अपनी मां का नाम बता,

मैं........... मुझे नहीं पता,

पापा.......... तो अपनी मां से पूछकर आ,

मैं........... मां, आपका नाम क्या है,

"मां ऐसी नजरों से मुझे देखती है, जैसे उन्हें अपना नाम याद नहीं या मैनें कुछ गलत पूछ दिया"

मैं........... क्या हुआ, बोलों

मां........... राधिका,

मैं........... वाह, कितना प्यारा नाम है, पापा मम्मी का नाम  राधिका है,

पापा......... ठीक है, ले जा ,अपना फार्म भर दिया,

"मैं अपना फार्म स्कूल बैग में रख लेती हूं"

मैं............. मम्मी, आप अपना नाम भूल गई थी,

मां.............नही तो,

मैं.............  मैनें पूछा तो, आप खामोशी से मुझे क्यों देख रही थी,

मां............ आज से 15 साल पहले तेरे दादा जी जब मुझे देखने गये थे, तब उन्होंने मुझसे मेरा नाम

                पूछा था, और आज तुमने मेरा नाम पूछा, उसी सोच में खो गई थी,

पापा....... कौन सा ऐसा महान काम किया है तुमने, जो लोग रोज तुम्हारा नाम लेते रहे, इतनी भी पढ़ी

               नही कि बच्चे का एक फार्म भी भर सके,

मैं........... क्यों मम्मी, नानाजी ने आपको पढ़ाया नहीं,

पापा.......... एक मेरी बेटी को देखों, मैं उसे पढ़ाई के साथ-साथ बहुत से गुणों की शिक्षा दिलता हूं,

मां..............( गुस्साते और आंखे नम किये हुए ) जिस बेटी पर नाज कर रहे हो वो मेरी ही बेटी है, मैंनें

                 उसे जन्म दिया है,

पापा.......... मैं उसका पापा हूं, वो मेरी बेटी है, ठीक है, उस से ही पूछते है कि वो किसकी बेटी है,

"मम्मी-पापा दोनों मेरी तरफ देखते हुए बोले बेटी, तु किसकी बेटी है"

मैं........... आप दोनों की

पापा.......... किसी एक का नाम लेना है,

मैं...........(फंस गई) इन दोनों के वाद-विवाद में, कभी पापा को देख रही हूं तो कभी मम्मी को, ये तो

             पक्का है कि किसी एक को तो नाराज करना ही होगा, मां जिस गर्व के साथ मेरी बेटी बोली थी,

               वो बाते मेरे दिल को छू गई थी, मैंने कहा....... मैं मम्मी की बेटी हूं,

पापा....... ठीक है, मम्मी की बेटी है ना, अब से जेबखर्च (pocket money) उन्हीं से लेना,

मैं.........( धीमे से ) आपसे नहीं लेना,

पापा....... अच्छा, मम्मी की बेटी, देखते है मम्मी कहां से देती है,

"पापा का मजाक-मजाक में बोली गई बाते, मुझे बुरी लग गयी, कुछ दिन बाद मैं मम्मी से बोली...... मम्मी मैं 2-3 कक्षा के बच्चों को पढ़ा सकती हूं, आप अपनी साहिलयों से बोलना, वो अपने बच्चों को मुझे पढ़ाने दे, दूसरों से फिस आधी लुंगी”

मम्मी....... तू पढ़ा पायेगी,

मैं.......... हां मम्मी, आप बोलकर देखो,

"मम्मी ने अपनी सहेलियों से कहा, वो राजी हो गई, पहले दो, फिर चार, उसके बाद दस बच्चे पढ़ने आने लगे,5 बच्चों को स्कूल जाने से पहले और 5 बच्चों को स्कूल से आने के बाद पढ़ाती थी, रात में मैं अपनी पढ़ाई पूरी करती, भाग्य ने साथ दिया, 25 रू करके,10 बच्चों का 250 रु प्रति माह मेरी कमाई शुरू हो गई, अब मुझे पापा से प्रति माह 50 रु जेबखर्च लेने का जरूरत नहीं,पापा एक दिन हंसते हुए बोले... देखों मैंने जो कुछ कहा था, वो गुस्से में कहा था, तुम दूसरे बच्चों को पढ़ाना बंद कर, अपने पढ़ाई पर ध्यान दो,

मैं.........नहीं पापा, अच्छा हुआ कि आपने गुस्सा किया, मुझे भी नहीं पता था कि मैं कक्षा 5th की छात्रा

           होकर, कक्षा 2-3 के बच्चों को पढ़ा सकती हूं, आप उन्हें पढ़ाने दो, मैं नाराज नहीं हूं, मैं वादा

           करती हूं कि मेरी पढ़ाई पर असर नहीं होगा

पापा......... ठीक है, जैसी तेरी मर्जी,

'मैं अपने कमाई मम्मी को देती, मम्मी मेरे पर गर्व करती, उन्होंने मुझे moral support दिया करती, वो मुझ पर पूर्ण विश्वास करती, उनके इन्हीं विश्वासों पर खरा उतरने के लिए, मैं भी जी-जान लगा देती, धीरे-धीरे मेरे 6th,7th,8th...... चलती गई और मेरे छात्र भी पड़ते गये,9th मुझे पढ़ाना बंद करना पड़ा, खुद की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान कि जरूरत थी,

मेरी इस कामयाबी का सारा श्रेष्य पापा को मिलता, सब यही कहते गुप्ता जी की बेटी, इस उम्र से ही अपने घर को चलाने में सहायता करती है, कही मम्मी का नाम नहीं, एक बार सरस्वती पूजा में स्टेज पर कविता पढ़ने के लिए, मुझे बुलाया गया, उस समय मैंने अपना परिचय देते हुए कहा,"मैं रीता गुप्ता, श्रीमान बृजबिहारी गुप्ता और श्रीमति राधिका देवी जी कि बेटी हूं,

सामने बैठे अध्यापकों को अच्छा लगा कि मैने अपनी मम्मी का नाम भी लिया है, मेरी हिम्मत पड़ गई कि मैनें मम्मी का नाम लेकर कोई गलती नहीं की, उसी दिन ही 15 साल की उम्र में, खुद से वादा किया, एक ना एक दिन मैं अपनी मम्मी का नाम सारी दुनियाँ के सामने रखुगी, उनके नाम कि एक संस्था बनाऊंगी, जिसमें लोगों को जिंदगी से संघर्ष करने के लिए motivate करूगी, मम्मी की तरह लोगों को moral support दूंगी, यही मेरा सपना रहेगा,

30 साल बाद,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

जब एक का सपना, सबका सपना बन जाता है,

फिर वो सपना नहीं रहता, हकिकत बन जाता है,

मैं शुक्रगुजार (thankful) हूं, अपनी उन सब सहेलियों का जिन्होंने मेरा साथ देकर, मेरे सपने को साकार बनाया,  एक बात अच्छी तरह जाना है, दुनियां में जितने भी बुरे लोग, क्यों ना हो, अच्छे लोगों की कमी नहीं, उन्हें खोज निकालने की जरूरत है,(Honesty is the best policy )

आज जो कुछ भी हूं, पापा के साथ-साथ मम्मी का भी उतना ही योगदान है,15 साल की उम्र में आंखो ने जो सपना सजाया था, उसे मैंने कभी भी धुंधला नहीं होने दिया, कभी हालात साथ नहीं देते तो कभी किस्मत साथ नहीं देती,  30 साल तक उस सपने को छोटे बच्चे की तरह इन आंखों में पालकर रखा, आज वो छोटा बच्चा, बड़ा होकर एक संस्था का रूप धारण कर चुका है, जिसका नाम है,

“Radhikalaya Old Age Home”

                                                                                                                     Rita Gupta.