" क्या सही क्या गलत "

" क्या सही क्या गलत "
" चांदनी" साधारण घर की, सामान्य शिक्षा प्राप्त, मगर बहुत ही समझदार और सुशील लड़की है, मामा-मामी के पास पली-बड़ी बहुत ही संस्कारी है, उसने जो सिखा और जिंदगी ने उसे जो सिखाया, उसी के आधार पर उसी की जुबानी, उसकी आपबीती सुनते हैं, आंख भर आये तो रोक लेना, इन्हीं आंसूओं को पीकर वह जिंदा है "
पांच बहनों के बीच पली हुई, चौथे नम्बर पर मैं हूं, मुझे याद नहीं, नानी से सुना है, जब मेरा जब होता है तो बेटे के आस लगाये, दादा-दादी का मुंह उतर गया, पापा मम्मी से नाराज, मम्मी भी नाखुश तब नानी अपने साथ मुझे अस्पताल से ही लेकर अपने घर आती है और मामा-मामी के गोद में डाल देती है,उनको पहले से दो बेटे थे, वो मुझे पाकर खुश हो गई, मामी को बेटी का बड़ा शौक, मामा भी खुश एक तो बेटी और दूसरे में उनकी भगनी लगी,उन्होंने प्यार से चांदनी नाम रखा,
उन्होंने मुझे बेटी से बढकर प्यार किया, सच को कभी भी मुझसे नहीं छिपाया, मैं उन्हें भी मम्मी-पापा कहती और अपने जन्मदाता को भी मम्मी- पापा कहती, बचपन बहुत ही प्यार-दुलार में बीता, मेरी चार बहनों मुझे खुद से ज्याद भाग्यशाली समझती, क्योंकि मेरी हर जरूरत पूरी करने के लिए, मामा-मामी, नाना-नानी, दोनों भैया तैयार रहते, उस समय मैं भी खुद को भाग्यशाली मानती थी,
जैसे-जैसे बड़ी होती गई, हर छोटी-छोटी बात पर गहरी सोच में डूब जाती, क्या सच में मैं भाग्यशाली हूं, अगर हां, तो यह कैसा भाग्य है, जिसे मम्मी का दूध नहीं मिला, अपने घरवालों का प्यार नहीं मिला, अपनी बहनों के साथ बचपन जीने का शौक अधूरा रह गया,,,,,,,,,,,, मैं खुद को भाग्यशाली नहीं मानती,
दिन बीतते है, और मैं 18 साल की चांदनी बन जाती हूं, दोनों भैया चाहते है कि पहले बहन की शादी हो, मेरे शादी के लिए लड़का देखना शुरू किया जाता है, मामा-मामी, अपने हिसाब से शहर में लड़का देखते है, मम्मी-पापा अपने हिसाब से गांव में लड़का देखते है, पापा अपने दोस्त के कहने पर गांव के मुखियां का एकलौता बेटा 'राकेश जी' को मेरे लिए पसंद करते है, उन्होंने जो कुछ भी दहेज में मागा, सबकुछ मामाजी देते है, जब की मामी शहर में नौकरीवाले लड़के से मेरी शादी करना चाहती थी, पर पापा अपना हक दिखाकर, अपनी जिद पूरा करते है,शादी का पूरा खर्च और कन्यादान मामा-मामी ही करते है,
शादी के बाद ससुराल में सबका प्यार पाकर मैं बहुत खुश थी, मेरे मायके वाले भी खुश थे कि बेटी मुखियां के घर की बहू है, शादी के दो साल होने के बाद मां नहीं बनी तो सासुजी पोते की चाह में, मुझे डाक्टर के पास इलाज के लिए ले गई, इलाज चलता रहा पर कोई दवा काम नहीं कर पाता, एक डाक्टर से दूसरे डाक्टर दिखाने के काम चलने लगा,जब डाक्टरों की दवा काम न आई तो बाबा ( ओझा ) की बाबागिरी शुरू हुआ, ऐसा लग रहा था कि अगर मैं मां नहीं बनी तो मुझे जीने का हक नहीं,इसी तरह 5 साल तक दवा चलता रहा, कोई लाभ न देख, घर पर उनकी दूसरी शादी की बात शुरू होने लगे, सासुजी कहती शादी को 8 साल हो गये, अब इंतजार नहीं किया जा सकता, हमे अपने बेटे का वंश चलना है, ऐसी बातों को सुनकर मरने का दिल करता,
कहीं से उड़ते हुए खबर मिलती है कि पास के गांव में एक 'चमत्कारी बाबा' आये है, जिसने आर्शीवाद से कितनों का भला हुआ है, कई औरतों को शादी के 10-15 साल बाद भी बच्चा हुआ, मेरी सासुजी एक अंतिम कोशिश करना चाहती थी, उसके बाद वो राकेश जी की दूसरी शादी कर देगी, मैं बाबा को दिखाने को तैयार हो गई, सासुजी के साथ मैं बाबा के पास जाती हूं, उनके पास बहुत भीड़ था, हर प्रकार के मरीजी और दुःखी व्यक्ति आये थे, उनमें से मैं भी एक दुःखयारी,
किसी ने बाबा को बताया कि गांव की मुखियां की बहू दिखाने आई है तो वो हमलोगो को जल्दी बुला लेते है, मैं और सासुजी दोनों बाबा के सामने बैठते है, सासुजी मेरे बारे में सब बताती है, बाबा अपना हाथ मेरे सिर पर रखते है, फिर 5 मिनट बाद हाथ को धीरे-धीरे करके पीठ पर लाते हुए, वही 5 मिनट तक रूके रहते है, उनके छूने के अंदाज बहुत ही अजीब था, 'पर पुरुष' के स्पर्श से मेरे बदन में गुस्से के साथ बिजली जी दौड़ जाती है, बदन कांप उठता है, वो भी शायद मेरे इस अनुभव को,अनुभव कर रहे थे, आंखें मूंदे हुए उनकी गंदी सी मुस्कान से मैं डर सी गई,अचानक आंख खोलते हुए मुझे देखते है और कहते है....... काली साया का प्रकोंप है, ये जरूर मां बनेगी, इसके हाथ से लगातार 7 दिन का पूजा-पाठ करना होगा, कल से दोपहर 12 बजें से 12.30 तक ये यहां पूजा करेगी, उसी समय आप ( सास ) अपने घर में बैठे कर पूजा करते हुए, घर के देवता को मनायेगे, देव खुश हो गये तो आपके घर नये मेहमान ( बच्चा ) का आगमन होगा, आप कल से पूजा शुरू कर दे,
दूसरे दिन से सासुजी, दोपहर 12 बजे से 12.30 तक घर पर पूजा करती और मैं बाबा जी के आश्रम में, 12- 12.30 तक पूजा करती, राकेश जी मुझे अपने साथ लेकर जाते, पूजा के समय वो आश्रम के आंगन में मेरा इंतजार करते, इस तरह सात दिनों तक पूजा चलता रहा, उसके बाद 40 दिन बाद बाबा को खबर देना था, कि मैं गर्भवती हुई या नहीं, उनकी पूजा रंग दिखाती है, मैं मां बनने वाली रह जाती हूं, शादी के 9 साल बाद मैंने सुन्दर सी कन्या को जन्म दिया,अब बाबा के मंदिर में आना-जाना होते रहता था, उसके बाद सासुजी को पोता चाहिए, इसलिए मुझे दुबारा मां बनना पड़ा, फिर कन्या का जन्म हुआ, बेटे की चाह में ,मैं चार बेटियों की मां बनी, बात वही-की-वही रह गई, सासुजी को पोता नहीं मिला, मुखियांजी का वंश आगे कैसे चलेगा, चार बेटियों के बाप 'राकेश जी' की दूसरी शादी होती है,मैं अपने मुंह पर ताला लगाकर रह गई, क्योंकि मेरे पास कोई रास्ता नहीं था,
मधु बहुत ही गरीब घर की लड़की है, पैसे के अभाव में उसे राकेश जी कि दूसरी पत्नी बनना पड़ा, वो मेरी सौतन है फिर भी मैं उससे नाराज नहीं रहती, क्योंकि उसकी कोई गलती नहीं, वो नहीं करती शादी तो किसी और से होती, दोषी अगर कोई है तो वो राकेश जी है, जो सबकुछ जानते हुए, एक और लड़की की जिंदगी बर्बाद की,मेरी बेटियां उसे छोटी मां बोलती है, वो भी मेरे बच्चों को मानती है, मेरी छोटी बेटी जो 3 साल की है, ज्यादातर वो मधु के साथ ही रहती है,
शादी किये हुए दो साल हो गये पर राकेश जी को बेटा नहीं मिला, ना ही मधु मां बनी है,सासुजी मुझसे कहती है कि मैं उसे बाबा के पास दिखाने ले जाऊं, वो बुढ़ी हो चुकी है, उनसे दिन-भर की भाग-दौड़ नहीं होगा, मैं इंकार कर देती हूं कि मैं नहीं जाऊंगी, वो अपने बेटा को बोले,,,,,,,,,,,,,,,,,,
राकेश जी अपने साथ मधु को लेकर बाबा के पास जाते है, बाबा उसे भी बहुत गौर से देखते है, इस बार वो कुछ ज्यादा ही लोभी बन जाते है, उन्होंने मधु को एक ताबीज भी पहनने की सलाह दी,उसके लिए 5000 रु खर्च होगा, राकेश जी ताबीज बनाने की राय दे देते है, बाबा मंत्र पढ़कर कुछ देते है जिसे रात को सोते समय दूध में मिलाकर पीना होता है, और उन्हें सात दिन बाद बुलाते है,
उसके बाद मधु को ताबीज मिलता है जो उसे गले में पहनना था, फिर शुरू होता है, लगातार 7 दिन चलने वाली पूजा, राकेश जी ही अपने साथ उसे लेकर बाबा के पास जाते है, प्रतिदिन मधु दोपहर 12.00 से 12.30 तक आश्रम में पूजा करती फिर घर आ जाती, दो दिन पूजा के बाद, तीसरे दिन बाबा की गलत हरकत से, वह आश्रम जाना नहीं चाहती थी, चौथे दिन बाबा उसे पानी पढ़कर देते है, उसे पीने के बाद उसका सिर चक्कर देने लगता है,वह डरकर वहां से उठकर बाहर राकेश जी के पास भाग आती है, बाबा के चेले उससे कहते है कि वो आश्रम में आराम कर सकती है, वह वहां नहीं रुकती, राकेश जी के साथ घर आ जाती है, उस रात वह मेरे साथ सोने की जिद करती है, मैं मना नहीं कर पाती,
"वो रात मैं कभी नहीं भूल सकती".......................................................
मेरे कमरे में एक पलंग पर मेरी तीनों बेटियां और दूसरे पलंग पर मैं - मधु और हम दोनों के बीच मेरी छोटी बेटी, सोने की कोशिश कर रहे थे, ऐसे तो हम दोनों एक-दूसरे से बात करते थे, मगर एक ही विस्तर पर, इस रात पहली बार सो रहे है, वो मुझे दीदी बोलती है, मैं उसे मधु ही बोलती हूं,हम सोने समय कुछ बात करते है, मैं सोने की कोशिश में लगी हूं, वो कुछ पूछने की कोशिश में लगी है,
मधु.......... दीदी, एक बात पूछना है,
मैं........... पूछो, क्या बात है,
मधु.......... आप छोटी की कसम खाओ कि सच बोलोगी,
मैं........... मैं डर गई, ऐसा नहीं होता, मैं अपनी बच्ची की कसम नहीं खा सकती,
मधु.......... तो मेरी कसम खाओ,
मैं........... तू पूछ ना जो पूछना है, मैं सच बोलूंगी,
मधु.......... आप भी उस बाबा के पास दिखाने जाती थी, उनकी कृपा से ही शादी के 9 साल बाद, आप मां
बनी थी,
मैं........... जी,
मधु.......... ये कृपा क्या है,
मैं............ पूजा-पाठ और आर्शीवाद,
मधु......... झूठ,
मैं............ क्या झूठ,
मधु............ बाबा, आपके साथ शारीरिक संबंध बनाए, तब आप मां बनी, यही सही है ना.........
मैं...............( खामोश )
मधु............ दीदी, आप मेरे सामने खामोश मत रहो, बोलो सच क्या है, वो बाबा मेरे साथ भी जबरजस्ती
करना चाहा, मैं भाग आई, आपके साथ क्या हुआ था, क्या आप भाग नहीं पाई, कुछ तो बोलो,
मैं........... मैं जानबूझ कर नहीं भागी, अगर भाग आती तो मां कैसे बनती,
मधु.......... क्या, आप मां बनने के लिए, आपने गलत काम किया,
मैं............ शादी के 9 साल हो चुके थे, लोगों के ताने सुन-सुनकर मरने को दिल करता, सासुजी उनकी
दूसरी शादी करा देने की धमकी दे रही थी, मेरी खुबसूरती, मेरा गुण, सब बेकार हो गया
‘क्या सही- क्या गलत' मैं नहीं जानती, मरता क्या नहीं करता, उस वक्त जो सही लगा मैंने
वही किया,
मधु......... आपकी चारों बेटियां उसी बाबा की कृपा है,
मैं............ हां, राकेश जी में बाप बनने की काबलियत नहीं है, ये तुम भी जानती हो,
मधु......... जी, आप सब जानते हुए, मेरी जिंदगी बर्बाद होने दी, मेरे मम्मी-पापा को मना कर सकती थी,
मैं......... क्या बोलती, राकेश जी की कमी बताती तो मेरे बेटियों का बाप कौन है, ये बताना पड़ता, क्या ये
बात मैं किसी को बता सकती थी,
मधु...........( खामोश )
मैं........... हमारा खानदान बदनाम हो जाता, राकेश जी की कमी सबके सामने आ जाती,
मधु.......... मुझे बच्चा नहीं चाहिए, मैं किसी बाबा के पास नहीं जाऊंगी, आपकी बेटियों के मुंह से 'छोटी
मां' सुनकर जी लूंगी,
मैं........... सासुजी को क्या बोलेगी,
मधु......... कोई बहाना बना दूंगी, जरूरत पड़ने पर खुद को बांझ बोल दूंगी, सोचती हूं कि राकेश जी को
क्या बोलुगी,
मैं.......... तुम्हें क्या लगता है, उन्हें अपनी कमी नहीं पता,
मधु.......... आप कहना क्या चाहती है, वो आपको और मुझे जान-बूझकर उस बाबा के पास ले गये,
"मैं........... हां, आज तक मेरी बेटियों का बाप कौन है, यह बात मैं और राकेश जी जानते थे, अब तुम भी जान गई "
सही-गलत, की परिभाषा हम इंसानों ने बनाई है, एक ही बात किसी के लिए सही तो किसी के लिए गलत होती है, क्या सही- क्या गलत, यह उस इंसान के, उस हालात में, लिए गये निर्णय पर निर्भर करता है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
Rita Gupta.