कटी पतंग

कटी पतंग
इंसान की जिंदगी' कटी पतंग' के समान है, जिस प्रकार पतंग जब तक आकाश मे, खिल रहा है उसके समान खुशनसीब कोई नहीं, हवा से बाते करते हुए, मस्ती में झुम रहा है, ठिक उसी प्रकार हम इंसान की जिंदगी में, जब तक हम आगे, और आगे बढ़ते कामयाबी की ओर बढ़ रहे है, तब तक हम खुद को भाग्यशाली मानते है,
जैसे ही पतंग के डोर के समान, किस्मत रूपी धागे से नाता टुट जाता है, हम भी कटी पतंग कि तरह, अपना आस्तिव खोने लगते है,
'ये कहानी, बचपन मे आंखों देखी, सच्ची घटना पर आधारित है'
हमारे पड़ोस मे मोलु (पुकार का नाम) रहता था, जिसके साथ हम सब खेलते भी थे, वह जितना चंचल, उतना ही अच्छें स्वभाव का लड़का था, पतंग उड़ाने की शौक रखने वाला मोलु, अपनी शौक के कारण घर, स्कूल, यहां तक कि दोस्तों से भी हमेंशा डाट सुनता था,
उसकी बड़ी बहन हम सब से कहती..... मोलु की पतंग, उसकी बहन का दुश्मन है,
पतंग उड़ाने के कारण, हमेशा उसके सारे काम उसकी दीदी को ही करना पड़ता है, स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं होने से स्कूल नहीं जाता, हम सब दोस्त, कोई भी खेल खेलते वो हमारे साथ नही होता, हमसब से बातें करता मगर पतंग उड़ाते हुए, घर में उसकी दीदी, खाना खाने को बुलाती तो वो उड़ाते हुए पतंग को नीचे नहीं उतारता बल्कि किसी को लटाई पकड़ाकर चला जाता, और जल्दीसे खाना खाकर भाग आता,
एक दिन...........................
उसकी बहन मोलु को, दोपहर का खाना खाने के लिए बुला रही थी, मगर वह आ रहा हूं, बोलकर पतंग मे लगा रहता, कोई दोस्त नही मिल रहा था, जिसके हाथ में अपनी पतंग की डोर देकर, खाने जाये,बहन बुलाती रही और वह अनसुना करता रहा, गुस्सा से बहन बुलाना बंद कर देती है, वह सोचती है भूख लगने पर अपने आयेगा, घर के दुसरे कामों में लग जाती है, अचानक 3.30 ( दोपहर) पर उसे याद आता है कि मोलु अभी तक खाने नही आया,
वो सब काम छोड़, उसे ढुढने निकलती है,चारों ओर मोलु-मोलु चिल्लाकर आवाज लगाती है, कहि से कोई जवाब नही, थोड़ी चिंता होती है कि वो गया कहां........
दिमाग लगाती है कि पतंग उड़ाने के सिवा, कोई और खेल तो वो खेलता नही, तब वो आकाश कि ओर देखती है, दोपहर का समय था, आकाश में सिर्फ तीन पतंगें नजर आ रही है, पतंग के रंग से पहचान जाती है कि ये तो मोलु कि पतंग है, अगर ये आकाश में है तो भाई भी यहि-कहि होगा, पतंग की डोर से अंदाजा लगाते हुए वो मोलु तक पहुंचने कि कोशिश करती है,
उड़ती हुई पतंग की जड़ (लटाई), मैंदान में खुले हुए कुंए की ओर इशारा करती है, बहन के होश उड़ गये, वो समझ नही पा रही, मोलु कि पतंग आसमान में खिल रही है, और मोलु कुंए में......
ऐसा सोचते ही वो पागलों की तरह चिल्लाने लगती है, आस-पास के लोग आ जाते है, कुंआ इतना पुराना और गहरा था कि किसी की हिम्मत नही हुए कि उसमें उतरे और मोलु को बचानें कि कोशिश करे,
अक्सर उस कुंए में, गाय, भैंस, बकरी गिर जाया करती थी, मगर किसी ने ये नही सोचा होगा कि सबका प्यारा मोलु भी कभी गिर सकता है,'दमकल' वाले आते है और मोलु को कुंए से निकालते है,
"कुंए में तो मोलु ही गिरा था पर बाहर तो उसकी' लाश' आती है हमसब दोस्त बहुत रोये थे उस समय दोस्त खोने पर रोना आया था आज भगवान कि लीला पर रोना आता है,90+वालें बुजुर्ग रोज मरनें कि प्रार्थना करते है, उनके लिए भगवान के पास समय नही है, जिसने अभी दुनियां नही देखी, उसे दुनियां से विदा कर देते है"
'कब' आप हम लोगों को समझेगें और' कब ' हमलोंग आपको समझेगें,
Written by
Rita Gupta.