" जिंदगी " को गले लगा ले,

" जिंदगी " को गले लगा ले,

मानव शरीर भगवान द्वारा दिया हुआ, अनमोल उपहार है, इसकी किमत लाखों-करोड़ो में भी नहीं आंकी जा सकती, हर एक अंग का अपना ही कार्य है " आँख " वह अनमोल अंग है जिससे संसार की खुबसूरती को देख सकती है,खुशनसीब है वो लोग, जिनको "आंखों की ज्योति" मिली है, क्योंकि यह सब को नसीब नहीं होता, र्दुभाग्यवश कुछ आंखे जन्म से ही ज्योति विहिन होती है, तो कुछ किसी र्दुघटना का शिकार होकर ज्योति खो देते हैं,पहले की बात और थी, कोई नेत्र विहीन कभी भी संसार की खुबसूरती को कभी नहीं देख पाते थे, अब विज्ञान के होते हुए चमत्कारों से कुछ भी असंभव नहीं, आप सपना देखो विज्ञान उसे सच कर देंगा,

सोच बदलते हुए,जागरूक होने की जरूरत है, ताकि नेत्र विहीन भी खुबसूरत दुनियां को देख सके,हमें " Eye Bank " के माध्यम से,दुनियां छोड़कर जाते समय यह उपहार किसी नेत्रविहीन को देकर जाना है, जाते-जाते किसी का भला करते हुए जाना है, उसके लिए आप भगवान से कम नहीं होगे,

“ यह कहानी सच्ची घटना पर आधारित है, जिसे इंतजार है, किसी के उपहार का ताकि फिर से जिंदगी उसे और वो जिंदगी को गले लगा सके,

गिरजा की शादी को दो साल हुए है, अपने पति उमेश के साथ बहुत ही खुशहाल जिंदगी बिता रही है, होली का दिन आता है, उसके सास-ससुर गांव मे रहते है, इस खुशी के मौके पर वह उमेश और गिरजा को गांव बुला रहे है,उमेश सोचता है कि शहर में होली नाम की होती है, असली होली तो गांव में होती है, वहां की भिमी- भिमी मिट्टी की खुशबु की यादे आती है तो दिल करता है कि सब छोड़कर गांव चल दू, पर क्या करे ये पापी पेट की जरूरत,कभी खत्म न होने वाला,सिलसिला में फंस चुके है,ऐसे भी गिरजा मां बनने वाली है, यहां उसकी देखभाल कौन करेगा, गांव पर मां के पास रहेगी तो मैं यहां निशिचत से काम कर सकता हूं, मां को इन सबकी अच्छी जानकारी है, जरूरत पड़ने पर पापा की अच्छी पहचान है, डाक्टर के साथ, दोनों मिलकर गिरजा को संभाल लेगे,

होली में घर जाना, एक पथ दो काज, करना होगा, गिरजा उमेश की बातों से सहमत है, बड़ी मुश्किल से 5 दिनों की छुट्टी मिलती है, इन्ही दिनों में छुट्टी मनाकर दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलते-मिलाते वापस काम पर आना है,

दोनों शुक्रवार को गांव पहुंचते है, शनिवार को होली के दिन उमेश नास्ता कर, दोस्तों के साथ होली खेलने निकल जाता है, घर पर गिरजा अपनी सास के साथ मिलकर पकवान बना रही है, दोपहर के समय उसकी ननद की सहेलिया उसे रंग लगा जाती है, उसका मन नहीं होते हुए भी ननद का मान रखने के लिए रंग लगवाना पड़ा, " हरा रंग "न जाने किस कैमिकल का हैं, चेहरे में जलन शुरू हो जाता है, आंख में कुछ ज्यादा हैं, रात होते-होते, दोनों आंखे लाल हो जाती और असहनीय जलन, वो रात भर सो नहीं पाती, सुबह का निकला हुआ उमेश, रात को थका हारा घर आता है और सो जाता है,

दूसरे दिन रविवार भोर में उसकी आंख खुलती है तो गिरजा को सोये देख जागता नहीं, अपनी दीदी-जीजाजी से मिलने दूसरे शहर चला जाता है, उसके जाने के घंटाभर के बाद, गिरजा की नींद खुलती हैं, वो अपने पति को बताना चाहिती है कि वो कितने तकलिंफ में है, पर वह तो भूल ही गया है कि उसकी पत्नी हैं और वो बाप बनने वाला है, उस रात वह दीदी घर ही रुक जाता है,

सोमवार की दोपहर वह घर आता है, तब फुर्सत में गिरजा से……………………………..

उमेश....... कैसी है, तुम्हारी आँखें,

गिरजा...... खामोश,

उमेश...... बोलो, चुप क्यों,

गिरजा...... क्या बोलु, दो दिन से मैं तकलीफ में थी, और आप आज पूछ रहे हो,

उमेश...... मां ,दवा लाकर दी थी ना,

गिरजा...... लाकर नहीं दी, घर पर पहले का किसी का Eye drop था, उन्होंने उसे ही मेरी आंखों में डाला,

उमेश...... क्यों, उससे ठीक नहीं हुआ,

गिरजा..... आप खुद देख लो, ( उसकी आंखो को ध्यान से देखता है)

उमेश...... अभी भी लाल है, धीरे-धीरे ठीक हो जायेगा,

गिरजा..... आंखवाले डाक्टर को दिखाकर दवा लगाने से जल्दी ठीक होगा,

उमेश...... ऐसी बात नहीं है, मुझे कल सुबह ही निकलना है, मैं मां से बोल देता हूं वो तुम्हें डाक्टर के पास

              ले जायेगी, अपना ख्याल रखना, होली के भाग-दौड़ में कैसे 4 दिन बीत गये पता भी नहीं चला,

गिरजा अपने सास-ससुर के साथ,गांव पर रहती है, उमेश को शहर आना पड़ा, होली को 7 दिन बीत गये, पर आंखो की लाली अब भी ज्यों का त्यों है, सासुजी डाक्टर से बोलकर दवा बदलकर लाती है, इस नये Eye drop को लगाते हुए 15 दिन बीत जाते है, दवा बेसर साबित हुआ, वो सास से कहती है कि आंखों के डाक्टर को दिखाकर दवा लगाना ठीक है, पर सास-ससूर नहीं सुनते, उनका कहना है कि....... यहां आंखों के लिए कोई अलग से डाक्टर नहीं है, तुम अपने शहर जाना तो दिखाते रहना,

उमेश को खबर किया जाता है कि गिरजा की आंखे महीने दिन से लाल है, यहां का दवा काम नहीं कर रहा है, उमेश को दुबारा छुट्टी नहीं मिलने के कारण वह डाक्टर से पूछकर एक Eye drop का नाम भेज देता है, उसके पापा गांव के दुकान से, दवा लाकर दिये, इस दवा को लगाते ही आँखों की जलन बढ़ जाती है,और आँख फुल जाती है, उसके बाद आंखों का फूलना कम होते-होते 10-15 दिन लग जाते है, अब धुंधलापन आ जाता है, साफ-साफ देखने के लिए वो आंखो को मशालतें हुए देखती है,

गिरजा बहुत परेशान है, एक तो बच्चा होने का नौवां महिना चल रहा है, तीन महीने से वो आँख लेकर परेशान है, ऐसे हालत में वो सिर्फ दवा लगा रही है, कोई कड़ा दवा खाने की सलाह ना डाक्टर दे रहा है ना घरवाले, उसे इंतजार है कि बच्चा हो जाय तो वह शहर जाकर आंखों के डाक्टर को दिखाकर जल्दी ठीक हो जाय,

वो दिन भी आ जाता है, गिरजा अपने बेटे को जन्म देती है, उमेश शहर से छुट्टी लेकर 2 दिन के लिए गांव आता है, घर में सभी बहुत खुश है, बच्चें को देखकर कोई कहता है कि पापा जैसा हुआ है, तो कोई कहता है कि अपने दादा जैसा हुआ है, गिरजा रोये जा रही है, वह अपने बेटे का चेहरा ठीक से देख भी नहीं पाती,उसकी धुंधली आंखे महसूस करती है कि बच्चा कैसा दिख रहा है, दो दिन के बच्चें को छोड़कर गिरजा को उमेश के साथ शहर जाना पड़ता है,आंखों के इलाज के लिए,

शहर में "नेत्र विशेषज्ञ" की जांच के बाद पता चलता है कि सही इलाज की कमी के कारण आंखों में इंनफेक्शन हो गया और धीरे-धीरे रौशनी चली गई, अब कुछ नहीं हो सकता, "आंखों की पुतली" नष्ट हो चुकी है, गिरजा अब पहले जैसा तभी देख सकती है, जब कोई अपने "नेत्रदान" करता है,

“वह चाहती है कि ज्यादा-से ज्यादा लोग " नेत्रदान " के प्रति जागरूक हो ताकि वह अपने बेटे को भर नजर देख सके, उसकी परवरिश कर सके, जिंदगी उसको और वो जिंदगी को फिर से गले लगा सकें”

                                                                                                  Rita Gupta.