“ Tapovan Pahar ” in Jharkhand

“ Tapovan Pahar ” in Jharkhand
सभी के बच्चे, सभी को अच्छे लगते है, क्योंकि हमें बचपना अच्छा लगता है, हम बच्चो कि सूरत या रंग नही देखते है, न ही उनकी सीरत, क्योंकि" बचपना " एक ऐसा गुण है, जो दिल को भा जाता है, मां को तो बच्चे मेें भगवान का रूप दिखता है,बच्चे मां को भगवान मानते है, क्योंकि मां ही है जो उन्हें लोगों कि बुरी नजर से बचायें रखती हैं,
मां को अपने सभी बच्चे प्यारे होते हैं, पर उन में से हर एक कि अपनी जगह होती है, कोई बच्चा इतने लाड़-प्यार से पला रहता है, कि वह बड़ा हो कर भी बड़ा नही हुआ रहता, यानि कि उसके अंदर अभी भी बचपना है, और अपने इसी गुण के कारण, अलग पहचान से जाना जाता है,
लेकिन आपका बचपना कभी आपको किसी ऐसी मुसिबत में डाल सकता है कि आप सोचेगे कि..............................
"मैं बड़ा क्यों नही हुआ, दुनियांदारी क्यों नही सिखा, मुझे भी औरॊ कि तरह समझदार होना चाहिए "
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वो दिन मुझे आज भी याद है, जिस दिन मुझे अपने बचपने पर गुस्सा आया और मैनें फैसला किया कि
मैं खुद को समझदार बनाऊगी,
आज से 9 साल पहले कि बात है, उस समय मेरी बहन की नई- नई शादी हुई थी, मेरे पापा ने सब को लेकर घुमने जाने का प्रोग्राम बनाया, पापा ने मुझे भी अपने साथ चलने को कहा, पर मैं अपने सास-ससुर को छोड़ कर नहीं जाना चाहती थी,
रवि जी ने महसूस किया कि मैं जाना तो चाहती हूं, पर नही जा रही हूं, मेरे पापा ने उनसे कहा... ये आपके इजाजत के बिना कहि नही जाना चाहती, अगर आप मना कर हमारे साथ जाने देते तो अच्छा होता, इसकी मम्मी को इसके बिना अच्छा नही लगता, रवि जी ने कहा... मैं मना लुगा ये आप लोग के साथ जायेगी, उनके कहने पर मैं और मेरा लड़का घुमने गये,
प्रोग्राम बन गया,total 9 लोग हुए, मम्मी-पापा, भाई-भाभी भतिजी, बहन-बहनोई, मैं और मेरा बेटा, घर से ही Tata sumo किया गया, मंजिल Deoghar था पर रास्ते मे आने वाले दार्शनिक स्थानों को देखते जा रहे थे, गाड़ी के अंदर और बाहर दोनों ही प्यारा नजारा था, सभी बड़े खुश थे, हम देवघर पहुंच कर पूजा-पाठ किये, वहि पास में नंदन पार्क है उसका भी आनंद लिया,
गाड़ी वाले ने कहा कि ..यहां से थोड़ी दूर पर Tapovan Pahar है, जो देखने योग्य है,हम सब ने सोचा उसे भी देखते चलते है, गाड़ी तपोवन कि ओर चल दिया, लगभग आधा घंटा के बाद के बाद पहाड़ दिखने लगा, मैं बहुत खुस कि हम पहाड़ पर चढ़ेगे,
जब वहां पहुंचे तो पहाड़ का विराट रूप देखकर आधे लोगो ने चढ़ने का इरादा बदल दिया, पर मैं कहा मानने वाली थी, मेरे साथ मेरे पापा, मेरा लड़का, बहन-बहनोई , सिर्फ हम पांच ही पहाड़ पर चढ़ने जा रहे थे, बाकि सब नीचे घुमते,
पत्थर को काट-काट कर पहाड़ पर चढ़ने योग्य रास्ता बना हुआ था, नीचे से देखने से सीढ़ी का अंत नही दिख रहा था, पर हम उमंग से भरे थे, मेरी मम्मी ने मुझे अलग बुला कर कहा..... तुम खुद को संभालोगी, और तेरे पापा जा रहे है उनको और अपने बेटे को, खुद बच्चा मत बन जाना, मैनें कहा...... मैं बड़ी हो गई हूं, मम्मी हंस पड़ी, वो तो मुझे भी दिख रहा है, कि तु कितनी बड़ी हुई है, मैंने कहा.... जाने दो, जब देखो समझाते रहती हो,
हम 5 लोग पूरी सीढ़ी चढ़ कर मंदिर पहुंच गये, जो कि पहाड़ कि चोढ़ी पर है, वहां प्रणाम किया एक गाइट ने मंदिर कि कहानी सुनाई,
गाइट ने कहा.....नीचे उतरने के लिए एक गुप्त रास्ता है, जिसे उस समय के राजा ने बनाया था, आप चाहो तो उस गुप्त रास्ते से भी अंदर ही अंदर पहाड़ से नीचे आ सकते हो, नही तो आप सीढ़ी से नीचे उतर सकते हो,
मैनें जैसे ही गुप्त रास्ता सुना, यानि कुछ नया, नया अनुभव मिलेगा, मैं खुस हो गई और कहा कि हम इसी रास्ते से नीचे उतरने, गाइट ने कहा.... आप सब सोच लो, क्योंकि एक बार इस रास्ते पर उतरने के बाद लौट कर रास्ता बदला नही जा सकता है, लौटने का कोई रास्ता नही है, जितनी भी मुश्किले होगी आप को उसी रास्ते से नीचे उतरना होगा, मैने कहा.... और लोग उतर रहे है कि नही, गाइट ने कहा.....25 % लोग इस रास्ते का इस्तेमाल करते है बाकि सीढ़ी का,
पापा चुपचाप मेरे उत्साह को देख रहे थे, पापा ने कहा कोई बात नहीं हम गुप्त रास्ते से ही उतरना चाहेंगे, गाइट ने 200 रूपया मांगा ,उसके बिना हम खुद नही जा सकते,
गाइट ने कहा कि पहले वो उतरेगा, फिर उसके पीछे- पीछे हम 5 लोग रहेगे, उसने मुझसे कहा कि मैं
अपने लड़के को अपने आगे रखु ताकि उसे देख पाऊंगी, मैंने कहा ठिक है, पहले गाइट.... मेरा लड़का....
मै.....पापा..... बहन..... बहनोई, इस प्रकार उतर गये,
गाइट जैसे- जैसे बता रहा था, हम सब उसके पीछे- पीछे एक-दुसरे का गाइट का काम करते हुए जा रहे थे, रास्ता इतना डरावना, खतरनाक और अंधेरा कि आप सोच नही सकते, मैं बता भी नही सकती जब तक आप खुद नही देखोगे मेरी बातो पर विश्वास नही होगा, चलते-चलते 1 फुट नीचे उतरना, कहि-कहि इतना सकरा रास्ता कि खुद को तिरछा कर के पार करो, चारो ओर अंधेरा थोड़ी सी रोशनी कभी-कभी दिख जाती थी, जो कि पहाड़ के किसी ओर से आ जाती थी ऊपर कि ओर नही देखना है क्योंकि चमगादड़ छ्त से लटके हुए है, कहि आंख में गंदगी न पड़ जाय इसलिए आंख नीचे ही रखना है, आवाज बिल्कुल नही करना, चमगादड़ उड़ने लगे तो मुश्किल और बढ़ जायेगी,
चलते-चलते मै रो पड़ी , डर से नही ,इस रास्ते से नीचे उतरने के फैसले के कारण, मेरे बचपने के कारण सब ने मेरी हां में हां कि थी, मैं चली जा रही थी, रोते हुए भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि हे! भगवान आज के बाद मैं कभी बचपना नही करूगी, अब मैं समझदार बन जाऊगी, आप हम सब कि रक्षा करना, मुझे माफ करना, मेरी नादानी कि सजा किसी को न देना,
मैनें क्यों नही सोचा कि मेरे पापा जो 55 साल के है वो कैसे इस रस्ते को पार करेगें, मेरा बेटा जो 15 साल का है वो कैसे पार करेंगा, मेरी बुद्धि को क्या हुआ था, पहाड़ कि चोटी से ये गुप्त रास्ता लगभग 1 घंटा का था, पर मेरे लिए 1 दिन के समान लग रहा था, कहि-कहि से थोड़ी रोशनी दिखाई दे रही थी, उसी से अभास करते हुए चलना था,
मुझको बुरे-बुरे ख्याल आ रहे थे, अगर पापा को कुछ हो जाता है तो मैं मम्मी को क्या मुंह दिखाऊंगी,मेरे बच्चे को कुछ होता है तो मैं इसी पहाड़ से कुद कर अपनी जान दे दुंगी, अगर बहन-बहनोई को कुछ होता है तो उसके ससुराल वाले को क्या कहेगे
मै कभी प्रार्थना कर रही थी, तो कभी रो रही थी, कभी खुद को हिम्मत दे रही थी कि सब ठिक होगा, भगवान हमारे हाथ है, ये सिलसिला चलता रहा और रास्ता तय हो गया, बाहर आ कर हम सब ने लम्बी सांस ली, मानो जंग जीत कर आये हो,
"आप अपने अनुभव के बिना रास्ता के खतरनाक होने कि कल्पना नही कर सकते",