हर नारी में है......"दुर्गा शक्ति "

हर नारी में है......"दुर्गा शक्ति "

हमारा देश भारतवर्ष मातृ प्रधान देश है, यहां कि नारी हमेशा से उदाहरण बनी है, हर क्षेत्र में अपना स्थान बनाकर साबित कर दिया है कि हम किसी से कम नही है, अपने घर को संभालते हुए, समाज और देश के लिए हमेशा से सहयोग करती आई है,

नारी विभिन्न रूपों में माता, बहन, भार्या, बेटी आदि बनकर हमेशा पुरुषों के आत्मबल को प्रोत्साहित किया है, फिर भी इनसे से नारियों को वो सम्मान नही मिला है, जिसके ये अधिकारी है,

नारी पर अत्याचार और बुरी नजर का प्रहार, कोई नहीं बात नही है, ऐसी बाते पहले भी होती थी और आज भी हो रही है, युग बदल गया पर नारी कि दशा नही बदली, इसके लिए सिर्फ पुरूषों को जिम्मेवार नही माना जाना चाहिए, अगर हमारे ऊपर अत्याचार हो रहा है, इससे यह पता चलता है कि हम अत्याचार होने दे रहे है, जिस दिन हम जाग जायेगें, उस दिन कोई, किसी प्रकार से हमें नहीं सता सकता, यहि समझने कि बात है,

"नारी अपने अंदर कि शक्ति को पहचानों, हम जननी है, हमारी जिम्मेवारी इन पुरुषों से ज्यादा है, जब बच्चा छोटा होता है, तो वो कोरा कागज होता है, वहि से शुरूवात होती है, उसके सोच की, आचरण की, विचारों की, उसके बचपन से ही मां ( जो कि नारी है) को नारी के महत्व और गरिमा की शिक्षा देनी चाहिए, ताकि बच्चा बड़ा होकर नारी को सम्मान कि नजर से देखे, हमारा बच्चा ऐसा पुरूष बने जो अपनों में, समाज में, और देश में सम्मान के पात्र बने"

जब  जागों, तभी सबेरा, जो हो गया उससे सबक लेकर, आज से अपने आप से एक वादा करते है....... जरूरत पड़ने पर हम दुर्गा का रूप धारण कर अपनी रक्षा कर सकते है,

"सच्ची घटना पर आधारित, नारी के दुर्गा रूप को इस कहानी के माध्यम से आपके सामने रख रही हूं"

प्रीति बहुत ही सुशील और पढ़ी लिखी लड़की है, जितनी सुन्दर देखने में है उतनी ही  मीठी उसकी बोली है, ससुराल में सभी उसको अपनी पलकों पर रखते है, सुनील बैंक का मैनेजर है, उसकी इसी नौकरी पर फिदा होकर प्रीति के पापा ने उसे अपना दामाद बनाया है,

सुनील स्वभाव का बहुत ही अच्छा और प्रीति को प्यार करने वाला पति है, उसकी सुन्दरता के आगे सुनील कुछ नही है, फिर भी प्रीति को कभी भी किसी बात का घमंड नही है, वह अपने पति से बहुत प्यार करती है,

घर में हमेशा खुशी का आलम रहता है, मोहित उनका पड़ोसी है, वह कभी-कभी शाम को सुनील से मिलने के बहाने आता है और घंटों बैठकर उससे बाते करता है, पर उसकी नजर प्रीति कि ओर रहती है, इसलिए प्रीति कि कोशिश रहती है कि वह उनके बीच नही आये, वो घर के अंदर ही काम करते रहती है, पर चाय, पानी देने के लिए आना पड़ता है,

मोहित............. सुनील, प्रीति भाभी हमसे बात नही करती है,

सुनील........... थोड़ी शर्ममाती है, जल्दी किसी से बात नही करती,

मोहित.............हम कोई गैर थोड़े ही है, तुम्हारे भाई जैसा हूं,

सुनील........... ठिक है, मैं बुलाता हूं,(सुनील प्रीति को बुलाता है)

प्रीति............... जी है, बोलिए....

सुनील........... यहां बैठों, काम बाद में कर लेना,

प्रीति............... मोहित को नमस्ते करते हुए, सुनील के पास बैठ जाती है,

 मोहित............ मोहित भी नमस्ते कहता है,

' तीनों बैठकर इधर-उधर कि बाते करते है, थोड़ी-बहुत, हंसी-मजाक भी होता है, वह काम करने के     बहाने से वहां से हट जाती है, फिर मोहित भी चला जाता है,

अब मोहित को प्रीति से मिलना और बाते करना अच्छा लगने लगा, कभी सब्जी देने, तो कभी सब्जी लेने के बहाने आ जाता, प्रीति मना भी नही कर पाती, क्योंकि उसकी सासुजी कहती..... मोहित तुम्हारे देवर जैसा है, हम अच्छे पड़ोसी हैमोहित अपने घर के खिड़की से प्रीति को देखते रहता है, जब प्रीति कि नजर उससे मिलती,वह शर्म से वहां से हट जाती,

"एक दिन सुनील अपने मम्मी-पापा को स्टेशन छोड़ने जाता है, ट्रेन रात 10 बजें कि है, उसके लौटते-लौटते 11.30 बज सकते है, प्रीति अपने सास-ससुर के पैंर छुकर आर्शीवाद लेती है, सुनील, प्रीति से कहता है.....तुम दरवाजा बंद करके सो जाना मैं आऊंगा तो call कर दुंगा, रात 8 बजे सुनील

अपने माता-पिता को लेकर स्टेशन के लिए निकल जाता है,प्रीति दरवाजा बंद कर लेती है, और T.V देखने बैठ जाती है, अचानक एक घंटा बाद 9.00 बजें बेल बजती है,

प्रीति........ कौन है,

मोहित.......भाभी मैं,

प्रीति........ आप बाद में आना, अभी भैया नही है,

मोहित......भाभी मेरा T.V ख़राब हो गया, समाचार देखना जरूरी है,

प्रीति....... आप कल आना, मैं दरवाजा नही खोलुगी,

मोहित.......भाभी, मैं समाचार देखकर चला जाऊंगा, जरूरी नही होता तो मैं नही आता, आप ऐसा क्यों

                कर रही हो,

प्रीति.......... ठिक है,( दरवाजा खोलती है)

मोहित...... घर में आता है, और समाचार देखने बैठ जाता है,

प्रीति..........वहि दुसरी ओर बैठ जाती है,

"समाचार समाप्त होने पर मोहित गाना लगा देता है"

प्रीति........... आप जाओ, मै T.V बंद करूगी, मुझे भी सोने जाना है,

मोहित........ ठिक है, साथ ही सोते है,

प्रीति........... गुस्सा से, मजाक नही, आप जा सकते हो,

मोहित........ प्रीति, ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलता, मैं तुमसे प्यार करता हूं,

प्रीति........... आप अपनी मर्यादा खो रहे हो,

मोहित.......मुझे मर्यादा में रहना भी नहीं है, आज तुम्हें अपना बनाना है,

प्रीति........... ( नाराज प्रीति) तुम हद पार कर रहे हो, तुम अभी-अभी मेरे घर से निकल जाओ,

मोहित.........जाने के लिए नही आया हूं,आज तुम्हें अपना बनाना है,कौन बजायेगा ?

प्रीति............ डायनिंग टेबुल पर रखे हुए चाकू को ले लेती है,'मैं मार दुंगी '

मोहित.........तुम मुझे मारोगी,मारों मैं खुद तुम्हारे पास आ जाता हूं,

प्रीति............ वहि रूक जाओ,सच में मैं मार दूंगी,

मोहित........भोली-भाली प्रीति जी,मारना आपके बस कि बात नही है,

प्रीति...........देखो,आगे मत बढ़ना,तुम्हें नही पता मैं क्या कर सकती हूं,तुम्हें नही मार पाई तो खुद को

                  मार दुंगी,पर खुद को तुम्हारें गंदे हाथों से छुने नही दुंगी,

मोहित........ऐसा मत करना,तुम तो सब कि जान हो,तुम मर जाओगी तो मेरा क्या होगा,(और दो

                   कदम आगे बढ़ जाता है)

"प्रीति चाकू से अपने पेट मे मार लेती है,यह देख कर मोहित का होश उड़ जाता है,वह चिल्लाता है,यह क्या किया,थोड़ी देर में ही खून बहुत बह जाता है और प्रीति बेहोश हो जाती है,मोहित जल्दी से गाड़ी कर के उसे Hospital ले जाता है "

वहां Doctor उसका इलाज करते है,बेहोश प्रीति को जब होश आता है,तो डाक्टर पूछते है.....ये सब कैसे हुआ,प्रीति मोहित के तरफ देखती है,उसके आंखों में आंसू है,वह समझ जाती है कि उसे अपनी गलती का अहसास हो गया है,

प्रीति डाक्टर से कहती है........पेट में बहुत जोर दर्द था,असहनिय दर्द से बचनें के लिए मैंने खुद अपने पेट में चाकू मार लिया,

तब तक सुनील भी घर आकर घर खुला देखा तो मोहित को फोन लगाता है  और पूछता है.....तुम कहां हो तुम्हारी भाभी घर में नही है,तुम्हें बता कर गई है,मोहित कहता है......उन्हें मैं Hospital ले कर आया हूं,आप आ जाओ,सुनील दौड़ता-भागता प्रीति के पास पहुंचता है,प्रीति सुनील को भी वहि बताती है जो डाक्टर को बताया था,दो दिन बाद वह ठिक हो कर अपने घर आ जाती है,

"मोहित प्रीति के इस रूप को देखकर अवाक था,आज तक उसे प्यार करता था,अब उसकी पूजा करता है,सीधी-साधी प्रीति जरूरत पड़ने पर' दुर्गा ' का रूप धारण कर अपनी रक्षा करती है,दुसरी तरफ 'मां'का  रूप में उसे माफ कर देती है "