" सोच "नई पीढ़ी का"

" सोच "नई पीढ़ी का"

                                    Thinking "new generation"  सोच "नई पीढ़ी का"" बरगद का पेड़ अपनी उपयोगिता के कारण पूज्य निय है"

हम बरगद के पेड़ कि तुलना किसी संयुक्त परिवार के साथ कर के देखना चाहते है, कि कोई परिवार भी समाज मे इसके समान महान बन सकता है, या नही.......

'बरगद' का जड़ जमीन के अंदर दूर-दूर तक जा कर पेड़ को मजबूती प्रदान करता है, इसका तना जड़ के त्याग और बलिदान को समझता है, जब तना मजबूत बन जाता है तो  खुद ऊपर कि ओर बढ़ने के साथ-साथ नीचे कि ओर झुकना भी शुरू करता है और जड़ को कहता है कि..... थोड़ा मै झुक रहा हूं, थोड़ा आप बाहर कि ओर आओ

जड़ कहता है..... क्या करना है, बाहर आ कर

तना कहता है..... आपने इस नयी दुनियां का आनंद नही लिया, मै चाहता हूं कि हम दोनों मिलकर

                        अपने पेड़ को और मजबूत बनायेगें,

जड़ कहता है..... जैसा तुम चाहो

जड़ और तना के ताल-मेल से पेड़ इतना मजबूत बनता है कि किसी भी आंधी-तूफान का सामना करने कि ताकत उनमें होती है,हजारों  राहगिरों को छाया प्रदान करता है,

उसी प्रकार  जड़ यानि.... दादा-दादी, तना यानि.... मां-बाप, ये  दोनों पीढ़ी के बीच का ताल-मेल सहि हो तो सच में बरगद के पेड़ समान परिवार मजबूत बनेगा, फल यानि.... बच्चें , सहि संस्कारी होगे, और बच्चों को किसी भी बाहरी संकट से डरने कि जरूरत नही पड़ेगी,

इतना ही नही समाज में वह परिवार भी एक उदाहरण के योग्य बनता है, संयुक्त परिवार में बड़ा-से- बड़ा दुःख भी छोटे-छोटे हिस्सों में बंट जाता है और दुःख का एहसास कम हो जाता है,

                                                          "तो फिर  सोचने कि बात है , कि आज के युग में, कोई भी संयुक्त परिवार में क्यों नही रहना चाहता “

बहुत सोच के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची कि आज कि पीढ़ी किस आजादी के लिए, परिवार के साथ रहना नही चाहती, संयुक्त परिवार उन्हें बोझ  क्यों लगता है,

क्योंकि बरगद ने पूज्यनिय बनने के लिए अपने मूल्यवान 'फूल' का बिलदान दिया है, बरगद के पेड़ में फूल नही खिलते है, वो फूल  विहिन होता है,

"फूल क्या है" फूल है खुबसुरति का प्रतिक, फूल ही तो है, जो हमें आनंद का अनुभव कराता है, प्यारे-

प्यारे रंगीन फूल, जिंदगी के रंगीन पलों के समान होते है, हम स्वार्थी इंसान  अपने जिंदगी के रंगीन पलों का बलिदान नही कर सकते, हम जीना चाहते है और जीना जानते है,

                                       इसलिए आज कि पीढ़ी को बरगद के समान पूज्य निय बनने कि कोई लालसा नही रही,

आज के  पीढ़ी के हिसाब से जिंदगी 4 दिन कि है, वो अपना एक पल किसी के लिए त्याग नही करने वाले, वो सब कुछ जानते हुए भी कुछ नही जानना चाहते, जिंदगी को अपने हिसाब से जीने लगे है, जिसे जितना समझाना है, समझा ले," जिंदगी जीने कि परिभाषा बदल चुकी है"