रोने का "हक" नही

रोने का "हक" नही

संगिता साधारण परिवार कि पढ़ी-लिखी लड़की है, देखनें में सुंदर होने के कारण अच्छे परिवार में शादी हो जाती है, शुरू-शुरू में तो सब ठिक है, पर जैसे-जैसे दिन बिततें है, ससुराल  वालों का असली चेहरा सामनें आने लगा, बात-बात पर भिखार घर कि आई है, इस बात का ताना आम बात हो गई थी,

                               वह चुपचाप रोती है पर जबाब नही देती, उसका पति शराब का आदी हो चुका था, रात को घर देर से आना और उसके कुछ पूछने पर थप्पड़ लगा देना उसकी आदत बन चुकी थी,संगिता जब मां बननें वाली थी, तो उसके ससुराल वाले उसे उसके मां घर भेज देते है, ताकि बच्चा होने का पूरा खर्च उन्हें ही उठाना पड़े,

बात और बिगड़ गई, जब उसने बेटी को जन्म दिया, उसके ससुराल वाले नवजात शिशु को देखने भी नही आये, संगिता खुद से फोन कर कर अपने पति से बोलती है...... आप मिलने नही आये,यहां के लोग क्या सोचेगें,

पति.........सोचना क्या, एक तो बेटी जनमा दी, उपर से बात करती है, अभी वहि रह आने कि जरूरत

             नही है, हमारा जब दिल करेंगा, बुला लेगें तेरा बाप रख नही पा रहा है, अब उसके लिए बोझ

              बन गई,

संगिता......रोने लगती है,

मां..........क्या हुआ बेटी, दामाद जी क्या बोल रहे है,

संगिता......कुछ नही,

मां.......... तुम रो रही हो, वो कब आयेगे,

संगिता......(सब्र का बांध टुट जाता है) तुम्हें लगता है, कि तुम्हारा दामाद अच्छा इंसान है, दरसल वो

               इंसान है ही नही, आज तक 2 साल से मैं तुमलोगों से सबकुछ छिपा कर रखा अब नहीं

               सहा जा रहा है,(वो सब बात बता देती है)

मां........रोने लगती है,

घर का माहौल बेटी की दुःख से दुःखी हो जाता है, जब संगिता की बेटी छः महिनें कि हो जाती है, तो संगिता के मम्मी-पापा उसे समझा-बुझाकर उसके ससुराल पहुंचा देते है, उनकी सोच है कि...... एक दिन सब ठिक हो जायेगा,

संगिता ससुराल पहुंचती है, पर उससे कोई खुश नही है, वो अपने व्यवहार से सबका दिल जितने कि कोशिश करती है, कभी रुपये मांगने के बहाने, तो कभी बच्ची के बिमार के बहाने उसे उसके मां घर भेज देते, जब वहां 3-4  महिने रहना हो जाता तो उसके मम्मी-पापा उसे फिर से ससुराल भेज देते, यहि सिलसिला चलता रहा, शादी हुए 6 साल हो चुके थे,बच्ची 4 साल की हो गई, हालात सुधरने के बजाय बिगड़ता जा रहा था,

एक दिन उसे कानों-कान खबर मिला कि उसका पति, उसे तलाक देकर दुसरी शादी करने वाला है, जब वह अपने पति से पूछ बैठी कि... आप ऐसा क्यों कर रहें है, मुझे में क्या कमी है,

पति.......... तेरे से दिल भर गया, अगर यहां रहना है तो मुझे तलाक देकर, अपनी बेटी के साथ

                 नौकरानी बनकर रह सकती है,

संगिता ने सारी बातें अपने मम्मी-पापा को बतायी ताकि वो लोग कोई सहि कदम उठायेंगे, पर उनकी खामोशी ने संगिता को ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि उसे हर-हाल में ससुराल में ही रहना है, वह चुपचाप अपने  ससुराल लौट आई, मां घर जाना बंद कर दिया,   

कुछ दिन बाद, एक दिन उसकी सास ने फोन करके उसकी मां को बताती है....... कि आपकी बेटी बाथरूम में गिर गई, सिर में  बहुत चोट लगी है, अस्पताल में है,

उसके मम्मी-पापा अस्पताल पहुंचते है, पता चलता है, संगिता दुनियां छोड़कर चली गई, उससे जिसको जितना लगाव था, आंसू भी उसी हिसाब से थे,

4 साल कि बच्ची अवाक से है, न रो रही है, न कुछ बोल रही है, उसे उसके नाना-नानी घर ले गये,

नानी...... बाबु कुछ तो बोलो,

बच्ची ...... नही, पापा मार

नानी...... पापा तुम्हें नही मारेगे,

बच्ची ...... मम्मी को मार

नानी...... मम्मी तो बाथरूम मे गिर गई थी,

बच्ची ...... नही, पापा मार

नानी...... पापा ने मारा,

बच्ची......हां, हम देखा

नानी...... क्या देखा,

बच्ची...... पापा रड़ कान में डाल दिया, मम्मी बहुत चिल्लाई

नानी...... कान में रड़ डाला,

बच्ची...... हां, रड़ इस कान से उस कान  में जा

नानी......रो पड़ी, हे भगवान......

सुबह वो लोग बच्ची को लेकर थाना गये, लेडी पुलिस ने बच्ची से पूछ-ताछ कि, तो सच का पता चल गया,संगिता के पति को गिरफ्तार किया गया, पुलिस मार पड़ने पर वह सब सच-सच बता देता है,

संगिता के मम्मी-पापा रोते हुए ,लेडी पुलिस से कहते है..... आप इसे छोड़ना मत, फांसी कि सजा दिलाना,इसनें मेरी बेटी पर बहुत अत्याचार किया है,

लेडी पुलिस....... जितना यह दोषी है, उतना ही दोषी आप लोग भी है,आपकों रोने का" हक" नही है,

                      बेटी कि शादी का मतलब, उसे भूल जाना नही होता, अगर बेटी इतनी ही बोझ है, तो

                      उसके जन्म लेते ही मार डालों, कोई और आपकी बेटी को घुट-घुट कर मरने के लिए

                      मजबूर करें, इससे अच्छा उसे जन्म देने वाला ही मार डाले,

“इसे तो सजा मिलेगी ही, आप पाश्चताप कैसे करेगें, ये सोचें, रोना मत, ये हक आप खो चुके है”