भ्रम

भ्रम

जब वर्तमान परिस्थितिया हमारे अनुकूल नही होती है, तब हम अपने लिए भ्रम वाली दुनियां का निर्माण कर लेते है, इस दुनियां में सबकुछ वैसा ही होता है, जैसा हम चाहते है, यह भ्रम नाना प्रकार के होते है, मां को श्रवण जैसा बेटा पाने का भ्रम, पत्नी को मजनू जैसा पति पाने का भ्रम, पति को सति- सावित्री जैसा पत्नी पाने का भ्रम , सास को बेटी समान बहु पाने का भ्रम, बहु को सास में मां जैसा प्यार पाने का भ्रम, छात्रों को topper होने का भ्रम, स्वार्थी दुनियां में से एक Best Friend पाने का भ्रम, इस प्रकार हर इंसान कभी- न- कभी, किसी-न-किसी, भ्रम का शिकार हुआ रहता है यह भ्रम या तो खुद टुट जाते है, लोगों द्वारा तोड़े जाते है, अच्छा ही होता है, क्योंकि इस दुनियां से जितनी जल्दी real life में लौट आयेगे, उतना ही कम दर्द होगा, थोड़े दिनों के लिए भ्रम में' जीना' कोई बुरी बात नही है, इससे मन हल्का होता है, "क्या आप सोच सकते है,ऐसे कितने लोग है जिन्होंने पूरी जिंदगी भ्रम में जी है, जिन्दगी खत्म हो गई पर भ्रम बना रहा" हमारे पड़ोस में एक 85 साल की बुढ़ी औरत है, जो दो साल से बिस्तर पर 'complete bed rest' पड़ी हुई है, और मौत के लिए तड़प रही है, दिन-रात उस भगवान को श्राप देती है, जिसके विश्वास के सहारे अपनी पूरी जिंदगी जी है, मेरी मुलाकात उनसे होती रहती है, कुछ ऐसी घटना है जिसके कारण भगवान के सहारे ने उन्हें समाज और . घर में मान-सम्मान दिलाया था इसलिए उनका विश्वास मजबूत होता गया उन्हें सब लोग 'पुजारी दीदी' के नाम से जानते है, मैं भी उन्हे इसी नाम से सम्बोधित कर रही हूं उन्होंने मुझे, अपने बारे में जितना बताया, और पड़ोसी होने के नाते 25 साल से मैं उन्हे जितना जानती हूं,उस आधार पर यह कहानी है....................... पुजारी दीदी के शादी के 10 साल हो चुके थे, उन्हे कोई संतान नही था, उनकी सास उनके पति की दुसरी शादी करना चाहती थी,पुजारी दीदी को भगवान के सिवा कोई और सहारा नही दिखा, उन्होने पूजा-पाठ शुरू कर दिया,10 साल बाद उन्हें मां बननें का सौभाग्य प्राप्त हुआ, प्रथम संतान कन्या हुई, सास ने कहा... बच्चा. भी दिया तो, वो भी लड़की पता नही वंश का मुंह देखने मिलेगा कि नही, सास को वंश देने कि चाह में 2-2 साल बाद मां बनी, पर दोनो बार कन्या का जन्म हुआ, अब 3 लड़कियों का पालन-पोषण करना और सास का ताना सुनना, उनका नसीब बन गया था उन्होंने पूजा-पाठ को और बढ़ावा दिया, फिर से मां बनी, इस बार उन्हे लड़का हुआ,3 लड़कियों के बाद लड़का हुआ , सब बड़े खुश थे, पर लड़का बड़ा कमजोर था, इसलिए घर के सभी सदस्यों का ध्यान लड़के के परवरिश में लग गये, उनकी तीनों बेटियों में से किसी की भी पढ़ाई नही हो पाई, उन्हें लगता था कि अपने पूजा-पाठ के कारण ही अपने बेटें को पाया है, इसलिए घर का कोई काम हो, या न हो, पूजा जरूर होना चाहिए, सास का ताना अभी भी बंद नही हुआ था, सास का कहना था..... एक आंख को आंख नही कहते, जब तक दो बेटे नही हुए तब तक कौन सा महान काम कि, सास कि खुशी के लिए वो गर्भवती हुई, लेकिन कन्या कि प्राप्ती हुई, अब इस परिवार में 5 बच्चें और साथ में पूजा-पाठ ऊपर से घर के काम- काज अंत में सास-ससुर कि सेवा , ऐसी जिन्दगी कैसे जी, ये सिर्फ वहि जान सकती है,उन्हाेन पूजा करने में कोई कमी नही कि, दिन-प्रतिदिन पूजा करने मे ज्यादा-से- ज्यादा वक्त देने लगी, अगर कहि कमी हुई तो बच्चों के सहि शिक्षा और देखभाल में, धीरे- धीरे उन्हे ऐसा लगने लगा कि वो सब भगवान से बात कर सकती है, अब क्या था, पूरे मोहल्ले के लोग अपनी छोटी-बड़ी समस्या में इनके घर आने लगे, ये भी पूजा पर बैठती तो अपने हाथ से चावल का अक्षत, और अगरबत्ती के राख का भस्म, देती थी, लोगों का भला कैसे होता था, वो मुझे नही पता, लेकिन मुझे उनके इस पूजा-पाठ पर कभी भी विश्वास नही हुआ, लेकिन मैं अपने सास के डर से उनका सम्मान करती थी, जरूरत पड़ने पर उनके घर भी जाती थी, पुजारी दीदी को इस बात का अहसास था कि मैं उनका सम्मान डर से करती हूं, आज उनकी उम्र 85 साल कि है, मुझसे मिलना चाहती हैं, इसलिए जाना पड़ता है, हम से मिलते ही रोने लगती है, और पूछती है कि उन्हे किस गलती कि सजा मिल रही है, उन्होन इतना पूजा-पाठ किया फिर भी भगवान उन्हे सहि ' मौत' क्यों नही दे रहे है, मेरे पास उनके सवाल का कोई जबाव नही होता है, बल्कि एक सवाल होता है कि 'भगवान का सच क्या है, मुक्ति पाने का सहि रास्ता कौन सा है, उनका भ्रम दुट चुका है, उन्हें इस उम्र में आकर पता चला कि भगवान बोल कर कोई चीज नही होता है वो जिससे बाते किया करती थी, वो उनके मन का भ्रम था, भगवान के प्यार में दिवानी होकर अपने बच्चों के प्यार से दूर रह गई, जो सामने दिख रहा था उन्होने उसकी कद्र नही कि न दिखने, न मिलने वाले भगवान के लिए पूरी जिन्दगी भ्रम में बीता दिया.....................