बड़े भाई का फर्ज

बड़े भाई का फर्ज
उच्च कुल में जनमें, धार्मिक विचारों वाले मोहन और सोहन दोनों भाई लोकप्रिय है, दोनों के उम्र में 2 साल का अंतर है,
लगभग हमउम्र होने के बाद भी वो कभी भी आपस में नही लड़ते है, उनके मां-बाप इस पर बहुत खुश है, वो भगवान से प्रार्थना करते है कि उनके दोनों बच्चे हमेशा मिलकर रहे,
धीरे-धीरे दोनों बड़े होते है, मोहन अपनी पढ़ाई समाप्त कर नौकरी भी ले लेता है, घरवाले उसके लिए सुन्दर और सुशील लड़की कि तलाश कर बढ़ी धूम-धाम से शादी कर देते है, घर खुशियों से भर जाता है, उनका परिवार एक अच्छे परिवार का उदाहरण बनता है,
शादी के 3 साल बाद उनके घर में नये मेहमान का आगमन होता है, मोहन बाप और सोहन चाचा बनते है, सोहन को भी नौकरी मिल जाती है, मोहन का लड़का अब 2 साल का हो जाता है, उसकी मम्मी सिखाती है......कि चाचा से पूछो, चाची कब लाओगे, सोहन हंसते हुए कहता है......... चाची तो मेरे राजा बेटे को ही पसंद करना है,
एक दिन, एक शादी का कार्ड आता है, जो कि पड़ोस के घर से आया है, सोहन देखता है तो उसमें बराती जाने का कार्ड भी है, सोहन भैया से पूछता है........ भैया आप बराती जाओगे या मैं चला जाऊ, तभी पड़ोसी चाची आती है और कहती है........मैं अलग से बोलने आई हूं कि तुम दोनों भाई चलना, तुम्हारे चाचा जी कह रहे थे,
यह सुनकर दोनों भाई खुश, क्योंकि मन-ही-मन दोनों ही बराती जाना चाहते थे, बराती गांव कि ओर जा रही थी और रास्ते में गंगा जी (नदी) पड़ रही थी, वो खुश थे कि गंगा किनारे बस को रोकवा कर स्नान किया जायेगा,
रविवार कि सुबह बारात निकलता है, दोनों भाई ही जाते है, उनका राजा बेटा भी उनके साथ जाने के लिए रोता है, सोहन उसे मनाते हुए कहता है,मैं तेरे लिए खिलौना लेकर आऊगा, बरात कि विदाई हो जाती है, रिर्जब बस रहता है, लड़के वाले बरातियों को किसी प्रकार का कष्ट नही होने देते है, इधर से जाते समय ही गंगा के किनारे बस रोकने के लिए कुछ लोग जिंद करते है, दुल्हा का बाप कहता है...... अभी नही पहले शादी हो जाने दो, उधर से लौटते समय गंगा के पास रूकेगे, सभी मान जाते है,” शादी घर” पहुंचकर शादी ठिक-ठाक से.हो जाती है,
सोमवार सुबह, दुल्हा-दुल्हन और 3-4 लोगों को' टाटा सुमो' से विदाई कर देते है, और बाकी बराती बस से लौटते है,गंगा के पास ही सब चिल्लाते है कि उन्हें यहां स्नान करना है, ड्राइवर कहता है......मैं आधा घंटा से ज्यादा नही रूक सकता हूं, जिसे जो करना है, करके जल्दी आये,
लगभग सभी लोग बस से उतर जाते है, पर सब नहाने नही जाते है, कुछ लोग किनारे टहलते है, कुछ जल्द से नहाकर बाहर आ जाते है, पर ये दोनों भाई,मोहन और सोहन नदी मेें नहाने के लिए किनारे से अंदर कि ओर जाने लगे, वहां खड़े लोगों ने मना किया, पर वो नही माने हंसते-खेलते नहाते हुए आगे बढ़ जा रहे थे,
अचानक नदी की धारा इतनी तेज हो गयी कि उन्हें महसूस हुआ कि वो खुद को नही संभाल पा रहे है,दोनों बाहर निकलने कि कोशिश करते है पर कोशिश बेकार हो रही है, तब तक एक बांस का टुकड़ा तैरता हुआ आता है, दोनों भाईयों ने उसके दोनों साइट को पकड़ लिया,
हालात ऐसे हुए कि एक बड़ा सा चट्टान से बांस रूक है, एक साइट मोहन और दुसरे साइट सोहन, बीच में चट्टान, इससे दोनों खुद को धारा में बहने से बचाये हुए है, धारा तेज है, बांस कभी भी टुट सकता है, इसिलए उन्हें जल्दी से बाहर निकलना होगा,
दोनों एक साथ बाहर नही आ सकते है, एक धीरे-धीरे बांस को पकड़े हुए किनारे कि ओर जायेगा, दुसरा बांस को चट्टान से अटकाये रखेगा, ऐसे हालात हों गये थे, उन दोनों को अच्छी तरह पता चल गया था कि कोई एक ही बच पायेगा, दुसरा धारा में बह जायेगा,
मोहन........ भाई मैं बांस को पकड़ा हूं, तु धीरे-धीरे आगे बढ़,
सोहन.........नही भैया,मैं पकड़ा हूं, आप आगे बढ़ो,
मोहन........तु समझने कि कोशिश कर, पहले तु निकल फिर मैं आ जाऊंगा,
सोहन.........नही भैया, मुझे पता है, हम में से कोई एक ही बच पायेगा, आप बाहर निकलो, आपको
भाभी की कसम,
मोहन........मैं कसम नही मानता,तु बाहर निकल,तेरा बचना जरूरी है, तेरे सामने तेरी खुशियां इंतजार
कर रही है
सोहन........नहीं भैया, आपके बिना भाभी और मुन्ना का क्या होगा
मोहन........ भाई, तु समझ उन सबसे पहले मेरे सामने बड़े भाई होने का फर्ज है, मेरे आंखो के सामने
मेरा छोटा भाई धारा में बह जाय, मैं ऐसा नही देख सकता,
सोहन......... भैया,मैं आपके पैर पड़ता हूं, आपको मुन्ने कि कसम, आप आगे बढ़ो, मैं बाद में आऊंगा,
मोहन........ भाई, आज तक तु मेरा हर कहना मानते आया है, आज भी तुम्हें मेरी आज्ञा का पालन
करना होगा
सोहन...........नहीं भैया, इस आज्ञा का पालन मैं नही कर सकता, मैं कैसे घर जाऊंगा, भाभी आपके
बारे मे पूछेगी तो मैं क्या कहूंगा
मोहन........ तु नही मानेगा, बड़े भैया कि बात,
सोहन..........नहीं,मैं आगे नही जाऊंगा, होने तो जो होता है,
"मोहन को समझ में आ जाता है, कि सोहन को उससे इतना प्यार है कि वह अपने बारे में सोचना नही चाहता है, उसे अपने बड़े भैया कि चिंता है, मोहन दिमाग लगाता है और दम लगाकर बांस को इस तरह मोड़ देता है, कि सोहन की ओर का बांस किनारे कि ओर हो जाता है, सोहन झटके से किनारे कि ओर फेंका जाता है और बांस दुट जाता है "
सोहन..........चिल्लता है, भैया, भैया........ये क्या किया,
उसके आंख के सामने उसके भैया नदी की तेज धारा में बहते हुए हमेशा के लिए अलविंदा कर जाते है, किनारे खड़े लोग सोहन को पकड़ कर बस में बैठाते है और घर लेकर आते है, इधर सबको यह शक हो गया था कि कोई घटना घटी है तभी बस को आने में देर हो रहा है,
“सोहन घर में आते ही, भाभी के पैरों पर गिर जाता है, माफ कर दो, भाभी मैं भैया को नही बचा पाया “