प्यार "चांद और चांदनी जैसा "

प्यार "चांद और चांदनी जैसा "

चांद हमारी जिंदगी का हिस्सा है, जब बच्चा छोटा रहता है और अपनी हट { जींद} के कारण रोता है तो चुप होने का नाम नहीं लेता, तब उसकी मां उसे मनाने के लिए चांद का ही सहारा लेती है, बच्चे से कहती है कि.....चांद उसका मामा है, चंदामामा उसके लिए खिलौना लायेगे, प्यारी सी दुल्हनियां लायेगे, चांद घर से निंदिया रानी परी बन कर आयेगी और लोरी गाकर  सुलायेगी, तु जल्द से खाना खा ले, नही तो चंदामामा नाराज हो जायेगे, बच्चा प्यारी-प्यारी बाते सुनकर चुप हो जाता है और हंसने लगता है,

                              मां कि कहि गई बातें, बच्चे के दिल दिमाग पर अपना छाप छोड़ जाती है, वक्त बितता जाता है, बच्चा थोड़ा बड़ा होता है और स्कूल जाने लगता है,वहां उसे पता चलता है कि चांद पृथ्वी का उपग्रह है, जो पृथ्वी के चारों ओर घुमता रहता है, चांद पर जीवन संभव है, वैज्ञानिक पता लगा चुके है,

                                 ऐसी बाते सुनने के बाद बच्चे को याद आती है कि मां ठिक बोलती थी, चांद के घर  निंदिया रानी रहती है,1-4 साल तक कि, घर से मिली शिक्षा और 4-18 साल तक कि, समाजिक, और स्कूली शिक्षा पाकर बच्चा युवक बन जाता है, यहि शिक्षा व्यक्ति को समाज में अपना परिचय बनाने और अपनी प्रतिभा निखारने के काम आता है,

ऐसे तो शिक्षा ग्रहण करने कि कोई उम्र नही होती, हम हर पल, हर चीज से शिक्षा ग्रहण करते रहते है,जिंदगी जब तक चलती रहेगी, अपने अनुभव से हमें शिक्षित करती रहती है, इसलिए कहा गया है.......

                                        "शिक्षा वह है, जो बालक की

                                            दैहिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक

                                                शक्तियाे, का समुचिम विकाश करे"

अब बच्चा युवक बन गया है, उसे किसी से प्यार हो गया है, वह प्यार शब्द से अंजान नही है, पर यह प्यार  अनजाना है, उसे नही पता कि प्यार कि परिभाषा क्या है ? आज तक वो अपने मम्मी-पापा, भाई-बहन, पड़ोसी सब का प्यारा है, और सबसे प्यार करता है, पर यह कैसा प्यार है जो उसकी नींद चुरा  गया और सैकड़ों सवाल खड़े कर गया, जिसका जबाब उसके पास नही है न ही उसके हमउम्रों के पास, ऐसे में वह अपने सवालों का क्या करे,

उसे याद आता है कि चंदामामा है जो बचपन से उसके दोस्त है और हमेशा साथ देते आये है, शायद उन्ही के पास जबाब होगा, एक दिन छ्त पर लेटे-लेटे चंदा से बाते करता है,

युवक...... मामा मुझे किसी से प्यार हो गया..

चांद...... बहुत अच्छी बात है

युवक........ मैं उससे I love you  कैसे कहु

चांद...... क्यों उसे तुम से प्यार नही है

युवक..... मैं नही जानता

चांद...... पहले यह तो जानो, फिर कुछ कहना

युवक...... कैसे जानु

चांद..... क्या वह तुम्हारी दोस्त नही है,

युवक....... नही, वह मुझे अच्छी लगती है

चांद...... अच्छा लगने से क्या हुआ, एक-दुसरे के जानते भी नही, तो समझोगे कैसे, पहले साथी बनों

             बाद में "जीवन साथी " बनना,

युवक...... दोस्त बनाने कि कोशिश करता हूं

"जब लड़का लड़की से दोस्ती करता है, दोनों एक-दुसरे के भावनाओ को समझते है और सच्चे दोस्त बन जाते है, तब लड़के को समझ में आता है कि,I love you  बोलने से पहले महसूस करना होता है"

युवक..... मामा, वह बहुत अच्छी है, अब तक मै उसे चाहता था, अब उसकी कद्र करता हूं, आप ने ठिक

             कहा था

चांद..... किसी को भी जीवन साथी बनाने के पहले आप उसके बारे में जाने और समझे, शादी कच्चे

            धागे  से बंधा हुआ ऐसा रिस्ता है, जो जितना मजबूत है उतना ही नाजुक, जिसके साथ आप

              अपनी पूरी जिंदगी बिताने जा रहे हो और विचारो का मेल न हुआ तो, दुःख कि आंधी आप

               दोनों को जुदा कर देगी, दुःख जब भी आता है आपके आत्मबल को तोड़ता है, आप को अपने

                ऊपर से विश्वास खत्म हो जाता है, उस वक्त आपका जीवन साथी ही' पतवार' का काम

                 करता है और जिंदगी रूपी नाव को डुबने से बचाता है,

युवक...... मामा आप  ठिक बोल रहे हो

चांद....... अपने जीवन साथी पर आंख मूंद कर विश्वास करना, अविश्वास से पैदा होता है शक, शक

            एक ऐसा दिमक है, जो अंदर-ही-अंदर सब खत्म कर देता है,

युवक...... आप चांदनी से कितना प्यार करते हो ?

चांद....चांद से चांदनी, चांदनी से चांद है, हम दोनों एक-दुसरे से अटूट प्यार करते है, लोग तो चांदनी से

           ये भी कहते है कि तुम्हारा प्रेमी कैसा है जो हर रोज बदलते रहता है, पर चांदनी को लोगों के

            बातो से कोई लेना-देना नही, उसे पता है, चांद को पाने कि चाहत सभी रख सकते है, पर चांद

            तो सिर्फ उसी का है, तो अविश्वास क्यों  ?

 

युवक...... आपने प्यार कि परिभाषा ही बदल दी,

चांद........ प्यार में सिर्फ एक-दुसरें को पाना ही नही होता, एक-दुसरें के भावनाओ को समझना होता है,

               प्यार  अनुभव करना होता है, जिसने जैसा अनुभव किया, उसने उसकी परिभाषा बना दी,

                प्यार में कुछ लोग निखर जाते है, तो कुछ बिखर जाते है,

             "जब युवक अपनी प्रमिका से मिलता है, तो प्यार का इज़हार करता है "

प्रेमिका...... देखो, मैं इतनी सुंदर नही हूं, तुम्हें मुझ से सुंदर मिल सकती है,

युवक........ सुन्दरता देखने वालो कि आंखों  में होती है, ऐसे भी मैनें परी पाने का सपना नही देखा......

                    "चांद सी महबुबा हो मेरी, ऐसा मैनें कब सोचा था,

                      हां तुम बिल्कुल वैसी हो, जैसा मैंनें सोचा था "