प्यार और दोस्ती

प्यार और दोस्ती
प्यार और दोस्ती, एक ही सिक्कें के दो पहलु है, अगर प्यार चित (head) है तो दोस्ती पट (Tail), जिस प्रकार एक सिक्का टकसाल से तब बाहर भेजा जाता है यानि सहि साबित किया जाता है, जब उस सिक्के के चित और पट दोनों ही हो,
अगर किसी कारण से चित या पट कोई भी नही छप पाया तो उसे खोटा सिक्का करार दिया जाता है, केवल चित होने से नही चलेगा या केवल पट होने से भी नही चलेगा,
उसी प्रकार इंसान कि जिंदगी में भी, प्यार और दोस्ती दोनों ही जरूरी है, किसी एक के बिना, जिंदगी खोटे सिक्के के समान हो जाती है, जिस प्रकार चित और पट, एक साथ नही मिल सकते, उसी प्रकार प्यार और दोस्ती, दोनों अलग-अलग है, प्यार को दोस्ती और दोस्ती को प्यार समझने कि भूल नहीं करनी चाहिए,
“सह शिक्षा (co-education) होने के कारण, आजकल के लड़के-लड़कियों के बहुत से दोस्त होते है पर प्यार एक से ही होता है”
प्यार एक पवित्र रिस्ता है, जिसे समाज अग्नि के सात फेरे लेने के बाद मान्यता प्राप्त करती है, इसलिए प्यार के साथ कोई खिलवाड़ नही होना चाहिये, सच्चा प्यार जिंदगी में एक बार ही होता है,
दोस्ती को प्यार से भी, ज्यादा पवित्र माना गया है, इसमे किसी अग्नि के फेरे की, किसी कसमों की, किसी वादो की जरूरत नही,दोस्ती निस्वार्थ होता है,
सतयुग से लेकर कलयुग तक, दोस्ती के प्रतिक" राधा-कृष्णा" को पूज्यनिय माना जा रहा है, समझ में नही आता कि हम इंसान कितना नाटकिय जिंदगी जीते है, बोलते कुछ और है करते कुछ और है,
एक छोटा बच्चा होता है तो उसे हम प्यार कि निशानी मानते है धीरे-धीरे वह बड़ा होता है, हम उसे सिखाते है.... मम्मी-पापा को प्यार करना, दादा-दादी को प्यार करना, अपने भाई-बहन को प्यार करना, यहां तक कि उससे हम कहते है कि इंसान क्या, जानवर और पेड़-पौधों को भी प्यार करना चाहिये,उसके जीवन में प्यार इस तरह घुल चुका होता है कि उस बच्चे को सब-कुछ बहुत प्यारा लगता है, शायद इसलिए ही' बचपना' प्यारा होता है,
जहां वो 14---18 साल कि उम्र में प्रवेश करता है, बिना कुछ समझाये अचानक उसके पैर में बेडी बांध देते है, सामाजिक कारागार में डाल देते है, उसे समझ में नही आता कि उसे किस गलती कि सजा दी जा रही है, उन्हें अपने मां-बाप दुश्मन लगते है, अधिकांश बच्चों के मन में इस बदलाव के कारण'आत्महत्या' का ख्याल आता है,
18---22 साल तक पहुंचते-पहुंचते, कोई दिल को भा गया, उन्हें किसी से प्यार हो गया, प्यार-ही-प्यार सिखाने वाले, इस प्यार के खिलाफ होते है, इतने शासन होते है कि 'आत्महत्या' का ख्याल आने लगता है,
22---28 तक पैर पर खड़े होने कि चिंता सताने लगती है, अपने देश की बेरोजगारी के कारण, परेशान युवक के मन में' आत्महत्या' का ख्याल आता है,
28---32 तक पहुंचकर नौकरी और शादी कर लेते है, सामाजिक और पारिवारिक दबाव के कारण,'आत्महत्या' का ख्याल आता है,
32---40 तक पहुंचकर एक मशिन बनकर रह जाते है, मिशन रूपी जिंदगी पंसद नही आती, फिर दिल में' आत्महत्या' का ख्याल आता है
40........ के बाद कि जिंदगी में, क्या खोया और क्या पाया कि उधेड़बुन में लग जाती है, सब कुछ खोकर कुछ नही पाया ये सोचकर दिल करता है'आत्महत्या' कर ले,
आखिर क्यों…………?
14 साल कि उम्र से पूरी उम्र, किसी कीकमी थी, दिल को क्यो' आत्महत्या' का ख्याल आ रहा था, धन-दौलत, मान-सम्मान, सब कुछ तो था, फिर भी दिल कोकिसकी तलाश थी, प्यार कि, शादी के बाद उसकी कमी भी पूरी हो गई, फिर भी ऐसे ख्याल क्यों आते है, अब दिल को किसकी तलाश है, शायद एक सच्चे दोस्त कि, जिससे दिल की बाते कर सके,
"हर एक के लिए, एक 'सच्चे दोस्त' का होना अनिर्वाय है, वो सच्चा दोस्त कोई भी हो सकता है, मम्मी-पापा, भाई-बहन, सखा-सखी, अच्छी पुस्तकें, आपकी टायरी, या अनदेखा अजनबी..........."
किसी कारणवश, इनमें से कोई भी आपके पास नही है, तो भी उदास होने कि बात नही, भगवान ने इस दुनियां में, आपको आपके Best friend (दिल) के साथ भेजा है, हर इंसान का, उसका प्यार सा दिल,best friend है, विश्वास नही तो मेरी आपबिती कहानी"best friend" पढ़ सकते …
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-Written by
Rita Gupta