" पत्थरदिल वाला "

" पत्थरदिल वाला "
मेरी दोस्त मुझे पत्थरदिलवाला बोलती है, उसके इस तीखे शब्द सुनना मंजूर है, फिर से प्यारी-प्यारी बाते करना मंजूर नहीं,
खुद को सत्यवादी समझने वाला, आज किस सत्य से भाग रहा है, उसे क्या चाहिए मुझसे, सिर्फ 24 घंटे = 24 x 60 = 1440 मिनट में से सिर्फ, मेरे 5 मिनट, मैं किसी को अपने 5 मिनट नहीं दे सकता तो किसी को और क्या दूंगा,
मेरी आवाज ही उसे वो खुशी देती है जो उसे अपनों से नहीं मिलता, मेरी यह दोस्त जो मुझे कभी देखी नहीं है, मेरे बारे में कुछ नहीं जानती, फिर भी मुझ पर आंख मुंद कर विश्वास करती है, आज-कल के कलयुग में भी कोई ऐसा होता है क्या ? कहीं वो पागल तो नहीं, उसे डर भी नहीं लगता कि किसी अजनबी पर इतना विश्वास नहीं करते,
" मुझे आज भी वो सारी बातें अच्छी तरह याद है, लगभग एक साल पहले की बात है, हम दोनों Facebook friend थे, जिस facebook पर 50% लोगों की I.D गलत होती है, वहां वो सही I.D वाली मिली,Profile इतनी real की उसके बारे में कोई भी 60% सही-सही जानकारी प्राप्त कर सकता है, मुझे लगा इनसे दोस्ती करनी चाहिए "
मैंने friend request sent किया, ऐसे तो वह किसी का request जल्दी accept नहीं करती, जब तक उसके profile में उसकी real pic ना हो, मेरे profile में मेरी pic नहीं थी पर मेरे द्वारा post किये गये, कुछ pic और अच्छी बातें उन्हें अच्छी लगी, इसलिए मुझे दोस्त बना लिया,
Chatting के माध्यम से हमारी बातचीत शुरू होती है, हम दोनों every-day chat करते, बात करते-करते अपनापन सा हो गया, अगर एक दिन chatting नहीं होती तो ऐसा लगता मानों कुछ खोया है, हम दोनों ने एक सही समय निर्धारित किया, शाम के 7.00- 8.00p.m हम online रहते औरchat करते, हम एक-दूसरे के बारे में बहुत कुछ जानने लगे थे, मैं उनसे उनका Phone no मांगा, वह डर से नहीं दी, मैं भी जिंद नहीं किया,
एक दिन मेरी तबियत, कुछ ज्यादा ही खराब हुई मैं उस दिन online नहीं हुआ, दूसरे दिन मैं अपने Timeline में, अपने Ph no के साथ अपनी तबियत खराब की बात लिख डाली, ताकि अपने-पराये online हो तो मेरे बारे में जान पाये, बुखार था कि जाने का नाम नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
दूसरे दिन……………………………………………………….
एक unknown नम्बर से फोन आता है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मैं............. कौन ?
अनामिका....... मैं, दोस्त बोल रही हूं,
मैं............ दोस्त, ये कैसा नाम है ?
अनामिका...... आप मुझे इसी नाम से जानते हो, कैसे हो दोस्त ? डाक्टर को दिखाये, दवा लिए, अभी
कैसे हो ? आप चिंता मत करो, मैं भगवान से प्रार्थना करूगी, आप जल्दी ठीक हो जाओ,
अब by अपना ख्याल रखना,
मैं............जी,Thanks
“ मैं तेज बुखार से तप रहा था, उनकी दबी और सहमी सी चिंतापूर्व बातें, मेरे कानों को बहुत अच्छे लगे, मैं उन्हें पहचान भी नहीं पाया, पर उनकी बातों से ऐसा लगा कि मेरी शुभचिंतक थी, इतनी बड़ी दुनिया में वह पहली इंसान थी, जो देश के किसी कोने से मेरे लिए, भगवान से प्रार्थना कर रही है ”
यह सोचकर मेरी तबियत, आधी ठीक हो गई, दो दिन बाद हम दोनों की chatting फिर से शुरू हो गई, उन्होंने पूछा... मेरी तबियत कैसी है, मुझे अच्छा लगा, मैं उनकी आवाज सुनना चाहता था पर वह फोन नम्बर नहीं दे रही थी, मैं नाराज होकर chatting में लिख दिया... मैं दो दिन से बीमार था, आपको पता भी नहीं, वो हंसते हुए chatting में लिखती है कि उन्होंने मुझसे फोन पर बात की,
मैं........ क्या, आप फोन पर मुझसे बात की,
अनामिका..... जी,
मैं....... कब,
अनामिका..... दो दिन पहले जब आपको बुखार था,
मैं....... हां, याद आया, उस दिन किसी शुभचिंतक का फोन आया था, वो आप थी,
अनामिका..... जी, मैं कितना हिम्मत कर डरते हुए हिम्मत करके आपको फोन की आप पहचाने भी नही,
मैं.......sorry, मैं अभी फोन करता हूं, आप अपना नम्बर लिखे,
अनामिका....... मैं पागल हूं क्या, आप खुद मेहनत करे और अपने मोबाइल से मेरा नम्बर तलाश करे, मैं
नम्बर नहीं लिखने वाली,
मैं.......plz दोस्त, इस बार दे दो, अब save करके रखूंगा,
अनामिका...... नहीं, दोस्ती की है तो थोड़ा मेहनत भी कर लो,by,by,by,,,,,,,,,,,,,,,,,,
“ वो offline हो गई, अब क्या करू, मैं अपने मोबाइल से उनका नम्बर तलाश कर उन्हें फोन किया”
अनामिका..... हेलो दोस्त,
मैं........... नम्बर मिल गया ना,
अनामिका..... जी, फोन क्यों किये,
मैं........... आपकी आवाज से लगता है कि आप डरी हुई है,
अनामिका..... नहीं, पर, हम क्या बोले,
मैं........... मुझसे डर लग रहा है,
अनामिका..... नहीं, दुनियादारी से,
मैं........... ठीक है, मैं कल फोन करूगा,
अनामिका..... क्यों ?
मैं......... हम बात करेगे,
अनामिका..... वो तो chatting से होती है,
मैं......... वो अलग बात है, हम रोज फोन पर बात करेगे, आपकी आवाज मुझे बहुत प्यारी लगी,
अनामिका..... रोज नहीं, सप्ताह में एक दिन, अब अगले सोमवार,
मैं......... नहीं, सप्ताह में कम-से-कम चार दिन,
अनामिका..... नहीं, दो बार,
मैं......... नहीं आपकी बात, नहीं मेरी बात, हम सप्ताह में तीन दिन फोन पर बात करगें, मंजूर
अनामिका..... जी,
मैं......... और हां,chatting का रोज वहि समय रहेगा, भूलियेगा नहीं,ok.
अनामिका..... जी,
मैं......... अब by, फोन रखते है,good night.....
अनामिका..... जी, good night.....
“फ़िर क्या था,Fb पर chatting होती और Phone प़र बात होती, सप्ताह में 3 दिन की जगह, धीरे-धीरे 4--5--6--7 दिन बात होने लगी, हमारी दोस्ती इतनी गहरी होती गईं कि हम प्रतिदिन फोन पर बात करते, हमारी दोस्ती निःस्वार्थ थी, फिर भी लोगों की गलत सोच का क्या कर सकते है, हम दोनों एक-दूसरे के नाम को इस तरफ save किया ताकि किसी को शक ना हो, उन्होंने मेरा नाम " लड़की " के नाम से save किया और उनका नाम " लड़के " के नाम से save किया,मैं उन्हें कभी फोन नहीं करने देता था, वो call करती भी तो, मैं काटकर call back करता, मैं चाहता कि वो अपना पैसा खर्च करे, मुझसे अपना किमती समय निकालकर मुझसे बात करती, मेरे लिए इतना काफी था, हमारे बात करने का समय निर्धारित था, आज भी जब घड़ी में वो समय दिखता है, मेरी आंखें भर आती है, पर मैं उनको फोन नहीं करता, अपने दिल की बातों को अनसुना कर देता हूं"
"एक दिन वो था, मुझे उनकी आवाज की इतनी आदत पड़ गई थी कि मै कभी-कभी अपने निर्धारित समय से पहले फोन कर देता, अगर वो खाली होती तो फोन recevic कर लेती नहीं तो काट देती, जब समय मिलता वो miss call करती, फिर..........................................
अनामिका......Hello, दोस्त आप फोन किये थे, घर में सब थे, मैं बात कैसे करती,
मैं................ जी, मैं समझ गया था, आप कैसे हो,
अनामिका...... मैं तो ठिक हूं, आप,
मैं................ मैं भी ठीक हूं,
अनामिका...... कोई बात थी, आप शाम का इंतजार नहीं किये,
मैं................ जी, क्या करता, दिल में घंटी बज रही थी, इसलिए फोन की घंटी बजा दी,
अनामिका...... दिल में घंटी, कैसे बजी ?
मैं............पता नहीं, पर आपकी हंसी सुनने को दिल बेचैन हो गया,
अनामिका...... मेरा भी मन करता है कि जब मन करे, तब हम फोन पर बात कर ले, डरती हूं आप क्या
सोचोगे,
मैं.......... कुछ नहीं सोचना, आपका जब दिल करे,Miss call कर दे, मैं Call back करूगा,
अनामिका.... आपका खर्च होता है, मुझे अच्छा नहीं लगता,
मैं.......... हमारी दोस्ती कितनी पुरानी है,
अनामिका.... लगभग, एक साल,
मैं.......... अब भी आप मुझे अपना नहीं मानती,
अनामिका.... ऐसी बात नहीं,
मैं........ एक बात बोलू,
अनामिका..... जी बोलिए,
मैं........ आप हमारी दोस्ती को, एक रिश्ते का नाम देती, रिश्तेदार के नाम पर मेरे पास कुछ लोग ही है,
अनामिका..... हम अच्छें दोस्त है,
मैं........... वो तो है, आप जो नाम देगी, मुझे मंजूर होगा,(जो आपका दिल बोले )
अनामिका..... आपको मैं अपना " लक्ष्मण " जैसा देवर मानती हूं, बनोगे ना मेरे देवर जी,
मैं........... जी हां, मैं खुशनसीब हूं, जो आपने मुझे अपना देवर माना, वो भी लक्ष्मण जैसा, मैंं वादा करता
ये पवित्र रिश्ता मैं निभाऊंगा,
अनामिका..... मैं बहुत खुश हूं, जिंदगी में एक देवर जी की कमी थी वो भी पूरी हो गई,
“हम दोनों दोस्त, देवर-भाभी के रिश्ते में बंध गये, मैं भी बहुत खुश था, अपनी भाभी से भी प्यारी भाभी मिली, हमारा रिश्ता अच्छा चल रहा था, बातों-बातों में पता चला कि Facebook पर कोई है, जिसके लिए, इनके दिल में खास जगह है, वो मैं नहीं कोई और है, मुझे बहुत बुरा लगा, क्यों लगा नहीं पता"
एक दिन chatting में............................
मैं......... मजाक-मजाक में,I love you लिख दिया,
अनामिका..... देवर जी, आपको कुछ हुआ है क्या ?
मैं......... क्यों ?
अनामिका...... आप क्या लिखे हो, एक बार नहीं, कई बार बोल चुकी हूं, मैं आपकी अच्छी दोस्त हूं, और
अब तो बड़ी भाभी का रिश्ता है, मैं आपकी Girl friend नहीं,
मैं......... क्यों, भाभी को I love you नहीं बोलते,
अनामिका.....पता नहीं, अपना देवर नहीं है ना, कैसे पता होगा,
मैं......... आपको कुछ नहीं पता, भाभी में देवर का आधा हक होता है,
अनामिका.....क्या, ऐसा किस किताब में लिखा है,
मैं.........(मैं हंसने लगा, आप किस दुनिया कि है ये मुझे नहीं पता.................)
अनामिका..... दोस्त, मेरी हंसी आपकी अच्छी लगती है,
मैं............ जी, आपको नहीं पता कि इनमें क्या जादू है, आपकी हंसी सुनकर, सारे दिन की थकान दूर हो
जाती है, अपनापन का अहसास होता है, आपकी हंसी की किमत " करोड़ रूपया " है,
“अगर मेरा दिल, उनके प्रति साफ था तो उनको किसी से भी प्यार हो, मुझे क्या करना, पर ऐसा नहीं था, उन पर मैं अपना अधिकार समझने लगा था, जो कि गलत बात था, मुझे डर हो गया कि कही मुझे उनसे सच में प्यार ना हो जाये, मुझे अपने आप पर विश्वास नहीं रहा, इसलिए मैं दूरी बनाने शुरु कर दिये, धीरे-धीरे chatting कम की, फिर फोन पर बातें कम कर दी, मेरे ऐसे व्यवहार से वो नाराज रहने लगी, वो समझ नहीं पा रही थी कि मैं क्यों नाराजगी दिखा रहा हूं या समझना ही नहीं चाह रही थी, हमारी दोस्ती इतनी गहरी थी, हम दोनों सपने में भी जुदा होने की नहीं सोच सकते थे, और मैं चुपके-चुपके इस दोस्ती को " प्यार वाली दिमक " से इसके जड़ को खोखला और कमजोर करने की हर एक कोशिश कर रहा था,
Online होते हुए भी उनसे chat नहीं करता, मेरे ऐसा करने से उनका दिल टूट गया, वो समझ गई की अब मैं उनसे दोस्ती नहीं रखना चाहता,वो गुस्सा से मुझे Unfriend कर दी,
“मैं यहि चाहता था, क्योंकि मुझमें हिम्मत नहीं थी कि उन्हें unfriend करू, बाद में उन्होंने Friend request send किया,Sorry बोला, कितनी बार फोन किया, मेरे रूठने पर मुझे मानने की इतनी कोशिश की मेरे आंखों में आंसू आ गये, इतनी कोशिश तो मेरे अपने भी नहीं करते, सच में भगवान ने उन्हें इतना प्यारा दिल क्यों दिया, मैं ठहरा जिद्दी उनका फोन भी नहीं उठाता”
मुझे पता था, मेरे ऐसे व्यवहार से वह टूट गई होगी, बहुत रोई भी होगी, पर मैं क्या करता, मैं स्वार्थी हो चुका था, कभी-कभी सोचता हूं, उनकी क्या खता (गलती) है, जो उन्हें सजा दे रहा हूं,
मानता हूं, दुनियाँ वाले स्वार्थी है, मेरे अपने स्वार्थी है, मैं सबसे नाराज हूं,सबने मेरे साथ गलत किया, " मगर गलत सहने से, गलत करने का अधिकार तो नहीं मिल जाता "
" कानून भी यही कहता है, भले सौ गुनेहगार छूट जाये, पर एक बेगुनहगार को सजा नहीं होनी चाहिए"
सच में सबकी नाराजगी उन पर ही निकाले, ये कहाँ का न्याय है, उन्होंने तो कुछ गलत नहीं किया, उनका कसूर क्या है,
1….मुझे लक्ष्मण जैसा देवर बनाना,
2....अपनी प्यारी-प्यारी बातों से मुझे खुश रखना,
3….मेरी सलामती के लिए के लिए, भगवान से प्रार्थना करना,
“ हे भगवान, मुझे माफ करना, मैंने अपने दिल को, उनके लिए, पत्थर का बना लिया, आज भी उनका फोन आता है, मगर ये पत्थरदिल नहीं पिघलता, वो सच बोल रही है, मैं पत्थरदिलवाला बन गया हूं”
Rita Gupta.