ज्ञान………..(अनुभव)

ज्ञान………..(अनुभव)
ज्ञान कि खोज में, हम मोटी-मोटी किताबे पढ़ते रहते है, फिर भी अधूरे रह जाते है, किताबों में सिर्फ ज्ञान कि बातें लिखी होती है, सिर्फ पढ़ने से नही होता,उन बातों को अनुभव कर जीवन में उतारना होता है, अनुभव के बिना ज्ञान अधूरा है,
आग छुने से हाथ जल जायेगा, इससे ये पता नहीं चलता कि जलना कैसा होता है, या जलने से कितना दर्द होता है, ये तो उसे ही पता होगा, जिसने इस जलन का अनुभव किया है
ऐसे बहुत से ज्ञान है, जो हमारे अनुभव के बिना अधूरे है, दुःख-सुख, प्यार-नफरत, अमीरी-गरीबी, इत्यादि ये सब केवल शब्द नहीं है, इन्हें अनुभव किया हुआ, इंसान ही इन शब्दों का सहि मतलब जानता है,
किसी गरीब इंसान को देखतें है, तो हमें अच्छा नही लगता, हम उसकी इस अवस्था के लिए उसे ही दोषी समझते है, सच हमें पता नहीं होता, गरीबी किसी व्यक्ति को कितना लाचार करती है, और लाचारी उससे क्या-क्या यह तो उसे ही पता होगा,
"हम जिस सत्य से जितना भागते है, वो उतना ही हमारा पीछा करती है"
किताबी ज्ञान के आधार पर मैं किस्मत जैसे शब्द को इंसान द्धारा बनाये या बिगाड़े जाने वाला समझाती थी, पर सत्य कुछ और है, मुझे लगता था कि हम अपनी किस्मत खुद सवांर सकते है, इसे सवांरने कि कोशिश हमेशा करते रहते है, पर कामयाब कितना होते है,
10 घंटा Job करके हम अपने वर्तमान परिस्थिति को बनाये रख पा रहे है, तो इसे और बेहतर बनाने के लिए और कितना घंटा Extra मेहनत करना पड़ेगा, ये हमें पता है और हम करते भी है,
दिन-रात के मेहनत से 2 कदम आगे बढ़ते है, तो कोई अनहोनी घटना 3 कदम पीछे कर देती है, फिर खुद को संभालते हुए, हिम्मत को जोड़ कर आगे बढ़ना शुरू करते है, इस बार कोई प्राकृतिक घटना पीछे कर देती है,
किस्मत जब हमारे साथ, खेलती है तो,
एक पल हंसी, दुसरे पल आंसू,
आंसू छलकने से पहले, फिर से हंसी,
हस रहे है कि रो रहे है, हमें पता नही,
किस्मत अहसास करा देती है, कि हम कितने लाचार है और वो कितना ताकतवर है, अब तो हंसने से डर लगता है कि अगले पल रोना पड़ेगा, खुश होने से डर लगता है कि अगले पल किस दुःख का सामना करना पड़ेगा, किसी से मिलने कि खुसी से ज्यादा उससे बिछड़ने का गम सताती है,
"कोई तो है, जो हमें खिलौना बनाकर, हमारे साथ खेल रहा है"
ये शिलशिला चलते रहता है, समय बितता जाता है और हम इस भ्रम में जीये जाते है, कि एक दिन सब ठिक हो जायेगा,
ओ कौन सा दिन है, जिस दिन सब ठिक होने वाला है, आज समझ में आया कि वो दिन है, हमारे जिन्दगी का आखरि दिन , क्योंकि उस दिन हमें एहसास होता है, कि अब हमारी दौड़ समाप्त हुई, अब तक मृगतृष्णा कि तरह, जिस शांति के तलाश में भटक रहे थे, वो ' शांति ' कहि है हि नही.............
"हर इंसान जिंदगी को अपने अनुभव के आधार पर ज्ञान को संग्रह करता हुआ, उस मंजिल कि ओर बढ़ता जाता है, जहां पंहुच कर उसकी दौड़ समाप्त होती है और इस मोह-माया कि दुनियां से हमेशा के लिए अलविदा कह जाता है, सिर्फ रह जाती है, उसकी यादें"