"जीने की कला''

"जीने की कला''

जीने की कला सब को नहीं सब को नही आती, कुछ लोगो के पास जीवन-यापन के सभी साधन  होने के बाद भी  दुःखी रहते है, कुछ लोगो के जिन्दगी में बहुत सी कमी होती है जैसे.. अच्छे रिस्तों कि, पैसे कि, भौतिक साधनों कि,फिर भी खुश रहते है,

''कुटज'' को यह कला अच्छी तरह आती है, कुटज एक प्रकार का पौधा है, जो कैलाश पर्वत के ऐसे हिस्से में पनपता है जहां जीवन-यापन के कोई साधन नही है, उसे न तो मिट्टी मिलती है, न ही पानी मिलता है, फिर भी कुटज पनपता है और हमें यह सिख देता है कि परिस्थिता हमारे अनुकूल हो या प्रतिकूल हो, हर हाल में हमें खुश रहना है,

''जिस दिन, जिस को यह कला आ जाती है उस दिन से जिन्दगी का कोई दुःख उसे दुःखी नहीं कर सकता''

                                                          मोहन और मंजू कि शादी के 2 साल हुए हैै, मंजू के आंखो में  सैकड़ों सपनें, पर मोहन कि इतनी सामर्थ नहीं हैै कि उसके हर सपने को पूरा कर सके, शुरू के 2 साल बितने के बाद मंजू अब अपनी जरूरतों के पूरा नही होने पर बात-बात पर मोहन से नाराज हो जाती, मोहन दिन-रात के मेहनत के कमाई , करने के बाद भी मंजू को खुश नही कर पाता है, इसिलए वह भी कभी-कभी चिल्लाने लगता....क्या करू  हर कोशिश करता हूं, किस्मत साथ नही देता तो मैं क्या कर सकता हूं,

मंजू....... किस्मत तो मेरा खराब है, कि तुम्हारे साथ शादी हुई,

मोहन......मैं नही गया था, तुम्हारे पापा आये थे,

'शादी के तीसरा सालगिरह आने वाला है, मंजू 6 महिना पहले ही मोहन से कहती है, कि इस साल' सोने की अंगुठी ' gift  चाहिए,

मोहन उसके gift के लिए हर महिनें कुछ रुपया हटा कर रख लेता है, एक दिन अचानक गांव से खबर आता है कि मां का तबियत खराब है, बेटे का फर्ज पूरा करने के लिए मोहन जमा किये रूपये को लेकर गांव जाता है, मां का इलाज करता है, बाकि रू मां के हाथ में दवा के लिए देकर आ जाता है,

उसके महिने दिन बाद ही शादी का सालगिरह आता हैै, मोहन मंजू से कहता है कि मैं अगले साल तुम्हें सोने का gift दुंगा , इस साल तुम कुछ और ले लो, मंजू नाराज हो जाती है, मोहन बहुत मनाता है पर उसे उसकी बात समझ में नही आती,दोनों के बीच कुछ कहा सुनी हो जाती है, वह नाराज हो कर अपने मायके चली जाती है,

मोहन बहुत दुःखी होता है और अपने मन में संकल्प करता है कि मंजू के लिए सोना का अंगुठी बनवाकर ही उसे मनाने जायेगा, खर्च कम कर देता है और ज्यादा बचत करता है,

मंजू गुस्से में चली तो जाती है,पर उसे मोहन कि बहुत याद आती है, वहां भी वह उदास रहती है पर लौट कर मोहन के पास नहीं आ पा रही है, उसे खुद नही पता कि क्या सहि है, क्या गलत, इसी उधेड़-बुन में लगी रहती है,

एक दिन मंजू घर के पास वाले पार्क में एकांत बैठनें कि इच्छा लिए चली जाती है, वह एकांत एक बेंच पर बैठ जाती है, एक 10 साल का बच्चा चना बेच रहा है, वह बच्चा उसके सामने आता है और कहता है....... मेम साहब, चना ले लो,

मंजू........ चना...

बच्चा........ अभी तक किसी ने नही लिया,

मंजू.......5 रू का दे दो, इतनी देर तक तुम यहि हो,

बच्चा....... चना देता है, लीजिये,

मंजू.........10 का नोट देती है, लो,

बच्चा....... मेम साहब खुदरा नही है,

मंजू........मेरे पास भी नही है,

बच्चा...... पास  में ही मेरा घर है, आप मेरे साथ चलो,मां से मांग कर आप का 5 रू लौटा दुगा,

मंजू........ मंजू को भी घर जाना था, उस बच्चे के साथ चल देती है,

बच्चा....... थोड़ी दूर चलने के बाद, वो देखो मेरा घर,

'बच्चा दौड़ कर झोपड़ी में जाता है और अपनी मां से कहता है कि..5 रू दो, बाहर एक मेंम साहब को लौटाना है,

मां...... नही है,2 रू भी नही था कि आलू भी बना सकी, आज प्याज रोटी ही खाना होगा,

बच्चा....... तो बताओ, मैं उनको 5 रू कहां से लौटाऊ,

मां......... उनका 10 रू लौटा दो, फिर कभी भेंट होगा तों वो 5 रू दे देगी,

बच्चा....... ठिक बोल रही हूं

'मंजू बाहर खड़ी मां और बेटे कि बाते सुन रही थी, उसकी आंख भर आई, वह चुप-चाप वहां से चली जाती हूं, उसे जिंदगी का सच पता चल जाता है, जिंदगी कैसे-कैसे रंग दिखाती है,'

बच्चा बाहर आ कर देखता है, तो मेम साहब नहीं है,

मंजू घर आ जाती है, उसकी मां.....कहां गई थी, बता कर जाती, मंजू.....यहि पास के पार्क में बैठी थी,

मंजू........ मां मैं गलत थी, मुझे अपने घर जाना चाहिये, मोहन जी मेरे बारे में क्या सोचतें होगें, वो मुझे

               कितना प्यार करते है और  मैं सोना-चांदी से प्यार करती हूं, मैनें उन्हें कभी भी समझने कि

                कोशिश नही की, सोना-चांदी भौतिक सुख है, मिला तो भी ठिक, न मिला तो भी ठिक,इसके

                लिए आपस के प्यार भूल जाना, सबसे बड़ी गलती होगी, मैं अब एक पल भी नष्ट करना

                नही चाहती, रात को ट्रेन लुगी तो सुबह- सुबह अपने घर पहुंच जाऊंगी,

               "मंजू अपने घर को चल देती है"

''मोहन सोया हुआ है, बेल की घंटी बजती है, वो सोचता है कि इतना सुबह-सुबह कौन आ सकता है, आंख को मलता हुआ आ कर दरवाजा खोलता है,सामने मंजू को देखता ही रह जाता है''

मंजू........ देखते रहो गे, कि अंदर भी आने दोगे,

मोहन........ मंजू का बैंग लेकर अंदर रख देता है और मंजू को अंदर कर लेता है,

मंजू........क्या देख रहे हो, मैं अपने घर आई हूं,

मोहन...... मंजू को गले लगा लेता है, फिर दोनों बहुत रोते है,

मंजू........मैं गलत थी, माफ कर दो,

मोहन........नही, तुम्हारी कोई गलती नही है, मेरा फर्ज बनता है कि तुम्हे खुश रखु,

मंजू........मैं तुम्हारे साथ खुश हूं, जो हो गया उसे हम दोनों'' बुरा सपना समझकर भूल जाते है''