जिंदा 'दिल'

जिंदा 'दिल'

जिंदगी क्या है और कितनी अनमोल है, यह समझनें के लिए अस्पताल से बेहतर जगह हो ही नही सकती, जहां हर सेकेंड पर जिंदगी और मौत आमने-सामने खड़ी होती है,

इंद्रधनुष के समान, सात रंगों से भी ज्यादा रंग है इस जिंदगी में, इसलिए आज तक इसकी कोई परिभाषा नही बनी, श्वासं का चलना जिंदगी, रूक जाना मौत नही होता, क्योंकि कभी-कभी जिंदा इंसान भी 'शव' के समान मूल्यहिन होता है और कोई-कोई मर कर भी अमर और मूल्यवान बन जाता है,

मैं बीमार न होते हुए भी ,10 दिनों तक अस्पताल में हो रहे जिंदगी के अनोखे खेल को देखती रही, क्योंकि मेरी सासुजी का आंपरेशन हुआ था और मैं उनकी सेवा कर रही थी,वो बाहर का खाना नहीं खाती इसलिए सुबह के नास्ते से लेकर रात के खाना तक, घर से लेकर जाती,10 दिनों तक अस्पताल ही मेरा घर बन चुका था,

"वहां सें मिले अनुभव के आधार पर, जिंदगी जितनी भी कष्टमय क्यों न हो, वो मौत से हर हाल में बेहतर है"

Bed no 5 कि जिंदा दिली, मुझे आज भी याद है, लगभग 50-55 साल कि महिला थी, जो अपना एक पैर गवा चुकी थी,दोपहर का समय था, वो बेड पर बैठकर खाना खा रही थी,अचानक उनकें हाथ से चम्मच नीचे गिर गया, वो मेरे तरफ देख रही थी, ऐसा लगा जैसे कह रही हो... चम्मच उठाकर दे देती तो अच्छा होता, मैं आगे बढ़कर उनकें बेड के पास गई और चम्मच उठाया और धोकर उन्हें दे दिया, उन्होंने मुझे अपने पास बैठनें को कहा....

मैं.........(बैठ गई)

महिला......कैसी है, आपकी सासुजी,

मैं......... ठिक है, आप कैसी हो,

महिला....... मैं पहले से बहुत ठिक हूं, मेरा यहां 20 दिन हो चुका है पता नही और कितनी दिन रहना

                होगा,

मैं......क्या हुआ था, आपके साथ....?

महिला.......... शाम का समय था, मैं अपने पति और बेटी के साथ नास्तें के तैयारी में लगी थी, नास्ता

                  बन चुका था, टेबुल पर रखकर मैं हाथ धोने के लिए बाथरूम मे गई, हाथ में तेल लगे होने

                से मैंने साबुन का इस्तेमाल किया, हाथ धोकर जैसे ही मुड़कर बाथरूम से बाहर आने लगी,

                अचानक पैर फिसल गया और मै इस तरह गिरी कि वहां रखे गये, लोहे के बाल्टी पर मेरा

                दाहिना पैर, बाल्टी उलटकर रखा हुआ था, उसके धार से पैर कट गया,सामने के दो दांत ओठ

                में गड़ गए, हाथ मुड़कर टुट गया, वजनदार शरीर होने के कारण, जोर से आवाज हुई, मेरे

               पति और बेटी दौड़कर मेरे पास आये, मेरे पति जोर-जोर से रोते हुए कहने लगे…..जा रे, अब

               क्या होगा, तेरी मम्मी तो गई,बेटी भी रोते हुए..... मम्मी हमें छोड़कर मत जाओ,

               मैं.( गुस्साते हुए)दोनों पागल हो, रोना बंद करो, मैं अभी जिंदा हूं, एक गमछा ला कर कटे हुए

                          पैर  के  साथ  बांध दो, कलेंटर पर एम्बुलेंस का फोन नम्बर लिखा हुआ है, फोन करो   

30 मिनट बाद एम्बुलेंस आया और हम सब HLG nursing home पहुंचे, वहां के डाक्टरों ने भर्ती लेने के पहले 20,000 रूपया जमा करने को कहा, फिर क्या करते एम्बुलेंस को बर्दवान अस्पताल चलने को कहा गया, जो कि सरकारी है, वहां पहुंचते-पहुंचते खून बहुत बह चुका था, डाक्टरों ने कटे हुए जगह से पैर को काट देना ही उचित समझा, वहां दस दिनोंं तक रही, फिर यहां के अस्पताल चली आयी ताकि घर के लोगों को ज्यादा परेशानी न हो., while chair पर बैठकर सब काम करने का अभ्यास करूगी, सबकुछ पहले जैसा हो सके, अब मैं बिल्कुल ठिक हूं,

मैं...........(मन में सोच रही थी, जिसके साथ इतना कुछ हो गया, वो कह रही है कि बिल्कुल ठिक हूं) आप

               आराम किजिए, मै आ रही हूं,  

सासुजी के पास वाली, बुढ़ी महिला बेड न०7वाली चुप- चाप मुझे देखती रहती, एक दिन उसने मुझसे कहा..........बहु मेरा एक काम करोगी ?

मैंने कहा........हां,आप बोलो,

बुढ़ी महिला....... अस्पताल के खाने में नमक, मिर्च कुछ समझ में नहीं आता, मेरे लिए अपने घर से हरी

                      मिर्च और नमक ला दोगी,

दुसरे ही दिन, मैं उनकी ये ख्याशी पुरी कर दी, वो मुझे इतना आर्शीवाद दे रही थी, मेरे उदास चेहरे पर हंसी आ गई, वह बोली...... भगवान तुम्हें दुनियां कि सारी खुशियां दे, मैं मन-ही-मन खुश हो रही थी कि नमक और मिर्च के बदले, दुनियां कि सारी खुशियां मिल रही है "अच्छा सौदा हैं"

बेड न०6 कि 35-40 वर्ष कि महिला की बिमारी ऐसी थी, वह जितना खाना खाती थी उससे कहि ज्यादा खाना गिराती थी, उसके हर जोड़ में बहुत दर्द रहता था,पैर हो या हाथ सभी जोड़ में दर्द रहने के कारण हाथों कि अगुलियां अकड़ गई थी, जो मुड़ नही पा रही थी, वो चम्मच भी ठिक से नही पकड़ सकती थी, ये सब देखकर मुझे समझ में आया कि भगवान द्वारा बनाये गये"मानव रुपी मशिन"का हर अंग कितना उपयोगि है,

पास ही बच्चा वाड (ward) था, वहां एक बच्ची का जन्म हुआ, घर वाले बहुत खुश थे, तीन भाई के बाद बहन आयी,  दादी ने बच्ची को ओंछकर 1000 रू अपने बेटे को दिया और कहा.....मिठाई लाकर बांट दो, आधा घंटा बाद जब वो मिठाई लेकर आता है तो रोना-धोना सुनकर अवाक रह जाता है, डर ही जाता है कही उसकी बच्ची को कुछ हो तो नही गया, जब वह अपने बीबी के बेड के पास आता है तो देखता है कि पास के एक बेड पर 3 साल की बच्ची लेटी है और आक्सीजन चढ़ रहा पर श्वांस रूक चुकी है उसकी मां जोर-जोर से रोते हुए कह रही है........ मेरी दुलारी, तु हमें छोड़कर नही जा सकती, बड़ी मन्नत से तुम्हें पाया था, डाक्टर मेरी बेटी को बचा लो, वो मानने को तैयार नही थी कि उसकी बेटी, अब इस दुनियां कि नही रही, पास खड़े लोगों से पता चला कि.... दोनों भाई और बहन तीनों खाने बैठे थे, बात-बात में कुछ हंसी वाली बात हुए, बहन जोर से हंसने लगी, बस चावल का एक दाना श्वांस नली में जाकर फंस गया और वह वहि छटपटाने लगी, अस्तपताल लाते-लाते श्वांस रूक गई, हंसती हुई बच्ची, हमेशा के लिए खामोश हो गई,

"भगवान का कैसा खेल है, एक बेड पर जिंदगी हंस रही है तो पास के बेड पर मौत रो रही है"1000 रू का मिठाई धरा का धरा रह गया, किस मुंह से और कैसे बांटे मिठाई, मैं उस वांड के बाहर खड़ा रो रही थी,एक दस साल की बच्ची आकर कहती है कि आपकी सासुजी बुला रही है,

उस बच्ची से बात करने पर पता चला कि उसकी मम्मी भर्ती है वो अपने 5 साल के भाई के साथ यहि पर 10 दिनों से है,

मैंने कहा..... छोटे बच्चों को अस्पताल में नही रहना चाहिये,

बच्ची....... घर पर कोई नही है, यहां खाना मिलता है, मां के पेट में पत्थर है, अभी आंपरेशन नही हुआ है

                पापा के पास पैसा नही है, इसलिए को यहि छोड़कर गये है,

मैं.......(बच्ची को देख रही थी, ऐसा लग रहा था कि उसे बाहर के दुनियां से अच्छा यहि लग रहा है)

"इस तरह जिंदगी हर दिन, अपना एक अलग रूप दिखाई, कभी खुशी, कभी गम, दस दिनों बाद जब मैं सासुजी के छुट्टी के लिए डाक्टर से मिलने गई तब.........

मैं..........May I coming Sir,

Dr.........coming.

मैं..........Sir, आज छुट्टी का दिन है, आप लिखकर दे देते,

Dr.......... ठिक है, मिल जायेगी, पर घर ले जाकर देख-भाल और सहि समय पर दवा की जरूरत है,

मैं........Sir, मैं करूगी, प्रतिदिन (every day) यहां आना बहुत मुश्किल होता है,

Dr........वो तो है, आप खुद बीमार दिख रही है,

मैं.........नही सर, मैं ठिक हूं,

Dr......... शारिरिक नही, मानसिक रूप से आप बीमार दिख रही हैै,

मैं......... जी सर, यहां के 10 दिनों में मैंने जिंदगी को बहुत करीब से जाना है,

Dr........क्या जाना,

मैं...... गरीबी और किस्मत, इंसान को बहुत रुलाती है,

Dr.......ये सच नही है, मेरे पास तो रूपये कि कमी नही, किस्मत था तभी तो डाक्टर बन पाया, तो मैं क्यों

          रो रहा हूं,

 

मैं........ सर आप, रो रहे हो, पर क्यों ?

Dr........मेरी मां' कोमा'मे है, वो चुप-चाप देखती रहती है, मेरा मन तड़पकर रह जाता है, मां की आवाज

          सुनने के लिए,मुझसे खाना नही खाया जाता, मां ने दो महिनोंसे कुछ नही खाया,मैं डाक्टर किस

           काम का हूं, जो अपनी मां के लिए कुछ नही कर सकता,

मैं..........(मेरी आंखें भर आयी) सर, दुनियां अच्छी नहीं हैं,

Dr........ दुनियां ऐसी ही है और हमसब यहां अपना-अपना कर्तव्य (duty) करने आये है, मैंने छुट्टी लिख

             दी है, आप अपनी सासुजी को ले जा सकती है,

मैं........ जी सर, मैं आ रही हूं,

                                                                                        Rita Gupta.