चलों 'गांव' चलें

चलों 'गांव' चलें
गांव की सादगी और अपनापन, हर एक को अपनी ओर खींचती है, मैं भी शहर की व्यस्त जिंदगी, से दूर गांव कि ओर जा रही हूं, 'सियालदा to बलियां' ट्रेन को इस सुहाने सफर के लिए चुना है, यह ट्रेन पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश को छुते हुए जाती है,इसके खिड़की के पास बैठकर, चारों राज्यों के प्राकृतिक सौन्दर्य को अनुभव किया जा सकता है,
जो लोग हमारे साथ, गांव कि सैर करना चाहते है, वो चल सकते है, मैं कोशिश करूगी कि आप मेरे साथ कल्पनाओं के पंख लगाकर, मन कि उड़ान से,6दिन और6 घंटे कि यात्रा को, मात्र 15 मिनट में, गांव कि सैर, करा पांऊ...........
कल, आज और कल एक साथ इस यात्रा कि शुरूवात कर रहे है(28-11-2014 at 5.15 p.m),60-65 वर्षिय मेरे मम्मी-पापा,44-45 मैं और रवि जी,20-23 दोनों बच्चें, हम 6 सदस्य एक साथ, कुछ सिखते-सिखाते, हंसी-मजाक करते हुए, यात्रा का आनंद ले रहे है, रिर्जवेंशन के बाद भी इस ट्रेन में इतनी भीड़ होती है कि लगता ही नही कि आप रिर्जब बोगी मे हो,कर क्या सकते है, सबको यात्रा करनी है, अहसास जरूर होता है, हमारे देश कि अबादी, क्षेत्रफल से, काफी ज्यादा है, इसलिए ट्रेन ही नही, हर जगह भीड़ मिलेगी, हमें इसकी आदत डाल लेनी चाहियें,
अगर ट्रेन मे चढ़े,लोगों को किसी श्रेणी में विभाजन किया जाय तो,1st....... जिनकी टिकट confirm हो गई है, उन पर God की पूरी कृपा है,2nd....... जो RAC में है, उन पर God की आधी कृपा है,3rd........जो waiting में है, वो कृपा का wait करते रह गये,4th........General टिकट वाले, इनसे God नाराज है, इसलिए कुछ. टिब्बे आगे और कुछ टिब्बे पीछे रख दिये है, जरूरत से 10 गुनालोगों को भर दिया है,Free में इन्हें infarction की बिमारी, सजा के रूप में देते है,
दो महिनें पहले टिकट कटा कर,हम 1st श्रेणी के यात्री है, आराम से सोते हुए, यात्रा करने का आनंद ले रहे थे, हमारी पहली पढ़ाव सुरेमनपुर स्टेशन, ट्रेन (29-11-2014 at 5.30 a.m) को पहुचाती है, वहां हम सब मुंह-हाथ धोकर, चाय पीते है फिर हम वहां से अपने गांव ' भुसौला 'के लिए टेम्पू रिर्जब कर लेते है,
हम गांव आ रहे है, मैं अपने दादाजी के भाई, के बेटों और उनके बेटों को यानि चाचाजी लोगों को बता चुके थे, सभी रिश्तेदारों को बता था, कि हम सब सिर्फ एक दिन के लिए, गांव आ रहे है,मैं 30 साल बाद और मेरे मम्मी-पापा 12 साल बाद गांव जा रहे है, इसलिए रास्ते भूल चुके है पर लोगों से पूछते-पूछते गांव पहुंच जाते है
जब टेम्पू हमारे बस्ती के सामने रूकती है, तो चाचाजी सामने आते है, मम्मी-पापा के पैर छुते है, हम सब भी चाचाजी के पैर छुकर प्रणाम करते हैं, वो हमारे बैंग को लेकर चल देते है हम सब भी बाकी बैंगो को लेकर उनके पीछे-पीछे चल देते है, वो हमे हमारे गांव के मुखियां' तिवारी जी' के घर में ले गये, मैं देखकर आवाक रह गई, तिवारी जी और मैं बचपन के दोस्त है, जो 30 साल बाद एक-दुसरे को देख रहे हैं, इतने रिस्तेदार रहते हुए भी जब दोस्त को पता चला कि हम आने वाले है;उन्होंने हम सबको अपने घर ठहरने कि व्यवस्था की,
इस युग में एक अतिथि लोगों को भारी लगता है और हम छः थे, पर हमारे दोस्त ने हम सबको " अतिथि देवों भवों "कि तरह सम्मान दिया, रिस्तेदारों ने भी अपने घर पर हम सब के नास्ते, भोजन कि व्यवस्था की, एक दिन में वर्षो का सम्मान और प्यार मिला, बहुत अच्छा लगा,
एक दिन में, अपने दादाजी के घर का दर्शन किया, गंगा स्नान, गंगा जी की पूजा, फिर पास स्थित दुर्गाजी मंदिर का दर्शन और' योगी राम सूरत कुमार' नामक ट्रस्टं(trust) भी देखा, ये सब भुसौला गांव में है,दोस्त के घर से गंगा जी मात्र 20 मीटर कि दूरी पर है, एक बार फिर दोस्ती जीत गईं “Friendship is greater than relationship “
वहां से मैं, रवि जी और दोनों बच्चें आगे कि यात्रा के लिए(30-11-14 at 9.00a.m) पर निकल गये, मम्मी-पापा अपनी यात्रा के लिए वहां से हम से अलग हो गये,हम चारों टेम्पू कि सवारी कर छपरा कि ओर चल दिये, जब गांव से कुछ दूर चले होगे तो टेम्पू वाले भैया ने हम से आग्रह किया कि यहां से थोड़ी दूर जाकर 'खपड़ियाँ बाबा' का भव्य मंदिर है,जो हमे देखना चाहिए, हम चारों ने मंदिर के दर्शन किये, सच में मंदिर देखने योग्य है, बहुत ही सुन्दर और मनोहर है, समय कि कमी के कारण हमें जल्दी वहां से प्रस्तान करना पड़ा,
टेम्पू को छोड़कर हमे बस या जीप कि सवारी से छपरा जाना था, हमने जीप से यात्रा अच्छी लगी, जीप दुल्हन कि तरह सजी हुई भोजपुरी गीत सुनाती हुई सुहाने सफर का आनंद दे रही थी, छपरा पहुंचने के बाद सवारी बदलकर हमें 'फुलवरियां गांव' जाना था, जो कि(N.H.Road 102) के किनारे बसा हुआ गांव है, वहां पहुंचने के पहले' भेल्दी गांव' गये,जो कि सासुजी का मायका है, हिन्दु समाज में सासुजी के मायके को तीर्थस्थान माना जाता है, चारों मामा ससुर जी के घर मिठाई लेकर गये, आधा-आधा घंटा सबके घर बैठते हुए, समाचार लेते-देते हुए, उन सब से विदाई लेते है,
जीप कि सवारी कर के हम चारों(30-11-14 at 3.30p.m) फुलवरियां गांव पहुंच जाते है, वहां मेरी बड़ी ननदजी के बेटे कि शादी है,कल बारात कि विदाई है और आज ही( माटी कटाई, पानी भराई) की रस्म है, पहुंचते के साथ मुझे रस्म मे हिस्सा लेना पड़ा, इन्हें मुझे ही करने थे, उसके बाद 1-12-14 को(धान भुनना,कुवरथ का भात बनाना, पोखरा खोदना)रस्मों को मैनें किया,
शाम को बारात कि विदाई हो गयी, घर के सभी पुरुष बराती बनकर चले गये, पूरे घर में सिर्फ औरतें और बच्चें रह गये, उसी रात औरतों का नाच-गाना का प्रोग्राम होता है अगल-बगल कि औरतें आई, सब गीत गाने और नाचनें में मास्टर डिग्री प्राप्त कि हुई थी, उन्होनें मुझे गीत गाने को बोला, मैनें कहा..... मुझे गीत नही आती, उन्होंने कहा...... ठिक है, आप नाचों,मैंने कहा..... मुझे नही आता,उनमें से एक औरत ने मुंह बनाते हुए कहा......तब आपको आता क्या है, मैं भी थोड़ी देर सोच में पड़ गईं, सच में मुझे कुछ नही आता, कितना मुश्किल है, हर एक के कसौटी पर खरा उतरना, तब तक एक औरत बोल पड़ी....... ये तो शहर में रहती है, वहां के लोगो को भोजपुरी गीत और नाच नहीं आता सिर्फ पढ़ना-लिखना आता है, मेरे पास उनके सवालों का कोई जबाब नहीं था, प्रोग्राम समाप्त होता है,
सुबह में(2-12-14) को दुल्हन आ जाती है, उसका स्वागत होता है, स्वागत कार्यक्रम होने के बाद हम चारों खाना खाकर10.00 a.m को रवि जी के गांव 'बनकेरवा' की ओर चल देते है, वहां जाने के लिए फुलवरियां से सोन्हो आना पड़ता है, सोन्हो से परसा, परसा से परसवना गांव की ओर जाने से बांध के किनारे स्थित बनकेरवा गांव है,
हम जब12.30 पर वहां पहुंचे तो सब बहुत खुश हुए, वहां मेरा ससुराल है, बहुत से रिस्तेदार है वहां भी तीनों रिस्तेदारों के घर अलग-अलग मिठाई लेकर गये, मेरे चचेरे देवर जी कहने लगे......बोलिये भाभी, हम आपकी क्या सेवा कर सकते है,मैंनें कहा...... मुझे सोनपुर का मेला देखना है, वो बोले...... अभी 1.00 बज चुका है, शाम को 5.00 बजें अंधेरा हो जायेगा, हमारे पास 4 घंटा है, सिर्फ एक उपाय है हम सब वाइक से निकल चलते है,
फिर क्या था, तुरंत तीन वाइक सामने खड़ी हो गईं, एक पर दोनों देवर, दुसरे पर दोनों बच्चें, तीसरे पर मैं और रवि जी, निकल चले मेले कि सैर के लिए, बनकेरवा गांव से, बांध पर बनी हुई12-15 फुट के पक्की सड़क पर हम गाड़ी चल दी, वहां से 26 किलोमीटर की दूरी लगातार वाइक चलाते हुए तय कर हम सब पटना हाइवेय पहुंच गये,
वहां से पुल के नीचे से होकर मेले मे जाने का रास्ता है,2 बजें से 5 बजें तक, हमसब ने मेले का आनंद उठाया, इतना पड़ा मेला कि घुमने के लिए, पूरा एक दिन कम है, पर समय कि कमी ने हमें 3 घंटे में सिमटकर रख दिया, यह ' हरिहर क्षेत्र मेला 'विश्व प्रसिद्ध मेला है, यहां चूहा से लेकर हाथी तक बिक्री होता हैं, आप जिसकीकल्पना भी नहीं कर सकते, वो भी यहां बिकता है, गैरकानूनी होने के बाद भी गुप्त रूप में लड़कियां और लड़के भी बेचें जाते है, यह सोनपुर में, नदी के दोनों किनारों पर विशाल रूप मे पूरे 45 दिनोंं तक रहने वाला मेला है,
5.00 p.m पर वहां से लौटने लगे, मेला जाते समय मैं जितना खुश थी, लौटते समय उतनी ही परेशान, कारण......... शाम से रात होने लगी,12-15 फुट के रास्ते पर सभी घर को लौटते हुए, वाइक, टेम्पू, टैक्सी, साइकिल और बैलगाड़ी का ताना-बाना, इसे और डरावना बना रही थी, आवाज करती हुई तेज हवायें और कुहांसा, सभी सवारियां अपने साथ ली हुई,रौशनी के सहारे बांध पर दौड़ रही है, थोड़ी सी भूल या जल्दीबाजी से सवारी बांध से नीचे, दुर्घटना ग्रस्त हो सकती है, कोई रोड लैम्प नहीं, उस पर रवि जी की हिरोपंती, जब मैं उनके साथ वाइक पर होती हूं तो वो खुद को किसी हीरो से कम नही समझते,
मैं पूरे रास्ते, हे भगवान, हे भगवान कि जाप करती हूं और वो फिल्मी गाना गाते है, इतना ही नही जहां-जहां गांव आ जा रहा था, वहां-वहां ' मोदी जी के स्वच्छता अभियान 'पर पानी फेरते हुए, सड़क के किनारे बैठे हुए गांव वाले नजर आ जा रहें थे बड़ी मुश्किल से हम सब मेला घुमकर अपने गांव बनकेरवा आ गये, वहां रात को रूकते है फिर वहां से नास्ता पानी करके(3-12-14) को12 बजे दोपहर तक फुलवरियां लौट आते है, आज यहां प्रितिभोज है, कल(4-12-14 at 10.45) पर छपरा से, बलियां to सियालदा ट्रेन है, छ्परा स्टेशन पर, हम सब मेरे मम्मी-पापा एक साथ हो जाते हैं मैं वहां अपने ननद के ननद से मिलती हूं, उसे पता था कि हम सब वहि से आसनसोल को लौट रहे है, ट्रेन आने तक हम सब किताबों का चयन कर रहे थे, हर यात्रा पर एक अनोखी किताब जरूर लेती हूं,
"आज के युग में, घर से हंसते हुए बाहर गये और हंसते हुए वापस घर को आ गये, यह एक सुखद यात्रा मानी जानी चाहिये, इसके लिंए भगवान की शुक्रगुजार हूं,धन्यवाद करती हूं"
Rita Gupta