खुद को 'माफ' नही कर सकती

खुद को 'माफ' नही कर सकती
मैं 40 साल की हो गई हूं, लोग मुझे देखकर तरह-तरह कि बातें करते है, हंसते हैकिअभी तक शादी नही हुई, पुरूषों को छोड़ो, यहां तो औरतें जो मेरे हम उम्र किहै, उनका अपना परिवार और बच्चें है, उन्हे मेरा त्याग नही दिखता, जब एक औरत दुसरी औरत कि भावनाओं को नहीं समझती, तो कोई और क्या समझेगा, फिर किससे और क्या कहना.......?
मुझे आज भी 'वो' दिन अच्छी तरह याद है, जिस दिन के बाद से, मैं हंसना भूल गई, दिपावली का दिन था, हम तीनों बहनें एक कमरें मे बैठ, हाथों में मेंहदी लगा रहे थे, दोनों छोटे भाईयों ने आकर हम बहनों को परेशान करने लगते है, कभी मेंहदी के पैकेंट लेकर भाग जा रहा था, तो कभी लाइट बंद (light off) कर दे रहे थे, मैनें उन दोनों को कमरे से बाहर निकालकर दरवाजा बंद कर दिया,
थोड़ी देर बाद देखा, लाइट अफ हो गई, दोनों बहनें चिल्लाने लगी.......देखो दीदी, लगता है उन्होंने फ्यूज निकाल दिया है, अब क्या होगा, मैनें कहा........ हो सकता है, लाइट चली गयी हो, बहन......नही खिड़की से देखो, सबके घर में है,
मुझे बहुत गुस्सा आया, ये मेरे भाइयों कि पुरानी आदत थी, हमें परेशान करने के लिए, वो ऐसा ही करते, प्यूज निकालकर भाग जाते, मैं उठी और मोमबत्ती जलाकर नीचें उस कमरे मे गई जहां बिजली बोड था, सच मे निकाला गया था, मैंने फ्यूज लगा दिया और ऊपर अपने बहनों के पास चली आई,
थोड़ी देर बाद, जोर-जोर से, बाहर से चिल्लाने कि आवाज सुनाई दी, हम बहनों ने सोचा, किसी का किसी के साथ, झगड़ा हुआ होगा पर जब मम्मी किआवाज सुनाई दिया तो मैं दौड़ती हुई नीचे उतरकर बाहर कि ओर गई, वहां देखा....... पापा बिजली के तार में लिपटे हुए चिल्ला रहे है, मां भी रोते हुए चिल्ला रही है,
मैं देखकर अवाक, कि ये क्या और कैसे हुआ, दौड़कर फ्यूज निकालने गई, फिर पापा के इलाज के लिए अस्पताल लेकर गये, वहां पता चलता है कि बहुत देर तक बिजली के पकड़ मे रहने के कारण दिमाग को नुकशान पहुंचा है, अब एक तरफ के हाथ-पैर में लकवें की तरह शिकायत आ गई है, ऐसे नुकशान कि भरपाई बहुत मुिश्कल है, हो सकता है कि ये अपनी बाकी जिंदगी ठिक होने के इंतजार में ही बिता दे,
दो दिन बाद ही डाक्टर छुट्टी दे दिया, हमसब पापा को लेकर घर आते है, दिपावली के दिन की हंसी-खुशी सिर्फ मेरे नासमझी के कारण, हमेशा के लिए आंसूओं मे डुब गया, मैं घर कि बड़ी संतान हूं, मेरे बाद दो बहनें और दो भाई है,20 बर्ष कि मैं पढ़ाई समाप्त कर मां के साथ घर के कामों में सहायता करती थी, आज पापा के दुकान को बेटे कि जरूरत है जो दुकान चला सके, दोनों भाई 10-12 साल के है
मैनें फैसला किया,मैं बेटी नही हूं मैं अपने पापा का बेटा हूं, मैं दुकान पर जाने लगी "सिंगार और उपहार" का दुकान है,यहां सब तरह के ग्राहक आते है, मैने महसूस किया कि मुझे सिंगार के दुकान पर बैठतें हुए भी, अपने सिंगारका त्याग करना ही उचित रहेगा, मैने बाल छोटे करा लिए और एकदम साधारण रूप को धारण कर लिया,
मम्मी........ तुमने ऐसा क्यों किया, तुम्हारी शादी करानी है, लड़की में नजाकत और सौंदर्य होनी चाहिये,
मैं..............मैं अब लड़की नही हूं, आपका बेटा और इस घर का देखभाल करने वाला लड़का हूं,
मम्मी......... तुम ऐसा मत करो, इसमें तुम्हारी गलती नही है, तुम्हें नही पता था कि तुम्हारे पापा फ्यूज
निकालकर काम कर रहे है,
मैं................तो क्या हुआ, अगर गुस्सें को छोड़, थोड़ से दिमाग का इस्तेमाल किया होता, नीचे आकर ये
जानना चाहिये था,कि फ्यूज किसने और क्यों निकाला है, तो आज पापा कि ये हालत नही
होती,मैं'खुद'को कभी माफ नहीं कर सकती, आप सब मुझे, मेरे पापा के कर्तव्यों को पूरा
करने का मौका दे, मैं वादा करती हूं कि दोनों बहनों कि शादी और दोनों भाईयों कि पढ़ाई
कराना आज से मेरा फर्ज है,
मम्मी...... तुमने सबके बारे में सोच लिया, खुद के बारे मे क्या सोचा ?
मैं.......... आपकी बड़ी बेटी 'मैं' उस दिन ही खुद को मार दिया, जिस दिन पापा की ऐसी हालत हुई, जिसे
आप देख रहे हो, वो आपका बेटा है,मैं आपसे प्रार्थना करती हूं, मुझे मेरे फर्ज को पूरा करने दे,
"दिन बितते गये, आज मैं और मम्मी- पापा साथ में रहते है, दोनों बहनें अपने ससुराल में खुश है, दोनों भाई भी बाहर में अपने परिवार के साथ रहते है, पापा पहले से बहुत ठिक है, वो मुझे बेटा कहकर बुलाते
Written by
Rita Gupta