कलाकार

कलाकार
छात्रावास में रहने वाली लड़कियों में कमला और रचना की दोस्ती एक मिसाल थी, रचना पढ़ने मे तेज और पेंटिग कि शौकिन है, जब कि कमला पढ़ने मे साधारण और समाज सेवा कि आदी है, स्वभाव कि दयालु होने के कारण, कोई भी छट से उसको अपना समझने लगता है,दोनों B.A की छात्रा है
स्वभाव में दोनों एक-दुसरे के विपरीत है, फिर भी पक्की सहेली है, रचना अपनी हर बात उससे कहती है, वह अपनी बनाई गई पेटिंग पहले कमला को दिखाती, उसके पसंद होने पर ही वह किसी और को दिखाती है, रचना को लगता, कमला को कला कि कद्र और अनुभव दोनों ही है, कभी किसी पेटिंग में अगर कमला कोई कमी बताती तो पहले रचना उस कमी को दूर करती, फिर उसे प्रदर्शनिय में देती,
कमला कॉलेज से छुटती तो पास के झोपड़पट्टी के बच्चों को पढ़ाने चली जाती, वो बच्चे गरीबी के सतायें और लाचार बच्चे है, स्कूल जाने के लिए समय और पैसे दोनों नही है, उनको पढ़ाने के बाद छात्रावास आती, हर रविवार को वो दोपहर में ही उन लोगों के पास चली जाती, उस दिन महिलाओं को भी पढ़ाया जाता था,कमला अपनी पढ़ाई के साथ-साथ समाज के लिए कुछ करती उसे ऐसा करना अच्छा लगता है, लोगों के दुःख मे दुःखी और उनकी खुशी मे उसकी खुशी छिपी होती है,
रचना कॉलेज से आकर पढ़ाई करती और समय निकालकर पेंटिग करती है, और बहुत सारी बाते करने के लिए अपनी सहेली का इंतजार करती है, जब कमला आती, रचना गुस्साते हुए..... तुने कितनी देर कर दी मुझे तुझसे कितनी बाते करनी है,कमला हंसते हुए...... चल जल्दी से खाना खाते है फिर सोते-सोते बाते करेगे
इसी तरह देखते-देखते 3 साल बीत जाते है, आज दोनों सहेलियों के बिछड़ने का दिन आ गया है, रविवार का दिन है, कॉलेज कि छुट्टी है,कमला को महिलाओं को पढ़ाने जाना है, रचना को भी अपनी एक पेंटिग को एक जगह जमा करने जाना है,
रचना कमला से कहती है.....आज तु जल्दीआ जाना मैं भी जल्दी से अपने काम करके आती हूं, फिर हम बाते करेगे, तुझे याद है न आज शाम 5 बजे मेरी ट्रेन है, यहां से 4 बजे निकल जाना होगा, कमला कहती है....... अभी 11 बज रहे है,मैं 3 घंटा बाद 2 बजे तक आ जाऊंगी और तेरे साथ स्टेशन चलुगी, तु भी देर मत करना,
दोनों अपने-अपने काम पर निकल जाती है रचना को फोटो जमा कराने मेें देर हो जाती है,2.30 बज जाते है, वह जल्दी से रेक्सा करके छात्रावास लौट रही है, रास्ते में एक जगह बहुत से लोग जमा है, शायद कोई घटना हुई है, रचना रेक्से वाले से कहती है..... आप जरा रुको, मुझे देखने दो बात क्या है, वह उस भीड़ के पास जाती है, वहां एक भिखारन को कोई वाहन धक्का मारकर चला गया था, शायद वह मर चुकी थी, उसके के पास दो मासुम बच्चे रो रहे थे, लड़का 5 साल का होगा और लड़की 7 साल की होगी,दोनों मां-मां चिल्लाकर रो रहे थे, पर आते-जाते लोग देखते और चले जाते, अभी तक किसी ने उसे hospital तक नही ले गया, रचना भी उस असहनिय दृश्य को देखती है और आकर रेक्से में बैठ जाती है,और छात्रावास आ जाती है,
कमला भी पढ़ाने में खो जाती है, अचानक 2.45 में उसे याद आता है कि आज तो जल्दी जाना था, रचना को स्टेशन छोटने जाना है, वह जल्दी से रेक्सा कर छात्रावास लौटना चाह रही है, उसने रास्ते को भीड़ को देखकर रेक्सा को रोकाया और वहां जाकर देखती है तो उसके होश उठ जाते है, एक औरत अंतिम सास ले रहे है, घटनास्थल पर सभी लोग दया कि नजर से देख रहे है, किसी कि हिम्मत नही हो रही कि उस औरत को hospital लेकर जाये, कमला खुद को उसकी सहायता करने से रोक नही पाती, रेक्से वाले कि मदद से उस औरत और उसके दोनों बच्चों को लेकर hospital जाती है
डाक्टर कोशिश करते है पर औरत को नही बचा पाते है, वह अपने दोनों बच्चो को कमला के हाथ में धराकर अपनी अंतिम सांस लेती है,कमला रोते हुए बच्चों को छुप कराते हुए खुद रो पड़ती है, डाक्टर कमला से पूछते है,.....ये औरत आपकी क्या लगती है,कमला..... मैं इन्हें नहीं जानती, इंसानियत का नाता है, डाक्टर...... ये लवारिस लाश कांरपोरेशन के हवाले कर दिया जायेगा, आप घर जाओ, इन दोनो बच्चों को यहि छोड़ दो कल किसी अनाथ आश्रम में चले जायेगे
कमला घड़ी देखती है, तो शाम के 7 बज चुके है, उसे याद आता है, रचना कि ट्रेन शाम 5 बजे कि थी, मैं अपना वादा भी नही निभा पाई, पता नहीं वो मेरे बारे में क्या-क्या सोचती होगी, रोते हुए दोनों बच्चे कमला का हाथ नही छोड़ रहे थे, कमला भी उन्हें छोड़ नहीं पा रही थी, अंत में वह hospital में अपना पूरा पता लिखाकर उन बच्चों को अपने साथ लेकर आ जाती है,
दुसरे दिन वो, उन्हें अपने साथ, अपने घर लेकर चली जाती है,कमला के मम्मी-पापा उसके इस फैसले से नाराज होते है, पर वह उन्हें मना लेती है, उन बच्चों का दाखिला स्कूल में करा देती है,कमला को भी job मिल जाता है और सब-कुछ सामान्य हो जाता है,
एक साल बाद, अचानक कमला का ध्यान समाचार पेपर के एक नोटिस पर गया, जो था............
"मेरी प्यारी, सहेली
मुझे, मेरी एक पेंटिग के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है, मैंचाहती
हूं, तुम इस समारोह में आओ, और इस पेंटिग को देखकर बताओ, क्या मैं इस
सम्मान कि अधिकारी हूं,
तुम्हारी' सहेली'
श्रीमति रचना यादव
कमला को यह जानकर खुसी होती है, कि रचना कि शादी हो गई है, वह सोचती है कि इस समारोह मेें जरूर जाऊंगी, ऐसे भी वो रचना को स्टेशन छोड़ने नही जा पाई थी,
रविवार को सुबह में समारोह है,कमला दोनों बच्चों के साथ वहां जाती है, बहुत ही भीड़ है, सभी रचना को बधाई देते है, चारों तरह दिवार पर पेंटिग लगी हुई है, बच्चे भी उन्हें देखने में लग जाते है,कमला रचना के पास जाकर बधाई देती है,
रचना......... पहले तु उस पेटिंग को देख, जिसके लिए मुझे सम्मानित किया गया है,
कमला............. रचना के पेंटिग को देखती है तो देखते रह जाती है, इसमें उस दिन कि सड़क की
घटना को दिखाया गया था, जिसमें एक भिखारन अधमरी पड़ी है और उसके दोनों
बच्चें रो रहे है
रचना...........क्या हुआ, तु चुप क्यों है, कोई कमी है,
कमला...........कोई कमी नहीं है, ऐसा लग रहा है, तेरी पेंटिग सच वया कर रही है,
रचना............ यह सच्ची घटना ही है, जिस दिन हम बिछड़े थे, उस दिन सड़क किनारे इस घटना को
मैने अपनी आंखो से देखा था,
कमला........... इसलिए सजीव जान पड़ रही है,
" दोनों बच्चे कमला को खोजते हुए उसके पास आते है और मम्मी बोलकर उससे लिप जाते है" रचना....... ये क्या है, ये बच्चे, शादी नही कि है, मैं कुछ समझ नही पा रही हूं,
बच्ची.......8 साल कि बच्ची, जो उस समय 7 साल कि थी, तस्वीर को देखकर रो पड़ती है, बच्चे को
कुछ याद नही है
रचना........ क्यों रो रही हो,
बच्ची............वो पेंटिग को दिखाते हुए रो रही है, कि वो उसकी मम्मी की तस्वीर है,
रचना............रचना समझ जाती है, कि ये दोनों बच्चे उसी भिखारन के है, कमला को समय पर छात्रावास
नहीं आने का कारण वह घटना थी,कमला मुझे माफ कर दो मैं क्या-क्या सोच रही थी
कमला............बच्ची को चुप कराकर गले लगा लेती है,
"तब तक मंच से रचना के नाम को घोषित किया जाता है, रचना मंच पर जाकर सम्मान ग्रहण करती है और बोलती है....... इस सम्मान की सहि अधिकारी, मैं नही हूं, यह सम्मान मैं अपनी प्रिय सहेली कमला को सर्मपित करती हूं, पेंटिग के माध्यम से मैंने लोगों को सच दिखाने कि कोशिश कि है,कमला ने उस सच को स्वीकार कर, दोनोंं बच्चों की जिंदगी में रंग भरा है, वह मुझसे बड़ी कलाकार है "