कलम तोड़ दो,

कलम तोड़ दो,

हे विधाता, आप से एक प्रार्थना करती हूं, जिस कलम से मेरी किस्मत में इतने सारे दुःख लिखी है, उस कलम को तोड़ दो, हम इंसानों में भी, इतनी इंसानियत है, हमारे बनाये हुए कोट के जज को यह ज्ञान होता है, वह जिस कलम से, किसी कैदी को " फांसी की सजा " लिखता है उस कलम को तोड़ देता है, ताकि वह कलम किसी और के लिए, मौत का फरमान ना लिखे,

आप तो सर्वज्ञानी दाता हो, हम सबकी किस्मत लिखते हो, हम सब आपकी संतान है, कोई कैसे अपने संतानों की किस्मत में, इतने सारे गम लिख सकता है, सुना है कि आपकी मर्जी के बिना, एक पत्ता नहीं गिर सकता, तो हमारे आंखों से गिरते हुए आंसू में, आपकी मर्जी शामिल है, ऐसी किस्मत जिस कलम से लिखी है, कृपया उसे तोड़ दे,

एक दुखियारी महिला, जिंदगी के उस पड़ाव पर है, जहां से उसकी जिंदगी की उलटी गिनती शुरू हो गई है, मात्र 50 साल की उम्र में 80 साल वाले कष्ट को झेल रही है,

बचपन में मां-बाप को खो चुकी अनुराधा की शादी,उसके चाचा-चाची बहुत ही कम उम्र में उसकी शादी कर, अपना बोझ हल्का करते है, मात्र 15 साल की उम्र में दुल्हन बन ससुराल की जिम्मेवारी संभालती है,16 साल की वह प्यारी सी बेटी को जन्म देती है, उसका एक कर्तव्य और बढ़ गया, दिन-भर सास-ससूर की सेवा, रात-भर पति और बेटी की सेवा, सांसारिक चक्र-व्यूह ऐसा होता है, एक बार जो इस में फंसा, चक्र-व्यूह तोड़ता हुआ मंजिल की ओर चलते रहे, या नासमझी से अभिमनु की तरह वीरगति को प्राप्त होना पड़ता है,

बेटी अभी 2 साल की हुई, सासु जी का ताना शुरू, यहि एक रहेगी या इसका भाई भी होगा, अनुराधा दुबारा मां बनने को रहती है, सास बहुत खुश कि इस बार पोता होगा, बेटे का बेटा, जिसे दादा-दादी व्याज मानते है, बेटा मुलधन होता है और पोता व्याज, व्याज मूलधन से ज्यादा प्यारा होता है,अनुराधा की सास को भी व्याज का इंतजार है,

किस्मत लिखने वाले ने क्या लिखा है उसे ही पता है, दुसरी कन्या (बेटी) का आगमन होता है, सासुजी का गुस्साया हुआ चेहरा देख अनुराधा डरी रहती है,वो बात-बात पर ताना देती है, एक तो मेरे बेटे के सिर पर पूरे परिवार का खर्च उठाने की चिंता, ऊपर से दो कर्जदार आ गई,( बेटियों को उसकी सास कर्जदार मानती है ) ताना तक तो सहि था, अब तो वो अपने एकलौते बेटे की दूसरी शादी के बारे में बोलना शुरू कर दी, अनुराधा को चिंता और काम दोनों के दबाव में जीना पड़ रहा था,

एक कमाने वाला, 6 खाने वाले, गरीबी घर में पधार चुकी थी, प्रतिदिन घर में किसी ना किसी बात पर झगड़ा होता, दिन-भर के कामकाज से थकी हारी अनुराधा को, रात में पति को खुश करना मजबूरी लगता था, पर एक डर सा था कि सास-ससूर को पोता नहीं दे पाई, जिससे वो हमसे नाराज रहते है अगर पति को खुश नहीं रख पाई तो सौतन का स्वागत ना करना पड़े,

गरीबी तो अपने आप में किसी बीमारी से कम नही, ऊपर से मानसिक और शारिरिक थकान से अनुराधा को बिमारियां ने घेरना शुरू किया, उसकी मानसिक स्थिती कुछ ऐसी हो गई कि वह जिद्दी और चिड़चिड़ा हो गई, पागलपन सवार हो जाता है कि जो कुछ हो बेटा चाहिए, बेटे की चाह में वह बार बार मां बनती है, किस्मत की महान हर बार बेटी को जन्म देती है, जहां वो दो बेटी की मां थी, वहां अब 7 बेटियों की मां बन गई,

सातवी बेटी के जन्म के समय, बच्चेदानी में सूजन हो जाने के कारण, डाक्टर को उसे बाहर निकालना पड़ा, तब जाकर अनुराधा की जान बची, फिर भी वह पहले की तरह काम-काज नहीं कर पाती है, बच्चे ही बच्चो की देखभाल करते है, सबसे छोटी बेटी जब एक साल की थी, उसकी दो बहने उसे लेकर मंदिर में खेलने जाया करती थी,

गरीबी अपनी चरम सीमा पर, बीमारी भी उस घर में पैर जमाकर बैठ गई, उस परिवार की ऐसी दशा देख, लोग दुःखी होते,कोई अच्छा सा दिन था, महिलाएं उपवास की थी, दोपहर का समय, छुटकी भी अपनी दो बहनों के साथ मंदिर में, दोनों बहने सहेलियों के साथ खेलने में व्यस्थ हो गई, मात्र एक साल की छुटकी धीरे-धीरे पूजा कर रही महिलाओं के करीब आ जाती है, एक महिला ने भोले शंकर के चबूतरे पर जैसे ही नारियल तोड़ा, छुटकी जोर-जोर से चिल्लाकर रोने लगती है,

सबको लगा कि वो आवाज से डर कर रो रही है,बहनो ने उसे गोद में लिया, बहुत चुप कराया, बड़ी मुश्किल से घंटाभर के बाद वो चुप होती हैै, दो दिन बाद जब अनुराधा अपनी बेटी के बाल में तेल लगाती है तो देखती है कि किसी गहरे चोट के कारण घाव बन गया है, काले धब्बे के रूप में खून जमा है, उस भाग को छूते ही, छुटकी का रोना शुरू हो जाता है,वह अपनी बेटियों से पूछती है कि ये चोट कैसे लगा, किसी को कुछ नहीं पता,

डाक्टर को दिखाने के बाद पता चला कि यह बहुत गहरा चोट है, जो घाव का रूप धारण कर लिया है, इलाज शुरू हुआ, घाव की सफाई में, चने के आकार के बराबर सूखे हुए नारियल का टुकड़ा मिला, तब जाकर सच सामने आया कि 7 दिन पहले, जब मंदिर में पूजा के समय वो आवाज के डर से नहीं बल्कि नारियल के टुकड़े से चोट लगने से रोने लगी थी, चोट ने घाव का रूप धारण किया और घाव उसके अपंग होने का कारण बना,

इलाज चलता रहा, घाव सूखने में महिना दिन लगा, उस घाव ने छुटकी के दिमाग के किसी अंग को इतनी क्षति पहुंचाई कि वह अपंग हो गई, शारीरिक विकास तो होता गया, पर बौद्धिक विकास रुक जाने के कारण, वह कभी भी बोल नहीं पाई, इतना ही नहीं कमर के नीचे के अंग कार्यहिन हो गये, वह चल भी नहीं सकती,गरीबी सीमा रेखा पार कर चुकी, पर भाग्य के लिखने वाले भाग्यविधाता खामोश है, अनुराधा मानसिक और शारीरिक दोनों तरफ से मरीज है, उसके पति का एकमात्र लक्ष्य है ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाना, उनके लिए 11 सदस्यों वाले परिवार का पालन-पोषण करना हमेशा के लिए चुनौती भरा कार्य रहा,

इसी तरह 15 साल बित गये, दादा-दादी भगवान को प्यारे हो गये, सिर्फ एक बेटी का व्याह हुआ है,6 बेटियों को छोड़ अनुराधा, मौत का इंतजार कर रही है, अनुराधा के लिए जिंदगी की परिभाषा ही कुछ और है,

                                                                                                 Rita Gupta.