आस्तित्व

आस्तित्व

" मैं कौन हूं " यह वह सवाल है, जो हम सब कभी-ना-कभी अपने आप से पूछते है, जिसका जवाब देना आसान नहीं होता, क्योंकि आप अपने आप से झूठ नहीं बोल सकते,

मजबूरी या जरूरत पड़ने पर,इंसान सारी दुनिया से झूठ बोल सकता है, यहां तक की, वह अपने मम्मी-पापा से भी झूठ बोल सकता है पर खुद से नहीं बोल सकता, जिस तरह हम सब अपने आराध्य देव के सामने खुद को आत्म समपर्ण कर देते है ठीक उसी प्रकार अपने दिल के सामने खुद को सर्मपित कर देते है, इसके सामने किसी की एक नहीं चलती, इसे सिर्फ सच समझ में आता है,

“अपनी एक छात्रा से मिलने और उसकी आपबीती सुनकर मेरी आंखे भर आयी, उसकी इजाजत से हमारे बीच हुई वार्तालाप को कहानी का रूप देने की कोशिश कर, लोगों को यह सोचने पर बाध्य करना है कि आज भी " हमारा सोच " कितना पिछड़ा हुआ है”

मीना बहुत ही प्यारी लड़की है वो मुझे अपनी शिक्षिका नहीं बल्की मां मानती है, मैं भी उसे अपनी बाकी छात्राओं से अलग मानती हूं, ऐसे हर इंसान में कुछ खास बात होता है जिससे वह लोगों पर अपनी एक छाप छोड़ जाता है, ये देखने वाले पर निर्भर करता है कि उसे उस छाप में उसकी कोई सी बात खास लगी, वह जब भी ससुराल से आती है, मुझसे मिलने आती है, उसे मैं तब से जानती,जब उसकी शादी नहीं हुई थी,वह दसवी तक पढ़ी साधारण सी, पर मेहनती और विश्वासपात्र लड़की है, उसके शादी के लिए, उसके मम्मी-पापा लड़का देख-देखकर थक चुके थे, रंग काला होने के कारण, उसे लड़केवाले नापसंद करते, उन्हें कौन बताये कि सिर्फ सूरत नहीं देखते, सीरत सबसे बड़ी बात होती है,

10 साल पहले………………………………………………………………..

वह उदास और खामोश रहती थी, उसके घरवाले पहली बार मेरे यहां जब लेकर आये कि इसे सिलाई सिखाना है, उसकी आंखों से दूर-दूर तक उदासी के सिवा मुझे कुछ नहीं दिखा, मैं उनकी मां से बोली..... मुझे सात दिन चाहिए, उसके बाद में बताऊंगी कि आपकी बेटी को मैं अपनी छात्रा बनाऊंगी या नहीं,

“ मैं लगभग 25 साल से सिलाई सेंटर चलाती हूं,मेरे पास जो लड़की या महिला सिलाई सीखने आती है, उसे हंसने आना चाहिए, मेरे हिसाब से हंसना स्वास्थ के लिए अनिवार्य है,स्वास्थ सही तो मन सही, मन सही तो दिमाग सही, दिमाग सही तो सब सही, एक दुःखी इंसान किसी को खुशी नहीं दे सकता, हम लड़कियों का जन्म, हमेशा देने के लिए हुआ है बचपन से मम्मी-पापा, भाई-बहन को ढेर सारा खुशियां, पति को प्यार, बच्चों को दुलार, और अपनों को अपनापन,सिर्फ देना और देना, आना चाहिए ”

मीना मेरे पास 7 दिन क्लास करने आती है, मैंने उसमे 1% भी बदलाव नहीं किया,

एक दिन............................................................

मैं........ मीना, कल तुम अपनी मम्मी को मुझसे मिलने को बोल देना, कुछ जरूर बात है,

मीना..... जी,

मैं........ तुम्हारा आना जरूरी नहीं है, सिर्फ मां को भेज देना,

मीना..... जी,

दूसरे दिन.............................................................

मीना की मम्मी....... आप मुझे बुलाई,

मैं................ जी, बैठिये... कुछ बात करना है,

मीना की मम्मी....... बोलिए,

मैं................ जो बोलने जा रही, उसका गलत मतलब नहीं निकाले, मैं मीना को सिलाई नहीं सिखा

                  सकती,

मीना की मम्मी....... क्यों, उसने कुछ किया,

मैं............... इसी बात का दुःख है कि कुछ नहीं किया, अच्छा या बुरा कुछ भी करने के लिए मन में

             उत्साह होना चाहिये, उसके मन में कोई उत्साह नहीं,22 साल की लड़की, जिसमें हिरण की

              चंचलता होनी चाहिए, वो इतना उदास और खामोश क्यों,

मीना की मम्मी....... बचपन से ही ऐसी है,

मैं........... ये कोई जबाब नहीं है, गलती आपलोगों की है, मैं कुछ नहीं कर सकती,

मीना की मम्मी....... आप उसे अपने पास आने दिजिये, यहां सबके बीच, सबके साथ और आपकी नजर

               में रहेगी तो कुछ तो असर होगा,

मैं............ अभी वो सिलाई सिखने के मनो: अवस्था में नही है,

मीना की मम्मी...... हमें सिलाई सिखाने की जरूरत नहीं, आप अपने जैसा खुश रहना सिखा दे, हमें और

                कुछ नहीं चाहिए,

मैं........... ठीक है, देखती हूं, क्या कर सकती हूँ,

“ उसके घरवाले, उसे मेरे पास भेजना बंद नहीं करते, महीना, दो महीना, बितने के बाद वो खुलकर मुझसे अपने दिल की बाते करने लगी, वह मुझसे अकेले में बात करना चाहती है, मुझे भी ऐसा लगा कि कुछ बात तो है जो वो सबके सामने नहीं बोलना चाहती, मैं उसे छुट्टी वाले दिन मिलने को कहा…….

जब वो मुझसे अकेले में मिली तो बात करते-करते उसके आंखों से जल-धारा बहने लगी, वो जी-भर कर मेरे सामने रोई, मैं उसे रोते हुये देख रो दी, कोई इतना गम छिपाकर जी नहीं सकता, हंसना तो दूर की बात है,मैंने उससे कहा....जो बीत गया, वो बुरे दिन थे, उसे सपना समझकर भूल जाओ, आज से तुम एक नई मीना हो, जिसे हर हाल में हंसना आता है, वो आंसू को पीना सिख रही है, इस अनमोल आंखू को किसी के सामने नहीं मत लाना ”

उसके बाद, उसमें जो परिवर्तन आये, उसके अपने भी यही कहते....ये वो मीना नहीं है, वह मन लगाकर सिलाई सीखी, उसके साथ-साथ जड़ी और कढ़ाई का काम भी सिखा, उसमें आत्मविश्वास जाग गया, वह हर काम सिखनें को तैयार रहती है, खामोश रहने वाली मीना से आज पूरा क्लास, उसके हंसी से परेशान हो जाता है, खामोश रहने की मांग करता है,

उसकी हंसी देखकर, मुझे गर्व महसूस होता है कि मैंने कोई चत्मकार किया है, दिन बितते है, कुछ साल उसकी शादी हो जाती है, ससुराल इतना संर्षशमय था कि उसके जगह कोई और होता तो कब का ससुराल छोड़ मायके आकर बैठ जाता, मगर उसमें जागे हुए आत्मविश्वास काम किया, जरूरत पड़ने पर अधिकार छिनकर लेना पड़ता है, अधिकार भीख में नहीं मिलती, शादी के 5 साल बीते, इन दिनों में उसके साथ इतने अत्याचार हुआ, फिर भी वह हार नहीं मांगी,धीरे-धीरे हालात ठीक होते है, आज लगभग जिंदगी ठीक-ठाक चल रही है, मेरी जानकारी में…………………………….

कुछ दिनों बाद, अचानक एक दिन…………………………………………………..

मीना........( पैर छुकर ) चाची प्रणाम,

मैं......... आओं बैठों, कैसी हो,

मीना....... चाची, मैं कौन हूं,

मैं......... ये कैसा सवाल है,

मीना....... बोलो ना, मैं कौन हूं,

मैं......... कुछ हुआ है, सब ठीक है ना,

मीना....... सब खत्म,

मैं.......... क्या ? ऐसा क्या हुआ,

मीना....... मेरी अपनी पहचान नहीं, मेरा अस्तित्व नहीं,

मैं.......... तुम माँ हो, पत्नी हो, बेटी हो, बहू हो,

मीना....... यहि मेरी पहचान है, इसके सिवा मैं कोई नहीं,

मैं.......... देखो, मुझे डर लग रहा है, खुलकर बोलो क्या हुआ,

मीना....... मैं दसवीं पास मीना नहीं हूं, मैं अनपड़ हूं,

मैं........ ऐसे ना बोलो, तुम तो पढ़ी-लिखी हो,

मीना...... आपके दामाद जी, मेरा राशनकार्ड नया बना दिये, उसमें उन्होंने कहा, गांव से शादी करके लाया

              हूं, जन्म का कोई प्रमाणपत्र नहीं है, पढ़ी-लिखी नहीं है,

मैं....... क्यों, मां घर से राशन कार्ड क्यों नहीं ले गई,Admit card था,

मीना......Admit और राशन कार्ड के हिसाब से मैं उनसे 6 साल बड़ी हूं, ये सच बताने में उन्हें शर्म आ रही

            थी, उन्हें मुझे अनपड़ कहकर काम निकाल लेना सही लगा, राशन कार्ड से उन्होंने, वोट कार्ड,

            पेनकार्ड, और आधार कार्ड बना दिया, ये सारे पहचान पत्र मेरे पास है, फिर भी मेरा दिल मुझसे

             पूछता है,,,,," मैं कौन हूं "ये सारे पहचान पत्र, जिस मीना शर्मा का है, वो 25 साल की मीना है,

           जो अनपड़ है, जो मीना मेरे अंदर दम तोड़ रही है, वह 33 साल की, सिर्फ दसवीं पास है, आप

            बोले मैं दोहरी जिंदगी कैसे जी सकती हूं,

मैं........दसवीं पास मीना के लिए ये सारे पहचान पत्र बेकार है, किसी काम के लिए क्योंकि वो 25 की नहीं

           है, और 25 साल की मीना के लिए भी ये सब पहचान पत्र काम नहीं आ रहे क्योंकि वह अनपड़ है,

          ये तो बहुत बुरा हुआ,

मीना....... पति जी को ये बात हजम नहीं हुआ कि मैं उनसे 6 साल बड़ी हूं, इसलिए उन्होंने अपने से 2

            साल छोटा यानि 8 साल उम्र कम कर, एक नया राशन कार्ड बना लिये,

मैं....... अब क्या करोगी,

मीना...... मुझे N.I.O.S से दसवीं की परीक्षा देनी है, आप मेरी सहायत करे,

मैं........ इतने साल हो गये किताब से नाता तोड़, कर पाओगी ना,

मीना....... आप हिम्मत दिजिये, मैं कर लूंगी,

मैं......... मैं तो हमेशा तुम्हारें साथ हूं,

मीना......Thanks चाची, मुझें 25 साल की नई मीना को साक्षर बनाने में आपका सहयोग चाहिए, ताकी

           मैं खुद को उसमें ढाल सकू, और " आगनबाड़ी " में एक काम मिल रहा है, उसे प्राप्त कर फिर से

            अपने ऊपर गर्व महसूस कर सकू वर्ना " मैं कौन हूं " इस सवाल से मुझे कभी मुक्ति नहीं

             मिलेगी,

                                                                           Rita Gupta.