"आग" में घी डालना

"आग" में घी डालना

आग में घी डालना एक " अवगुण " है, इस अवगुण के कारण कितने घर बर्बाद हुए है, इतिहास गवाह है....... 'शकुनी मामा' ने महाभारत के युद्ध में, आग में घी डालने, का काम अच्छी तरह से किया है, दासी मंथरा, भी इस अवगुण से भरी हुए के कारण बदनाम है,

"कलयुग के एक सच्ची घटना को, आपके सामने रख रही हूं, जिसमें इस अवगुण के कारण.....रिश्तें बदनाम हो गये"

मुनियां गांव की सीधी-साधी लड़की है, दादा और पापा की दुलारी है, दादाजी कि इच्छा है कि वो अपनी पोती की शादी देखकर ही स्वर्ग जाये, अभी मुनियां 14 साल की नाबालिक है, फिर भी दादाजी के इच्छा को ध्यान में रखते हुए, मुनियां का व्याह, उसी गांव के, सेना में काम कर रहे, अमरजीत के साथ तय होती है,

मुनियां और अमरजीत की शादी, बहुत धुम-धाम से होती है, पर लड़की को विदा नही किया जाता है,5 साल बाद मुनियां को गवना(एक रस्म है) के बाद, विदाई होगी, शादी के बाद बाराती अपने घर चले जाते है, अमरजीत फिर अपने काम पर लौट जाता है,

दोनों चिट्ठी के माध्यम से, अपने प्यार और इंतजार के अहसास को बतातें रहते है, एक बार अमरजीत ने मुनियां को लिखा... कि वो दो दिन के लिए अपने घर आ रहा है, उससे मिलना चाहता है, मुनियां लिखती है..... अभी गवना नहीं हुआ है, हम नही मिल सकते, अभी तो एक साल ही हुआ है और 4 साल इंतजार करना है,

अमरजीत का जबाब आता है..... ठिक है, तुम अपनी जिंद पर रहों, तब मैं नही आऊंगा,हमारी शादी हो गई है मिलने में क्या बुराई है, यहां बर्डर पर हमेशा युद्ध होते रहता है, अगर मुझे कुछ हो जाता है तो सीधे मेरा मरा मुंह देखना, बंधे रहो अपने रीति-रिवाजों में, मैं नही आ रहा, मुनियां भी दिल से मजबूर लिख देती है..... आप आओ मैं मिलने को तैयार हूं पर हम कहां मिलेगे, अमरजीत लिखता है.... मेरा एक दोस्त है, हम उसी के घर पर मिलते है, तुम स्कूल जाने के बहाने चली आना,

"योजना अनुसार, मुनियां और अमरजीत, दोनों उस दोस्त के घर मिलते है"

अमरजीत......कितना डरती हो, हमारी शादी हो गई है,

मुनियां...... तो क्या हुआ, समाज से छिपकर मिल रहे है,

अमरजीत.....समाज के डर से, मैं अपनी बीबी को प्यार नही कर सकता, ये भी कोई बात हुआ,

                  हमारे जैसे देश के नवजवानों कि जिंदगी कितने दिनों कि होती है, ये कोई नही

                   जानता,

"दो दिनों कि मुलाकात में, दो जनमों का प्यार पा लेते है"

अमरजीत...... अब हमे अलग होना होगा, फिर से इंतजार,मैं पापा से बोलकर जितना जल्दी हो

                      सके गवना करा लुगा, तुम चिंता मत करना,

"दो दिनों के मिलन के बाद, शुरू हुई जुदाई के दिन, जो कितने दिनों कि होगी, ये तो' समय' को पता है, एक-एक दिन कर के चार महिये बीत गये"

एक दिन अनहोनी खबर ने सब-कुछ ख़त्म कर दिया, देश की सम्मान के लिए, अमरजीत शहीद हो गया, दोनों परिवारों के आंखों सामने अंधेरा छा गया,4महिने की गर्भवती मुनियां, इस सदमें से टूट गई, वह'कोमा' कि स्थिती में चली गई,मुनियां के मम्मी-पापा को दामाद के खोने के बाद, बेटी के खो जाने का डर सताने लगा,

डाक्टर का कहना है...... जब तक मुनियां दिल खोलकर रोयेगी नही, तब तक उसका ठिक होना मुश्किल है, उसे विश्वास दिलाना होगा, कि उसका पति मर चुका है, उसे होने वाले बच्चे के लिए जीना है, इलाज शुरू होता है, दवा और दुआ दोनों ने अपना असर दिखाया, वह धीरे-धीरे ठिक होने लगी,पर उसके ससुराल वालों ने उसे अपनाने से इंकार किया, उनका कहना था कि, जब हमारा बेटा ही नही रहा और आपकी बेटी गवना के पहले ही मां बनने वाली है, समाज मे हम क्या मुंह दिखायेगे, आप अपनी बेटी की दुसरी शादी कर लिजिये,

पहले तो मुनियां के घरवाले उसे, इस बच्चे को नष्ट करने के लिए, बहुत मनाते है पर वह अपने प्यार के निशानी को नष्ट करने के लिए, बिल्कुल तैयार नही,15 साल कि विधवा मुनियां ने, बेटे को जन्म दिया,घरवाले नाती के आगमन पर खुशी मनाने या दामाद को याद कर दुःखी हो, समझ मे नही आ रहा,दादाजी उसे विधवा के कपड़े मे देखकर, खुद को दोषी मानते, वो हमेशा यहि कोशिश करते कि मुनियां दुसरी शादी के लिए मान जाय, वह साफ-साफ दादाजी से बोल देती है..... अपने जिंदगी में किसी और को जीवनसाथी नही बनायेगी, प्यार कि निशानी, अपने बेटे के सहारे,जिंदगी जी लेगी, उसके साथ अमरजीत जी कि यादें है,दादाजी अपनी सम्पती का आधा हिस्सा मुनियां और आधा हिस्सा अपने बेटे(मुिेनयां के पापा) के नाम कर देते है,

दिन बितते जाता है, मुनियां का बेटा कुलजीत अब 16 साल का युवक है, आगे कि पढ़ाई और नौकरी कि तलाश में, गांव के बाहर, शहर जाना चाहता है पर वो अपने बेटे को, खोने के डर से, बाहर नही भेजती, मुनियां ने पहले पति, फिर दादाजी और अंत में अपने माता-पिता को खो चुकी है, अब वो और सदमा नही सह सकती,इतनी बड़ी सम्पती का भोग करने वाला, मुनियां और उसका बेटा कुलजीत है, घर में खुशियां आये, इसलिए बेटे का व्याह करना चाहती है, कुलजीत मना करता है, साल बाद मां कि इच्छा को ध्यान में रखते हुए,17 साल का कुलजीत,16 साल की उमा से शादी के लिए तैयार हो जाता है,

घर में नई बहु का आगमन होता है, नये रिस्तेदारों का आना-जाना लगा रहता है, मुनियां को अच्छा लगता है,2 साल बाद उमा को बेटा होता है, घर बच्चे कि किलकारी से भर जाता है, उसके दो साल बाद उमा ने इस बार जुड़वे बच्चे को जन्म दिया,जो घर मुनियां को काटने के लिए दौड़ता था, अब उस घर में तीन बच्चों का आगमन स्वर्ग के खुश का अनुभव करा रहा है, जुड़वा बच्चों के देखभाल के कारण, उमा को अपने बड़े बेटे पप्पू के लिए, समय ही नही बचता,

पप्पू अधिकांश अपनी दादी(मुनियां) के पास ही रहता है, धीरे-धीरे दिन बितते है, बच्चे बड़े होते है, पप्पू दादी के साथ स्कूल जाता है, खाना खाता और दादी के पास ही सोता है,मजाक मे गांव वाले पप्पू को कहते है कि तुम दादी के बेटे हो, तेरी मम्मी तो सोनु-मोनु कि मम्मी है, तुम को प्यार नही करती, उमा भी गांव के लोगो से मिलने-जुलने लगी है, उसे भी बाहर कि हवा लग जाती है, वो लोगों के मुंह से, सास के बारे में सुनती है, अब वो उनकी कद्र करना छोड़ देती है, छोटी-छोटी बातों पर भी उमा सास से लड़ बैठती है, लोग लड़ाई का मजा लेते है,

बात बिगड़ने के डर से मुनियां खामोश रहती है, मन-ही-मन रोती रहती है,पप्पू को ये सब अच्छा नही लगता, अब वो बच्चा नही रहा,15 साल का समझदार लड़का हो गया है, जब कभी भी उसकी मम्मी, दादी से लड़ती, पप्पू दादी का पक्ष,लेकर मम्मी से लड़ने लगता, उमा को बहुत बुरा लगता उसका बेटा उसके खिलाफ है,

उमा सास से कहती...... आप मेरे बेटे पर जादू-टोना, करके अपने वश में कर लिया है, आज से उससे बात मत करना, गांव के लोग' आग मे घी' डाल चुके थे, उमा को मुनियां के खिलाफ कर चुके थे, छोटे-छोटे झगड़े कभी-कभी बड़ा रूप ले लेता,

दो-तीन साल बाद, जब पप्पू 18 साल का हुआ तो अपनी मम्मी से भी सवाल-जवाब करने लगा, उमा समझ गई कि पप्पू के सामने उसे सास से नही लड़ना चाहिये, पप्पू के दिल मे उसके प्रति और नफरत भर जायेगा,

48 वर्ष की मुनियां और 18 वर्ष के पप्पू, दोनों दादी-पोते के साफ-सुथरे रिस्ते में बंधे है, पप्पू को दादी से साहानभूति है, क्योंकि दादी ने अपनी जिंदगी मे बहुत से दुःख सहे है, दादी ने पप्पू को उस समय मां का प्यार दिया, जब उसकी मां के पास उसके लिए समय नही था, इनका रिस्ता साहानभूति वाला प्यार का था,

"एक दिन जब पप्पू गांव से बाहर गया"

उमा..... आप को कितनी बार बोला, मेरे बेटे से बात मत करना,

मुनियां.....बहु, मैं बहुत कम बोलती हूं, वो ही बोलता है,

उमा..... आप ने मेरे बेटे को अपने वश में कर लिया है,

मुनियां..... नही बहु, ऐसा मत बोलों,

उमा....... उसें आपके बिना नींद, नही आती

मुनियां..... मैं खुद चाहती हूं कि वो अलग सोये, बच्चा था तब बात और थी, अब बड़ा हो गया है पर

               वह नही मानता,मैं क्या करू, तुम उसे समझा देना,

उमा...... मैं तो, उसे दुश्मन लगती हूं, आपने मेरे खिलाफ कान भर कर अपना बनाया है, मुझे आप

               दोनों के रिस्तें पर शक है, आप खुद को अभी भी जवान समझती है, किसी

              से शादी करनी है तो कर ले, मेरे बेटे को छोड़ दे,

मुनियां.......ये क्या कह रही हो, ऐसी बाते सुनने से अच्छा, मैं मर जाती,

उमा...... आपको रोका किसने है,

मुनियां.....दौड़कर, दुसरे घर में जाती है और मिट्टी का तेल लेकर नहा लेती है,

"तब तक पप्पू आ जाता है, ऐसा दृश्य देखकर वो अवाक रह जाता है, दादी ये क्या कर रही हो, चिल्ला-चिल्ली से गांव के लोग आ जाते है, उमा अपनी बचाव के लिए कहती है कि..... उसकी सास का, उसके बेटे के साथ गलत सम्बंध है, इसलिए उसकी सास खुद को आग लगा रही है"

पप्पू....... तुम मां हो, मुझे विश्वास नही होता, मैं बचपन से देख रहा हूं, तुमने कभी भी दादी को

               प्यार नहीं किया, हमेशा इनसे नफरत करती रही, मेरे और दादी के रिस्तें में, आग में

                घी डालने का काम किया, हां मैं दादी से प्यारकरता हूं, वैसा नही, जैसा तुम समझती

                  हो, पर तुमने उस प्यार को बदनाम कर दिया, तो अब बदनाम ही सहि,

"पप्पू पूजा घर में जाता है, मां दुर्गा के पास से,सिंदूर उठाकर लाता है और अपनी दादी का मांग भर देता है, आज से हमारा यहि रिस्ता है"

गांव वाले देखते रह जाते है, मैंने सबके सामने इस रिस्तें को वहि नाम दिया, जो सब शक के निगाह में देखते थे, अब आप सब अपने-अपने घर जाओं,

 

                                                                                   -written by

                                                                                          Rita Gupta