"जान भी निछावर"

"जान भी निछावर"
'दीदी की शादी' की कुछ धुंधली सी यादें है, तब मैं 5 साल की थी, बहुत ही धूम-धाम से व्याह हुआ, उनकी उम्र लगभग 20 साल की होगी, विदाई के समय जितना वो रो रही थी, उन्हें रोते देख मैं भी उतना ही रोये जा रही थी,मैं भी, उनके साथ उनके ससुराल आयी थी, दो दिन बाद बड़े भैया जाकर मुझे ले आते है,
मैं अपने मम्मी-पापा की पाँचवी संतान हूं,1st दीदी, फिर तीन भैया और मैं, दादी मुझे भाग्यशाली मानती है, मम्मी मुझे तेतर बेटी ( तीन भाईयों के बाद जन्म हुआ) कहती है, प्यार से, मेरा नाम छुटकी ही रह गया, सबके लाड-प्यार से स्कूल नहीं जाती, कोई डाट कर यह समझाया भी नहीं कि स्कूल जाना और पढ़ना कितना जरूरी है, मेरे लिए भी अच्छा था, दिनभर, खेलों-खाओं और मस्त रहो, मुझे भी पढ़ाई की अहमियत नहीं था,
दीदी को ससुराल में अकेले मन नहीं लगता तो मुझे अपने साथ लेकर चली जाती, वहाँ उनके सास-ससुर भी मुझे बहुत प्यार करते, जीजा जी कभी कुछ पूछते तो मैं रोने लगती, मजाक तो दूर की बात है, मैं उनसे बात तक नहीं करती, वो मुझे रोते देख खुब हंसते और कहते...... क्या साली मिली हैं, कभी-कभी, भाभी के मायके भी चली जाती,
दिन बीतते गये,मैं खेलते-कूदते बड़ी हो रही थी, दीदी के शादी के 6-7 साल हो गये पर कोई बच्चा नहीं हुआ, जिसके कारण मेरे मम्मी-पापा बहुत परेशान रहते थे, डाक्टर और ओझा सब चल रहा था, दीदी का हंसता हुआ चेहरा, आंसुओं से नम रहने लगा, सालों इलाज चलने के बाद भी कोई लाभ नहीं, उनकी सास उन्हें हमारे यहाँ भेज दिया है कि अब इलाज का खर्च वो लोग नहीं उठा सकते,
उनकी सास का कहना है......10 साल तक इंतजार किया और इलाज चलाया, अब नहीं, मुझे अपने बेटे की दूसरी शादी करनी है,मैं येनहीं कहती कि तुम तालाक ले लो, मेरे बेटे के साथ रह सकती हो, मेरा भी मन करता है अपने पोता-पोती को गोद मे लेने का, उनके जुवान से दादी सुनने का, मेरा भी तो एकलौता बेटा है, वंश आगे कैसे बढ़ेगा,
दीदी मां के पास बहुत रोती है, मॉ भी क्या करे, दीदी कहती है....... वो दूसरी शादी करेगे, मेरी सौत आयेगी, उसके बाद वो मुझे वहाँ टिकने नहीं देगी, मेरी जिंदगी नरक बन जायेगी, मुझे ये सब दिन देखने के पहले मर जाना चाहिए, उनके साथ- साथ मां भी बहुत रोती है, मैं चुपचाप देखती रहती( उदास हो कर) सोचती कहाँ गई हमारे घर की खुशी,
गांव से पापा दादी को बुलाते है ताकि वो कुछ उपाय निकाल सके, वो पापा के साथ दीदी के ससुराल जाती है ताकि उसकी सास को समझा सके कि अपने बेटे के दूसरी शादी न करे, दीदी की जिंदगी बर्दवाद हो जायेगी, बच्चा' गोद ' भी लिया जा सकता है, जब दादी वहाँ से आती है तो ये समझ में नहीं आता कि वो समझाने गई थी या समझने गई थी, दूसरे दिन मम्मी से बोलती है.... छुटकी का व्याह, उसके जीजाजी से कर देते है, घर की बात घर में रह जायेगी, दोनों बहनें मिलकर रहेगी, मम्मी अवाक् रह जाती है, वो कहती है...... मुझमें हिम्मत नहीं कि 15 साल की नाबालिक छुटकी को ये बात बोलु, आप ही कुछ करो,
'एक दिन दादी मुझे अपने पास बुलाकर बैठाती है,
दादी.......... तेरे जीजाजी दूसरी शादी कर रहे है तुझे पता है,
मैं............. दीदी मां से बोल रही थी तो सुना,
दादी......... उसकी सौत उसे सतायेगी, पता नहीं उस बेचारी का क्या होगा, उसका भाग्य ही खराब है,
मैं.......... हां दादी, कोई क्या कर सकता है,
दादी.......... तू सब ठीक कर सकती है,
मैं........... मैं, वो कैसे,
दादी......... तू, जीजाजी से शादी कर लेगी तो सब ठीक हो जायेगा, दीदी का घर उजड़ने से बच जायेगा,
मैं............. ये नहीं हो सकता, वो मुझसे 25 साल बड़े है, दीदी की सौत मुझे नहीं बनना,
दादी........... दीदी की सौत तो आयेगी ही, तू शादी करेगी तो बहन रहेगी, सौत नहीं,
मैं.............. दादी तू मेरे तेतर होने पर हमेशा मुझे भाग्यशाली मानती थी, यहि मेरा भाग्य है, किसी की
दूसरी बीबी बनना, पापा के उम्र वाले जीजाजी से शादी करना, वाह! रे मेरा भाग्य,
दादी.......... सच में तू भाग्यशाली है, ये जिंदगी किसी के काम आये यहि तो भाग्य है, तेरे कारण दीदी का
घर बसा रहे, हमसब चिंता मुक्त रहे, खुद को निछावर कर सबको जीवन-दान देना कितनों
को आता है, तू मान जान मेरी बच्ची, अपनी दीदी के लिए,
मैं मान जाती हूं, मेरी शादी कोई खुशी की शादी नहीं थी, कुछ लोग दीदी के घर से आते है, कुछ हमारे यहाँ से मुझे अपने साथ मंदिर लेकर जाते है, मंदिर में ही साधारण रूप में शादी संम्पन होती है, वहि से विदाई होती है, मैं इतना रो रही थी कि मेरे साथ-साथ सब रो दिये, मैं अपने साथ दीदी को भी साथ लेकर ससुराल आती हूं, दीदी मुझको चुप कराते हुए खुद रोये जा रही थी,
छुट्टी लेकर आये हुए, जीजाजी 5 दिन तक गांव में रहते है, मैं एक दिन भी उनके कमरे में सोने नहीं गई, दीदी के सास के पास छिपकर सो जाती, दीदी को ही जीजाजी के साथ सोना पड़ता,5 दिन बाद जब वो शहर जाने लगे, उनकी मां कहती है........ इस नई दुल्हन (मुझे) को अपने साथ लेकर जा, ये यहाँ क्या करेगी, मैं शहर नहीं जाना चाह रही थी, उन्होंने मेरी एक ना सुनी, जबरजस्ती मेरा समान बांध जीजाजी के साथ भेज दिया,
शहर के भाड़े घर में मैं उनके साथ रहने लगी,(बकरे की मां, कब तक खैर मनाये) शादी हो गया है तो कब तक दूर-दूर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, शहर की शहरी भाषा, मेरी समझ के बाहर, बिल्कुल मन नहीं लग रहा था, दो महिनें बाद मेरी तबियत बहुत खराब होती है सिर चक्कर देता है, बहुत कमजोरी, डाक्टरी चेयकप से पता चलता है कि मैं मां बनने वाली हूं, ये खबर सुन जीजाजी को खुशी का ठिकाना नहीं रहा, वो मुझसे कहते है............ आज मैं बहुत खुश हूं तुम जो मांगोगी मैं दूंगा, मैं......... मुझे अपने मां के पास जाना है, जीजाजी....... ठीक है,मैं छुट्टी ले लेता हूं, दो दिन बाद हम गांव चलते है,
जब हम गांव पहुंचे, दोनों परिवारों को, मेरे 'मां' बनने की खुशी ने, उनके बीच के मनमुटाव को खत्म कर दिया, सब बहुत खुश, दीदी ने मेरा माथा( सिर) चुम लिया और कहा......तु यहि मेरे पास रह, मैं तेरी देख-भाल करूगी, मैनें कहा.........नहीं दीदी, मुझे मां के पास जाना दो, पापा आकर मुझे अपने साथ ले जाते है, जीजाजी 7 दिन की छुट्टी लेकर आये थे, वो 7 दिन अपने घर पर रहते है फिर शहर चले जाते है,
दो महीने बाद पता चलता है कि दीदी भी' मां ' बननेवाली है, ये कैसा चमत्कार है, दीदी और उनकी सास को खुशी का ठिकाना नहीं, उनकी सास कहती है....... तेरी बहन छुटकी भाग्यशाली है, उसके आने से तेरी कोख भी खुल गई, तुझे भी' मां ' बनने का सुख प्राप्त होने वाला है,ये क्या हो रहा है, मेरी समझ से बाहर था, इधर मेरी देखभाल मेरी मम्मी कर रही थी, उधर दीदी की सेवा उनकी सास कर रही थी, एक-एक दिन बितता है, मैं नौवें महिनें की गर्भवती, दीदी सातवें महिने की....................
एक दिन दीदी के पेट में जोरों का दर्द होता है, अस्पताल ले जाया जाता है, वहां डाक्टर का कहना है ......... बच्चें का जन्म सातवें महीनें में ही करना होगा, वर्ना मां के जान को खतरा है, जीजाजी शहर से आते है, दीदी ने सातवें महीने में ही बेटे को जन्म दिया, यह सुनकर मेरा दिल खुशी से बाग-बाग हो गया, अब दीदी का परिवार पूरा हो गया, 10 दिन बाद मैंने भी बेटे को जना, जीजाजी बहुत खुश, मैं मन में सोचती हूं, अच्छा हुआ 10 दिन का ही सही पर दीदी का बेटा इस घर का बड़ा संतान बना, दीदी को वो सम्मान मिला जिसकी वो हकदार है,
दोनों बच्चे बड़े होते है, दीदी के बच्चे को सेवा की ज्यादा जरूरत थी, इसलिए मुझे दीदी की सेवा के लिए उनकी सास बुला लेती है,मैं भी चली आती हूं, अपने ससुराल,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
धीरे-धीरे दिन, महीना में, और महीना साल में ,बदलते जाता है, लगभग 20 साल बीत जाते है, जो परिवार एक बच्चा के लिए रोता है, आज उस परिवार में छः बच्चे है, दीदी के दोबेटे और दो बेटी, मेरे एक बेटा और एक बेटी, मेरे बच्चे भी, दीदी के बच्चों के देखा-देखी, मुझे मौसी कहते है, मेरी सासुजी उन्हें समझाती कि, मैं उनकी मां हूं, मेरी दीदी उनकी बड़ी मौसी, वो जान तो गये कि मैं उनकी मां हूं, पर वो दीदी को मां और मुझे मौसी ही बोलते,
हम दोनों के बेटे की शादी एक ही साथ तक कि जाती है, लगमग 7 दिन आगे-पीछे, घर में दो नई बहु का आगमन, घर खुशियों से भर जाता है, दीदी ही घर की मालकिन है, किसे क्या देना-लेना है सब वो ही देखती है, मैं अधिकांश जीजाजी के साथ, पढ़ने वाले बच्चों को अपने साथ लिए शहर में रहती थी, सभी बच्चें बारी-बारी से शहर में रहकर शिक्षा ग्रहण कर रहे है, मेरी बेटी दीदी की बेटी से बड़ी है, उसकी शादी तय हो गई है,7दिन बाद शादी है, घर पर लगभग सारे मेहमान आ चुके है, छत पर कपड़ा सुखाने आई थी, सीड़ी से उतरते समय सिर चक्कर देता है और मैं गिर जाती हूं, जब मेरी आंखें खुलती है तो मैं खुद को अस्पताल में पाती हूं,
रक्त चढ़ाया जा रहा है, बाहर में खड़े, दूर से सब अपने-पराये देख रहे है, मेरी आंख खुलने पर डाक्टर और र्नस मेरे पास आते है
मैं बोलती हूं.......... दीदी को बुला दो,
डाक्टर कहते है...... हालत नाजुक है, किसी से बात नहीं करना,
मैं....... डाक्टर आप मुझे नहीं बचा सकते, मेरा दिल कह रहा है, जाते-जाते अपनों से बातें तो करके जाना
डॉक्टर...............(चुप-चाप चला जाता है नर्स मेरी दीदी को मेरे पास भेज देती)
दीदी.......... तुम कुछ मत बोलो, डाक्टर मना किया है
मैं............. दीदी,मैं हमेशा के लिए जा रही, मेरी बेटी का कन्यादान आप कर देना, ऐसे भी मैं तो मौसी हूं,
मां तो तुम्ही हो, जीजाजी, हमसे कोई गलती हुआ हो तो माफ करना,
जीजाजी........ तुमने मुझे, कभी भी अपना पति नहीं माना,
मैं............ आपको पति मानती तो मैं दीदी की सौत(सौतन) बन जाती, मैं तो अपनी दीदी की प्यारी सी
छुटकी हूं, क्यों दीदी मैं ठीक बोल रही हूं न
दीदी.............. तू मेरे लिए भगवान है, तुने मुझे जितनी खुशी दी है उसके लिए मैं सातों जनम तेरा ऋणी
रहूंगी, तू हमें छोड़कर नहीं जा सकती,
जीजाजी........... तुमने हमारे लिए, बहुत कुछ किया है,
मैं................मैंने जो कुछ किया, अपने लिए किया, दीदी की खुशी में मेरी खुशी छिपी है, दीदी मुझे बहुत
प्यार करती है, इस प्यार के लिए 'जान निछावर है'दीदी मुझे धुंधला दिख रहा है, लाइट
जला दो,मैं आप दोनों को देखना चाहती हूं, कोई बात नहीं बाद में देख लुगी, नींद आ रही है,
दीदी मैं सो जाँऊ, आप सब देख लेना,( ऐसी नींद जो कभी नहीं खुली )
'अमर जवानों' की 'पूर्ण तिथि' की तरह हर साल अपनी छुटकी को याद करने वाली दीदी से वार्तालाप के बाद यह 'सच्ची कहानी' आपके सामने 'छुटकी' की जुबानी के रूप में पेश किया है, उसकी दीदी चाहती है कि उसके छुटकी के त्याग कों हर इंसान सलाम करे, सच में कुछ लोगों का जन्म ही, दूसरों के लिए होता है, ऐसे लोग हमेंशा हमारे बीच रह जाते है,
Written by
Rita Gupta