अनुभव

अनुभव

अनुभव

मैने अनुभव किया है कि इधर की दुनियां उधर हो सकती है, लेकिन बहु को कभी भी बेटी का प्यार नहीं मिल सकता,  न तो सास कभी मां बन सकती है, इस सास-बहु के ताने-बाने में पूरे घर का महौल खराब हो जाता है,

                 बेचारा बेटा जो कि -बहु का पति है वो क्या करे मां को सहि बोलता है तो बहु नाराज, बहु को सहि बोले तो मां नाराज,मै बचपन से हर घर कि कहानी को देख रही हुं, हर आदमी परेशान है इस बुढ़े मां-बाप से और बुढ़ापे से, केवल समाज के डर से चुप है, मैं 2000 से सिलाई सिखा रही हुं, इन 14 सालों में सैकड़ों परिवारो से मिली हुं और उनके संघर्षमय जिंदगी कि कहानी सुनी है, अधिकांश पारिवार की एक ही समस्या थी, तीन पिढ़ीयो का विचार का कोई मेल नहीं है,

बुढ़े सास- ससुर जो कि 80 साल के हैं, पति- पत्नि जो कि 50 साल के है, बच्चे जो 20 साल के है 20 साल के बच्चों के साथ 80 साल के दादा-दादी का राय नहीं मिल पा रहा है,इन तीनों पीढ़ी में पिस रहा है, पति-पत्नि इनके के पास अपने लिए वक्त नही है,कल-आज-,कल में आज नष्ट हो रहा है,

अगर बुढ़े मां-बाप अपनी इच्छा से वृद्धा आश्रम मे जा कर रहे तो घर का महौल में सुधार आ जायेगा, दो पीढ़ी एक साथ आराम से रह पायेगी, मां-बाप जो हमेशा बच्चो के खुसी के लिए ही जिया है, आज इस बुढ़ापे के कारण  बच्चो के  लिए बोझ क्यो बने,

इतिहास गवाह है,75 साल के उम्र के बाद लोग वनप्रास'' सन्यास'' जीवन यापन करते थे,

मेरे ख्याल से इस संसार के मोह माया से दूर भगवान की भक्ति में अपने बुढ़ापे को बिता दे तो अच्छा होगा,

मै खुद 44 साल कि हूं, मेरी यह सोच अपने सास-ससुर के लिए नही बल्कि अपने लिए हैै, मै नही चाहती कि मै खुद कभी भी अपने बच्चों के लिए बोझ बनु, मेरा ख़ुद से वादा है कि जब मै 65 साल कि हो जाऊगी तो बाकि उम्र वृद्धा आश्रम मे बताऊगी,

दूरी से प्यार बढ़ता हैैै, बच्चों का दिल करेगा तो मिलने आ जाया करेगे उन्हें अपनी जिन्दगी अपने अनुसार जीने का हक हैैं मै खुद चाहते है कि उनका सब कुछ उनके बच्चो के लिए हो, इसलिए मै '' वृद्धा आश्रम '' का समर्थन करती हूं,