"परंपरा" बोझ क्यों बन गई

"परंपरा" बोझ क्यों बन गई
जैसे-जैसे मानव सभ्यता का विकास हुआ, तो समाज का निर्माण हुआ, समाज को अनुशासन में रखने के लिए, समाज के ठेकेदारों ने अनेको परंपरा का निर्माण किया, कुछ तो सही और जरूरी थी, पर कुछ परंपरा पुरुष प्रधान समाज ने अपने भोग-विलास को ध्यान में रखते हुए बनाया,
नाम के लिए, हमारा देश मातृ प्रधान देश माना जाता है, जहाँ स्त्रियॉ भोग-विलास की समाग्री बनी रही, वहाँ स्त्री का एक रूप 'माता' कैसे पूज्यनिय हो सकती है, युगों से पुरुष, स्त्री पर भारी पड़ा है, वह पापा, पति, भाई और बेटा हर रूप में, स्त्री पर शासन करता आया है, उनके आजादी और सोच पर अंकुश लगा हुआ है,
67 साल हो गये आजादी मिले हुए, आज भी स्त्रियों को अपनी जिंदगी जिने और अपने लिए निर्णय लेने की आजादी नही है, परंपरा समाजिक विकास के लिए होनी चाहिए, भारतीय परंपरा की सही समझ के लिए, इसके तह तक जाने कि जरूरत है, इंसानों द्वारा बनायी गई है, त्रुटि हो ही सकती है, सुधार कि जरूरत पर सुधार जरूरी है,
"एक ऐसी परंपरा जो देश आजाद होने के पहले से औरतों के लिए श्राप थी और आज भी ये परंपरा चल रही हैं सिर्फ रूप बदल गया है, देवदासी बनना या बनाये जाना "
मंदिरों में देवी-देवताओं की, सेवा, देखभाल और सफाई करने के लिए सुन्दर कुवांरी कन्याओं को प्रत्यों साहित किया जाता था, कि ये जीवन तो नश्वर है, संसार मोह-माया का जाल है, खुद को देव (प्रभु ) की सेवा में लगा दो, प्रभु तुम्हारी सारी मनों-कामनाये पूरी करेंगे, इस प्रकार उनका (mind wash) किया जाता था कि उन्हें समाज के ठेकेदारों और पंडितों कि बातें सही लगती थी, वो देवदासी बन जाती,
आश्चर्य की बात तो यह है कि, बिन ब्याही,( देवदासी),कुवारी माँ, भी बनती थी, ऐसी अनैतिक कामो के लिए उन्हें सम्मान की नजर से देखा जाता था, कितने शर्म की बात है कि समाज के ठेकेदार अपने कुकर्म में प्रभु (देव) के नाम को बदनाम करते थे, होने वाला बच्चा, किस पुरुष का है यह तक नहीं पता, देवदासी को कितनों को खुश करने पर मजबूर किया जाता होगा, यह तो उसे ही पता होगा, मुंह पर ताला लगा, मंदिर की सेवा मेें लगे रहो, देवदासी का होने बच्चा, देव की तरफ से मिला हुआ उपहार माना जाता था,
पहले की जनता को अज्ञानता ने इस तरह घेर रखा था, उन्हें भी यही लगता कि देवदासी का होने वाला बच्चा देव (प्रभु) का है, क्या आज की जनता भी अज्ञानता में घिरी है, क्या इन्हें नहीं पता कि, पति ( लड़का) और पत्नी (लड़की) के मिलन के बिना, बच्चे का जन्म असंभव है, मुझे तो लगता है कि आज भी बहुत सारे लोग (अज्ञान) में है, अगर अज्ञानी नहीं होते तो, बच्चे के सुख को पाने के लिए, किसी ' बाबा' के बाबागिरी और ' ओझा 'के ओझाई पर विश्वास नहीं करते,
जहाँ विज्ञान की खोज चरम सीमा पर है,(Test tube baby) का जन्म हो रहा है, वहाँ आज भी बाबा की बाबागिरी भी चरम सीमा पर है, बच्चा पाने की चाह में दंपती कि लाइन लगी होती है, समाज जाग रहा है या सो रहा है,
समाज की परंपरा ऐसी है कि एक स्त्री 'माँ' बने बिना अधूरी मानी जाती है, कोई शुभ कार्य, उसके द्वारा सम्पंन नहीं कराया जाता, मां बनने की चाह, स्त्रियों को गलत राह पर ले जाकर खड़ा कर दिया है, किसी दंपती को बच्चें का सुख न मिलने के अनेकों शारिरिक और मानसिक कारण हो सकते है, इसमें किसी एक को दोषी नहीं मान सकते,
शादी के 2 साल बाद, अगर बच्चे का सुख प्राप्त नहीं होता, वो दंपती डाक्टर के पास जाते है, उस वक्त लड़की वाले प्रार्थना करते है......... हे भगवान, मेरी बेटी में कोई कमी न हो, नहीं तो दामाद दुसरी शादी कर लेगा, लड़के वाले प्रार्थना करते है......... हे भगवान, हमारे बेटे में कोई कमी न हो, दादा-दादी बनने के लिए, उसकी दुसरी शादी कर सके, दंपती क्या सोचते होगे, आप खुद सोच ले,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ऐसी ही परंपरा का शिकार, एक दंपती की, आंखों देखी घटना.......................
एक दंपती के शादी को 15 साल बित गये, पर बच्चे का सुख नहीं मिला, डाक्टरी चेकप हुआ, पूजा-पाठ, दान-दक्षिणा, कोई काम नहीं आया, पति-पत्नी ,एक-दुसरे को समझा चुके थे कि उनके बगियॉ में कोई फूल नहीं खिलेगा, पर समाज और ससुरालवालों की, कठोर नजरों का सामना करते-करते पत्नी मानसिक रूप से, फिर शारिरिक रूप से बिमार पड़ जाती है, अंत में भगवान को प्यारी हो जाती है,
एक साल बाद पति ने दूसरी शादी कर ली, पर बच्चा का सुख नसीब नहीं होता है, अब दोनों के घरवाले परेशान, जो जहाँ बोले ये दंपती चलने को तैयार, डाक्टरी और ओझाई दोनों साथ-साथ चल रहा था, इसी चेष्टा में 5 साल बीत जाते है, एक दिन किसी से सुनने मिलता है कि.......... एक ओझा है जो काली मां का भक्त है, उसके दरवार से कोई खाली हाथ नहीं लौटा,
पति-पत्नी, दोनों उससे मिलने जाते है, सुबह के गये हुये, लम्बी लाइन के बाद, बोझा का दर्शन कर पाते है, ओझा उन्हें ध्यान से देखने के बाद कहता है..............तुम लोग देर कर चुके हो, तुम्हारी पत्नी पर, उसकी सौत (पहली पत्नी) की कुछाया है, देर होगा, खर्च बहुत होगा, पर तुम मां बन सकती हो, पति............... आप खर्च की चिंता न करे, हमे बच्चा चाहिये, ओझा............. खर्च 20-25 हजार रूपये का होगा, और आपको वादा करना होगा, जब से मेरी दवा चलेगी और जब तक बच्चा नहीं हो जाता, आप डाक्टर के पास नही जायेगे, वर्ना कोई भी गड़बड़ी होगी तो मैं जिम्मेवार नहीं हूं, मुझे काली मां को खुश करने के अलावा, आपकी पहली पत्नी की कुछाया से भी बच्चे को बचाना है, दंपती......... हम वादा करते है, हम डाक्टर के पास नहीं जायेगे,
ओझा अपनी ओझाई शुरू करता है, तरह-तरह की जड़ी-बुड़ी खाने को देता है, एक से एक नियम बताया है, बेचारी पत्नी मां बनने के लिए, जहर के समान तीखा जड़ी-बुड़ी पीती है, कुछ महीने बाद, पता नहीं कौन सा चमत्कार होता है, वो मां बनने वाली होती है, वह अपने चेहरे के खुशी को पूरे मोहल्ले और रिस्तेदारो को दिखाती है,
धीरे-धीरे दिन बीतते है, छः महीने की गर्भवती रूप को धारण किये, इस तरह सबसे मिलती, मानो वह अपना मां बनने का आई-कार्ड (I.D) दिखा रही हो, सब औरतों से अपने अहसासों और भावनाओं को सुनाती, उसकी चेहरे की खुशी ये बया कर रही थी, कि उसे सब मिल गया अब कुछ नहीं चाहिए, कुछ दिनों बाद, वो नौवा महीना आ गया, जिसका इंतजार सिर्फ उसे ही नहीं, उसे जानने वाले लोगों को भी था, अब नया मेहमान ( शिशु ) किसी दिन भी आ सकता है,
आंखों में हजारों सपने लिए, दंपती होने वाले बच्चे का इंतजार कर रहे है, पूरा महीना बीत गया, पत्नी मां बनने की पीड़ा को अनुभव का इंतजार करती रही, वह डाक्टर के पास भी नहीं जा पा रहे है, उसी हालत में शहर से दूर, ओझा के पास दंपती जाते हैं, वहाँ घंटो इंतजार के बाद ओझा उन्हें देखते ही चिल्लाता है............. आखिर वही हुआ जिसका डर था, सौत ने अपना काम कर दिया, बच्चे को पेट में ही मार दिया, काली मां ने बच्चा देकर अनहोनी को होनी कर दिया, पर सौत ने बदला ले लिया,
पति........ बाबा,अब क्या होगा,
ओझा......... किसी तरह तुम्हारी पत्नी को बचाना होगा, बच्चा तो गया, तुम चिंता मत करो, मैं दवा देता
हुआ, सब ठिक हो जायेगा, डाक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं,
दोनों अपनी किस्मत को कोसते हुए आंखों में आंसू लिये, घर लौट आते है, कानो-कानो ये खबर सबको मिल गई, जो उनसे मिलना चाहते जाकर सब्र बंधाये और आंसू पोछते, मेरी सासुजी उस महिला से मिली, उन्होंने मुझे बताया कि, उसके आंसू नहीं रुक रहे थे,
नौ महीने का तैयार गर्भ से बच्चे का गायब हो जाना, मेरी समझ से बाहर
कुछ दिन बाद अपनी सहेली से मिली, जो कि डॉक्टर है, मैंने उसे सारी बातें बताई और पूछा ऐसा कैसे हो सकता है, कि बच्चा गर्भ से गायब..............
वो हंसने लगी और बोली........ एक-से-एक जड़ी बुड़ी है, जिसके सेवन से वो सब लक्षण देखे जायेगे, जो मां बनने पर होते है, गर्भ भी उसी आकार को ग्रहण कर लेता है, जब उनका सेवन रोक दिया जाता है तो सबकुछ पहले जैसा हो जाता है, इसका दुष्परिणाम यह होता कि सेवन करने वाले के शरीर में खून की कमी आ जाती है, वह मानसिक और शारिरिक रूप से बीमार हो जाता है,ओझा ने उस महिला के साथ वही किया, इस युग में भी ओझा की ओझाई का बोल-बाला है,
Written by
Rita Gupta