'भाभी' बनी दुल्हन

'भाभी' बनी दुल्हन

“आंखों से जब, आंसुओं की जल-धारा निकलती है, तो गालों को छुती हुई, ओंठों तक पहुंचती है, तब हमे उन्हें पीना आ जाता है, जब धारा तेज होती है और पीने की क्षमता से बाहर होती है, तो टप-टप करके. धरा पर गिरती हुए, इतनी कष्टदायी होती है कि' धरती माता ' तक का सीना चीर देती है”

'सीता जी 'जो राजा जनक की बेटी, राजा दशरथ की बहु, श्री राम जी की भार्या, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की' भाभी मां 'होते हुए, उन्होंने जितने रोये है, भगवान न करे, कभी किसी को उतना रोना पड़े,

लेकिन उनकी स्थिति से यह शिक्षा जरूर मिलती है कि नारी और आंसू का गहरा संबध है,

सिन्हा जी के दो बेटे और एक बेटी है, उनके बेटे चाहते है कि पहले बहन की शादी कर देगे फिर अपने बारे मे सोचेगे, रीमा 18 साल की हो गई है, सिन्हा जी हैसियत से बढ़कर अच्छे और नौकरी वाले लड़के के साथ अपनी बेटी की शादी तय करते है, शादी बड़ी धूम-धाम से कि जाती है,

रीमा के ससुराल में किसी प्रकार की कोई कमी नही है, एक साल रीमा को मां बनने का सौभाग्य प्राप्त होता है, वह मायके में है, बच्चा अभी बहुत छोटा है इसलिए जब बच्चा छः महिने का हो जायेगा, तब वह ससुराल जायेगी, बच्चे को देखने उसके दादा-दादी, पापा और चाचा आते है, बच्चे ने दोनों परिवारों को और करीब ला दिया,

होनी को कुछ और मंजूर था, उनकी खुशियां ज़्यादा दिनों कि नही थी,एक मामुली सा पेट दर्द शुरू होता है, कोई कुछ समझ पाता उससे पहले ही अपेंडिस( पितासय) फट जाता है और जिंदगी मौत में बदल जाती है, रीमा जो दो महिनें पहले अपने बेटे को पाकर खुद को खुशनसीब समझ रही थी, आज पति को खोकर बदनसीब में गिनी जा रही है, इतना बड़ा दुःख, उसे हमेशा के लिए खामोशी देकर और उसकी हंसी लेकर चला जाता है,

चार महीनें बाद जब रीमा का बच्चा जब छह महीनें का होता है, बच्चे के नाना, उसके दादा से, मिलने जाते और उनसे कहते है कि बच्चे को घर बुलाकर रश्म को पूरा कर दे, ताकी आना-जाना शुरू हो सके,

रीमा की सास......... अब वो वही रहे, जब मेरा बेटा ही नही रहा, तो बहु और पोते का मैं क्या करूगी, उसे

                               यहां आने कि जरूरत नही,

ऐसी बाते सुनकर रीमा के घरवाले बहुत दुःखी होते है,20 साल की रीमा विधवा के वेश में, उसकी मां उसे फिर से आगे कि पढ़ाई के लिए कालेज में नाम लिखा देती है, वह इतनी व्यस्त हो जाय ताकि गम को भूल जाय, खुद बच्चे कि नानी और मम्मी के फर्ज में व्यस्त.हो जाती है, बेटी का श्रृंगार उतरने के बाद उसकी मां ने अपने' पायल ' खोलकर रख दिये सिंदूर भी छिपाकर जरा सा लगाती थी, यानि खुद को भी साधारण वेश में कर लिया,

दिन बितता है,4 साल बाद रीमा B.A पास कर लेती है, उसके पापा, उसके ससुर से मिलने जाते है, साथ में उनके पोते को ले जाते है,4 साल का मोहित बिलकुल अपने पापा पर गया है, उसके दादा-दादी उसे गले लगा लेते है, मोहित अपने चाचा से मिलता है, फिर से आना-जाना शुरू हो जाता है, एक साल बाद, जब मोहित का दाखिला स्कूल में कराया जाता है तो फार्म में पापा के नाम का स्थान खाली रह जाता है, वह हमेशा सबसे एक ही सवाल करता, मेरे पापा कहां है   ?

बहुत हिम्मत जुड़ कर एक बार…………………………….

रीमा के पापा....... समधी जी, आपसे प्रार्थना है कि रीमा को अपना ले,

रीमा के ससुर..........मैं समझा नही, यहां आयेगी तो और उदास रहेगी,

रीमा के पापा....... समधी जी, मैं चाहता हूं, उसकी शादी आप अपने छोटे बेटे(आकाश) से कर लेते,

रीमा के ससुर..........मैं कैसे बोलु, आकाश की राय क्या है,

रीमा की सास...........मुझे मंजूर नहीं, आपने सोचा कैसे कि मैं फिर से उसे बहू बनाऊंगी,

रीमा के पापा....... समधी जी,मोहित को अपने दादा-दादी और परिवार का सुख मिलेगा,

देवर(आकाश)........ मैने भाभी को, ऐसी नजरो से कभी नही देखा,मैं उनका सम्मान करता हूं,उन्हें शादी

                           करनी है तो किसी से भी कर सकती है, मै भाभी को अपनी दुल्हन के रूप में नही देख

                            सकता,

रीमा के दोनों भाई, अपनी बहन को इस रूप में देखते है तो अपनी शादी को टालते रहते है, बहन के दुःख में अपनी खुशी नहीं मनाते, धीरे-धीरे दिन बितते है मोहित 10 साल का हो जाता है, रीमा दुसरी शादी नही की,

उधर आकाश की शादी के लिए, उसकी मम्मी लड़की पसंद करती है, पर वह खुश नही है, मन के मंथन में क्या करे, क्या ना करे...? वह सोचता है........ मैं कितना स्वार्थी हूं, मेरे बड़े भैया का बेटा, अपने पापा के प्यार के लिए तरसता रहा और मैं चुपचाप देखता रहा, मुझे किसी-न-किसी से तो शादी करनी ही है, अगर मैं भाभी से शादी कर, उनके जीवन में फिर से खुशीला सकू और अपने भतिजे को पापा का प्यार दे सकू तो मेरा ये जीवन सार्थक हो जाये,

आकाश अपनी मां से कहता है कि वह रीमा भाभी से ही शादी करेगा, मां पहले नाराज होती है पर वह मना लेता है, फिर से रीमा के जिंदगी में आकाश के रूप में खुशियां और प्यार लौटकर आने वाला है, शादी मंदिर में होने वाली है,

रीमा को दुल्हन के वेश में उसकी सहेलियां सजाती है, उसे जब पायल पहनाती है तो वह उन्हें रोककर अपनी मां के पास आती है,.....................

रीमा.......... मां आपके बक्से की चाबी कहां है

मां...........लो, क्या चाहिये,

रीमा......... आप दो,(मां का पायल निकालकर लाती है) लो मां, पहले आप पहनों,

मां..............क्यो ?

रीमा..........मुझे याद है, आपके पायल की छम-छम से, मेरे गम हरे ना हो जाय, इसलिए आपने इनका

               त्याग किया, सिंदूर भी नाम के लिए जरा सा लगाती, ताकी उसकी लाली, मुझे उनकी याद ना

               दिलाये,आज आपकी तपस्या के कारण, मैं फिर से दुल्हन बन रही हूं, आप अपना श्रृगांर करे

                तब मैं करूगी,

मां.............. बेटी तुम्हे नही पता, मां अपनी बेटी को 'विधवा 'के वेश में देखकर जिंदा लाश बनकर जीने

                 को मजबूर होती है, भगवान तुम्हारी झोली मे सारी खुशियां भर दे, मां-बाप तो बच्चों को

                  खुश देखकर ही जीते है

       

                                                                                           Written by

                                                                                               Rita Gupta