इतनी 'लापरवाही' ठिक नही

इतनी 'लापरवाही' ठिक नही

बच्चें भगवान की तरफ से दिये गये ' उपहार 'है, ये उपहार उन्हें ही मिलती है, जिन पर इनकी कृपा होती है, या जो इनके उपहार कि कद्र करता है,

हमें उतने ही उपहार स्वीकार करनी चाहिए, जितनी कि हम कद्र कर सकते है, या रक्षा कर सकते है, यानि जिम्मेवारी उठा सकते है, जब हम दो है (पति-पत्नी ) तो एक-एक कि जिम्मेवारी से ज्यादा, हमे उपहार नही लेनी चाहिए,

"हम दो, हमारे दो" सिर्फ एक नारा नहीं है, यह वो सच्चाई है, जिसे हम आज भी पूरी तरह से स्वीकार नही कर पाये है, इस युग के नवयुवक और नवयुवती भी न जाने किस ,लाचारी या शौक से 3-4 बच्चों के मम्मी-पापा बन रहे है, जब कि इस युग मे दो बच्चों से ज्यादा कि जिम्मेवारी उठाना, मुश्किल है,

"पड़ोस मे हुए एक घटना ने, मेरी आंखें खोल दी, उसी समय मैंने खुद से वादा किया कि" हम दो हमारे दो " के सिद्धांत को मानुगी, वो घटना समाज को बताना चाहती हूं ताकि 'जब जागो तब सबेरा "

एक परिवार मे मम्मी-पापा और4 बच्चें थे, सबसे बड़ी बेटी12 साल की, बेटा10 साल का, फिर बेटी7 साल की, फिर बेटा4 साल का, ये हमारे पड़ोसी थे, चारों बच्चो को संभालना अकेली मम्मी के लिए बहुत मुश्किल होता, पापा को रूपये कि जरूरत मे दिन-रात घर से बाहर काम करना पड़ता,

उनके एक दो बच्चे दिनभर हमारे यहां खेलते, किसी कि भी पढ़ाई ठिक से नही होती थी,बच्चें ही बच्चों को पाल रहे थे,12 साथ की सीमा, दिनभर अपने 4 साल के भाई को गोंद मे लेकर बाहर घुमती, ताकि उसकी मम्मी खाना बना सके,

हमारी मां एक दिन सीमा की मां से पूछा...... तुमने ऐसी भूल क्यों कि, भगवान ने पहले एक बेटी फिर एक बेटा दे दिये थे, फिर दो बच्चें क्यो होने दिये, सीमा कि मम्मी.....मैं नही चाहती थी, मेरी सासुजी का कहना था, कि एक बेटे को बेटा नही कहते, इसिलए एक बेटा और होना चाहिए, पति ने भी अपनी मां के हां मे हां मिलाया और आज ये हाल है,

                                        " बच्चें किसी भी तरह बड़े हो रहे थे "

दुर्गापूजा का दिन..............

मम्मी-पापा बच्चों को पूजा घुमाने ले जा रहे थे, सभी बच्चें तैयार किये जा रहे थे, सीमा अपनी सहेलियों के साथ जाना चाह रही थी, अकसर वो सहेलियों के साथ, बाजार जाया करती है, इस बार पापा घर मे है, उनसे पूछो,मैं नही जानती, सीमा बोली.....पापा को आप बता देना,

शाम को 7 बजें है, अचानक उसकी मम्मी को याद आता है कि धोये हुए सारे कपड़े, अब तक छत पर पड़े है, वो सीमा को बोलती है....... हो सकें तो कपड़ा छत से ला देती, सीमा.....मैं नही लाऊंगी, मां......ठिक है, रहने दो,

सीमा को पता नही क्या सुझा, कि वो छत पर कपड़ा लाने चली गई, जब वो छत से उतर रही थी,तब सारे कपड़ो में लिपटी सीमा का पैर लड़खड़या और वो कपड़ों के साथ, सीटी के पास वाले कुंए में गिर जाती है, पूजा-पाठ के शोर-गुल मे, किसी को उसकी,बचाओं कि आवाज भी सुनाई नही दी,

जब सब तैयार हो जाते है,तब घर से निकलते समय वो सीमा को पुकारते है, कही से कोई आवाज नही आने पर उसके पापा गुस्सातें है कि वो कहां गई, सीमा की मम्मी बोलती है...... लगता है वो अपनी सहेलियों के साथ चली गई, मैने मना किया, पर नहीं मानी,

मम्मी-पापा बाकी तीन बच्चों के साथ घुमने चले जाते है, जब रात को 10 बजे घर आते है, पैर-हाथ धोने के लिए कुंए से पानी निकालते है, तो बाल्टी मे कपड़ा आता है, मम्मी....ये कपड़ा कुंए मे कैसे चला गया, सुबह ही तो धोया था, वो फिर से  बाल्टी डालती है, तो एक और कपड़ा, वो डर जाती है, लाइट मारकर कुंए मे देखते है, तो चोरो ओर कपड़ा-ही- कपड़ा और सीमा........

"शाम 7 बजें की, कुंए मे गिरी सीमा, रात 10 बजें घरवालों को दिखती है, उसे बाहर निकाला जाता है, मां-बाप के लापरवाही के कारण, एक हंसती-खेलती सीमा लाश बन गई"

                                                           - Written by

                                                                    Rita Gupta