" तुम हो " तो " मैं हूँं "

" तुम हो " तो " मैं हूँं "

" बद अच्छा, बदनाम बुरा " मैं, आज भी वो दिन नहीं भूल सकती, जब तुमने पहली बार मुझें होठों से लगाया था,बचपन को छोड़, जवानी में पहला कदम रखा था तुमने,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

अपने मम्मी-पापा के इच्छा को नाकारते हुए, अपने जिद्द पर अड़े रहे, तुम्हारे आगे उन्हें ही झुकना पड़ा, अपना 18वां जन्मदिन अपने दोस्तों के साथ, होटल में रखी,तुम अपने साथ खेलने और पढ़नेवाले दोस्तों को आमंत्रित किया और तुम्हारे कुछ दोस्त मुझे भी अपने साथ लेकर आये थे, पर तुम मुझ से अनजान थे, मैं भी तुम्हारी पार्टी में हूं, ये तुम्हें नहीं पता,

सच में उस दिन किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहे थे, सभी की निगाहें तुम्हीं पर और तुम्हारी निगाहें...... मत पूछों, मैं नहीं बोल पाऊंगी, किसी और को चूमने के लिए, तुम्हें मेरी जरूरत पड़ी, मेरा ही सहारा लेकर आज मुझे ही बदनाम कर रहे हो, ऐसे तुम ही नहीं, सभी मुझे ही गलत समझते है, सच पूछों तो मेरा कोई कसूर नहीं, तुम सब मेरे बिना रह भी नहीं सकते, मुझे दोष देना तो तुम्हारी आदत बन गई है, मैं खामोश इसलिए रहती हूं क्योंकि मेरा जन्म ही तुम्हारे लिए हुआ है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

मैंने तुम्हारा साथ कब नहीं दिया, मेरे सहारे कि जरूरत तुम्हें, जन्म से लेकर मरण तक, खुशी से लेकर गम तक, पार्टी से लेकर अकेलेपन में, यहां तक कि तुम्हारे आत्मविश्वास को मजबूत होने के लिए भी, मेरी  उपस्थिति चाहिए,याद करो उस दिन को जब तुम्हारे दोस्तों ने तुम्हें प्ररित करने के लिए क्या कहा था,,,,,,,,,,,,,,,,,"  तुम डरपोक हो, जब अंगूर की बेटी को होठों से नहीं लगा सकता तो मिश्रा जी की बेटी को क्या चूम पाओगे, ऐ तेरे वश का काम नहीं”

तुम्हारे दोस्तों ने मुझे "अंगूर की बेटी" के नाम से सम्मानित किया, ऐसे तो मेरे अनेकों नाम है.... सोमरस, मदिरा, सुरा, शराब, रम, विस्की, चूलईया, महुआ, ब्राड़ी, जीन, बीयर, हड़िया, इत्यादि, तुम मुझे चाहे जिस नाम से पुकारों, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, तुमने मेरा सहारा लिया और मैं पूरी वफादारी के साथ, तुम्हारा साथ दिया,

तुम्हारा भी साथ दिया था ना, तुम मुझे होठों से लगाने के बाद खुद को हिरों समझने लगे और भरी महफिल में अपने सब दोस्तों के सामने अपनी हिरोइन का हाथ चूम लिए, महफिल में संनाटा छा गया, सबकी नजरें मिश्राजी की बेटी की ओर, जैसे ही तुम्हारी हिरोइन शर्म से आंखें नीचे कर मुस्करा दी, फिर से सब ठिक हो गया, तुम्हारे दोस्त भी मान गये कि तुम बच्चा नहीं रहे, जवान हो गये हो, उस दिन तुम जितने खुश थे, उतनी खुशी क्या तुम्हें पहले कभी मिली थी,मम्मी-पापा भी चिंतित हो गये कि बेटा जवान हो गया, जवानी के प्रमाणपत्र में भी मेरी जरूरत,

अपने पड़ोसी शर्मा जी को लो,बेचारा अपने परिवार को 'कोल्हू के बैल' की तरह खीचे जा रहे हैं, उनकी पत्नी का क्या कहना, उसे तो हरियाली सुझा रहती है, रोज एक नये फरमाईश के साथ उनके घर आने का इंतजार करती है, इस महंगाई के जमाने में बड़ी मुश्किल से घर चलता है, ऐसे में उसे गहने पहनने का शौक, दिन-भर का थका-हारा पति घर आये, उसका ख्याल करे, उसकी जरूरते जाने वो तो, उसे आता  ही नहीं,

घर और बाहर के तनावपूर्ण माहौल से उनका रक्तचाप बढ़ जाता है, तब वो आते हैं मेरे पास, मुझे होंठों से लगाने के बाद उन्हें सकून मिलता है, इसमें क्या मैं कसूरवार हूं, " मैं " उनकी अब आदत बन गई हूं, दो घूंट लेते और चैन से सोते हैं,अब तो वो मेरे बिना नहीं रह सकते, लगता है मैं उनकी जीवनसंगनीं बन गई हूं, सोते-जागते मेरे ही आहोश में रहते हैं, खुश होते हैं तो मुझें अपने दोस्तों के साथ साझा करते हैं, दुःखी होते हैं तो बंद कमरे में मेरे साथ अपना अकेलापन साझा करते हैं,

तुम्हारे 18 साल के उम्र से लेकर 58 साल के उम्र तक, मैंने तुम्हारा साथ दिया, इतना साथ तो अपने भी नहीं देते, मैंने कभी नहीं चाहा कि तुम्हारा नुकशान हो, तुम्हारे अति ने तुम्हारा नुकनाश किया, अति तो अमृत कों भी जहर बना दे, तुम्हारे खुशी, चिंता, क्रोध, अवसाद, सब कुछ झेली मैं, आज जब एक किडनी क्षतिग्रस्थ हो गई तो मुझे गाली देते हो " साली शराब बहुत खराब हैं "

दिल ने दर्द को महसूस किया
उसने खुद को हमसे दूर किया

हम ही आवारा निकले
उनको खिलौना समझे

शीशा था दिल उनका
फैंक के पत्थर खून किया••

वो दिन भूल गये, मूठ बनाने के लिए घुट पर घूंट लगाते और शायरी करते, दोस्तों के वाह-वाह का आनंद लेते,उस वक्त तो मैं बहुत प्यारी लगती थी, आज इतनी नफरत, दोस्त मैं खराब कभी नहीं थी, मेरा जन्म भी तुम इंसानों ने अपने खुशी के लिए किया, पाषण-युग से आप सब का साथ देते आई हूं, उस वक्त लोग मुझें ' सोमरस ' के नाम से जानते थे, जैसे-जैसे, जिस-जिस के हाथ में गई, जिन्होनें मुझे जैसा महसूस किया, वैसा नाम दिया,मेरे नाम बदलते गये पर मेरा काम वही हैं, लोगों को अपनी आहोश में रखना, मुझे पाकर लोग खुद को समझदार और हिम्मत वाला समझते हैं,

" मैं मानती हूं कि मैं नशीली हूं, मेरा नशीलापन लोगों को मेरी ओर खीच लाता है, पर मुझे से ज्यादा नशा देने वाले और भी तत्व है, यहां कौन नही है नशे में, किसी को दौलत का नशा तो किसी को जवानी का नशा, किसी को हैसियत का नशा तो किसी को खुबसूरती का नशा, मेरे सेवन से नशा चढ़ता है इन्हें तो देखने मात्र से नशा चढ़ता है, मेरे नशे से लोग सिर्फ अपना नुकशान करते है जबकि इनके नशे की लत से तो समाज और परिवार र्बबाद हो जाता है "

मेरे दो घुट तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती, अब पूरी की पूरी बोतल पी जाओ तो कोई क्या करे, शुद्ध घी भी बोतल के बोतल सेवन करोगे तो वह जहर का काम करेगा, अति किसी भी चीज की अच्छी नहीं, तुम्हें जिस दिन भी लगे कि मेरी जरूरत नहीं, मेरा परित्याग कर देना मैं बुरा नहीं मानूंगी,

                     " तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हो पचास हजार "