ये मैंने क्या किया,

ये मैंने क्या किया,

जब इंसान किसी के भलाई के लिए कुछ करता है तो जरूरी नहीं कि उसके द्वारा किये गये कार्य से, जिसकी भलाई चाह रहा है उसका भला हो ही,कभी-कभी हमारे द्वारा कुछ ऐसा कार्य भी हो जाया करता है जिसकी हमने कल्पना भी नहीं कि थी,

" अनजाने में हुई एक भूल को आपके सामने कहानी का रूप देने कि कोशिश…………………”

मैं 20-22 साल से सिलाई सिखा रही हूं, इस दौरान बहुत से लड़कियों और महिलाओं से मुलाकात होता रहा, मेरे हिसाब से हर इंसान एक बंद किताब है, हर किताब ना सहि पर कुछ किताबें इंसान को अपनी ओर आकर्षित करती है, इंसान भी जानता चाहता है उस किताब की कहानी,

किसी के दिल तक पहुंचना, कोई आसान काम नहीं, अपने दिल की बातें, हम तब किसी से कहते है जब उसे दिल के करीब पाते है,मेरे पढ़ने के शौक ने मुझे हमेशा मजबूर किया, मैं दिल के हाथों मजबूर हो, लोगों को पढ़ने के लिए, उनके दिल के करीब पहुंच जाती हूं, उसे पढ़ने के बाद आंसू के सिवा कुछ हासिल नहीं होता, हर इंसान ऊपर से जितना खुश दिखता है या दिखाता है, दरअसल वो उतना ही दुःखी होता है, आंसू पीकर हंसना सिख चुका है,

एक साल पहले की बात है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

एक 17-18 साल की नई दुल्हन को उसकी सासू जी, मेरे पास सिलाई सिखने के लिए, लेकर आती है, जिसका दो साल का बेटा है जो अपने दादी के पास दो घंटा रह लेगा, तब-तक वो मेरे पास सिलाई सिख लेगी, दुल्हन इतनी प्यारी कि देखों तो नजर ना हटे, इतनी भोली की संसारिक नौ-छौ से अंजान, प्यारी सी आंखे जिज्ञासापूर्ण पर खामोश, मानो कुछ जानना ही नहीं चाहती हो, जुबा खोलती भी तो सिर्फ हल्की सी मुस्कराहट के लिए,भोला सा चेहरा, सारे चिंताओ से दूर महसूस हो रहा था, इस युग में भी शिक्षा से वंचित है, इतनी कम उम्र में शादी के बंधन से बांध दी गई, मां के फर्ज को पूरा कर रही है, उससे उसका बचपन छिन लिया गया है फिर भी इतनी खुश कैसे रह सकती है,

मेरा मन हमेशा बेचैन हो उठता, उसे तनाव मुक्त देखकर, मैं जानना चाहती थी, उसके खुशवाला जिंदगी का राज,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

वो जब भी अकेला होती, मैं उससे जिज्ञासापूर्ण कुछ सवाल पूछ लिया करती, नाम के लिए स्कूल तो गई थी पर ज्ञान के नाम पर उसके पास कुछ नहीं था, यहां तक कि कपड़ा मापने वाला फिता के, अंको को नहीं पढ़ पाती, एक तो दिल किया कि उसकी सासूजी से बोल दू कि मैं आपकी बहू को सिलाई नहीं सिखा सकती, उसे हिन्दी तक नहीं आती,

फिर सोची, न जाने किन कारणों से वह सामान्य शिक्षा भी नहीं ले पाई, अगर मैं भी स्वीकार नहीं करती हूं तो वह कैसे जान पायेगी कि हमारा सामाज कितना विकसित हो गया है, महिलाए किस रफ्तार से आगे की ओर बढ़ती हुई,उसकी दुनियां बंद कमरे तक सिमट कर रह जायेगी, उसके भले के लिए उसे अपनी छात्रा के रूप में स्वीकार किया, खुश रहने कि कला सिखने के लिए, मैं उसकी छात्रा बन गई थी,

मैं.......... तुम्हारा नाम क्या है,

वो........ गुड़ियां,

मैं......... बहुत प्यारा नाम है, तुम्हारे पर बिल्कुल सही लगता है,

गुडियां...... पापा की गुड़ियां, वो ही नाम रखे है,

मैं......... तुम स्कूल जाती थी,

गुडियां...... कभी-कभी जाती थी,

मैं....... क्यों,

गुडियां...... हम पांच बहन है, मेरे बाद एक छोटा भाई, सब स्कूल जाते तो भाई को कौन देखता, मां-पापा

               खेत में काम करते, कोई बहन खाना बनाती, कोई घर का काम करती, कोई स्कूल भी चला

                 जाता, मैं अपने भाई के साथ खेलती,

मैं....... तुम्हारी शादी इतनी कम उम्र में क्यों हो गई,

गुड़ियां....... तीन दीदी की शादी हो गई है, और एक दीदी के लिए लड़का वाला आया था, उन्हें दीदी पसंद

               भी आ गई, पर दीदी शादी करने से इंकार कर दी,

मैं......... क्यों,

गुड़ियां...... पता नहीं, बोल रही थी कि उसका सपना, स्कूल में बच्चों को पढ़ना है, अभी शादी नहीं करेगी,

मैं...... वो अभी पढ़ती है,

गुड़ियां..... जी,12 मे पढ़ती है,

मैं....... तुम्हारा ' सपना ' क्या है,

गुडि़यां...... कुछ नहीं,

मैं....... क्या, हर इंसान का सपना होता है, कोई बंद आंखो से देखता है तो कोई खुली आंखो से,

मैं....... तुम्हारी दीदी अभी पढ़ रही हैं, तुम शादी कर ली,

गुड़ियां....... मैं क्या करती, दीदी के इंकार के बाद, मम्मी-पापा मेरे शादी के पीछे पड़ गये, एक दिन एक

              रिश्ता आया, जो दहेज के बिना शादी करने को तैयार है, लड़की सुन्दर चाहिए, पापा ने उस

              रिश्ते को स्वीकार किया, क्योंकि पापा के पास पैसे नहीं, मेरे पास ज्ञान नहीं, लड़के वाले को

               खुबसूरत और घर का काम करने वाली लड़की चाहिए, बस हमारी शादी हो गई,

मैं....... तुम्हारे ससुराल वाले बहुत अच्छे हैं,

गुड़ियां.... जी,

मैं....... तुम तो सपना देखती नहीं, तुम्हारे पति जी का क्या सपना,  क्या है ?

गुड़यां...... पता नही, दीदी

मैं....... क्यों, उन्होनें तुम्हें बताया नहीं,

गुडियां...... वो बोल नहीं पाते,

मैं....... क्यों, कुछ हुआ है,

गुडियां...... गूंगा है ना, कैसे बोलेगे,

मैं....... क्या........................... खामोश,(मानों मुझे सांप सूंघ गया)

" 10 मिनट तक खामोशि छायी रही, हम दोनों सिलाई करने में लग गये, मेरी हिम्मत नहीं कि कुछ और बात करे, मैं छुट्टी देते हुए बोली, घर में पेपर काटने का प्रयास करना "

दो दिन तक वो मेरे दिल-दिमाग पर छायी रही,बचपन खोकर, जवानी में गूंगापति पाकर, अज्ञानता में रहकर, कैसे कोई मुस्करा सकता है, क्या उसकी मुस्कान दिखावटी है, उसे पता नहीं सिर्फ अशिक्षित होने के कारण, कितनी बड़ी किमत चुका रही है, शादी करने का मूल उद्देश्य क्या है.........?

एक ऐसे जीवन साथी को पाना, जो आपको समझे और आप उसे समझे, अपनी कहें उसकी सुने, दोनों एक-दूसरे को इतनी अच्छी तरह जाने कि कभी भी किसी को, किसी तीसरे की जरूरत महसूस न हो, पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक समस्या दोनों मिलकर संभाल ले, क्या गुड़ियां अपने पति को जीवनसाथी के रूप में पाकर खुश हैं.....................?

इंसान जब अपनी इच्छानुसार कुछ नहीं पाता, तो वो भगवान से, अपनों से या खुद से शिकायत करता है, जब शिकायत करते-करते थक जाता है तब अपने दुःख का दोषी, किसी को ठहराते हुए, जिंदगी से समझौता कर लेता है,गुड़िया और हमारी मुलाकात सप्ताह में तीन दिन हुआ करती, उन दिनों में कभी-कभी, हम दोनों अकेले होते बाकी की छात्राए नहीं आई होती, जब वो अकेले होती तो मैं कुछ बातें पूछ लिया करती,

मैं...... गुड़िया, तुम अपनी शादी से खुश हो ना,

गुड़िया..... जी, किसी बात की कमी नहीं, घर में खाना-पीना, कपड़ा-साबून, सब सास-ससूर देते हैं, पति

            जी भी कुछ कमाते हैं, वो भी मेरे और बेटा के लिए कुछ-कुछ खरीद देते हैं,

मैं........ तुम दोनों बात कैसे करते हो,

गुड़िया.......( हंसने लगी)

मैं........ क्यों, हंस रही हों, कुछ तो बात होता होगा,

गुड़िया...... जी दीदी, होता है, इशारे से, पहले मुश्किल होता था, शादी को चार साल हो गये, उनका इशारा

             समझ लेती हूं,

मैं....... वो भी तुम्हारा इशारा समझ लेते होंगे, शायद तुम दोनों में कभी झगड़ा नहीं होता होगा,

गुड़िया....... होता है,

मैं........ बात बिगड़ने पर झगड़ा होता है, जब बात कम तो गुस्सा कम, गुस्सा कम तो झगड़ा कम,

गुड़िया....... नहीं दीदी, झगड़ा होता है, उन्हें गुस्सा भी बहुत आता है, जब किसी बात को इशारा में

               समझानें में असमर्थ होते है तब, कभी-कभी मैं मजाक में उनकी बात समझना नहीं चाहती तो

               उनके गुस्से के आगे किसी की नहीं चलती,हमसब डर जाते हैं,

मैं....... उन्हें बुरा लगता होगा, काश वो भी अपने दिल की बातों को खुलकर बोल पाते, इशारा तों काम

            चलाने के लिए है, ढेर सारी बाते करने का दिल तो सबका करता होगा,

गुड़िया..... जी दीदी,

मैं....... तुम्हारा भी,

गुड़िया..... जी दीदी,पर कैसे बोलू और किससे बोलू,

मैं........ देखों, तुमने मुझे दीदी कहा है, जो दिल करें पूछ सकती हो, मुझे पता होगा तो जरूर जबाव दूंगी,

गुड़िया...... जी,

" मेरी और मेरी छात्राओं के संगत में गुड़िया का कायाकल्प शुरू होता है, खामोश रहने वाली, धीरे-धीरे बोलना सीख जाती हैं, उसके दिल में इतने, उट-पटान सवाल हुआ करते थे कि उसके सवालों का जवाब देने में, मुझे हंसी भी आती और दुःख भी होता, अक्षर मिला-मिलाकर थोड़ा पढ़ना भी सीख गई, अपना कपड़ा भी सील लेती है, एक साल कैसे बित गया पता भी नहीं चला, अब जुदाई के दिन आ गये अब वो सिलाई क्लास नहीं आ पायेगी, बिना किसी वजह, उसके घरवाले मेरे पास क्यों आने देगे, उसे घर में रहकर, घरेलू काम-काज करने होगे ”

गुड़िया...... दीदी, अब क्या होगा,

मैं........ क्यों, तुम सिलाई सीख चुकी हैं, तुम घर में सिलाई करती रहना, अभ्यास छूट जाने से, फिर

          मुश्किल होगा,

गुड़िया...... मैं आपके बिना कैसे रहूंगी,

मैं........ मैं समझी नहीं,

गुड़िया...... मैं आपसे सिर्फ सिलाई ही नहीं सिखा, जिंदगी को खुलकर जीना सिखा, आपने मुझे बदल

            दिया, क्या मैं पहले वाली गुड़िया हूं,

मैं...... बदल तो गई हो पर ये जुदाई तो तय था, आज तक 25 सालों में कितने औरतें और लड़कियां आई

        और गई, ये बात और है कि कुछ तो अपनी पहचान मेरे दिलों-दिमाग पर छोड़ गई और कुछ का तो

        नाम भी याद नहीं,तुम मेरे लिए खास हो, क्यों ये मत पूछना ?

गुड़िया...... इससे अच्छा होता कि आप मुझे अपनी छात्रा नहीं बनाई होती, मेरी आंखो को सपने नहीं

            दिखाए होते, बिन पंख उठने नहीं सिखाया होता, मैं जैसी थी वैसी ही ठीक थी, अब आपसे जुदा

             होकर, पंख कटे चिड़िया की तरह, फिर से घर रूपी पिचड़ा में बंद हो जाऊंगी, सप्ताह के वो तीन

             दिन तो आयेगे, मगर हम आपसे मिल नहीं पायेगे,” काश आपसे ना मिली होती ”

मैं........ देखों, दुःखी नाहों, जब दिल करे तुम मिलने चली आना, मैं हमेशा तुम्हारे लिए वहि रहूंगी,

गुड़िया...... पता नहीं.................

" आंखों में आंसू लिए और मेरी आंखों को नम कर चली जाती है "

" उसके जाने के बाद, उसकी यादें मुझें सताती रही, खुद को उसके आंसूओं का जिम्मेवार मानती हो, क्या सच में मैं गलत थी ? क्या सपने देखना या दिखाना गलत है ? क्या उड़ने का हक सिर्फ परिदों को है ? किसी के सपनों का प्रतिफल " ताजमहल " हैं, उड़ने की इच्छा रखने वालों का प्रतिफल " हवाई जहाज " हैं, चांद जो सिर्फ कल्पनों में हुआ करता था, आज हम इंसान चांद पर घर बनाने वाले हैं, लोगों कि मैं नहीं जानती,सपनों के बिना मैं नहीं जी सकती,

                                                                                                           Rita Gupta.