"रब" सब देखता होगा,

"रब" सब देखता होगा,
अनिता का परिवार बहुत ही खुशहाल परिवार है, वह अपने पति रामेश्वर और तीन बच्चों के साथ रहती है, भगवान की कृपा से सब ठिक है, पति-पत्नी दोनों बहुत दयालु और परोपकारी स्वभाव के है, बच्चें छोटे-छोटे है, दोनों बेटी 8 और 5 साल की, प्यारा सा बेटा जो अभी छः महिने का है,
अनिता अपने बच्चों में दिन-भर लगी रहती है, बच्चों के पापा भी दोनों बेटियों को स्कूल ले जाने और घर पर पढ़ाने का काम भी करते है, रामेश्वर जी का बाजार में कपड़े कि दुकान है, इतनी कमाई हो जाती है, कि घर आराम से चलता है,
एक दिन फोन आता है कि....... अनिता की बहन सुनिता के पति का एक्सीडेंट हो गया है, डाक्टर जबाब दे दिया है, बच्चा गोद में रहने के कारण अनिता नही जा पाती है पर अपने पति को, उसके घर भेजती है, रामेश्वर जी अपनी साली के घर उसके पति को देखने जाते है, उनके पहुंचने के पहले ही सुनिता के पति का स्वर्गवास हो जाता है,वहां पहुंचकर बाकी के कार्यक्रम में भाग लेते है, फिर दुसरे दिन चले आते है,
महिना दिन बित जाते है, सुनिता बराबर अपनी दीदी को फोन करती और बहुत रोती, अनिता उसे समझाती, अभी शादी हुए एक साल भी नहीं हुआ, इतना अशुभ हो गया, ससुराल के लोग,सुनिता से पीछा छुड़ाना चाहते है, उसे मायके भेज देते है, ले जाने को राजी नही, मायके में भी उसके भैया-भाभी, उससे सहि व्यवहार नही करते है,फिर भी वह वहि पड़ी रहती है, और कोई चारा नही है,
अनिता अपनी बहन से मिलने मायके जाती है, दोनों बहनें मायके में कुछ दिन रहती है, वह दीदी के बेटियों को बहुत प्यार करती है,
रामेश्वर जी, अपनी बीबी को लेने, ससुराल जाते है वहां सुनिता और उसकी भाभी का झगड़ा देखकर अवाक रहते है, अनिता अपने पति से बोलती है कि, वह कुछ दिनों के लिए, बहन को अपने साथ, अपने घर ले जाना चाहती है, रामेश्वर जी बोलते है...... मैं क्या बोलु तुम्हारी बहन है, तुम जानों,
दो दिनों बाद रामेश्वर अपने परिवार के साथ, अपनी साली को भी लेकर अपने घर चले आते है, शुरू के कुछ महिनों तक तो सबकुछ ठिक चल रहा था, फिर जीजा और साली का रिस्ता अपना रंग दिखाने लगा, हंसी, मजाक, घुमने जाना सब शुरू हो जाता है,पहले तो अनिता को, ये सोचकर अच्छा लगता है कि बहन अपने गम को भूलकर खुश रहना सिख गई पर धीरे-धीरे वह देख रही है कि रामेश्वर जी उससे ज्यादा, सुनिता का ख्याल रखने लगे है, सुनिता को भी जीजा जी से कुछ ज्यादा ही लगाव हो गया है,
अनिता कि परेशानी बढ़ने लगी, वो अपने बच्चों को संभाले या पति को...........,सुनिता बहन है उससे क्या बोले और कैसे बोले,
अनिता रामेश्वर से बोलती है कि...... बहुत दिन हो गया, अब सुनिता को मम्मी के घर पहुंचा देना चाहिए, रामेश्वर...... तुम ही लेकर आयी थी, तुम ही उसे जाने को बोलो,
"समय देखकर वो सुनिता से बोलती है कि.... तुम्हें अब, भैया-भाभी के पास जाना चाहिए, सुनिता यह सुनकर लगी और कहती है कि मैं तुम्हारे घर मे नौकरानी का काम करूगी, मुझे यहां से जाने के लिए मत बोलो,. मैं अब कहां जाऊंगी तुम्हारे बच्चों कि देखभाल करूगी,ऐसी बाते सुनकर, अनिता चुप रह जाती, फिर से दिन सामान्य चलने लगता है,
धीरे-धीरे घर कि सुख-शांती अब खत्म होने लगता है, सुनिता के व्यवहार से रामेश्वर और अनिता के बीच, दूरी आ जाती है कुछ महिनों बाद अनिता को पता चलता है कि सुनिता मां बनने वाली है,
अपने पति और बहन के कुकर्म के कारण, अनिता बहुत दुःखी है, बहन को अपने घर बुलाकर,' आ बैल मुझे मार ' सिद्ध हुआ, अब कुछ किया नही जा सकता है, अनिता उन दोनों से कहती है....... अगर इस बच्चें को दुनियां में लाना है तो तुम दोनो शादी कर लो, मुझे एतराज नही,
सुनिता को इसी दिन का इंतजार था……………………….
"साली आधी घरवाली, अब पूरी घरवाली बन गई,
जो पूरी घरवाली थी, वो नाम की घरवाली रह गई"
इन दोनों के शादी के बाद अनिता, अपने बच्चों को लेकर, भैया-भाभी के पास (मायके) चली जाती है, अब जीजा, शाली को किस का डर और कैसा शर्म, सालों-साल बितता है, सुनिता को भी दो बेटा और एक बेटी है,बच्चें बड़े होते है, उधर गांव में रह रहे,अनिता कि बड़ी बेटी की शादी होती है, रामेश्वर पिता होने का फर्ज पूरा करता है, अनिता खामोश रहती है,
"अनिता भगवान पर इतना भरोसा करती है कि उसे लगता है, जब भगवान कि मर्जी के बिना, एक पत्ता नही हिल सकता, तो उसके साथ ये अन्याय कैसे हो सकता है, शायद जो कुछ भी हुआ या आगे होगा, सब 'रब' दी मर्जी है"
दिन बितता जाता है…………………….
सुनिता का बेटा 18 साल का हो गया है, एक दिन दोनों मां-बेटा कहि जा रहे थे, अचानक उधर से ट्रक आता है, पता नहीं कैसे एक्सीडेंट होता है, लड़का रोड के किनारे फेंका जाता है और सुनिता रोड के बीच में, अभी किसी को कुछ समझ मे आता, तब तक सुनिता ट्रक के पहिये के नीचे, सिर में लगे चोट ने उसे मौत के मुंह में भेज दिया,
अचानक ऐसी हुई घटना, चारो तरफ आग कि तरह फैल गई,अनिता भी गांव से आती है, मरणोप्रातः के कार्यक्रम संम्पन होने के बाद, अनिता फिर गांव जाने लगी,
सुनिता के तीनों बच्चें, अपनी बड़ी मौसी के पैर पर गिर जाते है, और रोते हुए कहते है........ मौसी आप यहि रहो, ये आपका ही घर है, हमें सब पता है, मम्मी ने आपके साथ गलत किया, उसकी सजा 'रब' ने उन्हें दे दी, हमें आपकी जरूरत है, हम सब मिलकर रहेगें,
दूर से खड़ा होकर रामेश्वर चुप-चाप अनिता को सिर झुकाएं हुए देख रहे थे, और सोच रहे थे......."सजा का हकदार तो मैं भी हूं"
Written by
Rita Gupta