मुरलीधर की " राधा "

मुरलीधर की " राधा "
इस छोटी सी जिंदगी में, हम अनगिनत लोगों से मिलते और बिछड़ते है, कभी-कभी कोई अजनबी चुपके से हमारे दिल में, अपनी जगह बना लेते है, हम से ज्यादा हमें जानने लगते है, फिर हमारी कोई राज की बात 'राज' नहीं रह जाती, जिन बातों को हम अपनों से छिपाते है, उन बातों को हम, किसी अजनबी को कैसे और क्यों बोल देते है, जब की बचपन से यहि शिक्षा दी जाती है," किसी अजनबी पर विश्वास नहीं करना चाहिए " सारा ज्ञान धरा का धरा रह जाता है और हम भावनाओं में वह जाते है,
कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मैं 47 वर्षीय मुरलीधर, अपने दोस्त को देखने अस्पताल गया था, वहि एक बेंच पर बैठी महिला की आंखों में आंसू देखकर खुद को रोक नहीं पाया, हिम्मत करके उसी बेंच पर जाकर मैं बैठा ताकि उसके रोने के कारण को जान पाऊ,
मैं........ कौन बिमार है ?
वो....... मां,
मैं........ आपकी मां, और कोई आपके साथ नहीं आया,
वो....... पति जी, बाहर रहते है, मैं ही लेकर आई हूं,
मैं........ आपकी मां आपके साथ रहती है,
वो....... मेरी मां नहीं, मेरे पति जी की मां, मेरी मां हुई ना,
मैं........Sorry, मैं समझ नहीं पाया, आपकी सासु जी, उनकी उम्र क्या है ?
वो......... 85 साल की है,
मैं........ इस उम्र में तो ऐसी हालत होती ही है, आप रोये नहीं, जो भगवान की मर्जी होगी वहि होगा,
वो......... जी, पर पति जी को लगेगा कि मैने उनकी देख-भाल सही से नहीं कि होगी, इसलिए रोना..
मैं........ आप अपना कर्तव्य करे, होनी को कोई नहीं रोक सकता, रोये नहीं, हिम्मत से काम ले,
वो...... जी,
" उसके बाद मैं अपने दोस्त से मिलकर घर चला आया, पूरा दिन उनका चेहरा मेरी आंखों के सामने घुमता रहा, यहाँ तक कि रात में भी सपने में उन्हें ही देखा, सपने में हम दोनों दोस्त है और ढेर सारी बाते कर रहे है, दूसरे दिन अपने काम में मन लगाने की कोशिश की ऑफिस गया, शाम को घर आया, परिवार में व्यस्त रहा, रात को सोने के बाद, उनका मासूम सा चेहरा, गालों पर आंसूओं की माला,सिसकती हुई आवाज और हजार सवाल पूछती हुई आंखे, मेरी ओर देख रही थी, अचानक मेरी नीद खुल जाती है ”
मैं उठकर बैठ गया, फिर से सोने की कोशिश करता हूं पर नींद कहाँ........? मैं सोचता हूं आज तक ऐसा कभी नही हुआ कि किसी अजनबी की एक मुलाकात मेरी नींद चुराया हो, बड़ी मुश्किल से भोर में नींद आई,आफिस जाने से पहले, अस्पताल जाकर दोस्त के बहाने उन्हें देखने की इच्छा हुई, वहां पहुंचते ही दोस्त को देखने के बाद, मेरी नजरें उन्हें चारों तरफ तलाश रही पर वह नहीं दिखी, मैं महिला वार्ड की ओर जाकर देखने से खुद को रोक नहीं पाया, अचानक मेरी नजरों को उनका दिदार हुआ, वो भी उधर से आ रही थी, मैं अनजान बनते हुए, अचानक दिख जाने का नाटक करते हुए,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मैं....... कैसी है, आपकी सासुजी,
वो...... पहले से ठीक है, आप यहां,
मैं....... जी, मेरा दोस्त बीमार है,
वो...... अभी कैसे है आपके दोस्त,
मैं....... ठीक है, अभी डाक्टर क्या बोल रहा है ?
वो...... डाक्टर का कहना है कि हार्ट- बीट स्लों (slow) है, लगभग 7 दिन देखकर ही छोड़ोगे,
मैं...... जी, डाक्टर की बात तो माननी पड़ेगी, आप उनका खाना घर से लाती है,
वो....... जी, मां अस्पताल का खाना नहीं खाती,
मैं...... जी, पुराने विचारों की है, दिल नहीं मानता होगा,
वो....... ठीक है, मैं चलती हूं,
“ वो चली गई, मैं जाते हुए देखता रहा, किस हक से और कैसे रोक सकता था, इतना तो पता चला कि अभी 7 दिनों तक वो यहां आते रहेगी, दोस्त को देखने के बहाने मेरा अस्पताल आना होता रहा, वो तो 3 दिन में ठीक होकर चला गया, पर मैं अस्पताल का चक्कर लगाता रहा ”
इन 7 दिनों तक ऑफिस छोड़कर प्रतिदिन एक अनजान महिला के लिए, दोस्त को देखने का बहाना बनाकर, उन्हें देखने आता हूं, ऐसा पागलपन पहली बार महसूस किया, क्या इसे ही प्यार कहते है ? उनकी सुनता, अपनी सुनाना अच्छा लगता है, उन्हें भी मेरी आदत हो गई है, किसी दोपहर मैं देर से पहुंचता, वो मेरा इंतजार करती, कभी-कभी मैं जानबूझकर देर से जाता, ताकि जान सकू, क्या जितनी बेचैनी इधर है, उधर भी है क्या ?अब वो दिन भी आ गया,जब यह सिलसिला खत्म होने वाला है, उनकी सासुजी को छुट्टी मिलने वाला है, उस दिन वो बहुत उदास और परेशान दिख रही थी,
मैं........ आप क्यों परेशान हो, कल तो छुट्टी हो जायेगी, अब हम नहीं मिल पायेगे,
वो........ शायद, कल छुट्टी नहीं ले पाऊंगी,
मैंं......... क्यों, फिर उनका तबियत खराब हो गया,
वो........नहीं, वो ठिक है,
मैंं......... तो क्या हुआ ?
वो....... कुछ नहीं, देखती हूं, मैं क्या कर सकती हूं,
मैं....... कोई समस्या है तो मुझे बताओ,
वो....... नहीं, मैं हल कर लूंगी,
मैं....... मुझे अपना दोस्त मानती हो,
वो....... हां,
मैं....... दोस्त, दोस्त के काम न आये तो दोस्त कैसा, तुम्हें मेरी कसम बोलो क्या हुआ,
वो........ अस्पताल का बिल 10,000 रु हुआ है, पति जी बाहर से नहीं भेज पा रहे है, मैं अपना कान की
बाली ( सोने की ) बेच दुंगी, देखती हूं कितना मिलता है, फिर सासुजी को घर ले जा पाऊंगी,
मैं....... तुम नहीं बेचना, मैं कल तुम्हें 10,000 रु दूंगा, तुम छुट्टी की तैयारी कर, हम कल मिलते है,
वो....... आप क्यों, मैं क्यों लू आपसे, फिर कहां से दूंगी, पति जी से क्या बोलुगी कि रुपया कहां से आया,
दोस्त आप न दो, मुझे गहना बेचनें दो,
मैं....... मेरे होते हुए, मेरी दोस्त को अपना गहना बेचना पड़े, ये अच्छी बात नहीं, तुम अपना गहना
छिपाकर रख दो, पति जी से बोलना, बेचकर अस्पताल का बिल भर दी,
वो......(नम आंखों से मुझे देखती रही) आप....................
मैं....... कुछ ना बोलो, तुम्हारी आंखें सब कुछ बोल रही है, मेरा दिल सुन लिया, तुम कल, यहि मेरा
इंतजार करना, छुट्टी का कागज बना लेना, मैं रुपया लेकर आ जाऊंगा,
वो....... जी,
मैं....... अब मैं चलता हूं, कल मिलते है,
“ दूसरे दिन बैंक जाकर,10,000 रु निकालने में देर हो गई,10.00a.m का छुट्टी का समय था, बैंक में इतनी भीड़ कि 12.00 बज गया, मैं परेशान कि वो क्या सोचती होगी मेरे बारे मे, रुपया मिलते ही मैं जल्दी से अस्पताल पहुंचा ”
वो....... आप आ गये, सब कागज तैयार हो गया है,
मैं......... ये लो, पहले रुपया जमा कर दो, ताकी आगे का काम हो सके, मैं यहि हूं,
“मैं इंतजार कर रहा था,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
वो........ बिल दे दी,10-15 मिनट में छुट्टी हो जायेगा,
मैं......... हमारे पास सिर्फ 10 मिनट है, फिर हम जुदा हो जायेंगे, फ़िर मैं तुम्हें देख नहीं पाऊंगा, तुम्हारी
सुनुगा भी नहीं और अपनी सुनाऊंगा भी नहीं
वो....... हम फोन पर, बात कर सकते है,
मैं........(000000000) ये मेरा फोन नम्बर हैं, आप रख लों,
जैसे ही मैंने उन्हें अपना नम्बर दिया, वों मुझे miss call कर दी, फिर क्या था, उनका न० भी मेरे पास, वो अपने सासू जी को लेकर चली गईं,
सिलसिला शुरू होता है, तब जाना कि उनका नाम 'राधा' है, और उन्हें पता चला मेरा नाम, वो हंसने लगी, और बोली, राधा के मुरलीधर इतने दिन कहां थे, मैं भी सोच में पड़ गया, मेरा नाम मुरलीधर और वो राधा, क्या ये मिलना पहले से तय था, भगवान कि लीला भी अजब है,47 साल की उम्र में इस दिल को 46 साल की राधा पर फिदा होना था,हम दोनों का अपना-अपना घर-परिवार है,हमारी दोस्ती तो सही है पर प्यार......................... ये तो समझ के बाहर है,
राधा...... मैं आपको कृष्णा बोलू,
मैं........ मुरलीधर या कृष्णा, मतलब तो एक ही होता है, जो दिल करे बोलो, मैं तुम्हें 'परी' बोलूगां,
राधा...... क्यों.................
मैं........ रोज सपनों में जो आती हो,
राधा...... कृष्णा, आप बहुत अच्छें हो,
मैं....... तुम अच्छी हो, इसलिए मैं तुम्हें अच्छा लगता हूं, मेरा दिल करता है, तुम से अपने दिल की सारी
बातें करू, तुम सुनना चाहोगी,
राधा...... जी दोस्त, बोलो,
मैं........ परी, उस समय की है, हम सब संयुक्त परिवार में रहते थे, मुझसे बड़ा दो भाई और एक दीदी हैं,
मुझसे छोटा एक भाई और एक बहन है, संयुक्त परिवार में बच्चे, बच्चों के साथ ही रोते-गाते बड़े
हो जाते है, माता-पिता अपने काम में व्यस्त रहते है, जब मैं 6 महीने का था,मेरी एक आंख (आंख
आने से) पूरी तरह लाल हो गई थी, मैं बहुत रो रहा था, मां खेेत में काम करने गई थी, पापा घर से
बाहर रहते थे,घर के बड़ो ने अपने आधे-अधूरे ज्ञान का इस्तेमाल किया और मेरे आंख में ' रेजिन '
की बूंद डाल दिया ताकि आंख को ठंडक मिले,जिससे मेरी वो आंख चिपक गई, दो-तीन दिनों तक
आंख चिपकी रही और मेरा रोना भी कायम रहा, गांव में कहीं कोई डाक्टर नहीं, अंत में मां मुझे पास
के शहर ले गई, वहाँ पता चला कि मेरी उस आंख की रौशनी जा चुकी है, मां को बहुत ही दुःख हुआ
कि उनकी थोड़ी सी लापरवाही से उनके छः महीने के बेटे की आंख की रौशनी चली गई,
राधा......omg फिर क्या हुआ,
मैं........ डाक्टर बोले, जब मैं 10-12 का हो जाऊंगा तब शायद आंपरेशन द्वारा रोशनी फिर वापस आ
जाय, मैं बचपन से ही एक आंख से दुनियां देखी है, उस आंख को बड़े होने पर भी, रौशनी नसीब
नहीं हुई, मुझे पता नहीं कि दो आंखवालों को ये दुनियां कैसी दिखती होगी,ऐसे तो लोग कहते है
कि भगवान हम सबको एक आंख से (बराबर) देखते है, जब मैं एक आंख से सबको देखता हूं तो
लोग मुझे विकलांग क्यों कहते है,
राधा...... नहीं दोस्त, जो बोलते है वो पागल है, आप बहुत अच्छे दिल के मालिक हो,
मैं......... परी, कभी भी खुद को, मैं विकलांग नहीं समझा, एक आंख से ही मैं ' हीरा ' तरासने का काम
सिखा और बाकी लोगों से अच्छा काम किया, मैं अपने भाईयों के बराबर हूं, आज तक अपने हर
फर्ज को पूरा किया, अच्छा बेटा, पति और पापा बना, सब-कुछ ठिक-ठाक चल रहा था, मैं तीन
संतान हुई, दो बेटी और एक बेटा,
राधा...... बहुत खुशी की बात है, भगवान ने आपको बेटा-बेटी दोनों का सुख प्रदान किया, आपका बेटा बड़ा
होकर आपका सहारा बनेगा, सब ठीक होगा,
मैं.......... परी, मेरे पास नहीं रहता, फिर भी हमेशा मेरा साथ देता है, दिखता नहीं पर उसे मैं हर पल
अपने पास महसूस करता हूं,
राधा....... दोस्त, मैं समझी नहीं, आपका बेटा किससे साथ रहता है,
मैं......... परी,वो भगवान के घर, उनके साथ रहता है, जब 12 साल का था, तब काला ज्वर के बहाने
भगवान अपने साथ लेकर चले गये,
राधा.....omg, ये बहुत बुरा हुआ, भगवान को ऐसा नहीं करना चाहिए,
मैं........ हम-तुम क्या जाने, भगवान की लीला, ये तो उन्हें ही पता होगा, हम सब तो कठपुतली है,
जिसकी डोर उनके हाथ में है, वो नचा रहे है, हम नाच रहे है, आगे-आगे देखते है क्या-क्या होता है,
राधा...... मैं क्या बोलू, आंखे नम हो गई, माफ करना दोस्त, जख्म फिर से हरे हो गये,
मैं........... परी, इसमें तुम्हारी गलती नही, मैं खुद तुमसे अपने दिल की बात की, न जाने क्यों, तुम
अपनी सी लगी, जानती हो दोस्त, मैं अपने बेटे को अपने साथ महसूस करता हूं, दिल का
मरीज होने के साथ,47 साल की उम्र में व्यापार संभालना मेरे वश की बात नहीं, वो तो मेरा
बेटा मेरी हिम्मत बनकर हमेशा मेरे साथ रहता,मैं खुद को कभी भी अकेला महसूस नहीं करता,
राधा...... ठिक बोल रहे हो दोस्त, आप कभी नहीं रोना, आपका बेटा जहां गया है, वहां तो हम सबको एक
दिन जाना है, वो जल्दी चला गया, कोई बात नहीं, पीछे से हम भी चलते है,
मैं........... ठीक बोल रही हो, आज या कल, जाना तो सबको है, दोस्त जो बाते मैं अपनों के सामने नहीं
बोल पाया, वो सारी बाते तुम से ' फोन ' में कैसे बोल दिया,
राधा........ मैं आपकी दोस्त हूं ना, दोस्त से कुछ नहीं छिपाते, खुशी हो या गम बांटना चाहिए,
मैं......... जी परी, हम दोनों कभी ना मिलने वाले दोस्त है, फोन पर ही एक-दूसरे के सुख-दुःख का साझा
करेगे, तुम साथ हो ना,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
राधा........ " ये राधा " मुरलीधर की थी, है ,और हमेशा रहेगी, ना उस राधा ने लोगों की
परवाह कि दोस्ती निभाने में, ना ये राधा करेगी,
Rita Gupta.