मेरी चाहत

मेरी चाहत
पिचड़े में बंद थी, तो उड़ने की चाहत ने इतना मजबूर किया कि रातों की नींद और दिन का चैन खो गया, इस आजादी के लिए क्या-क्या नहीं किए, जब आज आजाद हूं, खुला आसमान बाहें फैलाये मेरे उड़ने की राह देख रहा है, अपनों ने भी आजादी दे दी, फिर दिल उदास क्यों है,
जो चाहा था वो मिल गया, तो आंखों में आंसू क्यों, आखिर दिल को हुआ क्या है, खुद से नाराज क्यों है, फिर से पिचड़े में बंद क्यों होना चाहता है, क्या उसे उड़ने से डर लगता है, अब अपनी उड़ान पर भरोसा नहीं या बहेलियों से डर लगता है, दिल क्यों से खुद को कैद करनी कि चाहत पाल रहा है,शायद उसे समझ में आ चुका है कि जितना भी खुले आसमान में उड़ लो, एक तो ऐसा बसेरा चाहिए, जहाँ खुद की पहचान हो, अपनापन हो, एक ऐसा आइन जो मेरे दिल की हाल को दिखा सके, क्योंकि चेहरे को छिपाने की कला अच्छी तरह आता है,
मैं ' सरिता ' आज अपने दिल की चाहत से डरती हूं, बचपन से लाडली और जिद्दी होने के कारण मेरी हर मांग पूरी की जाती थी, बेटी होने के बाद भी मेरी परवरिश बेटे की तरह हुई है, मैं भी खुद को मम्मी-पापा का बेटा मानती थी, लड़को से दोस्ती करना, उनकी तरह का खेल-कूद, कपड़े पहनना ही अच्छा लगता था, लड़कियों वाली अदा कभी सिखा ही नहीं,कोई लड़का मजाक में भी I love you बोल देता तो उसकी तो खैर नहीं, अपने दोस्तों से बोलकर उसकी पिटाई पक्का था, मम्मी-पापा भी परेशान, इस लड़की का क्या करे सोचकर परेशान,वो चाहते कि अब मैं लड़कियों वाले कपड़े स्तेमाल करू,
मेरी समझ में ये नहीं आ रहा था कि आखिर ये लोग मुझसे चाहते क्या है, कभी बोलते कि मैं बेटा हूं तो कभी बोलते की लड़की हूं, खुद को लड़का समझकर जितना उड़ान भर रही थी, लड़की होने का अहसास करा कर मेरे पंखों को काट दिया गया,14 साल की उम्र के बाद कैद कर दिया गया,मेरे शरीर को कैद कर सकते है, मैं इस दिल का क्या करती जो उड़ने के लिए झटपटा रहा था, बेचारा धीरे-धीरे बीमार पड़ गया फिर कमजोर होता गया, दिन बीतते गये, लगभग 6 साल जब मैं बीस की हूं, सामाजिक बंधनों ने मुझे, बहू, पत्नी और मां का खिताब दिया, सब कुछ पाकर मैं बहुत खुश थी, पर कोई था जो दुःखी था, और अपनी अंतिम सांसे गिन रहा था, वो कोई और नहीं बेचारा, मेरा दिल था जो आशा भरी नजरों से मेरी तरफ देख रहा था, मैं खुद को इतनी लाचार कभी नहीं महसूस की थी, आज मेरा दिल मेरे सामने दम तोड़ रहा और मैं खामोश हूं, ये नहीं रहा तो जिंदा लाश बन जाऊंगा,
जहां चाह वहां राह, अचानक प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से समाजसेवा करने का सुअवसर मिला, यह मौका दिल को तिनके का सहारा साबित हुआ, लोगों से मिलने-जुलने के बाद, वह फिर से लम्बी सासें लेने लगा, धीरे-धीरे धड़कने भी लगा, बड़ो का प्यार-दुलार पाकर उड़ने के सपने भी देखने लगा,उसके बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा, मैं और मेरा दिल मस्ती में छुमते हुए खुले आसमान की सैर करते है, इसकी हर चाहत, मेरी सर आंखों पर, इसे पता है, यह जो चाहता है, मैं वहि करती हूं, सच में बहुत ही जिद्दी और नटखट होता जा रहा है, मैं इसकी हर मांग पूरी जो कर देती हूं,
अब इस नटखट दिल से खुद डर लगने लगा है, पता नहीं कब क्या मांग बैठे, मैं बाध्य हो जाऊ उसे खुश करने के लिए, वह मेरी कमजोरी जान चुका है,(मेरी बिल्ली, मुझी को म्याऊ) ऐसी नौबत आ गई है, अब ऐसा लगता है कि कुछ ज्यादा ही सर चढ़ा रखा है, इसकी जगह सिर पर नहीं,
इसे वहीं छिपाकर रखना चाहिए, जहां इसे भगवान (God) ने कैद कर रखा है, सुरक्षा कवक्ष के अंदर, बहेलियाँ के नजरों से छिपाकर, इसकी कुछ बातें माने, कुछ बातों न माने, इसकी चाहते असीम है,
Rita Gupta.