" जिम्मेदारी से आजाद"

" जिम्मेदारी से आजाद"
हमारा देश 'भारत वर्ष' भारत माता के नाम से भी जाना जाता है, जो अंग्रेजों के हाथ में गुलामी की जिंदगी जी रहा थी, लाखों देशभक्त पुरुषों और महिलाओं की कुर्बानी के बाद हमसब ने इन्हें आजाद कराया,
आजादी के 68 साल हो गये, हम सब खुद को आजाद मानते है, मगर ये आजादी सिर्फ पुरुषों को मिली है, महिलाएं आ भी गुलाम है, सिर्फ गुलामी में रखने वाले लोग बदल गये है,
अधिकांश पुरुषों को मान-सम्मान तो चाहिए, मगर हमेशा अपनी जिम्मेदारी से पला झाड़ते में लगे रहते है, मान-सम्मान बाजार में बिकने वाली कोई सामान तो नहीं, जो गये और खरीद लाये, इसके लिए अपनी जिम्मेदारी के साथ-साथ, अपनों की जिम्मेदारी को भी निभाना पड़ता है, तब जाकर सम्मान के हकदार बनते है,
दादी-नानी की कहानियाँ थोड़ी अटपटी लगती है पर शिक्षापूर्ण होती है,
ऐसी ही एक सोच को कहानी का रूप देने की कोशिश कर रही हूं, एक बच्चे को जन्म देने में माता-पिता बराबर के हकदार माने जाते है, फिर भी सिर्फ पिता का नाम चलता है, जब की माता का योगदान, पिता से कही ज्यादा है, नौ महीने गर्भ में माता रखती है, जन्म देने के लिए मौत के मुंह में जाने की जोखिम माता उठाती है, असहनिय दर्द माता सहती है, अपना स्तनपान माता कराती है, फिर भी अपने ' नाम ' के लिए कभी आवाज नहीं उठा,
किसी युग में बच्चे को जन्म माता देती और दर्द पिता को सहना पड़ता था, उस समय कि ये कहानी है, एक राजा-रानी हुआ करते थे, रानी मां बनने वाली थी, यह सब के लिए खुशी की बात थी, एक-एक दिन गिनते हुए नौ महिने बितते है, वो समय आ जाता है, जब रानी बच्चे को जन्म देगी, रानी को सोयरी ( बच्चा होने के लिए तैयार किया गया कमरा ) में दासियॉ और दाई ले जाते है,इधर राजा जी को खबर किया जाता है कि आप भी तैयार हो जाइए दर्द सहन करने के लिए, राजा अपने दासों से बोलकर एक पलंग को सजाते है, आस-पास, फल-फूल लेकर दासों की उपस्थति में फल का सेवन करते हुए दर्द का इंतजार करते है कि अब दर्द होगा कि तब दर्द होगा,
उधर रानी जी भी बच्चे को जन्म देने वाली है, तब-तक मंत्री के पेट में दर्द शुरू हो जाता है, यह खबर पूरे राजमहल में आग की तरह फैल जाती कि मंत्री जी के पेट में दर्द हो रहा है, राजमहल में काना-फुसी शुरू, जब ये खबर राजा के कानो तक पहुंचती है कि मंत्री के पेट में दर्द हो रहा है, उनका गुस्सा सातवें आसमान पर, राजा नगी तलवार लेकर रानी का ' सिर कलम ' करने के लिए दौड़ते है, यह खबर रानी को मिलते ही वह उसी अवस्था में दौड़ती-भागती ' मां दुर्गा 'के दरबार में जाकर सिरपटकना शुरू कर देती है,
रानी.......मां मुझे बचा लो,मै निर्दोष हूं,
राजा........ निर्दोष होती तो दर्द ,मंत्री के पेट में न होता, आज तेरे गुनाहों का सजा, मां के सामने दूंगा,
" तब-तक चारों तरफ आश्चर्यजनक प्रकाशमय उजाला होता है और आकाशवाणी होती है, हे मूर्ख राजा, पेट मे दर्द के और भी बहुत से कारण होते है, रानी निर्दोष है"
राजा........ नहीं मां, तो मेरे पेट में दर्द क्यों नहीं हुआ,
मां.......... मूर्ख, बच्चे का जन्म आज नहीं, कल होगा, और आज से यह नियम बदल जायेगा, अब दर्द भी
औरत को होगा और बच्चे को जन्म भी औरत ही देगी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
राजा......... अच्छा किया मां, इस जिम्मेदारी से हम पुरुषों को आजाद कर दिया,
खुद को ,जिम्मेदारी से आजाद करने का मतलब होता है, जिस पर जिम्मेदारी दी जा रही है, उसपर आंख मूंदकर विश्वास करना,
Rita Gupta.