"तोहफा" प्यार का

"तोहफा" प्यार का

बात उस समय की है, जब घंटों के रास्ते को घोड़ागाड़ी या बैलगाड़ी से तय किया जाता था, किसी गांव में एक साहुकार रहता था, उसके पास कई दुकानें और आने-जाने के लिए घोड़ें थे,

एक दिन उसने, अपनी बेटी फुलकुमारी को उसके नानी घर घुमने जाने के लिए तैयार किया, अपने एक घुड़सवार को बुलाते हुए कहा...... तुम मेरी बेटी को उसके नानी के पास छोड़ आओ, घुड़सवार हामी भरते हुए तैयार हो गया, वह फुलकुमारी को घोड़े पर बैठाकर चल देता है, रास्ता 3-4 घंटों का था,

फुलकुमारी बिल्कुल परी लग रही थी, एक तो खूबसूरत ऊपर से 15-16 साल की बाली उम्र, रास्ते में आते-जाते पथिक देखते तो देखते रह जाते, घुड़सवार भी 22 वर्ष का नवयुवक, देखने वाले ये सोचने पर मजबूर थे कि वहि दोनों प्रेमी तो नहीं, रास्ता बीच-बीच में, कहि-कहि, छोटे-छोटे, बाग-बगिचा से गुजर रहा था, जहाँ-तहाँ पूरी तरह संनाटा भी मिल जा रहा था,

घुड़सवार चला जा रहा था, अचानक हवा का इक झोंका उन दोनों को छुते हुए गुजर गया, दोनों के बदन सिहर गये, एक-दूसरे के स्पर्श ने एक अहसास को जन्म दिया, जिसे उनदोनों ने महसूस किया, अचानक सब रुक सा जाता है, घोड़ा भी लगाम के तनाव से रूक जाता है, हवायें धम जाती है, घुड़सवार नीचे उतर जाता है,फुलकुमारी की आंखे शर्म से नीचे झुकी जा रही है, दोनों एक-दूसरे को देखते हुए, अनदेखा कर रहे

फुलकुमारी........ तुम पैदल क्यों चल रहे हो ?

घुड़सवार.......... यू ही, तुम ठीक से बैठो, तुम्हें मेरे स्पर्श से बुरा लगा होगा ?

फुलकुमारी........ तुम्हें बुरा लगा,

घुड़सवार..........नहीं,

फुलकुमारी........ मुझे भी नहीं, आज से पहले भी मैं तुम्हारे साथ यात्रा कि हूं, तो आज जो अहसास हुआ

                       वो क्या था,

घुड़सवार....... शायद ये प्यार का' प्यारा सा एहसास 'था,

फुलकुमारी...... तुम मुझे अच्छे लगते थे, अब प्यारे लगने लगे हो,

घुड़सवार.........( हंस पड़ता है )

फुलकुमारी...... मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती,

घुड़सवार......... बहुत, पर मेरी हिम्मत कहाँ कि तुम्हें प्यार करू,

फुलकुमारी..... क्यों

घुड़सवार........ मैं तुम्हारे घर पर एक मुलाजिम (नौकर ) हूं,

फुलकुमारी........ तो क्या हुआ, घोड़े पर बैठो, पैदल चले तो रास्ते में रात हो जायेगी,

वह घोड़े पर बैठ, उसे उसके नानी घर छोड़, वापस आ जाता है,फुलकुमारी का मन वहाँ नहीं लगता है, इधर इसका मन, उसके बिना नहीं लग रहा था, थोड़े दिन बाद साहुकार अपनी बेटी को ले आता है,

उन दोनों को मिलने के लिए, नानी घर जाने का बहाना, अच्छा मौका होता, दोनों ढेर सारी बाते करते,

युवक कहता है.......... मैं सपने में भी नहीं सोच सकता कि तुम मुझसे प्यार कर सकती हो,

युवती..........मैंने किया , वो तो प्यार हो गया, अब मेरे पापा से, मेरा हाथ मांग कर अपने घर ले चलो,

युवक....... घर के नाम पर, झोपड़ी है,

युवती........ कोई बात नहीं,मैं तुम्हारे साथ कहि भी रह सकती हो,

युवक....... तुम्हारे पापा नहीं मानेगे,

युवती........ हम भागकर मंदिर में शादी करेगे,

युवक......... ऐसा नहीं कर सकते, उनसे इजाजत लेगे, नहीं मिला तो बाद में सोचेगे कि क्या करना है,

युवती........ जैसा तुम ठिक समझो,

साहुकार के सामने, दोनों अपने प्यार का इजहार करते है, वह नहीं मानता, अंत में फुल कुमारी के जिद के आगे, उसे झुकना पड़ता है, वह गुस्से में, दोनों को मंदिर में शादी करने की इजाजत दे देता है, सिर्फ पहने हुए कपड़ों में, फुलकुमारी मायके से विदाई लेती है,

घुड़सवार............ तुमने मेरे लिए, अपने मम्मी-पापा, सुख-चैन, सबकुछ छोड़ दिया,

फुलकुमारी......... प्यार के लिए, एक चुटकी सिंदूर ही प्यार का 'तोहफा 'है, जीने के लिए और क्या चाहिए,

                                                                                                Rita Gupta.