जितना दोगे, दुगना मिलेगा,

जितना दोगे, दुगना मिलेगा,
ऐसी कौन सी चीज है, जिसको जितना बाँटते है उतना ही बढ़ता जाता है, सबको पता है, कोई भी समान बाँटने से धीरे-धीरे कम होता है फिर खत्म हो जाता है, मगर कुछ है जो बांटने से ही बढ़ता है, जैसे..... विद्या, बुद्धि, प्यार, खुशी, अपनापन,
कंचन की कहानी, उसकी ही जुबानी........................
मैं "कंचन" मिलनसार प्रवृति की हूं, फिर भी कुछ लोग मुझे घमंडी समझते है, दरअसल जो लोग मुखाैटा लगाये हुए, ऊपरी हंसी और अपनापन दिखाते है, ऐसो से थोड़ी दूरी बनाये रखती हूं, हमें आपकी बहुत चिंता है ये कहने की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि हम जिसकी चिंता करते है, उसे इस बात का अहसास होता है,
मेरी परवरिश संयुक्त परिवार में हुई है, हम सब ,मम्मी-पापा के छः संतान है, साथ में दादा-नानी भी रहा करती है, इसलिए हमारे घर में प्यार की गंगा बहती है, उस गंगा में सबसे ज्यादा स्नान मैंने किया है, दादी-नानी बच्चों की सबसे अच्छी दोस्त होती है, दूसरों की खुशी में, अपनी खुशी देखना, मैंने इनसे ही सिखा है,आज मेरे अपने मेरी खुशी में अपनी खुशी देखते है, यह देख, मेरी आंखे भर नम हो जाती है, इतना प्यार पाकर आँखों में खुशी के आंसू भर जाते है, ये आंसू इतने प्यारे लगते है जिसका बया करने के लिए शब्द नहीं,ससुराल के नाम से लोग डरते है, मैं उसी ससुराल की कहानी बताती हूं, मुझे मेरे सास-ससुर, पति ,ननद से इतना प्यार मिला की, मायके से दूर होती गई,
मेरी शादी हुए 10 साल हो गये है, लगभग 8 साल से मेरा इलाज चल रहा है, शादी के दो साल बाद ही मेरी तबियत खराब होने से डाक्टर को दिखाया गया, तो पता चला कि " खून बनने की क्षमता " बहुत ही कम है, जिससे मेरी नस-नस में दर्द रहता है, जो जल्द ठीक होने वाली बिमारी नहीं है, पति जी डाक्टर से इलाज शुरू करने को कहते है,
इलाज तो शुरू होता है, लम्बा इलाज से आर्थिक स्थिति पर असर पड़ता है, फिर भी किसी के कोई उदासी नहीं, वो खुश रहते है ताकि मैं खुश रहूं, मैं खुश रहती हूं ताकि वो खुश रहे, शादी के लगभग 5 साल होने के बाद, मायके और ससुराल वालों की इच्छा होती है कि मैं उन्हें नाना-नानी और दादा-दादी बनने का सौभाग्य प्राप्त कराऊं, मेरी भी दिले तमंना है, मां बनने की.......................पर मेरे पति ( राजेश) हमेशा मेरी बातों को अनसुना कर देते है, उनका कहना है कि मेरा स्वस्थ रहना ज्यादा जरूरी है बच्चा तो बाद में भी हो जायेगा, मैं आज जिद पर अड़ गई हूं,
मैं........ मुझे आपसे बहुत जरूरी बात करनी है,
पति...... अच्छा, पर इतना गुस्सा क्यों ?
मैं........ आप वादा करों कि मेरी बात मानोगे,
पति...... मैंने तुम्हारी कौन सी बात नहीं मानी, बोलो क्या बात है ?
मैं........ पहले वादा,
पति...... मेरे प्यार में कोई कमी है, तो बोलो,
मैं.........नहीं, आप बहुत अच्छे हो, मैं ही आपके काबिल नहीं,
पति...... तुम मेरे लिए क्या हो, वो तुम नहीं जानती, बस इतना जान लो कि तुम हो तो, मैं हूं,
मैं......... मैं आपको बच्चा नहीं दे पाई,
पति..... मुझे बच्चा नहीं चाहिए,
मैं...... इलाज चल रहा है तो चलने दो, बच्चें के लिए किसी और डाक्टर को दिखाते है,
पति...... हम बच्चा गोद ले लेते है,
मैं........ नहीं, मुझे मां बनना है, कल डाक्टर के चलोगे ना,
पति....... तुम्हारे हठ के सामने, अपनी जुवान खोलनी होगी, मैं नहीं चाहता था कि तुम इस सच को
जानो,
मैं......... कौन सा सच,
पति....... मेरी जान, तुम मां नहीं बन सकती,खून की कमी से तुम्हारे किडनी बहुत क्षतिग्रस्त हो चुकी
है,4 साल से तुम इसकी भी दवा खा रही हो, डाक्टर तुम्हारे मां बनने की इच्छा को देखते हुए,
मुझे एक दिन अकेले में बुलाकर सारी सच्चाई बताई, और मुझसे कहा ....... इस दवा के
साथ-साथ किडनी की दवा भी दे रहा है, मैं याद करके रोज तुम्हें दवा खिलाया करू और पापा
बनने का सपना भूल जाऊ, भूलकर भी अगर तुम मां बनने को रह जाती हो तो, बच्चे के
साथ-साथ हम सब तुम्हें भी खो देगे,
मैं.......(आंखे आंसू से भरी) शरीर पत्थर के समान अटल हो गया, चुप-चाप उनकी बाते सुने जा रही थी,
पति........( मुझे गले लगा लेते है)
मैं..........मैं फूट-फूट कर रोने लगती हूँ,
पति........(वो चुप कराते हुए) मत रोओं, घरवालों को पता चल जाएगा, मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया है,
मैं.......... क्यों ?
पति...... पागल हो, मैं नहीं चाहता कि कोई तुम्हें किसी प्रकार का अपशब्द बोले, मैंने घरवालों से कह
दिया है कि मुझमें कुछ कमी है और कुछ तुम में, इसलिए हम दोनों मां-बाप नहीं बन सकते,
मैं......... पर सच ये नहीं हैं, आप स्वस्थ हो, आप दूसरी शादी कर लो, मुझे आपका बच्चा चाहिए,
पति....... आज के बाद ऐसा फिर मत कहना, मैं बच्चा गोद ले सकता हूं, पर दूसरी शादी कभी नहीं,
" मैं सोच में पड़ गई, किसी के नफरत से आंखों में आंसू आते है, मेरी आंखे तो पति के प्यार से नम थी, मेरी कमीयों को छिपाते हुए, सारा दोष अपने ऊपर लेकर, उनका हंसता हुआ चेहरा देखकर, मेरी मौत भी मुझे उनके बाहों से अलग करने की हिम्मत नहीं करती, ज़रूर पिछले जन्म में कोई पून्य किया होगा,तब जाकर उन्हें पाया है, इतना प्यार नसीब वालों को नसीब होता है “
मेरी खुशी के लिए, वो बच्चा गोद लेने की बात को घरवालों के सामने रखते है,सास-ससुर थोड़ी देर के लिए खामोश रहते है, फिर हामी भर देते है, देखते-देखते दो साल बित जाते है, पर कहीं से बच्चे का पता नहीं मिलता जिसे हम गोद ले सके,
T.V पर " सरोगेट मदर " के बारे में सुनने के बाद, मेरे दिल में ख्याल आता है, अगर कोई मेरे लिए यह काम करने को तैयार हो जाय तो, किमत लेगी पर वह मेरे पति का अंश होगा, उनमें तो कोई कमी नहीं, कमी तो मुझमें है, होने वाला बच्चा अपना होगा,मगर वो कौन होगी, जो मेरे लिए इतना करने को तैयार होगी, घरवालों को " सरोगेट मदर " के बारे में बताया जाता है ताकि वो ऐसी महिला की तलाश कर सके, पहले तो सब एक-दूसरे को आश्चर्य भरी नजरों से देखते है, फिर समझ में आती है कि ऐसा करना भी सही है, सभी को एक महिला की तलाश है जोइस काम के लिए तैयार हो, वो भी तहे दिल से सिर्फ पैसों के लिए नहीं, छः महीना बित जाते है, पर कोई मिली नहीं,
ननद अपने पति से बोलती है, हम सब कितने लाचार है, अपने प्यारी भाभी के लिए कुछ नहीं कर पा रहे है, उनका नकली हंसी वाला चेहरा मैं साफ-साफ पढ़ पाती हूं, उनमें इतनी ममता भरी है कि मेरी बेटी उन्हें मम्मी बोलती है, पर किस्मत ने ऐसा खेल खेला कि उनकी अपनी संतान नहीं,
ननद के पति...... मुझे भी बहुत दुःख होता है,
ननद........ हम सब एक महिला नहीं खोज पाये जो सरोगेट मदर बनने को तैयार हो,
ननद के पति...... मैं कुछ सोच रहा था,
ननद........ क्या ?
ननद के पति...... अगर तुम चाहो तो सरोगेट मदर बन सकती हो,
ननद....... आपके घरवालों को बुरा तो नहीं लगेगा,
ननद के पति....... उन्हें सच बताने की क्या जरूरत, तुम्हारे भैया-भाभी हमलोगों के लिए बहुत कुछ किये
है, आज हमें उनके लिए कुछ करने का मौका मिला है, मुझे कोई आपंती नहीं, तुम अपने
मायके वालों से बात कर लो, अगर वो राजी हो जाते है तो एक साल वही रह सकती हो,
मैं यहां सब संभाल लुगां,
“ननद जब सारी बातें, मुझे और अपनी मम्मी को बताती है, मेरी खुशी का ठिकाना नहीं, कितने अच्छे है, मेरे ननद-ननदोई मेरी खुशी के लिए,इतनी बड़ी जिम्मेवारी लेने को तैयार हो गये, मैं अपने पति और ननद के साथ डाक्टर के पास जाती हूं, डाक्टर हमारी सारी बातों को सुनकर, मेरी ननद के कुछ टेस्ट लिखते है, अगर सब सही हुआ तो वह सरोगेट मदर बन सकती है,
किस्मत ने साथ दिया, सारे टेस्ट सही निकले, डाक्टर की सलाह पर चलते हुए मेरी ननद ,मेरे और अपने राजेश भैया के संतान को जन्म देने वाली है, नौ महीना तक मैं अपनी ननद कि देख-भाल करती हूं, गर्भ में पल रहे शिशु की हर हलचल को महसूस करती हूं, ऐसा लग रहा था, मानों मैं ही मां बनने वाली हूं, इंतजार के एक-एक दिन जाते हुए वो दिन भी आ जाता है, जिसका इंतजार था, डाक्टर के बताए गये, तारिख पर हमसब अस्पताल पहुंच जाते है,
वृहस्पति दिन, शाम का समय, इंतजार की घड़ी समाप्त, नये मेहमान का आगमन होता है,ननद ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया, जो लक्ष्मी और सरस्वती का रूप है, हम सब बहुत खुश हुए, " सासु मां " नवजात शिशु को मेरे गोद में देते हुए कहती है........ ये लो अपनी बेटी, तू ही है इसकी मां,
बच्ची को गोद में लेते ही, मुझमें ममता की धारा का प्रवाह बहने लगता है, खुद को संपूर्ण महससू करती हूं, उसे सीने से लगाकर मां बनने के अहसास को महसूस कर रही थी, सच में यह एहसास बहुत ही अनोखा होता है,
"अब मुझे भगवान से कोई शिकायत नहीं, मैं तो जीते-जागते भगवान के बीच रहती हूं, मेरी ननद-ननदोई, पति, सास-ससूर ,सब ने वो किया जो मैं चाहती थो, मेरी जिंदगी में सिर्फ प्यार ही प्यार है,मैंने जितना दिया उनका दुगुना मिला,
Rita Gupta.